रविवार, 8 अक्तूबर 2017

85 प्रतिशत मूलनिवासी जाति के कारण भुखमरी, गरीबी और दरिद्रता के शिकार हैं-वामन मेश्राम


पिछले कई सालों से हमलोग इस बात को बता रहे हैं कि भारत में भूखमरी और दरिद्रता का जो कारण है, यह जाति है। अमेरिका और यूरोप का एक अर्थशास्त्री हैं, उनका अर्थशास्त्र कहता है कि ग्रोथ रेट (विकास दर) जैसे-जैसे बढ़ेगा, वैसे-वैसे गरीबी घटेगी। यह अमेरिका और यूरोप का अर्थशास्त्र है। उन्होंने इसी नजरिये से भारत की तरफ देखा। उन्होंने भारत में देखा कि भारत में ग्रोथ रेट बढ़ रहा है और गरीबी घट नहीं रही है और भूखमरी घट नहीं रही है, बल्कि बढ़ रही है तो 
अमेरिका और यूरोप के अर्थशास्त्रियों को लगा कि उनका अर्थशास्त्र क्यों फेल हो रहा है? ऐसा उनलोगों को लग रहा था कि उनका अर्थशास्त्र क्यों फेल हो रह है? मगर उनको समझ में नही आ रहा था कि इसका कारण क्या है? मैंने दुनिया को अधिवेशनों में ये बात कही थी कि अगर दुनिया के अर्थशास्त्रियों को ये जानना है कि ग्रोथ बढ़ने के बावजूद भी गरीबी, भूखमरी और दरिद्रता क्यों बढ़ रही है? यह क्यों खत्म नहीं हो रही है? 
अमेरिका और यूरोप के अर्थशास्त्रियों को वामन मेश्राम से सम्पर्क करना होगा, मैं अर्थशास्त्री नहीं हूँ। मगर इस दरिद्रता और भूखमरी का कारण जानता हूँ। मैं उन लोगों को बता सकता हूँ और बहुत विस्तार से बता सकता हूँ कि इसका वास्तविक कारण क्या है? जब डेटान को अर्थशास्त्र का नोबेल प्राईज दिया गया और उसके बारे में बहुत थोड़ा लिखकर आया और उसमें यह बताया गया कि भारत में भूखमरी और दरिद्रता का कारण जाति है। ये बात अर्थशास्त्री डेटान ने बताया। डेटान ने बताया कि भारत में भूखमरी और गरीबी का कारण जाति है, तो इसका अर्थ यह है कि शेड्यूल्ड कास्ट, शेड्यूल्ड ट्राईब, नोमेडिक ट्राईब, एमबीसी ओबीसी और इससे धर्मपरिवर्तित अल्पसंख्यक लोग भूखमरी, गरीबी और दरिद्रता के शिकार हैं, ऐसा इसका अर्थ होता है। भूखमरी का कारण जाति है, इसका वास्तविक अर्थ यह होता है। विश्लेषण करके अर्थ समझाने का प्रयास कर रहा हूँ कि इसका अर्थ यह है। 
सबसे ज्यादा खुशी की बात यह है कि पहली बार दुनिया के अर्थशास्त्री ने यह रिसर्च किया। बाबासाहब अम्बेडकर ने बताया था, उनके तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया, या भारत के लोगों ने उनके तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया। डेटान ने इस बात को सप्रमाण सिद्ध किया। यह कोई काल्पनिक मामला नहीं है। इसे प्रमाण के आधार पर सिद्ध किया। आज तक भारत में कितना प्रतिशत गरीबी है। यह भारत सरकार के द्वारा, भारत के वित्तमंत्री के द्वारा, सेंपल सर्वे के द्वारा और अलग-अलग कमिशनों के द्वारा बार-बार बताया गया कि भारत में इतना प्रतिशत गरीबी, भूखमरी और दरिद्रता है। वो जो प्रतिशत है, वो कौन से जाति के लोगों का है? ये कभी नहीं बताया। वो कौन से लोग हैं वो नहीं बताया। मगर डेटान ने जाति भूखमरी, दरिद्रता और गरीबी को कारण बताया है। यह हमारे लिए खुशी की बात इसलिए है क्योंकि डेटान वर्ल्डबैंक का अर्थशास्त्री है। भारत को मीलियन डॉलर कर्जा विश्व बैंक देती है और कर्जा देने के बाद बहुत सारी शर्ते लगाती हैं। इस तरह से उनको यह वास्तविकता मालूम हो गया और यह पहली बार हुआ कि अमेरिका और यूरोप के लोगों ने भारत में जाति को भूखमरी और दरिद्रता का कारण माना। केवल इस बात को मानी ही नहीं बल्कि उसको नोबल प्राईज का अवार्ड दिया। डेटान को नोबेल प्राईज दे दिया। इस वास्तविकता को मान्यता मिल गई, यह महत्वपूर्ण बात है। इस सिद्धान्त को दुनिया ने माना। 
केवल इतने भर से, इस समस्या का समाधान नहीं होगा। केवल इतने भर से, भारत के शासक वर्ग का हृदय परिवर्तन हो जाएगा, मुझे ऐसा नहीं लगता है। पहली बात है कि इस बात को सारे देश भर में लोगों को बताना होगा। सारे भारत में एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों को बताना होगा और समझाना होगा। इस जानकारी को देकर भारत में इस मुद्दे पर आम आदमी का आन्दोलन खड़ा करना होगा। भारत में दरिद्रता, भूखमरी और गरीबी पर आम आदमी का आन्दोलन शुरू करना होगा। एक तो ये काम करना होगा और दूसरा कि भारत से आन्दोलन करके यूएनओ और वर्ल्ड बैंक को दबाव डालना पड़ेगा कि भारत के शासक वर्गों पर सैंक्शन लाया जाय। जैसे इरान के ऊपर लाया, इराक के ऊपर लाया। इस तरह से बहुत से देशों के ऊपर लाया गया। यूनाईडेटड नेशन्स ऑर्गेनाईजेशन के द्वारा पाबंदियां लाई जाती है। 
केवल ऐसा कुछ करने से नहीं होगा। बहुत बड़े पैमाने पर भारत में आन्दोलन करना होगा और जो देश भारत का बहुत इज्जत करते हैं और भारत के प्रधानमंत्रियों का और शासक वर्ग का इज्जत करते हैं। भारत में जो उनकी एम्बेसी हैं, उनको 
मेमोरेण्डम और दस्तावेजी सबूत देना होगा, जो भारत सरकार को दिया जाता है। यह मेमोरेण्डम सभी देशों के एम्बेंसी जो भारत में है, उनको भी पहुँचाना चाहिए। लिबरलाईजेशन, ग्लोबालाईजेशन और प्राईवेटाईजेशन के युग में भारत अकेले ही अपना विकास नहीं कर सकता है। मनमोहन सिंह का समावेसी विकास (इन्क्लूसिव डेवलपमेंट) कहाँ है? मनमोहन सिंह  का भाषण आप लोगों ने टीवी पर देखा होगा। अगर दुनिया में सबसे खराब भाषण देने वाले की गिनती किया जाए तो उसमें मनमोहन सिंह का पहला नम्बर आ सकता है। मगर वो अपने भाषण में एक बहुत अच्छा शब्द का उपयोग करते थे, वह था समावेशी विकास (इन्क्लूसिव डेवलपमेंन्ट)। मनमोहन सिंह बहुत अच्छा शब्द बोलते थे, मगर समावेसी विकास का जो परिणाम आया है, वो परिणाम बहुत भयंकर है। अर्जुन सेन गुप्ता कमेटी का रिपोर्ट है। 
अर्जुन सेन गुप्ता कमेटी का रिपोर्ट कहता है कि भारत में 29 करोड़ लेगों को प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन आय 06 रूपया, 26 करोड़ लोगों का प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन आय 11 रूपया और 28 करोड़ लोगों का प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन आय 20 रूपया है। 83 करोड़ लोगों का प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन आय न्यूनतम 06 रूपया और अधिकतम 20 रूपया है। सेनगुप्ता भी वर्ल्ड बैंक का अर्थशास्त्री था। उसने भारत के 83 करोड़ लोगों का इनकम स्लैब तैयार किया। ये इस बात को प्रमाणित करता है कि भारत में दरिद्रता और भूखमरी का मामला कितने भयंकर रूप में इन लोगों के बीच में फैला हुआ है। यह सर्वव्यापी है।
जनवरी 2015 में नवभारत टाईम्स में एक आंकड़ा प्रकाशित हुआ। उसमें उन्होंने कहा कि प्रतिवर्ष दस लाख बच्चे पाँच साल के उम्र का होने के पहले ही मर जाते हैं, उसमें शेड्यूल्ड कास्ट के 21 प्रतिशत हैं। शेड्यूल्ड ट्राईब के 29 प्रतिशत हैं और ओबीसी के 20 प्रतिशत हैं और देहात के 21 प्रतिशत हैं। ये सारे के सारे हमारे लोग हैं। इसलिए मैं ये कहना चाहता हूँ कि हमारे देश में जो भूखमरी और दरिद्रता है, इस भूखमरी और दरिद्रता के माध्यम से हमारे लोगों  को सामूहिक रूप से मरवाने का कार्यक्रम चलाया जा रहा है। हमारे लोगों का नरसंहार किया जा रहा है। देश के प्रधानमंत्री को फाँसी पर भी चढ़ाए जाने के लिए आन्दोलन किया जाना चाहिए। क्योंकि ये रेसियल डिस्क्रीमिनेशन (वंशिय भेदभाव) है। यह यूनाईटेड नेशन्स ऑर्गेनाईजेशन के चेप्टर में बहुत बड़ा अपराध है। आप यूनाईटेड नेशन्स ऑर्गेनाईजेशन का डिक्लेरेशन पढ़ो। एससी, एसटी, ओबीसी और इनसे धर्मपरिवर्तित मायनॉरिटी का रेस और भारत के शासक जाति का रेस अलग-अलग है। इसका मतलब है कि यह भूखमरी रेशियल डिस्क्रिमिनेशन का नतीजा है और इसके आरोप में देश के प्रधानमंत्रियों को फाँसी पर चढ़ाना चाहिए। आप लोगों को शायद मजाक लग रहा होगा, इसे मैं मजाक के लिए नहीं कह रहा हूँ, ये भयंकर अपराध है। 
देश के प्रधानमंत्रियों को इस अपराध के लिए सजा देने की मांग उस देश के प्रजा के द्वारा की जा सकती है और इसके लिए सड़क पर उतरकर दुनिया के देशों के जो दूतावास भारत वर्ष में है, वहाँ के एम्बेसेडर के पास जाकर मेमोरण्डम दिया जा सकता है। एम्बेसेडर को मेमोरण्डम देने से उस देश के प्रधानमंत्री को यह संदेश पहुँच जाएगा। जब उस देश का प्रधानमंत्री, भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बात करने के लिए जाएगा तो वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बोलेगा कि आपके देश से मेमोरेण्डम हमारे पास आया है। इसके बारे में आपका क्या कहना है? वो प्रधानमंत्री शायद पब्लिक में नहीं कहेगा मगर प्राईवेट में नरेन्द्र मोदी को इसके बारे में जवाब पूछ सकता है। अगर भारत में आन्दोलन ज्यादा उग्र हुआ तो फिर वो प्रधानमंत्री पब्लिकली भी बोल सकते हैं। अगर भारत में जनमत ज्यादा प्रभावित हुआ तो वो लोग खुलेआम इसके विरोध में बोल सकते हैं। ऐसा किया जा सकता है और हमें ऐसा करना होगा। क्योंकि ये मुद्दा हमें राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाना होगा। क्योंकि अर्थशास्त्री डेटान ने दुनिया में जनमत बना दिया है। नोबेल प्राईज की वजह से हमारा काम आसान हो गया है। यूएनओ के लोगों के सामने डेटान के लेकर जाओ तो हमें ज्यादा समझाने की जरूरत नहीं है। 
यूएनओ और यूरोपियन यूनियन के लोगों की एक आदत है कि वे कहते थे कि भारत में अगर रेशियल डिस्क्रिमिनेशन की वजह से दरिद्रता और भूखमरी है, तो मेरे पास से डाटा ले जाओ। पहले हमारे पास डाटा की समस्या होती थी। फिर डाटा को कोरिलेट (संविधान) करके उसको प्रमाणित करने की समस्या होती थी। अब तो ये समस्या खत्म हो गई। अब तो डेटान ने खुद ही इसको प्रमाणित कर दिया। यूरोप के ही अर्थशास्त्री डेटान ने इसे खुद ही प्रमाणित कर दिया। वह कोई मामूली आदमी नहीं, वह अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार विजेता है। भारत सरकार के सैम्पल सर्वे का जो डाटा (आँकड़ा) है। उन आँकड़ों को इकट्ठा करके और विश्लेषण करके बता दिया है। इसलिए मैं ऐसा मानता हूँ कि अब इसे मुद्दा बनाया जाना चाहिए और मैं 2016 में ऐसा सोचता हूँ कि इस पर राष्ट्रीय अभियान चलाने के लिए (जो हर साल चलाते हैं) हमारे पास विषय होना चाहिए, तो यह एक बहुत बड़ा विषय है। दूसरे कुछ लोग हमको कहते भी हैं कि आपका आर्थिक विषयों पर आपका कुछ दिखता नहीं है। चलो ठीक है, अब दिखाते हैं और थोड़ा उग्र रूप से दिखाते हैं, तो शायद पता चलेगा कि अर्थशास्त्र पर भी बामसेफ की पकड़ है। जो दावा करने वाले अर्थशास्त्री हैं, उससे ज्यादा पकड़ हमारे पास में है। हम इसको प्रमाणित करके बतायेंगे कि किस तरह से सही ढंग से दुनिया के सामने पेश किया जा सकता है। यह एक महत्वपूर्ण बात है। ऐसा हम लोगों को आने वाले समय में करना होगा। 
अभी मेरे पास में इन्टरनेशनल एजेंन्सी का रिपोर्ट है, वो रिपोर्ट बहुत भयंकर है और बहुत चौकाने वाला है। भूखमरी और दरिद्रता का मामला कैसे शुरू हुआ? उसका रहस्य उजागर करने वाला रिपोर्ट है। ये जो एजेन्सी है उस एजेन्सी का नाम क्रेडिट स्वीसे है। क्रेडिट स्विसे वर्ल्ड लेवल की एजेन्सी है। इसने यह रिपोर्ट पब्लिस किया है। दैनिक भास्कर नाम के अखबार में यह रिपोर्ट पन्द्रह सोलह लाईन में छपकर आया है। हजारों पेज का रिपोर्ट केवल पन्द्रह सोलह लाईन में छपकर आया है। बहुत सारे लोगों ने इस पर ध्यान भी नहीं दिया होगा। पहले मैं इसे पढ़कर सुनाता हूँ ताकि आपको अपने से भी कुछ समझ में आए। इस पर विश्लेषण थोड़ी देर में बताऊँगा। इसका टाईटल है ‘‘भारत में आविष्कार स्तर तक पहुँचती विषमता।’’ इसमें लिखा है कि 
‘‘आर्थिक गैर-बराबरी दुनिया भर में बढ़ी है। इस कठोर सच्चाई से तो सभी परिचित हैं, लेकिन यह खाई कितनी चौड़ी हो चुकी है, उसका अन्दाजा शायद पहली बार लगा है। क्रेडिट स्विसे नामक एजेन्सी की वैश्विक धन के बंटवारे के बारे में जारी रिपोर्ट से सामने आया है कि भारत में सबसे धनी एक फीसदी आबादी के पास देश का 53 प्रतिशत धन है। दूसरे 50 प्रतिशत गरीब जनता के पास देश की सिर्फ 4.1 प्रतिशत सम्पत्ति है। साफ है कि 
सामाजिक-आर्थिक न्याय के सरोकारों के तमाम दावों के बावजूद गैर-बराबरी तेजी से बढ़ रही है। परिणाम है कि साल 2000 में सबसे धनी दस फीसदी लोगों के पास देश की 36.8 प्रतिशत सम्पत्ति थी, जो आज अर्थात 2015 में 65.9 फीसदी तक पहुँच गई है। केवल पन्द्रह साल में लगभग दोगुनी हो गई है। यानि बीजेपी के अटल बिहारी वाजपेयी और कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार में, ये लोग राज कर रहे थे तो ये दस फीसदी लोगों की सम्पत्ति दोगुनी हो गई। 
गौरतलब है कि 2000 से लेकर 2015 की अवधि में पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, फिर यूपीए और पिछले सोलह महीने में एनडीए की शासन भारत में है। यानि चाहे जिस विचारधारा की भी सरकार आई हो, आर्थिक रूझान एक जैसे ही है। गैर-बराबरी अक्सर समाज में अशान्ति और राजनैतिक उथल-पुथल की वजह बनती है। अमेरिका और यूरोप में हाल के वर्षों में विषमता सबसे बड़ा राजनैतिक मुद्दा बनकर उभरी है। वहाँ के राजनैतिक दल एक फीसदी बनाम 99 फीसदी की बहस में हस्तक्षेप करने और गैर-बराबरी घटाने वाली नीतियाँ घोषित करने के लिए मजबूर हुए हैं। भारत में अब तक यह मुद्दा बहुत चर्चित नहीं था, लेकिन अनुमान लगाया जा सकता है कि ताजा रिपोर्ट के बाद इस पर बहस टालना सम्भव नहीं होगा।’’ 
हम तो इसको तर्क संगत अंजाम तक पहुँचाने की कोशिश करेंगे। इसके लिए बामसेफ, भारत मुक्ति मोर्चा और भारतीय विद्यार्थी मोर्चा पूरी ताकत से 2016 में जुटाने की कोशिश करेगा। आगे लिखा है कि ‘‘असल में भारत में गैर-बराबरी अमेरिका से अधिक हो चुकी है। 
अमेरिका में टॉप एक प्रतिशत आबादी के पास देश की 37.3 प्रतिशत धन होने की बात, इस एजेन्सी ने सामने लाई है। भारत में हालत यह है कि जितना राष्ट्रीय धन पैदा हो रहा है। उसका बहुत बड़ा हिस्सा चन्द लोगों की तिजोरी में जा रहा है। ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2000 और 2015 के बीच भारत में 2284 खरब डॉलर धन पैदा हुआ। अर्थात 12  सौ लाख करोड़ रूपया धन पैदा हुआ। इसका 61 प्रतिशत हिस्सा सर्वोच्च एक प्रतिशत जनता के पास गया। टाप दस प्रतिशत आबादी के पास कुल उत्पन्न राष्ट्रीय धन का 81 प्रतिशत भाग चला गया है। इन तथ्यों के मद्दे नजर क्या इसमें कुछ अस्वाभाविक है कि देश की बहुतेरी जनता फटेहाल नजर आती है। सरकारों और सियासी पार्टियों को इस समस्या को गम्भीरता से लेना चाहिए। संसाधनों और धन का न्यायपूर्ण वितरण कैसे हो? यह सवाल अब सर्वोपरि महत्व का हो गया है।’’ कम से कम अखबार में तो हो ही गया है। 
साथियों, ये जो बात मैंने अप लोगों को पढ़कर सुनाई। जैसे डेटान की बात पहली बार आई, वैसे भारत के बारे में ये जो रिपोर्ट धन के वितरण के बारे में है, यह भी पहली बार आई है। सरकार चाहे बीजेपी की हो या कांग्रेस की हो, सरकार तो इनका ही है। हमें बीजेपी और कांग्रेस के लोग ये बताते हैं कि एक सेक्यूलर है और एक कम्यूनल है। दोनों की विचारधाराएं भिन्न हैं। कांग्रेस बीजेपी के विरोध में लड़ती है और बीजेपी कांग्रेस के विरोध में लड़ती है। ये परस्पर विसंगत विचारधारा वाली सरकार है। ऐसा दोनों पार्टी के लोग चिल्ला-चिल्लाकर कहते हैं। मगर आर्थिक क्षेत्र में दोनों पार्टियों का नतीजा एक जैसा है। यह समझने की बात है कि दोनों नतीजा एक जैसा है। 
अगर ऐसा है, तो जो बातें हम पिछले चालिस सालों से बता रहे हैं, ये दस्तावेजी सबूत इस बात को प्रमाणित करता है कि बामसेफ और भारत मुक्ति मोर्चा जो बता रहा है, क्रेडिट स्विसे नाम का जो रिसर्च ऑर्गेनाईजेशन है, उसने आँकड़़ों के आधार पर इसे सिद्ध कर दिया। इस अखबार में जो पन्द्रह लाईन छपकर आया है, इन्टरनेट पर इसका लम्बा रिपोर्ट है। हम लोगों को 
विस्तार से वो रिपोर्ट देखना चाहिए और आने वाले समय में उस रिपोर्ट की कॉपियाँ भारतीय भाषा में लोगों को अनुवाद करके बताई जा सकती है। इसे निश्चित रूप से बताई जानी चाहिए। इस रिपोर्ट को हम भारतीय भाषा में प्रकाशित करने की कोशिश करेंगे ताकि लोग इसका अभ्यास करें। कम से कम बामसेफ और भारत मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता तो इसका अभ्यास जरूर करें, तो ज्यादा से ज्यादा लोग जानकार हो सकते हैं। ये जो रिपोर्ट हमारे सामने आया है। इससे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात हमारे सामने आती है, वो दस्तावेजी सबूत के आधार पर आती है। क्योंकि डेटान ने जो रिपोर्ट पब्लिस किया, उसके बाद का यह रिपोर्ट है। अगर दोनों रिपोर्ट को परस्पर आपस में जोड़ दिया जाय और आपस में जोड़कर देखा जाय तो उसने दरिद्रता और भूखमरी बताई और इसमें सम्पत्ति का संग्रहण से जुड़े हुए मामले हैं। समझाने के लिए हमें इसको समझना है। इस दोनों रिपोर्ट को आपस में जोड़कर समझना होगा। 
मैं ऐसा मानता हूँ कि आज का जो जमाना है, वो जमाना ज्ञान (नॉलेज) का है। दुनिया में नॉलेज की इकोनॉमी बढ़ रही है। नॉलेज की इकोनॉमी में इन्फॉरमेशन के आधार पर दुनिया में एक इन्डस्ट्री (उद्योग) खड़ी हो गई है। जो दुनिया का सबसे धनी आदमी बिल गेट्स नॉलेज इन्डस्ट्री के आधार पर दुनिया का पहले नम्बर का आदमी हुआ है। नॉलेज को आधार बनाकर दुनिया में इन्डस्ट्री खड़ी हुई है। यह नॉलेज बेस्ड इन्डस्ट्री है। पहले नॉलेज बेस्ड इन्डस्ट्री नहीं हुआ करती थी। इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलोजी के पहले नॉलेज बेस्ड इन्डस्ट्री नहीं हुआ करती थी। अभी जमाना नॉलेज बेस्ड इन्डस्ट्री का है। मैं ऐसा मानता हूँ कि हमलोगों को आने वाले समय में इन नॉलेज का और इस इन्फॉर्मेशन को बहुत पैमाने पर सोशल मीडिया का उपयोग करके, इस जानकारी को बहुत बड़े पैमाने पर फैलाने का काम करेंगे।
साथियों, इसके लिए पहले 2016  में राष्ट्रीय स्तर का अभियान चलाया जाएगा और दूसरा इसके बाद देश भर में प्रदर्शन और रैलियों का आयोजन किया जाएगा और तीसरा इसके लिए राष्ट्रीय स्तर की एक रैली दिल्ली में आयोजित की जाएगी। चौथा यूनाईटेड नेशन्स ऑर्गेनाईजेशन के तरफ और दुनिया के देशों के एम्बेसी (दूतावास) के एम्बेसेडर के पास में मेमोरण्डम दिये जायेंगे। जो भारत सरकार को मेमोरण्डम दिया जाएगा, वही मेमोरेण्डम एम्बेसी में एम्बेसडर को दिया जाएगा और दुनिया के लोगों को इस पर ध्यान देने के लिए कहा जाएगा। यूनाईटेड नेशन्स ऑर्गेनाईजेशन को इसमें हस्तक्षेप करने के लिए कहा जाएगा। यूएनओ को किसी देश में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। मानवाधिकार के उल्लंघन के आरोप में हस्तक्षेप करने का अधिकार है। रेशियल डिस्क्रीमिनेशन (वंशिय भेदभाव) दुनिया का सबसे बड़ा मानवाधिकार का उल्लंघन है। भारत में भूखमरी और दरिद्रता जाति के आधार पर है। इसका मतलब है कि इस देश का शासक वर्ग जाति के आधार पर लोगों को भूखमरी से मरवा रहा है। 
यह स्पष्ट रूप से मानवाधिकार का उल्लंघन है। इसको 
इन्टरनेशनल केस में परिवर्तित किया जाए, इसके लिए कोशिश करेंगे। इसको मुद्दा में रूपान्तरित करना होगा, क्योंकि हमारे पास में प्रतिनिधित्व नहीं है। पार्लियामेंट में 131 सांसद एससी और एसटी के हैं। उन लोगों को गुलाम बनाकर रखा गया है। जब हमारे एमएलए और एमपी को गुलाम बनाकर  रखा गया है, तो हम लोगों  की क्या औकात है। वो लोग जिन्होंने हमारे एमएलए और एमपी को गुलाम बनाकर रखा तो हम लोगों की क्या औकात है? वो लोग हमारे लोगों की औकात मानने के लिए राजी नहीं हैं। दुनिया में जिन लोगों की औकात मानी जाती है, उन लोगों को हस्तक्षेप करने के लिए कहना होगा, भारत सरकार भी उनकी औकात मानती है। भारत सरकार का जो शासक वर्ग है, उसको दुनिया के सामने नंगा करना होगा। और इसके लिए सोशल मीडिया का बड़े पैमाने पर उपयोग करना होगा। आने वाले समय में हम लोग ये काम करेंगे। इसी आशा और विश्वास के साथ आपने अपनी बात समाप्त की।

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