बुधवार, 25 सितंबर 2019

मूलनिवासी बहुजनों जागो और जगाओ.....!



डॉ.बाबसाहब अंबेडकर ओबीसी को जितना आरक्षण देना चाहते थे, तत्कालीन भारत सरकार उनके इस प्रस्ताव से सहमत नहीं थी. जब सरकार ने बाबासाहब की बात नही मानी तो उन्होंने कानून मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. भारत के कितने प्रतिशत ओबीसी बाबासाहब की इस कुरबानी के बारे में जानते हैं? ओबीसी को छोड़ो एससी और एसटी के कितने लोग जानते हैं? डॉ.बाबासाहब अंबेडकर ने अनुच्छेद 340 में ओबीसी आरक्षण के विषय में क्या लिखा है. इस सच्चाई को एससी, एसटी और ओबीसी को जानने की जरूरत है.

1ः अनुच्छेद 341 के अनुसार अनुसूचित जाति को 15 प्रतिशत प्रतिनिधित्व दिया.  
2ः अनुच्छेद 342 के अनुसार अनुसूचित जनजाति को 7.5 प्रतिशत प्रतिनिधित्व दिया.
3ः और इन वर्गो का विचार करने से पहले डा.अंबेडकर ने सर्वप्रथम ओबीसी अर्थात अन्य पिछड़ी जातियों का विचार किया था. इसलिए बाबासाहब ने अनुच्छेद 340 के अनुसार ओबीसी को सर्वप्रथम प्राथमिकता दी.
4ः अनुच्छेद 340 के अनुसार ओबीसी को 52 प्रतिशत प्रतिनिधित्व देने का प्रावधान किया. 

उस समय सरदार पटेल ने इसका जमकर विरोध करते हुए डॉ.बाबसाहब अम्बेडकर से पूछा ये ओबीसी कौन है? ऐसा प्रश्न सरदार पटेल ने स्वंय ओबीसी होते हुए पूछा था. क्योंकि, उस समय तक एससी और एसटी में शामिल जातियों की पहचान हो चुकी थी और आबीसी में शामिल होने वाली जातियों की पहचान जो आज 6500 से अधिक है, का कार्य पूर्ण नहीं हुआ था. यानी सरदार पटेल को तब तक नहीं मामूल था कि वह भी ओबीसी कटेगरी में आता है. कोई भी अनुच्छेद लिखने के बाद डॉ.बाबासाहब अंबेडकर को उस ‘अनुच्छेद’ को प्रथम तीन लोगों को दिखाना पड़ता था. पहला-पंडित नेहरू, दूसरा राजेंद्र प्रसाद और तीसरा सरदार पटेल. इन तीनों की मंजूरी के बाद उस अनुच्छेद का विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं थी. उस समय संविधान सभा में कुल 308 सदस्य होते थे, जिसमें से 212 काँग्रेस के सदस्य थे.

सभी पिछड़ी जातियों को इस महत्वपूर्ण तथ्य पर ध्यान देना चाहिए कि पहले अनुच्छेद 340 है. इसके बाद अनुच्छेद 341 और 342 है. असल में 340वां अनुच्छेद है क्या? उस समय डॉ. बाबासाहब अंबेडकर ने 340वां अनुच्छेद का प्रावधान किया और सरदार पटेल को दिखाया. उसपर सरदार पटेल ने डॉ. बाबासाहब अंबेडकर से प्रश्न किया ये ओबीसी कौन है? हम तो एससी और एसटी को ही बैकवर्ड मानते है. ये ओबीसी आप कहाँ से लाये? सरदार पटेल भी बैरिस्टर थे और वह स्वयं ओबीसी होते हुए भी उन्होंने ओबीसी से संबंधित अनुच्छेद 340 का विरोध किया. किंतु, इसके पीछे की बुद्धि सिर्फ गाँधी और नेहरू की थी. तब डा.बाबासाहब अंबेडकर ने सरदार पटेल से कहा ‘‘इट इज आज राईट मि.पटेल’’ मैं आपकी बात संविधान मे डाल देता हूँ. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 340 में सरदार पटेल के मुख से बोले गये वाक्य के अधार पर 340वें अनुच्छेद के अनुसार इस देश के राष्ट्रीय नेता जो कि स्वयं अन्य पिछड़ा वर्ग से हैं उन को ओबीसी कौन हैं नहीं मालूम था? और इनकी पहचान करने के लिए एक आयोग गठित करने का आदेश दे रहे हैं.

गांधी, नेहरू, पटेल, राजेंद्र प्रसाद और उनकी कांग्रेस ने ओबीसी को प्रतिनिधित्व नहीं देना चाहते थे. लेकिन, बाबासाहब यह बात बहुत अच्छी तरह से जानते थे सरकार पटेल खुद की बोली नहीं बोल रहे हैं, वें कांग्रेस की बोली बोल रहे हैं. दूसरी बात, 340वें अनुच्छेद के अनुसार राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने ओबीसी कौन है? पहचानने के लिए कोई कमिटी नहीं बनायी. इससे दुखी होकर 27 सितंबर 1951 को डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर ने केन्द्रीय कानून मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. मतलब ओबीसी के अधिकार के लिए केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देने वाले पहले और अंतिम व्यक्ति डॉ.बाबासाहब अंबेडकर हैं. परंतु, आज भी यह घटना अपने ओबीसी भाईयों को मालूम नहीं है, इस बात पर बहुत आश्चर्य और दुख होता है. भारत में आरक्षण के औचित्य पर जब बहस होती है तो कुछ आरक्षण विरोधी मित्र कहते हैं कि आरक्षण के कारण देश में जातिवाद बढ़ रहा है. आजादी के पहले देश में सबसे पहले आरक्षण अपनी रियासत कोल्हापुर में छत्रपति शाहूजी महाराज ने दिया था. क्या देश में उस समय जातिगत भेदभाव नहीं था? जिसके शिकार बाबासाहब अंबेडकर जैसे व्यक्ति भी हुए थे? अब बताईये कि जातिवाद के कारण आरक्षण आया है या आरक्षण के कारण जातिवाद?

हकीकत तो यह है कि देश में 15 प्रतिशत शासक वर्ग 85 प्रतिशत लोगों के ऊपर पीढ़ी दर पीढ़ी शासन करते आ रहे हैं और भविष्य में ऐसा ही करने की मंशा रखते हैं. यह वर्तमान में संभव नहीं होना चाहिए. लेकिन, आज यदि यह संभव है तो एैसा नहीं है कि इसके पीछे केवल 52 प्रतिशत ओबीसी है. एससी, एसटी और इनसे धर्मपरिवर्तन करने वाले मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और लिंगायत भी हैं. हमारे लोग हमेशा शासक जातियों के बहकावे में आते रहे हैं. जबकि, शासक वर्ग एससी, एसटी, ओबीसी और मायनॉरिटी को कभी भी अपने बराबर स्थान नहीं दिया. अगर, एससी, एसटी, ओबीसी और मायनॉरिटी जिस दिन इस बात को गहराई से समझ लिया उसी दिन से देश का इतिहास बदल जायेगा और भारत में ब्राह्मणवाद की उलटी गिनती शुरू हो जायेगी. इस काम के लिए बामसेफ की जनजागृति अभियान काफी हद तक सफल हुई है. बामसेफ के जागृति के माध्यम से अब लोगों में दोस्त और दुश्मन की पहचान होने लगी है. एससी, एसटी, ओबीसी और मायनॉरिटी में आपसी भाईचारा बड़े पैमाने पर निर्माण हो रही है. मूलनिवासी बहुजनों की ताकत से ब्राह्मणों में खलबली मच गई है. 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज में आपसी भाईचारा को देखकर लगता है कि मूलनिवासी बहुजनों का आंदोलन अब बहुत जल्द ही सफल होने वाला है.

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