बुधवार, 25 सितंबर 2019

बाबासाहब या भगवान : डॉ0अम्बेडकर




एक बड़ा सा छायादार वृक्ष, हर कोई उसकी छाया में बैठ सके, आराम कर सके। फिर प्रवेश होता है परजीवियों का अमरबेल कह लो, वो धीरे धीरे सारे वृक्ष पर छाती चली जाती है। अब कुछ सालों बाद वृक्ष मर जाता है और छाया की बात तो अब अतीत भी नहीं लगती। बाबासाहेब अपने कामों की वजह से अमर हुए पर अब उनको मार देने का काम चल रहा है। विचारों का खत्म हो जाना मृत्यु ही तो है, बाबासाहेब विचारों के माध्यम से हमारा मार्गदर्शन करते आ रहें हैं किन्तु अब उनके विचारों को बिल्कुल ही बदला जा रहा है, मै इसे मृत्यु से कम कुछ और कह ही नहीं सकता। बाबासाहेब अम्बेडकर या भगवान अम्बेडकर ? आपको खुद स्वयं तय करना होगा कि आपको कौन से अंबेडकर चाहिए।

👉बाबासाहेब अम्बेडकर की जयंती :- क्या आपने उनकी प्रतिमा का पंचामृत से अभिषेक किया ? नहीं ? ओ हाँ! यह तो उनके विचारों के उलट है। ठीक वैसे ही जैसे मंदिर में शराब और कबाब ? ठीक है मंदिर में शराब नहीं पी जा सकती, मांस नहीं खाया जा सकता तो हिंदुत्व का झंडा उठाने वालों की हिम्मत कैसे हुई दूध से बाबासाहेब की प्रतिमा को नहलाने की ? क्या एक अछूत को पवित्र किया जा रहा था ? मैं इसे एक अपराध ही मानता हूँ। भीलवाड़ा, राजस्थान में काँग्रेस ने बाबासाहेब की 126वीं जयंती (14अप्रैल2017) के मौके पर 126दीपक जलाकर, 126 लीटर दूध से स्टेशन रोड स्थित उनकी प्रतिमा का अभिषेक किया। इस घटिया काम के लिए 126लीटर दूध जो कि किसी और अच्छे काम मे लाया जा सकता था, बेकार कर दिया गया। कहीं भजन संध्या का आयोजन हुआ, कहीं हिंदुत्व पर चर्चा, कहीं लड्डुओं का भोग। भीलवाड़ा की ही तहसील मुख्यालय रायपुर में सवर्ण महिलाओं ने 5100 कलशों की शोभा यात्रा निकाली। ऐसा लग रहा है कि जैसे हमे चिढ़ाया जा रहा है कि कर लो जो करना हो, हम तो बाबासाहेब को भगवान बना कर ही रहेंगे।

👉बाबासाहेब के प्रति RSS का रवैया :- जिस RSS ने भारतीय संविधान पारित होने के ठीक 15वें दिन ही बाबासाहेब का पुतला 11दिसंबर 1949 को रामलीला मैदान, नई दिल्ली में जलाया था, फिर आज क्यों उनको यह जयंती मनानी पडी ? कुछ मित्र कह सकते हैं कि यह वोट बैंक का लफडा है, कुछ कह सकते हैं कि बाबा साहेब के विचारों के आगे उनको झुकना ही पडा। ये तो ठीक है कि वोट बैंक के लिए यह किया जा रहा है पर भीतर कुछ और बात है और वो यह कि बाबासाहेब के विचारों को बदला जा रहा है। जिस हिंदुत्व के खिलाफ बाबासाहेब मरते दम तक लिखते और बोलते रहे, आज उन्हीं हिंदुत्ववादी आयोजनों में बाबासाहेब की प्रतिमा या तस्वीरें देखने को मिल रही है जहाँ उनके विचारों का कोई लेना देना नहीं।
👉बाबासाहेब का भविष्यकालीन आईना :- आज से पांच सौ या हजार साल बाद बाबासाहेब अम्बेडकर को किस तरह याद किया जाएगा ? ये मेरा सवाल उन तमाम लोगों से हैं जो आज खुद को बाबासाहेब की विचारधारा का समर्थक/अनुयायी मानते हैं, जो समानता की बात करते हैं, जो धर्म से आगे देश की बात करते हैं। शायद कुछ सालों बाद बाबासाहेब को भगवान का दर्जा देकर उनके मंदिर भी बना दिए जाएंगे, भजन सत्संग होंगे और हम खुश होकर कहेंगे कि हमारे बाबा साहेब भगवान हो गए। और फिर से गुलामी का दौर शुरू, समानता खत्म और सब कुछ फिर से भगवान भरोसे। भगवान यूँ ही बनाए जाते रहे हैं और तब बाबा साहेब और उनके विचार पूरी तरह मर चुके होंगे। ऐसे में कुछ मूलनिवासी इतिहासकार अगर बचे होंगे तो बहस होगी कि क्या अम्बेडकर अछूत थे ? जी हां! आज सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक पर इस तरह की ही बहस होती है। क्योंकि और कोई तरीका नहीं है उस क्रांतिकारी विचारक, नेता और व्यवस्था परिवर्तक को मार डालने का। RSS और तमाम मनुवादी इस रास्ते पर चल पडे हैं, इससे वोट भी मिल सकता है और भगवाकरण तो हो ही रहा है।

👉डॉ0अम्बेडकर बाबासाहेब या भगवान :- बाबा साहेब और भगवान में फर्क नहीं समझे ? बाबा साहेब तो किसी तरह किताबों से बाहर आ जाएंगे किन्तु याद रहे आपकी समानता की वकालत करने और आपके हक में भगवान अम्बेडकर मंदिर से कभी नहीं निकलेंगे। भगवान अम्बेडकर के यहाँ तो गरीब, अमीर, वीआईपी इत्यादि की लाईन लगी होगी। आप तो अछूत ठहरे, आपको तो मंदिर मे जाने ही नहीं दिया जाएगा और ब्राह्मण/पुरोहित अम्बेडकर के नाम पर भी पैसा कमाएंगे। वैसे भी मंदिर में जाकर करोगे क्या ? यदि गलती से भी भगवान अम्बेडकर के मंत्र, चौपाई और भजन सुन लिए तो मार पडेगी मुफ्त में। वैसे सुन कर करोगे भी क्या ? ये जो अधिकारों की बात करने लगे हो ना! सब भूल जाओगे। अम्बेडकर के जयकारों के बीच, गुलामों की तरह आवाज दब कर रह जाएगी। हमें जो चाहिए वो यह कि हम इस चाल को समझे, उन का जन्म दिवस हो या परिनिर्वाण दिवस, झूठे पांडित्य से दूर रहें व इस तरह के आयोजन का हर स्तर पर विरोध करें और मेरे ख्याल से न्यायालय भी इसका एक रास्ता है। थोड़ा थोड़ा बदलाव ही एक दिन बाबासाहेब का हर विचार बदल देगा। खतरा सामने है तय करो क्या चाहिए बाबासाहेब अम्बेडकर या भगवान अम्बेडकर। इस बार की अम्बेडकर जयंती पर अम्बेडकर की प्रतिमा को दूध से नहलाया गया, अगले साल हो सकता है कि गंगाजल छिड़का जाए और फिर हो सकता है कि भविष्य में अम्बेडकर का कोई मंदिर भी बनवा दिया जाए। ब्राह्मणवादी लोग इस तरह के काम करते आए हैं। जहां से भी कोई क्रांति और बगावत की बू आए तो उसे पूजा-पाठ में उलझा देना चाहिए, शायद अंबेडकर के साथ भी यही होने जा रहा है। ठीक वैसे ही जैसे तथागत बुद्ध को विष्णु का 9वां अवतार बनाकर भगवान बुद्ध बना दिया गया है।

👉भगवान बनने से रोकने का उपाय :- इसको रोकने का मुझे एक उपाय सूझ रहा है कि अम्बेडकर जयंती पर जहां कहीं भी पोस्टर बनाए जाएं, तो उन पोस्टरों में अंबेडकर की तस्वीर के साथ उनकी 22 प्रतिज्ञाएँ भी होनी चाहिए। जिस पोस्टर में 22प्रतिज्ञाएँ नहीं होगी, वो पोस्टर स्वीकार नहीं किया जाएगा। तब पता चलेगा RSS, BJP और Congress वालों को, कि अम्बेडकर जयंती कैसे मनाई जाती है। बाबासाहेब अम्बेडकर की 22प्रतिज्ञाएँ ही आपकी सुरक्षा कवच का काम करेंगी। बौद्ध विहार, पार्क या मैदान, जहां भी अम्बेडकर जयंती मनाई जाए, वहाँ मंच से बाबा साहेब अम्बेडकर की 22प्रतिज्ञाएँ भी बोली जाएं और जबतक नहीं बोली जाएंगी, तबतक अम्बेडकर जयंती का उत्सव पूरा नहीं माना जाएगा। आखिर यह कोई रामलीला तो है नहीं कि आए, खाये-पिये और चल दिये।

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