पाखंडवाद और असामनता के खिलाफ तार्किक दृष्टि देने वाले नास्तिक पेरियार ई.वी. रामासामी नायकर के 140 वें जन्म दिवस पर हार्दिक शुभेच्छाएं.
पेरियार ई.वी. रामासामी नायकर का जन्म 17 सितंबर 1879 को तमिलनाडु के ईरोड में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था. इनके पिता वेंकतप्पा नायडू एक व्यापारी थे. उनकी माता का नाम चिन्ना थायाम्मल था. उनके एक बड़े भाई और दो बहने थीं.
इनका पूरा नाम इरोड वेंकट नायकर रामासामी था. वे एक महान जननायक और सामाजिक कार्यकर्ता थे. इनके प्रशंसक इन्हें आदर के साथ ‘पेरियार’ संबोधित करते थे. जिसका अर्थ होता है ‘सम्मानित’ इन्होने ‘आत्म सम्मान आन्दोलन’ या ‘द्रविड़ आन्दोलन’ प्रारंभ किया था. उन्होंने जस्टिस पार्टी का गठन किया जो बाद में जाकर ‘द्रविड़ कड़गम’ हो गई. वे आजीवन रुढ़िवादी हिन्दुत्व का विरोध करते रहे. उन्होंने दक्षिण भारतीय समाज के साथ-साथ देशभर के शोषित वर्ग के लिए आजीवन कार्य किया. उन्होंने ब्राह्मणवाद और ब्राह्मणों पर करारा प्रहार किया और एक पृथक राष्ट्र ‘द्रविड़ नाडु’ की मांग की. पेरियार ई.वी.रामासामी नायकर ने तर्कवाद, आत्म सम्मान और महिला अधिकार जैसे मुद्दों पर जोर दिया और जाति प्रथा का घोर विरोध किया. उन्होंने दक्षिण भारतीय गैर-तमिल लोगों के हक़ की लड़ाई लड़ी और उत्तर भारतियों के प्रभुत्व का भी विरोध किया. यूनेस्को ने अपने उद्धरण में उन्हें ‘नए युग का पैगम्बर, दक्षिण पूर्व एशिया का सुकरात, समाज सुधार आन्दोलन के पिता, अज्ञानता, अंधविश्वास और बेकार के रीति-रिवाज़ का दुश्मन’ कहा.
सन् 1885 में उन्होंने स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा के लिए दाखिला लिया पर कुछ सालों की औपचारिक शिक्षा के बाद वे अपने पिता के व्यवसाय से जुड़ गए. बचपन से ही वे रूढ़िवादिता, अंधविश्वासों और धार्मिक उपदशों में कही गयी बातों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते रहते थे. उन्होंने हिन्दू महाकाव्यों और पुराणों में कही गई परस्पर विरोधी बातों को बेतुका कहा और माखौल भी उड़ाया. उन्होंने सामाजिक कुप्रथाएं जैसे बाल विवाह, देवदासी प्रथा, विधवा पुनर्विवाह का विरोध और स्त्रियों और अछूतों के शोषण का खुलकर विरोध किया. उन्होने जाति व्यवस्था का भी विरोध और बहिष्कार किया. एक बार पेरियार ने एक ब्राह्मण को गिरफ्तार करवाने में न्यायालय की मदद की, उस ब्राह्मण का भाई पेरियार के पिताजी का दोस्त था. इस बात से नाराज होकर उनके पिता ने उन्हें सबके सामने पीटा और घर से निकाल दिया. इसके बाद पेरियार काशी चले गए, जहाँ से उनके जीवन में बड़ा परिवर्तन आया.
एक दिन भूख लगने पर वे वहाँ निःशुल्क भोज मिलने वाले स्थान पर चले गए, पर वहाँ जाने के बाद उन्हें पता चला कि यह सिर्फ ब्राह्मणों के लिए है. उन्होंने फिर भी भोजन प्राप्त करने की कोशिश की पर उन्हें अपमानित किया गया और धक्के मारकर निकाल दिया गया. इसके बाद वे रुढ़िवादी हिन्दुत्व के विरोधी हो गए. इसके बाद उन्होंने किसी भी धर्म को नहीं स्वीकारा और आजीवन नास्तिक रहे.
उन्होंने इरोड के नगर निगम के अध्यक्ष के तौर पर भी कार्य किया और सामाजिक उत्थान के कार्यों को बढ़ावा दिया. उन्होंने खादी के उपयोग को बढ़ाने की दिशा में भी कार्य किया. चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की पहल पर सन 1919 में वे कांग्रेस के सदस्य बन गए. उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया और गिरफ्तार भी हुए. सन 1922 के तिरुपुर सत्र में वे मद्रास प्रेसीडेंसी कांग्रेस समिति के अध्यक्ष बन गए और सरकारी नौकरियों और शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण की वकालत की. सन 1925 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी. इनसे प्रभावित होकर केरल कांग्रेस नेताओं ने उनसे वैकोम आन्दोलन का नेतृत्व करने का निवेदन किया. केरल के वैकोम में अस्पृश्यता के कड़े नियम थे, जिसके अनुसार किसी भी मंदिर के आस-पास वाली सडक पर अछूतों का चलना वर्जित था, जिसके विरोध में वैकोम आंदोलन किया गया था.
पेरियार ने समाज में व्याप्त भेदभाव को खत्म करने के लिए सरकारी महकमों के अधिकारियों और सरकार दबाव बनाया. उन्होंने ‘आत्म सम्मान आन्दोलन’ शुरू किया, जिसका मुख्य लक्ष्य था गैर-ब्राह्मण द्रविड़ों को उनके सुनहरे अतीत पर अभिमान कराना. सन 1925 के बाद पेरियार ने ‘आत्म सम्मान आन्दोलन’ के प्रचार-प्रसार पर पूरा ध्यान केन्द्रित किया. आन्दोलन के प्रचार के एक तमिल साप्ताहिकी ‘कुडी अरासु’ और अंग्रेजी जर्नल ‘रिवोल्ट’ का प्रकाशन भी शुरू किया गया. उन्होंने हिंदी और उत्तर भारतीयों का भी विरोध किया था. सन 1937 में जब सी. राजगोपालाचारी मद्रास प्रेसीडेंसी के मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने स्कूलों में हिंदी भाषा की पढ़ाई को अनिवार्य कर दिया, जिससे हिंदी विरोधी आन्दोलन उग्र हो गया.
तमिल राष्ट्रवादी नेताओं, जस्टिस पार्टी और पेरियार ने हिंदी-विरोधी आंदोलनों का आयोजन किया जिसके फलस्वरूप सन 1938 में कई लोग गिरफ्तार किये गए. उसी साल पेरियार ने हिंदी के विरोध में ‘तमिल नाडु तमिलों के लिए’ का नारा दिया. उनका मानना था कि हिंदी लागू होने के बाद तमिल संस्कृति नष्ट हो जाएगी और तमिल समुदाय उत्तर भारतीयों के अधीन हो जायेगा. सन 1916 में एक राजनैतिक संस्था ‘साउथ इंडियन लिबरेशन एसोसिएशन’ की स्थापना हुई थी. इसका मुख्य उद्देश्य था ब्राह्मण समुदाय के आर्थिक और राजनैतिक शक्ति का विरोध और गैर-ब्राह्मणों का सामाजिक उत्थान करना. यह संस्था बाद में ‘जस्टिस पार्टी’ बन गयी. जनसमूह का समर्थन हासिल करने के लिए गैर-ब्राह्मण राजनेताओं ने गैर-ब्राह्मण जातियों में समानता की विचारधारा को प्रचारित-प्रसारित किया. सन 1937 के हिंदी-विरोध आन्दोलन में पेरियार ने ‘जस्टिस पार्टी’ की मदद ली थी. जब जस्टिस पार्टी कमजोर पड़ गई तब पेरियार ने इसका नेतृत्व संभाला और हिंदी विरोधी आन्दोलन के जरिये इसे सशक्त किया. सन 1944 में पेरियार ने जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर ‘द्रविड़ कड़गम’ कर दिया.
द्रविड़ कड़गम का प्रभाव शहरी लोगों और विद्यार्थियों पर था. ग्रामीण क्षेत्र भी इसके सन्देश से अछूते नहीं रहे. हिंदी-विरोध और ब्राह्मण रीति-रिवाज़ और कर्म-कांड के विरोध पर सवार होकर द्रविड़ कड़गम ने तेज़ी से पाँव जमाये. द्रविड़ कड़गम ने अनुसूचित जातियों में अश्पृश्यता के उन्मूलन के लिए संघर्ष किया और अपना ध्यान महिला-मुक्ति, महिला शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों पर केन्द्रित किया. जीवन भर पेरियार सामाजिक बुराईयों और धर्म में व्याप्त पाखंडों का विरोध करते रहे, उन्होंने कभी किसी धर्म को आत्मसात नहीं किया, बल्कि तार्किकता के साथ धर्म के षड़यंत्रों का विरोध किया और लोगों को इसके लिए हमेशा जागरुक करने में लगे रहे. पेरियार रामासामी नायकर नाम का सूरज 24 दिसंबर 1973 को डूब गया. लेकिन मूलनिवासी बहुजन समाज को वे एक ऐसी दिशा दे गए, जिससे वे सदियों से बनाए गए ब्राह्मणों के जाल से निकल सकें.
सिद्धार्थ शिवा विद्यार्थी
छात्र, इलेक्ट्रिकल इंजीनियर
गोयल ग्रुप ऑफ इंस्टिट्यूट टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट, बराबंकी (लखनऊ)
छात्र, इलेक्ट्रिकल इंजीनियर
गोयल ग्रुप ऑफ इंस्टिट्यूट टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट, बराबंकी (लखनऊ)
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