बुधवार, 25 सितंबर 2019

24 सितंबर 1932 : पूना पैक्ट



आज से ठीक 87 साल पहले आज के ही दिन 24 सितंबर 1932 को मि0 एम.के. गांधी और बाबा साहेब डॉ0अम्बेडकर के बीच पूना पैक्ट हुआ था। बाबासाहेब ने इस समझौते पर अत्यधिक मजबूरी एवं भारी दबाव में दस्तखत किये थे क्योंकि इससे आजतक एससी- एसटी को गुलाम बनाया जा रहा है। हाँ, यह बात अलग है कि उस समय आरक्षण के जनक कोल्हापुर नरेश लोकराजा राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज (26जून 1874 -06मई 1922) यदि जीवित होते तो यह समझौता कदापि नहीं होता, चाहें मि0 गांधी व उनके पैरोकार मर भले ही जाते।
1. Separate Electorates अर्थात पृथक निर्वाचन क्षेत्र।
2. Dual Voting अर्थात दोहरा मत, अपने ही वर्ग के व्यक्ति को प्रतिनिधि के रूप में चुनने का अधिकार।
3. Adult Franchise अर्थात वयस्क मताधिकार।
4. Adequate Representation अर्थात प्रांत एवं केन्द्र के विधान-मंडलों में जनसंख्या के अनुपात में पर्याप्त प्रतिनिधित्व।

उपरोक्त चार अधिकार द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (07 सितंबर1931-01दिसंबर 1931), लंदन में बाबासाहब के अथक प्रयासों के फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने अछूतों (अनुसूचित जाति) के लिए 17 अगस्त1932 को स्वीकार किये थे जिसे COMMUNAL AWARD (साम्प्रदायिक पंचाट) कहा गया और उन अधिकारों में जिसमें पहला व दूसरा अधिकार केवल एससी के लिए, तीसरा भारत के समस्त वयस्कों के लिए तथा चौथे अधिकार में अन्य सामाजिक समूहों के लिए प्रतिनिधित्व देने की मंशा थी।
मि0 गांधी एण्ड कंपनी ने सिर्फ पहले अधिकार का विरोध किया और जब पहला अधिकार समाप्त हो गया तो दूसरा अधिकार स्वतः ही समाप्त हो गया। जेल में कैद मि0 गांधी ने आमरण अनशन करके तथा भयंकर दबाव द्वारा बाबासाहब अम्बेडकर को 24 सितंबर 1932 को यरवदा जेल, पूना में कम्यूनल अवार्ड के विरोध में मजबूर करके समझौता करने पर बाध्य किया। बाबा साहब और मि0 गांधी के बीच पूना में समझौता होने के कारण इसे POONA PACT (पूना समझौता) कहा गया। कम्युनल अवॉर्ड में केवल एससी के लिए पृथक निर्वाचन (Separate Electorates) का प्रावधान था किन्तु पूना पैक्ट से आये संयुक्त निर्वाचन (Joint Electorates) में अनुसूचित जन जातियों (एसटी) को भी शामिल कर लिया गया। हाँ, बाबासाहब इन सबके बावजूद पूना पैक्ट में प्राथमिक चुनाव प्रणाली बरकरार रखने में जरुर सफल रहे। वयस्क मताधिकार बाबा साहब ने भारत के समस्त वयस्कों के लिए स्वीकृत करवाया था जबकि मि0 गांधी इसके भी विरोध में थे। इस प्रकार एससी को मिली हुई वास्तविक आजादी केवल 38 दिन के लिए सिर्फ दिवास्वप्न बन रह गयी और वे फिर से गुलामी की खामोश जंजीरों में जकड़ लिए गये।

Dual Vote :- उदाहरण के लिए, वर्तमान में लोकसभा में 84 एससी के लिए तथा 47 एसटी के लिए, कुल 131निर्वाचन क्षेत्र एससी-एसटी के लिए सुरक्षित हैं तथा शेष 412 निर्वाचन क्षेत्र सभी धर्मावलम्बियों एवं जातियों के लिए हैं। इस प्रकार लोक सभा के कुल 543 निर्वाचन क्षेत्र हैं। यदि कम्युनल अवॉर्ड लागू रहता तो सुरक्षित स्थानों के लिए निर्वाचन हेतु पहले सम्पूर्ण भारत को 84 क्षेत्रों में विभक्त करके चुनाव करवाया जाता जिसमें सिर्फ एससी के लोग ही चुनाव लड़ते और एससी के लोग ही वोट भी करते, ऐसा एससी को दोहरे वोट का अधिकार मिला था। सुरक्षित स्थानों हेतु प्रत्याशी का चुनाव दो पड़ावों से होना था। पहले पड़ाव (सेमीफाइनल) में उम्मीदवार कौन होगा, यह पार्टी नहीं बल्कि प्रत्येक पार्टी द्वारा उतारे गए 04-04 उम्मीदवारों में से उसी पार्टी के सदस्यों/ डेलीगेट्स द्वारा पाए सिर्फ एससी के अधिकतम वोटों वाला ही प्रत्याशी बन पाता। इससे प्रत्याशी पर पार्टी का नाममात्र का दबाव रह जाता और दूसरे पड़ाव में प्रत्याशी का फाइनल चुनाव। उसके बाद दोबारा सम्पूर्ण भारत को 459 निर्वाचन क्षेत्रों में विभक्त कर चुनाव करवाये जाते जिसमें उस क्षेत्र के सभी जाति, धर्म और वर्ग के लोग चुनाव लड़ते और सभी जाति, धर्म और वर्ग के लोग वोट भी करते।

समझौता व उसकी वर्तमान स्थिति :- समझौते में पहले पड़ाव द्वारा उम्मीदवार चयन की व्यवस्था व संयुक्त निर्वाचन की व्यवस्था केवल अग्रिम 10 वर्षों के लिए मान तो ली गई और उसी व्यवस्था के तहत 1937 व 1945 में चुनाव भी हुए किन्तु व्यवहारिकता में उस पर बिल्कुल भी अमल नहीं किया गया। आगे चलकर संविधान सभा में बहुमत न होने के कारण एससी- एसटी के लिए पहले पड़ाव द्वारा उम्मीदवार चयन की व्यवस्था तो समाप्त ही हुई किन्तु इसके साथ ही पूर्व से लागू अन्य सामाजिक समूहों के लिए पृथक निर्वाचन की भी व्यवस्था समाप्त हो गई। कम्युनल अवॉर्ड की भरपाई के लिए बाबासाहब ने श्रम मंत्री के दौरान भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड वेवेल (01अक्टूबर 1943- 21फरवरी 1947) के समक्ष एससी-एसटी के लिए पृथक बस्ती (Separate settlement) का प्रस्ताव रखा, जिसे लॉर्ड वेवेल ने स्वीकार भी किया था और उन्होंने अॉल इंडिया रेडियो पर यह ऐलान भी किया था कि भारत के स्वतंत्र होने पर तीन समूहों (हिन्दू, मुस्लिम और एससी- एसटी) को हिस्सेदारी मिलेगी। भारत- पाकिस्तान का बंटवारा होने पर मुस्लिमों का तो मामला ही खत्म हो गया किन्तु लॉर्ड वेवेल के इंग्लैंड वापस चले जाने के बाद पृथक बस्ती और एससी-एसटी की हिस्सेदारी का मामला कब और कैसे समाप्त हो गया, आजतक पता ही नहीं चला। 

संविधान सभा में संविधान लागू होने की तिथि (26जनवरी1950) से एससी- एसटी के लिए आरक्षित स्थानों की व्यवस्था अग्रिम 10 वर्षों के लिए मानते हुए तथा उसकी आगामी स्थिति पारस्परिक सहमति (Mutual agreement) अर्थात जनमत संग्रह पर निर्भर की गई किन्तु संसद में इसे बिना चर्चा, बिना वाद- विवाद किए ही केवल ध्वनि मत द्वारा प्रति 10वर्ष पर आज तक लगातार बढ़ाया जा रहा है, जो फिलहाल आगामी 25 जनवरी 2020 तक लागू है जिसे संसद के इसी साल 2019 के शीतकालीन सत्र में फिर अगले 10 वर्षों के लिए बढ़ा दिया जायेगा। संविधानसभा में जब पहले पड़ाव वाले चुनाव की व्यवस्था समाप्त हुई तो बाबा साहब ने एससी-एसटी के 30% वोट प्राप्त करने वाले को विजयी मानने का प्रस्ताव रखा किन्तु दुर्भाग्यवश बहुमत न होने के कारण यह प्रस्ताव भी 28अगस्त1947 को संविधान सभा में पास नहीं हो सका था।
इस प्रकार संयुक्त निर्वाचन द्वारा सुरक्षित स्थान से चुना गया व्यक्ति अपने समाज का वास्तविक प्रतिनिधि न होकर Tool (एससी- एसटी के विरोध में इस्तेमाल किया जाने वाला औजार, हथियार), Stooge (शासक जातियों का पिछलग्गू) और Agent (पिट्ठू, देशी भाषा में कहा जाय तो दलाल, भड़वा) बन कर काम करता है। पूना पैक्ट से भारत में छुआछूत की बीमारी आज तक बरकरार है जिसके संस्थापक मि0 गांधी हैं।

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