बुलेट ट्रेन पर सियासत की सवारी
बुलेट ट्रेन का कर्ज भरने में लग जाएंगे 50 साल
अहमदाबाद/दै.मू.समाचार
देश मे केन्द्र की आरएसएस नीति वाली मोदी सरकार चुनाव से पहले ही अपनी राजनीतिक सियासत बुलेट ट्रेन से शुरू कर रही है। इसी के साथ देश को जापान के कर्ज के निचे दबा कर देश के विकास को 50 साल पीछे धकेल दिया है। देश की पहली बुलेट ट्रेन की नींव अहमदाबाद और मुंबई के बीच रखी जा चुकी है। इसे बड़ी उपलब्धि बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जापान ने जितनी सस्ती ब्याज दर पर इसके लिए लोन दिया है, उससे यह प्रोजेक्ट लगभग मुफ्त में तैयार हो जाएगा। सवाल है कि क्या वाकई जापान ने इतना सस्ता लोन दिया है? क्या वाकई इस सस्ते लोन की वजह से मेट्रो के उलट बुलेट ट्रेन फायदे का सौदा होगी? ऐसे ही तमाम सवालों का जवाब दैनिक मूलनिवासी नायक देने जा रहा है।
दैनिक मूलनिवासी नायक वरिष्ठ संवाददाता ने जानकारी देते हुए बताया कि देश की पहली बुलेट ट्रेन की नींव 14 सितंबर को पीएम नरेंद्र मोदी और जापान के पीएम शिंजो आबे ने रखी। उनका मानना है कि बुलेट ट्रेन के लिए जापान से जो सस्ते लोन का इंतजाम हुआ है, वह देश के हित में है और इस प्रोजेक्ट के आने से देश और तेजी से तरक्की करेगा। गौरतलब है कि प्रोजेक्ट की लंबाई 508 किमी लगभग है जिस पर कुल खर्च आएगा 01 लाख 10 हजार करोड़ रुपये। वहीं जापान ने लोन के रूप में भारत को दिया है 88 हजार करोड़ रुपया। जिसका ब्याज दर 0.1 फीसदी है। इस लोन की ब्याज दर की अदायगी 15 साल बाद से शुरू होगी। इससे ज्यादा गंभीर बात तो यह है कि भारत और जापान से गुप्त समझौता किया गया है जिसमें कई शर्त रखे गये हैं। शर्त यह है कि बुलेट ट्रेन से संबंधित करीब 45 फीसदी से ज्यादा सामान (पार्ट्स) जापान से ही खरीदना होगा। गौरतलब है कि यह पहला मौका नहीं है, जब जापान ने भारत के किसी प्रोजेक्ट के लिए लोन दिया हो। इससे पहले मेट्रो ही नहीं, बल्कि रेलवे के डेडिकेटिड फ्रंट कॉरिडोर के लिए भी जापान के बैंक जाइका ने लोन दिया है। इस बार खासियत यह है कि जापान ने 0.1 फीसदी की दर पर बुलेट ट्रेन के लिए लोन दिया है, जबकि दिल्ली मेट्रो के लिए वह 1.4 फीसदी की ब्याज दर पर लोन देता रहा है। यही नहीं, मेट्रो के लोन की अदायगी जहां 10 साल बाद शुरू होती है, वहीं बुलेट ट्रेन का लोन 15 साल बाद चुकाया जाना शुरू होगा। इसी तरह मेट्रो को 10 साल बाद ब्याज और मूल रकम की अदायगी शुरू करके अगले 20 साल में लोन चुकाना होता है, लेकिन बुलेट ट्रेन के मामले में यह अवधि लगभग 50 साल है।
वैसे, इस सस्ते लोन का दूसरा पहलू यह भी है कि मेट्रो के लिए अब तक बैंक जाइका के जरिए जापान ने जो भी लोन दिया है, वह सामान खरीदने की शर्त से बंधा नहीं था। यानी जाइका सीधे-सीधे मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए लोन देता रहा है। उसके साथ जापान से सामान खरीदने की शर्त नहीं थी, लेकिन बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में यह शर्त है। इस शर्त के मुताबिक, जापान बुलेट ट्रेन के लिए लोन और तकनीक तो देगा लेकिन भारत को बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के लिए लगभग 45 फीसदी सामान जापान से ही खरीदना होगा। इसमें सिग्नलिंग सिस्टम से लेकर कोच और इंजन तक शामिल हैं। इसी तरह यह शर्त भी है कि बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट से जुड़े कुछ दूसरे कामों में भी भारतीय कंपनियों के साथ-साथ जापानी कंपनियों की भागीदारी होनी चाहिए। यह शर्त इसलिए रखी गई है कि भारत बुलेट ट्रेन बनाने के मामले में एक्सपर्ट नहीं है। ऐसे में हमें तकनीक की भी जरूरत है और एक्सपर्ट्स की भी। इसलिए जापान से बुलेट ट्रेन के लिए तकनीक और सामान खरीदने की शर्त रखी गई है। इस तरह से जापान सिर्फ भारत का नहीं, बल्कि अपना भी फायदा कर रहा है।
बुलेट ट्रेन के 508 किमी लंबे प्रोजेक्ट पर 01 लाख 10 हजार करोड़ रुपये की लागत आनी है और उसमें से जापान से 88 हजार करोड़ रुपये का लोन लिया जा रहा है। इस लोन के लिए जापान सिर्फ 0.1 फीसदी ब्याज लेगा लेकिन इसका एक पहलू भारतीय और जापानी करेंसी की वैल्यू भी है। भारत में महंगाई दर लगातार बढ़ रही है, जिससे रुपये की वैल्यू कम होती जा रही है। अलबत्ता बुलेट ट्रेन के प्रोजेक्ट की लागत की बात करें तो वह मेट्रो के मुकाबले कम है। लेकिन सबसे अहम है कि क्या मेट्रो की तरह ही बुलेट ट्रेन भी घाटे का सौदा तो नहीं बन जाएगी? आगे चलकर यही होने वाला है। दिल्ली मेट्रो में किराए को लेकर फिलहाल बवाल चल रहा है। ऐसे में बुलेट ट्रेन को लेकर भी भविष्य में इसी तरह की दिक्कत आ सकती है। इसकी वजह यह है कि बुलेट ट्रेन के ट्रैक पर सिर्फ बुलेट ट्रेन ही चलेगी यानी अहमदाबाद और मुंबई के बीच चलने वाली ट्रेन ही इस लाइन पर चलेगी। ऐसे में पैसेंजरों की जरूरत के मुताबिक इस ट्रेन के सीमित ट्रिप ही लग पाएंगे। सवाल है कि ऐसे में इसका टिकट कितने का होगा? हालांकि रेलवे का दावा है कि इसका किराया राजधानी और शताब्दी जैसे ट्रेनों की फर्स्ट क्लास से कुछ ही ज्यादा होगा, लेकिन क्या 88 करोड़ रुपये सालाना ब्याज के अलावा मेंटनेंस और कर्मचारियों के खर्चों को मिलाने के बाद जो खर्च बैठेगा, उसके मुकाबले रेलवे किराये से इतनी आमदनी कर पाएगा कि बुलेट ट्रेन घाटे में न रहे? दूसरी बात यह है कि अहमदाबाद से मुम्बई की दूरी हवाई जहाज से तय करने में 40 मिनट और किराया 2500-3000 रूपये लगता है वहीं इतना ही दूरी बुलेट ट्रेन से तय करने में 03-04 घंटे का समय और 4000-5000 रूपये किरया देना होगा। यही सोचकर सस्ती हवाई यात्रा के कारण लोग अब लंबी दूरी के लिए ट्रेन के बजाय प्लेन को तरजीह देने लगे हैं। अहमदाबाद से मुंबई की जो दूरी बुलेट ट्रेन सवा दो-ढाई घंटे में तय करेगी, उसे हवाई यात्रा से महज सवा घंटे में पूरा किया जा सकता है। ऐसे में यात्रियों को लुभाने में बुलेट ट्रेन कितनी कामयाब होगी, इस यह तय करना जनता के हाथों में है।
आपको बताते चलें कि देश को ऐसा कर्जदार बनाया जा रहा है कि बुलेट ट्रेन के लिए जापान जो कर्ज भारत को दे रहा है इस कर्ज को भरने में करीब 50 साल से ज्यादा लग जाएंगे। अक्सर देखा गया है कि देश में चुनाव आते ही विकास का बिगुल बजने लगता है। हजरों योजनाएं एकाएक जन्म ले लेती हैं, ठीक वैसे ही इस साल भी एक नया पासा फेंक कर मोदी सरकार चुनावी सतरंज जीतने की फिराक में है। बुलेट ट्रेन, वो बुलेट ट्रेन है जिसका कर्ज अगले 50 साल तक भरना होगा। यह कितनी सोचने वाली बात है कि अहमदाबाद से मुम्बई के जिस यात्रा के लिए एक माह में 780 और प्रतिदिन 26 फ्लाईट उड़ान भरती हैं, वहां बुलेट ट्रेन की भी ऐसी क्या जरूरत है? लेकिन सरकार अहम मुद्दे छोड़कर गैर जरूरी बुलेट ट्रेन चलवाकर देश को ऐसा कर्जदार बनाने की राह पर है जिसे भरने में 50 साल लग जाएंगे। क्या यह भी देश के विकास के नाम पर किया गया एक चुनावी प्रचार का साधन मात्र है? अगर नहीं तो क्यों जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे का बुलेट ट्रेन हेतु किया गया रोड शो केवल अहमदाबाद में ही क्यों किया गया? जबकि बुलेट ट्रेन चलवाने की राह तो अहमदाबाद से शुरू होकर मुम्बई पर खत्म होती है। मुम्बई में इसका प्रचार क्यों नहीं किया गया? क्योंकि महाराष्ट्र चुनाव अभी दूर है। जिससे साफ जाहिर होता है कि एक बार फिर संघ संचालित मोदी सरकार का लक्ष्य बुलेट ट्रेन का इस्तेमाल कर केवल और केवल सियासी शतरंज में सफलता पाना मुख्य लक्ष्य है।
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