कांग्रेस पार्टी प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने मीडिया में आई खबरों का हवाला देते हुए दावा किया है कि देश का कुल कर्ज बढ़कर 88.18 लाख करोड़ रुपये हो गया है. लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि भारत में सब अच्छा है. असल में कांग्रेस पार्टी प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत भी आंकड़ों में हेराफेरी करके ही दावा कर रही हैं. जबकि, हकीकत यह है कि देश का कुल कर्ज 88.18 लाख करोड़ नहीं है, बल्कि देश का कुल कर्ज 1950-51 से लेकर 2019-20 तक 97,97,818 करोड़ रूपये है. हमें लगता है कि श्रीनेत को भारत सरकार का आंकड़ा फिर से देख लेना चाहिए. अब सवाल यह है कि कांग्रेस प्रवक्ता, आंकड़ों में हेराफेरी क्यों कर रही है? क्योंकि, कांग्रेस और बीजेपी, दोनों ने भारत जैसे विशालकाय देश को कर्ज के नीचे पूरी तरह से दबा दिया है. इसलिए कांग्रेस द्वारा आंकड़ों में हेराफेरी करके झूठे आंकड़ों को पेश कर रही है. दरअसल, कांग्रेस जानती है कि अगर, उसने सहीं आंकड़ा पेश किया तो न केवल बीजेपी की पोल खुल जायेगी, बल्कि कांग्रेस के चेहरे से भी नकाब हट जायेगा.दूसरी बात, सुप्रिया श्रीनेत ने यह आरोप भी लगाया है कि सरकार आम जनता को राहत देने की बजाय कॉरपोरेट जगत को राहत दे रही है. मगर, श्रीनेत ने यह नहीं बताया कि यही काम कांग्रेस भी पिछले कई सालों से करती रही है. कांग्रेस सरकार भी आम जनता को राहत देने की बजाय केवल कॉरपोरेट जगत को ही राहत देने का काम किया है.
एक कहावत है कि ‘‘जो सहारा देता है वह इशारा भी करता है’’ यानी सहारा देने वाला जो इशारा करता है उसी इशारों पर चलना पड़ता है. यही हाल हमारे सरकारों की है. कर्ज लेने वाली सरकारें चाहे किसी की हों, देश को किसी भी मायने में सुरक्षित नहीं रख सकती हैं. क्योंकि, कर्ज देने वाला सरकार और उसकी नीतियों पर नियंत्रण रखता है. यही कारण है कि सरकारें जब बजट बनाती हैं तो केवल पूँजीपतियों और कॉरपोरेट घरानों को ध्यान में रखकर बजट बनाती हैं. वहीं, आम जनता के विकास के लिए बजट देने के बजाय केवल सपने दिखाती हैं और उस सपनों को लोग हकीकत मानकर तालियाँ बजाते हैं और सोचते हैं कि यह सरकार का विकासवादी बजट है. इससे खुश होकर लोग दाएं-बाएं देखना और सवाल पूछना छोड़ देते हैं कि सरकार के पास पैसा कहाँ से आ रहा है और कहाँ जा रहा है? बस क्या है, इसी की आड़ में सरकारें दबाकर कर्ज लेती हैं और कर्ज का बोझ देश और जनता के ऊपर लाद देती हैं. फिर सरकारें धीरे-धीरे इन्हीं जनता से कर्ज की वसूली करती हैं और जनता को इस बात की भनक भी नहीं लग पाती है कि सरकारें उनके साथ क्या षड्यंत्र कर रही हैं.
क्या आपको पता है कि देश और आपके के ऊपर कितना कर्ज है? अगर, नहीं तो मैं आपको बता रहा हूँ कि देश और आपके ऊपर कुल कितना कर्ज है. सबसे पहले देश पर कुल कर्जों की बात करते हैं. कांग्रेस सरकार के लगातार दो कार्यकाल के दौरान यानी वर्ष 2004-2005 में देश पर कुल 19,94,422 करोड़ का कर्ज था, जिसका ब्याज 2004-05 में 1,26,934 करोड़ चुकाया गया था. यही कर्ज कांग्रेस के दूसरे कार्यकाल 2013-14 में बढ़कर 56,69,428 करोड़ हो गया. वहीं इसका ब्याज 3,74,254 करोड़ चुकाया गया. जबकि, इसके पहले तकरीबन 59 साल तक केवल कांग्रेस का ही राज रहा है. इसके बाद मोदी सरकार का कार्यकाल आया और मोदी सरकार को इस कर्ज को कम करना चाहिए था. लेकिन मोदी सरकार के पहले कार्यकाल यानी वर्ष 2014-15 में यही कर्ज बढ़कर 62,42,521 करोड़ हो गया, जिसका ब्याज 4,02,444 करोड़ चुकाया गया. यही नहीं, 2015-16 में यही कर्ज बढ़कर 68,92,214 करोड़, 2016-17 में 74,38,481 करोड़, 2017-18 में 82,32,654 करोड़, 2018-19 में 90,56,725 करोड़ और 2019-20 में यही कर्ज बढ़कर 97,97,818 करोड़ हो गया. जबकि, 1997 से 2019-20 तक कुल 59,74,800 करोड़ इसका ब्याज चुकाया गया है. इसका मतलब है कि कर्ज कम होने की बजाय साल दर साल लगातार बढ़ता ही गया. जबकि, 1950-51 में देश पर महज 3059 लाख रूपये का कुल कर्ज था. इसके बाद भी कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत देश पर कुल 88.18 लाख करोड़ रुपये कर्ज होने का दावा कर रही हैं. हमें लगता है कि श्रीनेत को भारत सरकार का आंकड़ा फिर से देख लेना चाहिए.
अब यदि प्रति व्यक्ति पर कर्ज की बात करें तो वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, 31 मार्च 2015 तक प्रति व्यक्ति 49,270 रुपये का कर्ज था. जो 31 मार्च 2016 तक 9 फीसदी बढ़कर प्रति व्यक्ति 53,796 का कर्ज हो गया. यानी सालभर में इसमें 9 फीसदी का इज़ाफा हो गया. अगर, 2018-19 की बात करें तो इन आंकड़ों में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है. प्रति व्यक्ति कर्ज की गणना केंद्र सरकार के कर्ज के आधार पर की जाती है. हैरान की बात तो यह है कि विश्लेषकों का मानना है कि साल दर साल कर्ज़ की राशि बढ़ती ही जायेगी. क्योंकि, भारत में उधार लेकर विकास करने की चलन है. जैसे-जैसे विकास के आर्थिक ग्रोथ की रफ्तार बढ़ती और कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की रफ्तार घटती जायेगी, वैसे-वैसे देश का खर्च बढ़ता जायेगा और कर्ज भी बढ़ता जायेगा. यही नहीं प्रति व्यक्ति ऊपर कर्ज का बोझ भी बढ़ता जायेगा. क्योंकि, विकास के नाम पर सरकारें भारी भरकम कर्ज लेकर देश को गर्क में झोंक रही हैं और जनता को विकास का सपना दिखाकर देश और जनता के ऊपर भारी कर्ज का बोझ लाद रही हैं.
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