सोमवार, 16 सितंबर 2019

मूलनिवासी बहुजनों का साझा आंदोलन




पिछड़े वर्ग के महापुरुषों द्वारा शुरू की गयी साझी लड़ाई को केवल अनुसूचित जाति की लड़ाई समझना पिछड़े वर्ग के समस्याओं का मूल कारण है. पिछड़े वर्ग को यह लगता है कि ब्राह्मण के विरोध की लड़ाई अनुसूचित जाति की लड़ाई है. इस सोच ने पिछड़े वर्ग का सबसे ज्यादा नुकसान किया है. क्योंकि, पिछड़े वर्ग को अपने महापुरुषों के वास्तविक इतिहास को दूर रखा गया है और हमारे पुरखों के साहित्य को षड्यंत्र पूर्वक दलित साहित्य, और हमारे पूर्वजों को दलितों का महापुरुष घोषित किया गया है. जबकि, दलित शब्द असंवैधानिक शब्द है. सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि किसी भी सरकारी, अर्धसरकारी या गैरसरकारी क्षेत्रों में बोलचाल और लिखित रूप में ‘दलित शब्द’ का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. इसके बाद भी लोग दलित शब्द का प्रयोग कर रहे हैं.

जबकि, हम बहुजन मूलनिवासी की बात करते हैं तो पिछड़े वर्ग को यह लगता है कि यह तो अनुसूचित जातियों की लड़ाई है. लेकिन, जब हम इतिहास का अध्यन करते हैं तो पता चलता है कि प्राचीन भारत में ब्राह्मणवाद के विरोध में सबसे बड़ी लड़ाई पिछड़े वर्ग के महामानव तथागत बुद्ध ने लड़ी और बहुजन संकल्पना दिया और इसी की वजह से मौर्य साम्राज्य स्थापित हुआ. यही नहीं, आधुनिक भारत में इस लड़ाई को राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले ने बढ़ाया. राष्ट्रपिता जोतिराव फुले भी पिछड़े वर्ग से थे. राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले ने किया मूलनिवासी संकल्पना दिया. क्योंकि वे कहते थे कि भारत में रहने वाले एससी, एसटी, ओबीसी, एनटी, डीएनटी, बीजेएनटी और इन लोगों से धर्म परिवर्तित करने वाले मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और लिंगायत मूलनिवासी है. जबकि, ब्राह्मणों को विदेशी कहते थे. उन्होंने लिखा है आर्य इरानी है.

राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले ने जो बात कही उसे छत्रपति शाहूजी महाराज ने अपने राज्य में लागू किया. जबकि, छत्रपति शाहूजी महाराज भी ओबीसी थे. डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर ने लिखा है कि प्राचीन भारत में ब्राह्मणवाद को समाप्त करने का कार्य तथागत बुद्ध और सम्राट अशोक ने किया, मध्यकालीन भारत में संत तुकाराम, छत्रपति शिवाजी महाराज, गुरु गोविंद सिंह, संत रविदास, संत कबीर सहित तमाम संत, महापुरुषों ने इसके विरोध में लड़ाई लड़ी. आधुनिक भारत में राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले ने फुले और छत्रपति शाहू महाराज की लड़ाई की वजह से डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर ने ब्राह्मणवाद को समाप्त कर भारतीय संविधान लागू किया. इसी आन्दोलन को पेरियार रामास्वामी नायकर, संत गाडगे महाराज, डा.रामस्वरूप वर्मा, कर्पूरी ठाकुर, जगदेव बाबू कुशवाहा, पेरियार ललई सिंह यादव और मान्यवर काशीराम आगे बढ़ाया. यानी हमारे सभी संत, महापुरूष अगल-अलग जाति के होकर भी किसी विशेष जाति के लिए लड़ाई नहीं लड़ी, बल्कि बहुजनों के लिए लड़ाई लड़ी. इसलिए यह लड़ाई केवल अनुसूचित जाति की लड़ाई नहीं है, यह लड़ाई ओबीसी के महापुरुषों द्वारा शुरू की गयी मूलनिवासी बहुजनों की साझी लड़ाई है.

हमारे महापुरुषों ने ब्राह्मणवादी व्यवस्था के विरोध में मिल-जुलकर साझी लड़ाई लड़ी. जब राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले को जरूरत पड़ी तो फातिमा शेख, उस्मान सेख ने ज्योतिबा फुले को मदद किया. जब डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर की जरूरत पड़ी तो छत्रपति शाहू महाराज ने मदद की और गोलमेज सम्मेलन में मुसलमानों ने बाबासाहेब का साथ दिया और संविधान सभा में भेजने का कार्य किया. जब डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर को संविधान लिखने का मौका मिला तो डॉ. बाबसाहब अम्बेडकर ने एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों के लिए हक अधिकार दिया. लेकिन, आज ओबीसी के लोग यह समझ रहे हैं कि यह लड़ाई एससी, एसटी की लड़ाई है. यह लड़ाई एससी, एसटी की लड़ाई नहीं है. यह लड़ाई मूलनिवसी बहुजन समाज की लड़ाई है. लेकिन, हम सभी इस साझी लड़ाई को भूलकर ब्राह्मणों द्वारा लगाये गये आपसी झगड़े में फंस गये हैं, जिसकी वजह से हम मूलनिवासियों की समस्याएं बढ़ गयी है  और लोकतंत्र पर ब्राह्मणों का अनियंत्रित कब्जा हो गया है. इसलिए हमें मूलनिवासी बहुजन की इस साझी लड़ाई को एक साथ मिलकर लड़नी होगी और अपने अधिकार को हाशिल करनी होगी.

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