रविवार, 21 मई 2017

बाबासाहब अंबेडकर के महान कार्य

कोलंबीया विश्वविद्यालय से पढायी पूरी करके जब बाबा साहब अम्बेडकर भारत वापस आये तो सातारा के स्टेशन पर उतरे। उस समय बाबा साहब सातारा में रहते थे। दोनो हाथो मे बडी बडी सुटकेस थी, स्टेशन के बाहर एक घोडा गाडी वाला (टाँगे) वाला खडा था। बाबासाहब का गाँव सातारा स्टेशन से 6 कि.मी.दुर था। बाबासाहाब ने उस टाँगे वाले से कहा “गाँव चलोंगे।” टाँगे वाले ने कहा “हाँ साहाब चलेगे।” चार पैसे मे गाँव चलना तय हुआ। बाबा साहब दोनो सुटकेस टाँगे मे रखकर बैठ गये। दो कि.मी. अंतर चलने के बाद बातों बातों मे टाँगे वाले ने बाबा साहब को पूछा “साहब तुम कौन वंश के हो?” बाबासाहाब सुट बुट टॉय लगाये हुये थे। बाबासाहाब कभी झुठ नही बोलते थे बाबा साहब ने टाँगे वाले से कहा “मै अस्पृश्य हुँ।” टाँगे वाले को आच्छर्य हुआ “क्या साहब मजाक करते हो।” बाबासाहब ने कहा “नही मै मजाक नही कर रहा हुँ। मै महार जाति से हुँ।“ इतना सुनते ही टाँगे वाले ने टाँगा रोक दिया और कहा “अरे रे उतरो उतरो मेरी गाडी से उतरो”
बाबासाहाब के सामने उस टाँगे वाले की कोई औकात नही थी। टाँगे वाला घुटने तक एक मैली सी धोती फटा मैला सा कुर्ता पहने हुआ था, फर्क था तो सिर्फ जाति का था टाँगे वाला बाबासाहाब से केवल एक पायदान उँची जाती का था (ये वो जाती है जिसके लिये बाबासाहाब ने काँग्रेस मे कानून मंत्री रहते हुये उस जाति को काँग्रेस सरकार ने आरक्षण नही देने के कारण से मंत्री पद से राजीनामा दे दिया था)
आगे की कहानी: टाँगे वाला “अरे मेरी गाडी को अपवित्र कर दिया अब मुझे गाडी पर गोमुत्र छिडकना पड़ेगा उसे शुद्धीकरन करना पढेंगा “अरे साहब छोटी जाति के हो छोटी जाती जैसे रहा करो आपको सुट बुट पर देखकर मै धोखा खा गया। बाबासाहाब ने उस टाँगे वाले से विनती करते हुये कहा ” भाई मै सिर्फ छोटी जाति का हुँ करके तुम मुझे गाडी पर नही बिठाओंगे? टाँगे वाला “नही मै नही बिठाऊंगा; आप पैदल जाओ।
बाबासाहाब की उस समय मजबुरी थी, शाम का वक्त हो चला था। अँधेरा बस होने ही वाला था। बाबासाहाब ने फिर उस टाँगे वाले से कहा ” भाई मै तुम्हे डबल पैसे दुँगा पर तुम मुझे मेरे गाँव तक छोडो। मेरे पास दो बडी बडी सुटकेस है और रात बस होने वाली है मै पैदल नही जा सकुँगा। डबल पैसे के लालच मे गाडी वाला बाबा साहब को गाँव छोडने को तैयार हुआ। टाँगे वाले ने कहा “मै आपको गाँव छोड दुँगा, पर मेरी एक शर्त है।“
बाबासाहाब ने पूछा “कौन सी शर्त? मै तो डबल पैसे देने को राजी हुँ।“ टाँगे वाले ने कहा “डबल पैसे तो आप दोंगे, पर आप छोटी जाति से हो इसलिये गाडी आप चलाओंगे। मै बैठूँगा…
मै यहा ये बता दूँ कि ये कल्पना नही है। ये एक सच्ची घटना है, बाबासाहब के साथ ऐसे कई घटनायें घटीत हुई। उनकी कहानियॉ सुनकर दर्द भरी आहे निकलती है। डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर ने भारत का ऐसा महान संविधान लिखकर सभी जातियों व भारतवासियो पर अनेक उपकार करके हमेशा के लिये अजर-अमर हो गये पर उन्होंने कितने कष्ट झेले ये किसी को पता ही नहीं है। ये आप सभी को मालूम होना जरूरी है।
आगे की कहानी:
बाबासाहब की मजबुरी थी उन्होने गाडी वाले की शर्त मान ली एक मैला भिखारी सा दिखने वाला वो टाँगे वाला एक इतने बडे बाबासाहब के सामने शर्त रखी और मजबुरी मे बाबासाहब को मानना पडा उस समय जातिवाद की कडी बेडीया थी, इसलिये बाबासाहब को उस टाँगे वाले की शर्त माननी पडी। बाबासाहाब ने कहा “मुझे मंजुर है।” बाबा साहब को कैसे भी अपने गाँव पहुचना था। बाबा साहब की जगह बैठा टाँगे वाला टाँगे वाले के जगह बैठे बाबा साहब गाडी चलाते हुये बाबासाहब और तीन कि.मी. चल पडे। अँधेरे का समय और बाबा साहब को गाडी चलाने का उतना अनुभव न होने के कारण गाडी का एक पहीया गढ्ढे मे चला गया और गाडी पलट गयी। टाँगे वाला गाडी पर से कूद गया, पर बाबा साहब गिर गये। उनके घुटने पर चोट आयी इसके बाद गाडी वाला आगे तक नही जा सका। शर्त के अनुसार बाबा साहब ने गाडी वाले को डबल पैसे दिये ओर दोनो हाथों मे सुटकेस जिसमे बाबा साहब के कपडे और किताबे थी। पैदल ही अपने घर की और चल पडे जो अभी एक कि.मी. दुर था। जैसे तैसे घुटने मे चोट के कारण लंगडते हुये बाबा साहब घर के पास पहुँचकर “रमा.. रमा..” करके रमा बाई को आवाज लगायी। रमा बाई अपने हाथो मे कंदील लिये अपने साहब की आवाज सुनकर बाहर आयी। देखा तो साहब लंगडते हुये चल रहे थे। रमाबाई ने बाबा साहब से पूछा “क्या हुआ। साहब क्यो लंगडते हुये चल रहे हो?” बाबा साहब की आँखे भीग गयी। उन्होने रूँदे गले से कहा “देख रमा जिस देश में मेरा जन्म हुआ है उस देश के लोग मुझे पानी को हाथ नही लगाने देते, गाडी वाला गाडी पर नही बिठाता। कितना जातीवाद का जहर है इस देश मे? मै आज पराये देश से आ रहा हुँ वहा मेरा कितना सम्मान होता है। मै वहा मुझे डी.लीट की उपाधि मिली, वहा के कूलगुरू ने मुझे अपना मूल्यवान पेन भेट दिया है। मेरे जैसे पढे लिखे और विद्वान की ये दशा है तो मेरा समाज तो बिलकुल ही अनपढ मेंढी जैसा है। ये जातीवाद तो मेरे समाज को पैरो तले रौंद डालेगा। मुझे कुछ करना चाहिए।

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