बुधवार, 25 सितंबर 2019

24 सितंबर की तीन प्रमुख घटनाएं


1.कुळवाडी भूषण बहुजन प्रतिपालक छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपना दूसरा राज्याभिषेक आज से 345 साल पहले 24सितंबर1674 को शाक्त पंथ की रीति से करवाया था जिसका पौरोहित्य निश्चलपुरी गोसावी ने किया था। शाक्त पंथ बौद्ध धम्म की ही एक शाखा तंत्रयान से निकला हुआ एक पंथ है।

2.राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले ने व्यवस्था परिवर्तन के आंदोलन को संगठित रूप से आगे बढ़ाने हेतु आज से 146 साल पहले 24सितंबर1873 को ‘सत्य शोधक समाज’ की नींव रखी। उन दिनों समाज सुधार का दावा करने वाले कई संगठन काम कर रहे थे। जैसे, ‘ब्रह्म समाज’ (राजा राममोहन राय : 20अगस्त1928), ‘प्रार्थना समाज’ (केशवचंद सेन : 31मार्च 1867), पुणे सार्वजनिक सभा (महादेव गोविंद रानाडे : 02अप्रैल 1870) आदि प्रमुख थे। लेकिन वे सभी द्विजों द्वारा, द्विजों की हित सिद्धि के लिए बनाए गए थे, उनकी कल्पना में पूरा भारतीय समाज नहीं था। वे चाहते थे कि समाज में जाति रहे, लेकिन उसका चेहरा उतना क्रूर और अमानवीय न हो। इसी क्रम में आर्य समाज (स्वामी दयानंद सरस्वती : 10अप्रैल1875) का नाम भी आता है, जो वेदों की ओर लौटने का बात कर रहा था।

3.बाबासाहब डॉ0अम्बेडकर और मि0 एम. के. गांधी के मध्य आज से 87 साल पहले 24सितंबर 1932 को पूना पैक्ट हुआ था। बाबासाहेब ने इस पैक्ट पर अत्यधिक मजबूरी एवं भारी दबाव में बड़े ही दु:खी मन से सायं 05 बजे दस्तखत किये थे और हस्ताक्षर करते समय उन्होंने कहा था कि "मि0 गांधी मैं युद्ध हारा हूँ, हिम्मत नहीं।" इसके बाद उन्होंने Separate settlement & 30% sc/st compulsory vote for winner candidate to reserve seats के दांव चले, दुर्भाग्यवश वे दांव सफल नहीं हो पाये। हाँ, वे पूना पैक्ट का आजीवन धिक्कार अवश्य करते रहे, इससे उनके कथन की पुष्टि होती है। यदि उस समय आरक्षण के जनक कोल्हापुर नरेश लोकराजा राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज (26जून1874 -06मई 1922) जीवित होते तो यह समझौता कदापि नहीं होता, चाहें मि0 गांधी व उनके पैरोकार मर भले ही जाते।

इस प्रकार बाबासाहब से पूना पैक्ट पर दस्तखत करवाकर शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक एवं महात्मा फुले के सत्यशोधक समाज की स्थापना से मूलनिवासियों को मिलती खुशी और प्रेरणा को मि0 गांधी ने मातम में बदलकर ग्रहण लगा दिया।

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