तिरंगे का अपमान क्यों?
1948 में तिरंगे को पैरोँ तले रौँदा था आरएसएस ने. बीजेपी के मातृ संगठन, आरएसएस ने आज़ादी की लड़ाई में कभी भी हिस्सानहीं लिया था.1930 और 1940 के दशक में जब आज़ादी की लड़ाई पूरे उफान पर थी तो आरएसएस का कोई भी आदमी या...सदस्य उसमें शामिल नहीं हुआ था. यहाँ तक कि जहां भी तिरंगा फहराया गया, आरएसएस वालों ने कभी उसे सैल्यूट तक नहींकिया. आरएसएस ने हमेशा ही भगवा झंडे को तिरंगे से ज्यादा महत्व दिया. 30 जनवरी 1948 को जब मोहनदास गाँधी की हत्या कर दी गयी तो इस तरह की खबरें आई थीं कि आरएसएस के लोग तिरंगे झंडेको पैरों से रौंद रहे थे. यह खबर उन दिनों के अखबारों में खूब छपी थीं. आज़ादी के संग्राम में शामिल लोगों को आरएसएस की इसहरकत से बहुत तकलीफ हुई थी. उनमें जवाहरलाल नेहरू भी एक थे. 24 फरवरी को उन्होंने अपने एक भाषण में अपनी पीडा को व्यक्त किया था. उन्होंने कहा कि खबरें आ रही हैं कि आरएसएस केसदस्य तिरंगे का अपमान कर रहे हैं. उन्हें मालूम होना चाहिए कि राष्ट्रीय झंडे का अपमान करके वे अपने आपको देशद्रोहीसाबित कर रहे हैं. यह तिरंगा हमारी आज़ादी के लड़ाई का स्थायी साथी रहा है जबकि आरएसएस वालों ने आज़ादी की लड़ाई में देश की जनता कीभावनाओं का साथ नहीं दिया था. तिरंगे की अवधारणा पूरी तरह से कांग्रेस की देन है. तिरंगे झंडे की बात सबसे पहले आन्ध्र प्रदेशके मसुलीपट्टम के कांग्रेसी कार्यकर्ता पी वेंकय्या के दिमाग में उपजी थी. 1918 और 1921 के बीच हर कांग्रेस अधिवेशन में वे राष्ट्रीय झंडे को फहराने की बात करते थे. महात्मा गाँधी को यह विचार तोठीक लगता था लेकिन उन्होंने वेंकय्या जी की डिजाइन में कुछ परिवर्तन सुझाए. मोहनदास गाँधी की बात को ध्यान में रखकरदिल्ली के देशभक्त लाला हंसराज ने सुझाव दिया कि बीच में चरखा लगा दिया जाए तो ज्यादा सही रहेगा. मोहनदास गाँधी कोलालाजी की बात अच्छी लगी और थोड़े बहुत परिवर्तन के बाद तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार कर लिया गया. उसकेबाद कांग्रेस के सभी कार्यक्रमो में तिरंगा फहराया जाने लगा. अगस्त 1931 में कांग्रेस की एक कमेटी बनायी गयी जिसने झंडे में कुछ परिवर्तन का सुझाव दिया. वेंकय्या के झंडे में लाल रंगथा. उसकी जगह पर भगवा पट्टी कर दी गयी. उसके बाद सफ़ेद पट्टी और सबसे नीचे हरा रंग किया गया. चरखा बीच में सफ़ेद पट्टीपर सुपर इम्पोज कर दिया गया. मोहनदास गाँधी ने इस परिवर्तन को सही बताया और कहा कि राष्ट्रीय ध्वज अहिंसा औरराष्ट्रीय एकता की निशानी है. आज़ादी मिलने के बाद तिरंगे में कुछ परिवर्तन किया गया. संविधान सभा की एक कमेटी ने तय किया कि उस वक़्त तक तिरंगाकांग्रेस के हर कार्यक्रम में फहराया जाता रहा है लेकिन अब देश सब का है. उनलोगों का भी जो आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेजों केमित्र के रूप में जाने जाते थे. इसलिए चरखे की जगह पर अशोक चक्र को लगाने का फैसला किया गया. जब मोहनदास गाँधी कोइसकी जानकारी दी गयी तो उन्हें ताज्जुब हुआ. बोले कि कांग्रेस तो हमेशा से ही राष्ट्रीय रही है. इसलिए इस तरह के बदलाव कीकोई ज़रुरत नहीं है. लेकिन उन्हें नयी डिजाइन के बारे में राजी कर लिया गया. ज्ञात हो कि आरएसएस के अपने मुख्यालय पर कभी भी तिरंगा झंडा नहीं फहराया गया. जब 2004 में तत्कालीन बीजेपी की नेताउमा भारती तिरंगा फहराने कर्नाटक के हुबली की ओर कूच कर चुकी थीं तो लोगों ने अखबारों में लिखा भी कि हुबली में झंडाफहराने के साथ साथ उमा भारती को नागपुर के आरएसएस के मुख्यालय में भी झंडा फहरा लेना चाहिए.
बिहार में बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक-दंगा कराने की भाजपा की साजिश नाकामपिछले दिनों पटना गांधी मैदान में मोदी कि रैली में किये गए विस्फोट भाजपा द्वारा राज्य में बड़े पैमाने पर व्यापक दंगा करानेकि पूर्व नियोजित साजिश का ही हिस्सा हो सकता है, क्योंकि, विस्फोट के बाबजूद; भाजपा रैली रद्द करने के बजाय बेफिक्र होकरभाषण दे रहे थे. अब भाजपा नेता गलत और बेबुनियाद बयान देकर बिहार पुलिस को कटघरे में खड़ा करने में लगी हुई है.
भाजपा-जदयू गठबंधन वाली बिहार सरकार में भाजपा नेता सुशील मोदी वित्त मंत्री के अलावा गृह मंत्री भी थे. जाहिर है उसकीपुलिस महानिदेशक अभ्यानंद (भूमिहार) के रहते ही रणवीर सेना ने आतंकी ब्रह्मेश्वर के हत्या के बहाने आरा से लेकर पटना तककोहराम मचाया था. वही पुलिस महानिदेशक अभ्यानंद (भूमिहार) आज भी अपने पद पर जमा हुआ है. हाल में लक्ष्मणपुर बाथे में६१ गरीब दलित महिलाओं व बच्चों के निर्ममतापूर्वक कत्लेआम करने के जिम्मेदार रणवीर सेना के सभी अपराधियों को पटनाउच्च न्यायालय में बैठे ऊंची जात सवर्ण .न्यायाधीश ने चुनाव से ठीक पहले रिहा कर दिया है. यही अपराधी भविष्य में कभी भीसाम्प्रदायिक दंगा कराने में भाजपा का काम आ सकते है. उत्तर प्रदेश में अयोध्या, फैजाबाद, मेरठ, मथुरा से लेकर मुजफ्फरनगर तक साम्प्रदायिक दंगा भड़काने के लगभग १०० सेज्यादा साजिशों को मौजूदा अखिलेश सरकार ने नाकाम किया है. सरकार को बिना देरी किये 'भाजपा आरएसएस के इस करतूतोंको देखते हुए दंगाई गुंडा अमित शाह, अशोक सिंघल, प्रवीण तोगड़िया जैसे अपराधियों को तुरंत जमींदोज कर देना चाहिए.'
मोदी एक बुलबुला है
मोदी की अब तक जो छवि है वो अमरीका की एक बड़ी पब्लिक रिलेशन कंपनी एप्को वर्ल्डवाइड की देन है. नरेंद्र मोदी सिर्फ टीवीऔर गुजरात तक सीमित हैं. गुजरात दंगे मोदी का पीछा नहीं छोड़ेंगे. इसलिए मोदी एक बुलबुला है जिसकी हवा 2014 के चुनावके बाद निकल जाएगी. ३० अक्टूबर को तालकटोरा स्टेडियम में वामदलों के आह्वान पर १७ राजनीतिक दलों का एक मंच परआकर साम्प्रदायिकता के खिलाफ आगाज करना वास्तव में पिछले १५ वर्षों बाद कि सबसे बड़ी राजनीतिक घटना है.
आरएसएस अपनी पूर्व शर्तों से मुकर रहा है.
आरएसएस ने कहा है कि उसका संगठन अब खुलकर राजनीति में हिस्सा लेगा. यह वास्तव में उसके अपने ही दिए गए आश्वासनके ठीक उलट है जिसमे गांधी वध के बाद तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल द्वारा लगाए गए प्रतिबन्ध को हटाने के लिए आश्वस्त किया था कि संघराजनीति में सीधी भागीदारी के बजाय सांस्कृतिक गतिविधियों तक ही खुद को सीमित रखेगा. देश तोड़क, समाज भंजकआरएसएस के विचारधारा से शक्तिशाली भारत के मंगल यान अभियान में क्या कोई वैज्ञानिक मदद मिल सकती है?
मंदिरों-गढ़ों-मठों को अब तोड़ने ही होंगे
क्या यही मानव धर्म है जो 'शूद्रों के वेद ज्ञान सीखने पर उसके कान में पिघला हुआ शीशा डालने, वेदों का उच्चारण करने पर शूद्रोंकि जिह्वा काट लेने, और विद्द्या कला सीखने पर शूद्रों का अंगूठा काटने का हुक्म देता हो. शिक्षा का मकसद सिर्फ दुनिया कोसमझना नहीं बल्कि, उसे बदलना भी है.हजारो साल से सड़ांध ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था ने लाखोंकरोड़ों स्त्रियों को कभी सती के नाम पर तो कभी दहेज़ के नामपर ज़िंदा आग में जलाया है. जातपात, उंचनीच का भेदभाव अपनाकर दलितों आदिवासियोंपिछड़ेवर्ग के लोगों के साथ सदियों से सामाजिकशोषण कोबढ़ावा देता आया है.अंधविश्वास, ढोंग, रूढ़िवादिता, कूपमंडुप्ता, दकियानूसी विचारों के जरिये पूर्व जन्म के आधार पर पाप पुण्य कि व्याख्या करनेके जरिये इंसानों को इंसान के हाथों गुलाम बनाया.अगर दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति के खिलाफ हथियारबंद संघर्ष जायज था तो ब्राह्मणवादी जातीय शोषण के खिलाफ सशस्त्रसंघर्ष क्यों नहीं है जायज? सरकार शोभन सरकार के कहने पर उन्नाव में सोने कि लालच में खुदाई करवाने के नाम पर ४० लाखरूपये खर्च कर देती है और जो सोना ब्राह्मणों ने देशभर के पांच लाख चौहत्तर हजार (५, ७४ ०००) मंदिरों में (पांच लाख टन से भीज्यादा सोना) जमा कर रखा है उसे जब्त नहीं कर रही है. साम्प्रदायिक ब्राह्मणवादी दकियानूसी नरेंद्र मोदी ब्राह्मणवादीआरएसएस का चौकीदार है जिसे हर हाल में परास्त करना ही होगा
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