शनिवार, 20 मई 2017

संघ की तिरंगे के प्रति निष्ठा नहीं है

संघ की तिरंगे के प्रति निष्ठा नहीं है

indian flagलखनऊ. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने आज कहा कि भाजपा एवं उसके पितृ संगठन, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा पिछले 23 महीनों में भारतवर्ष के राष्ट्रीय प्रतीकों का घोर अपमान किया जा रहा है, जो एक सुनियोजित विभाजनकारी एजेंडे का कुत्सित परिणाम है.

कल आरएसएस के सहसरसंघचालक भैया जी जोशी द्वारा जिस तरह से भारत के राष्ट्रीय ध्वज, तिरंगे की सार्वजनिक तौर से अवमानना की गई, उससे स्पष्ट है कि आरएसएस आज भी आजादी के स्वर्णिम इतिहास को नकारने में लगा है. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में जंग-ए-आजादी की लड़ाई 15 अगस्त, 1947 को देश की आजादी के साथ परिपूर्ण हुई. भारतीय तिरंगा, जिस जज्बे और कुर्बानी से राष्ट्रीय ध्वज बना एवं प्रत्येक भारतवासी को गौरवान्वित एवं आन्दोलित किया, इसकी पृष्ठभूमि से स्पष्ट है कि पंडित नेहरु (तत्कालीन कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष) ने 1929 में सभी देशवासियों को आह्वान किया कि 26 जनवरी, 1930 को सभी स्वतंत्रता दिवस मनाएं और राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को फहराने का दुर्भाग्य से दूसरी तरफ तत्कालीन आरएसएस के सरसंघचालक हेडगेवार ने आरएसएस के प्रत्येक सदस्य को लिखा, ‘‘26 जनवरी, 1930 की शाम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाएं अपने अपने आरएसएस के स्थान पर सभी स्वयंसेवकों को सभाओं का आयोजन कर भगवे ध्वज की वंदना करें.’’ इससे स्पष्ट है कि आरएसएस शुरु से ही राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के प्रति असम्मान का भाव रखता है.

इतिहास का और अवलोकन करने से स्पष्ट है कि आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक गोलवलकर भी राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के प्रति दुर्भावना से ग्रस्त थे, जो उनके तीन वक्तव्यों से साफ है.

flagपहला वक्तव्य, जो उन्होंने 14 जुलाई, 1946 को गुरु पूर्णिमा के अवसर पर नागपुर में एक सभा में कहा कि हमारी महान संस्कृति का परिपूर्ण परिचय देने वाला प्रतीक स्वरूप हमारा भगवा ध्वज है, जो हमारे लिए परमेश्वर स्वरूप है. इसलिए इसी परम वंदनीय ध्वज को हमने अपने गुरुस्थान में रखना उचित समझा है. हमारा दृढ़ विश्वास है कि अंत में इसी ध्वज के समक्ष सारा राष्ट्र नतमस्तक होगा.

इससे साफ प्रतीत होता है कि तिरंगे झंडे के प्रति आरएसएस शुरु से ही दुराग्रह से ग्रस्त है. इसके बाद 15 अगस्त, 1947 को देश की आजादी की घोषणा के समय दिल्ली के लाल किले से तिरंगे झंडे को फहराने की तैयारी चल रही थी, तभी आरएसएस ने अपने अंग्रेजी के मुखपत्र ऑर्गेनाईजर के 14 अगस्त, 1947 के अंक में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की भर्त्सना करते हुए लिखा, ‘‘वे लोग, जो किस्मत के दांव से सत्ता तक पहुंचे हैं, वे भले ही हमारे हाथों में तिरंगे को थमा दें, लेकिन हिन्दुओं में न इसे कभी सम्मानित किया जा सकेगा, न अपनाया जा सकेगा. तीन का आंकड़ा अपने आप में अशुभ है, और एक ऐसा झंडा, जिसमें तीन रंग हों, बेहद खराब मनोवैज्ञानिक असर डालेगा और देश के लिए नुकसानदेह साबित होगा.

आजादी मिलने के बाद गोलवलकर ने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को लेकर अपने लेखपत्र ‘‘पतन ही पतन’’ में लिखा, ‘‘उदाहरणस्वरूप, हमारे नेताओं ने हमारे राष्ट्र के लिए नया ध्वज निर्धारित किया है. उन्होंने ऐसा क्यों किया? यह पतन की ओर बहने का एक यह सर्वविदित है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद देश के गृहमंत्री, सरदार वल्लभ भाई पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया.

indiaयह प्रतिबंध माफीनामा/स्पष्टीकरण दिए जाने के बाद साल 1949 में हटाया गया. भारत के गृहमंत्रालय द्वारा (जिसके गृहमंत्री सरदार पटेल थे) 11 जुलाई, 1949 को एक विज्ञप्ति जारी की गई. उस विज्ञप्ति के अनुसार, ‘‘आरएसएस के नेता ने आश्वासन दिया है कि आरएसएस के संविधान में भारत के संविधान और राष्ट्रध्वज के प्रति निष्ठा को और सुस्पष्ट किया जाएगा. इस हेरफेर और आरएसएस के नेता द्वारा स्पष्टीकरण को देखते हुए भारत सरकार इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि आरएसएस को मौका दिया जाना चाहिए कि वो एक जनतांत्रिक, सांस्कृतिक, भारतीय संविधान को निष्ठा और राष्ट्रीय ध्वज को स्वीकार करने वाले व गोपनीयता को छोड़कर हिंसा से दूर रहने वाले संगठन के रूप में काम कर सके.’’

दूसरा विषय, हमारे महान देश भारतवर्ष के राष्ट्रगान (‘जन गण मन’) एवं राष्ट्रगीत (‘वंदे मातरम’) को लेकर है, जिसके (राष्ट्रगान) विषय में आरएसएस के सहकार्यवाहक जोशी जी ने अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया है. वो कहते हैं कि राष्ट्रगान में देशभक्ति की वो भावना उत्पन्न नहीं होती, जो राष्ट्रगीत में होती है. यह आजादी के इतिहास को तोड़ने मरोड़ने का एक और इतिहास के आईने में देखने से स्पष्ट है कि कांग्रेस ने भारतवर्ष की विविधता को देखते हुए और देश की ‘अनेकता में एकता’ को कायम रखने के लिए साल 1905 में बंगाल विभाजन के बाद राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ को अपनाया तथा कांग्रेस और वंदे मातरम एक दूसरे का पर्याय हो गए. 1925 से लेकर अब तक आरएसएस के पूरे साहित्य में (जो कि विभिन्न सरसंघचालकों और आरएसएस के बारे में बताता है) कहीं भी वंदे मातरम शब्द का कोई जिक्र तक नहीं है. आरएसएस तो 1939 से अपनी शाखाओं में ‘‘नमस्ते सदावत्सले’’ ही गाता है.

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 20 अक्टूबर, 1937 को कांग्रेस पार्टी ने कमिटी का गठन किया जिसकी अध्यक्षता पंडित नेहरु ने की और कमिटी के सदस्य थे, महात्मा गांधी, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद और सुभाष चंद्र बोस. इस कमिटी ने अपना निष्कर्ष 28 अक्टूबर, 1937 को राष्ट्रगीत के बारे में दिया, जो बहुत ही महत्वपूर्ण है. कमिटी का निष्कर्ष था, ‘‘वंदे मातरम् गीत के पहले दो अनुच्छेद ही सबसे उपयुक्त हैं और इनसे राष्ट्रप्रेम की भावना उत्पन्न होती है’’.

तभी से देश में वंदे मातरम् का गायन हर एक सेनानी का परमप्रिय गीत वहीं, श्री रविंद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित राष्ट्रगान (जन गण मन), जो पूरे देश को एकसूत्र में बांधता है तथा देश की विविधता को दर्शाता है और देश की एकता और अखंडता पर जोर देता है, उसको 27 दिसंबर, 1911 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में सर्वप्रथम गाया गया. जबकि आरएसएस की उत्पत्ति ही सन 1925 में हुई. 24 जनवरी, 1950 को महान भारतवर्ष की संविधान सभा में राष्ट्रगान पर एक महाविचार विमर्श करने के पश्चात देश के लिए अपनाया. हमारा सवाल है, क्या आरएसएस अपनी शाखाओं में, अपनी प्रार्थना को छोड़कर वंदे मातरम या राष्ट्रगान के की गायन शुरु करेगा? जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अपने प्रत्येक समारोह एवं उत्सवों में राष्ट्रगान एवं राष्ट्रगीत को समर्पित होकर गायन करती है.

देश के 125 करोड़ देशवासियों की ओर से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भाजपा व आरएसएस से जवाब मांगती है कि जब उन्होंने देश की आजादी में कोई योगदान नहीं दिया और उनकी राष्ट्र के प्रतीकों के गठन में कोई भूमिका नहीं रही, तो वो उनका अपमान किस आधार पर कर रहे हैं? क्या यह देश के 125 करोड़ लोगों का अपमान नहीं? हम भारतीय जनता पार्टी से मांग करते हैं कि देश के ‘प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट्स टू नेशनल ऑनर एक्ट 1971’ के अनुसार भैया जी जोशी पर कार्यवाही की जाए. विभाजन की राजनीति तथा राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान की कसौटी किसी भी मापदंड पर राष्ट्रहित में नहीं है. हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग करते हैं कि वो इस दुर्भाग्यपूर्ण विवाद व भाजपा-आरएसएस द्वारा राष्ट्रीय प्रतीकों के जानबूझकर किए गए अपमान पर अपनी स्थिति स्पष्ट करें तथा देशवासियों के समक्ष इस बारे एक व्यापक वक्तव्य दें.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें