भारतीय इतिहास को फिर से छेड़छाड़ करने लगा शासक वर्ग
आर्यों द्वारा भारत पर आक्रमण की थ्योरी पूरी तरह झूठी: प्रो.वसंत शिंदे
राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)
आर्य ब्राह्मणों द्वारा अपने को विदेशी होने का साहित्यक और पुरातात्तिवक प्रमाणों पर भले ही अनर्गल और भ्रामक दलील दें, परन्तु 21 मई 2001 के आनुवंशिक डीएनए शोध प्रमाण के आगे उनके मुँह पर ताला लग गया है. इसलिए आर्य ब्राह्मण बौखला गये हैं. उताह विश्वविद्यालय साल्टकेक सिटी अमेरिका के डाॅ.माइकल वामशाद और आंध्र विश्वविद्यालय विशाखापट्टनम के मानवशास्त्र के प्रो. बी. भास्कर राव के संयुक्त आनुवंशिक शोध ने प्रमाणित कर दिया कि उच्चवर्ण जातियाँ यूरेशियन अर्थात विदेशी हैं. बता दें कि आरएसएस से संबंध रखने वाले एस. तालेगारी, केडी सठना, एसपी गुप्ते, बीएस गिडवानी आदि आर्य ब्राह्मण इतिहासकारों ने अपने धोखेभरी बातों से यह प्रमाणित करने की कोशिश की थी कि आर्य विदेशी नहीं है. इसके लिए उन्होंने डाॅ.बाबासाहब अम्बेडकर के नाम का भी दुरूपयोग किया था ताकि, उनके इस कपटपूर्ण और धोखेभरी बातों का मूलनिवासी बहुजनों का समर्थन मिल सके.
यही नहीं आर्य ब्राह्मणों ने सिंधू घाटी सभ्यता और मोहनजोदड़ो को गलत साबित करने के लिए उन्होंने अलग से नकली खुदाई कराकर स्वयं द्वारा प्रत्यापित सामग्रियों को निकालकर कम्प्यूटर के द्वारा अपने कुतर्क को प्रमाणित करने की कुचेष्टा की थी. उनका छल तब पकड़ा गया जब वह मूलनिवासी संस्कृति के प्रतीक ‘साँड़’ को विदेशी आर्य संस्कृति के प्रतीक ‘घोड़ा’ के रूप में परिवर्तित करने की कोशिश की थी. ठीक वही रवैया अब हरियाणा के राखीगढ़ी में अपना रहे हैं.
गौरतलब है कि भारत में आर्यों का आगमन और आर्यों द्वारा अनार्यों पर आक्रमण करने वाले इतिहास को शासक वर्ग झूठा साबित करने के लिए पहले जैसा फिर से धोखेबाजी करने का काम शुरू कर दिया है. इससे वह यह साबित करना चाहते हैं कि भारत के मूल निवासियों पर आर्यों के आक्रमण की थ्योरी पूरी तरह से गलत है. जबकि, ठीक इसके उलट बता रहे हैं कि उस काल में भारत के मूल निवासियों पर किसी तरह का आक्रमण हुआ ही नहीं था. बल्कि, भारत के ही लोगों के कुछ पूर्वज ईरान और तु्र्कमेनिस्तान जैसे मिडल ईस्ट देशों में गए थे.
बताते चलें कि हरियाणा के हिसार में स्थित राखीगढ़ी पर रिसर्च कर रही आर्य ब्राह्मणों की टीम के निदेशक प्रोफेसर वसंत शिंदे ने बताया कि भारत पर आर्यों के आक्रमण की कहानी पूरी तरह गलत है. राखीगढ़ी में दबे शवों के कंकालों के डीएनए परीक्षण के बाद यह तथ्य सामने आया है कि हड़प्पाकालीन भारतीय क्षेत्र में रह रहे लोग ही समय के साथ दक्षिण के राज्यों तक गए थे. उन कंकालों के डीएनए और आज के दक्षिण भारतीय लोगों के डीएनए यह बात साबित करते हैं. जबकि, यह सरासर झूठ है.
क्योंकि राखीगढ़ी में जो कंकाल मिले हैं वो 3 हजार साल पुराने है. उनका डीएनए जाँच किया गया, जिसमें ब्राम्हणों का डीएनए ही नही मिला. केवल एससी, एसटी, ओबीसी और मायनाॅरिटी का ही डीएनए मिला. लेकिन, आर्य ब्राह्मणों ने गलत प्रचार शुरू कर दिया कि जो राखीगढ़ी में शोध हुआ उसमें डीएनए के अनुसार आर्यों ने न तो यहाँ के मूलनिवासियों पर आक्रमण किया और न ही भारत पर आक्रमण किया था. इस तरह से उन्होंने कहा कि यहाँ के मूलनिवासियों पर कभी किसी भी प्रकार का कोई आक्रमण नहीं हुआ है. जबकि, इसतिहास गवाह है कि खुद आर्य ब्राह्मण इतिहासकारों ने लिखित दस्तावेज के रूप में लिखकर रखा है कि आर्यो ने भारत और यहाँ के मूलनिवासियों पर आक्रमण किया था. इसका मतलब यह हुआ कि शासक वर्ग बामसेफ द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन से बौखला गया है. इसलिए वे भारत के गौरवशाली मूलनिवासी इतिहास को झूठ और आर्य ब्राह्मणों द्वारा प्रोपगंडा फैलाये जा रहे झूठे इतिहास को सही साबित करने की कोशिश कर रहे हैं.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें