सोमवार, 16 सितंबर 2019

हमें आवाज बुलंद करनी होगी!




आप सभी जानते हैं कि देश की आजादी के लगभग 72 वर्ष हो चुके है. आजादी के आंदोलन में पिछड़े वर्ग के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, बहुत सारे पिछड़े वर्ग के लोग जेल गये. फाँसी पर चढ़ गये, गोलियाँ खाई जिसकी वजह से 15 अगस्त 1947 को देश अंग्रेजो से आजाद हुआ. हमारे समस्त महापुरूषों ने अग्रेंजो को भगाने के लिए जेल गये, फाँसी पर चढ़े, गोलियाँ खाई. उन्होने सोचा था, देश की आजादी के बाद उनकी आने वाली नस्लें आजाद रहेंगी. लेकिन, आजादी के 72 वर्षो के बाद भी, देश में पिछड़े वर्ग के लोगों के हालात खराब हैं. इसका एक ही कारण है कि आज तक हमने जाति, धर्म, क्षेत्र के आधार पर वोट किया. जिसकी वजह से आज तक हमारा सत्यानाश हो रहा है. देश में हर 5 साल में लोकसभा एवं विधान सभा के चुनाव होते हैं और हर बार हम वोट देते हैं. हमारे वोटों से हर पांच साल बाद सरकारें आती हैं. यानी सत्ता बदलती है, सरकारें बदलती हैं, मगर हमारी समस्याएं जस की तस रहती हैं. एक मौलिक बात यह है कि हम वोट क्यों देते हैं? इसका सीधा जवाब है अपनी समस्याओं का समधान करने के लिए. लेकिन, क्या कभी सोचा है कि हमने जिसको वोट दिया क्या वह हमारी समस्याओं का समाधान कर रहा है? नहीं कर रहा है, बल्कि हमारे वोट से चुनकर जाने वाले हमारी समस्याओं को और ज्यादा भयावह बना रह हैं.


दूसरी बात, देश की आजादी के पहले गुलाम भारत में अंग्रेज हमारी गिनती कराते थे. लेकिन, जवाहर लाल नेहरू ने जाति आधारित गिनती रोकने का काम किया. केन्द्र में अटल बिहारी की सरकार ने भी पिछड़े वर्ग की जनगणना नही किया और 2014 में पिछड़े वर्ग के नाम पर वोट लेकर प्रधानमंत्री बने नरेन्द्र मोदी ने जानवरों की गिनती का आदेश दिया. लेकिन, पिछड़ों की गिनती का आदेश नहीं दिया बल्कि पिछड़े वर्ग के साथ धोखेबाजी करने का कार्य किया. इसी तरह से सपा और बसपा ने उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के बावजूद पिछड़ों की गिनती के लिए प्रस्ताव तक पारित नही किया. एससी, एसटी को 1932 में संख्या के अनुपात में आरक्षण मिल गया था. जो अधिकार एससी, एसटी को 1932 में मिल गया था वह अधिकार लेने के लिए पिछड़े वर्ग को 60 साल तक इंतजार करना पड़ा. बहुत लम्बी लड़ाई के बाद 1992 में ओबीसी को मण्डल कमीशन लागू किया गया. मण्डल कमीशन में ओबीसी के साथ धोखेबाजी हुई. जब एससी, एसटी को संख्या के आधार पर आरक्षण है तो ओबीसी को क्यों नही? 26 साल से ओबीसी को यह कहा जा रहा है कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नही हो सकता. इसलिए 52 प्रतिशत ओबीसी को 52 प्रतिशत आरक्षण लागू किया जाय. लेकिन, सवर्णों को संविधान के विरोध में जाकर आरक्षण 48 घंटे के अन्दर दे दिया गया, जिसका समर्थन सपा-बसपा ने किया. यह पिछडे वर्ग के साथ धोखेबाजी है.

16 नवम्बर 1992 को सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी पर क्रीमीलेयर लगाया, जिसकी वजह से ओबीसी के लोग जो कि अपने बच्चों को महंगी शिक्षा देने में सक्षम है. उन्हे क्रीमीलेयर के नाम पर बाहर किया जा रहा है और जो सक्षम नही हैं वे स्वतः ही बाहर हो जा रहे हैं. इसका अनुमाना इसी से लगाया जा सकता है कि क्रीमीलेयर के नाम पर मोदी सरकार ने 314 आईएएस की नियुक्ति पर रोक लगा दिया. लेकिन सपा-बसपा ने इसके विरोध में को स्टैण्ड नही लिया. इसके अलावा उत्तर प्रदेश में बसपा सरकार ने पूरी संवैधानिक प्रक्रिया किये बगैर प्रमोशन में आरक्षण लागू किया था. जिसकी वजह से कोर्ट ने एससी, एसटी का प्रमोशन में आरक्षण खारिज कर दिया. मायावती ने ओबीसी को प्रमोशन में आरक्षण नही दिया. बाद में अखिलेश यादव को मायावती की गलतियों को सुधार कर एससी, एसटी के साथ-साथ ओबीसी को प्रमोशन में आरक्षण देना चाहिए. मगर, उन्होने एससी, एसटी का प्रमोशन में आरक्षण समाप्त कर दिया.

इसके साथ ही अखिलेश यादव के कार्यकाल में इलाहाबाद लोक सेवा आयोग ने त्रिस्तरीय आरक्षण व्यवस्था लागू किया था. लेकिन, तब अखिलेश यादव को यह ज्ञान नही था कि वे पिछड़े वर्ग के हैं. लेकिन, जब योगी अदित्यनाथ ने अखिलेश यादव की कुर्सी शुद्ध करायी तो अखिलेश यादव को ज्ञात हुआ कि वे पिछड़े वर्ग के है. लेकिन, यह ज्ञान होने के बावजूद भी अखिलेश यादव ने त्रिस्तरीय आरक्षण का मुद्दा अपने घोषणा पत्र में शामिल नही किया. यही नहीं ओबीसी समाज का एक बड़ा तबका किसान है. किसानों की जमीनें सेज के माध्यम से छीना जा रहा है. उनकी फसल का उचित मूल्य नही मिल रहा है. इस सम्बन्ध में स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट न तो सपा-बसपा ने लागू किया और न ही भाजपा, कांग्रेस ने. इस तरह से उपरोक्त मुद््दे पूर्व में स्थापित कोई भी राजनैतिक पार्टियाँ नही उठा रही है. इसका मतलब है कि खुद हमें आवाज बुलंद करना होगा और अपने अधिकार को हाशिल करना होगा. 

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