राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)
‘‘अर्जुन सेन गुप्ता की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 83 करोड़ लोग गरीबी के चलते भुखमरी की कगार पर पहुँचा दिये गये हैं. इसी तरह एक और चौंका देने वाला तथ्य यह भी है कि नोवेल विजेता विश्वप्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो.डेटॉन ने एक शोध में कहा था कि भारत में जो गरीबी और भुखमरी है इसका मुख्य कारण ‘‘जाति’’ है. इसका मतलब यह हुआ कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों ने भारत में जाति का निर्माण किया और जाति के आधार पर मूलनिवासी बहुजनों को गरीबी और भुखमरी का शिकार बना दिया’’
खाने के लिए भोजन और अनाज ना मिलने के कारण भारत की गरीब जनता भुखमरी का शिकार हो चुकी है. भारत के कई राज्यों में जंगलों में रहने वाले आदिवासियों के हालात इतने ज्यादा गंभीर हैं कि भोजन ना मिलने से कुपोषण (भुखमरी) के शिकार हो रहें हैं. जिससे आदिवासियों के बच्चे मृत्यु के गाल में समा रहें हैं. जबकि, सरकार के पास अनाज का 669.15 लाख टन भंडारण हैं. फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका में जाकर कहते हैं कि भारत में सब कुछ ठीक हैं. अब उनकी यह पोल ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने खोल दी हैं. देश में बीजेपी की सत्ता आने के बाद इस सरकार ने देश की जनता को भुखमरी की खाई में धकेल दिया हैं. स्थिती यह हो गई है कि भारत अब ग्लोबल हंगर इंडेक्स में अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी पिछड़ गया है.
ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2019 ने मंगलवार को भारत के संबंध में चौंकाने वाले आंकड़े जारी किए हैं. इसके मुताबिक, भारत विश्व के उन 117 देशों में से 102वें नंबर पर आ गया है जहाँ बच्चों की लंबाई के अनुसार वजन बहुत कम है. सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि बाल मृत्यु दर सबसे ज्यादा है और बच्चे कुपोषण के गाल में समा रहे हैं. ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019 में कहा गया है कि बच्चों को इस तरह से नुकसान पहुंचने का आंकड़ा 20.8 फीसदी है. रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में बच्चों के मामले में सबसे खराब प्रदर्शन यमन, जिबूती और भारत का है, जिनका फीसदी 17.9 से 20.8 के बीच है. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में यह भी कहा गया कि भारत में 6 से 23 महीने की बीच के उम्र के महज 9.6 फीसदी बच्चों को ही ‘न्यूयनतम स्वीकार्य आहार’ दिया जाता है. रिपोर्ट ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा साल 2016-18 के बीच कराए गए एक सर्वे के आधार पर बताया कि भारत में 35 फीसदी बच्चे छोटे कद के हैं, जबकि 17 फीसदी बच्चे कमजोर पाए गए. रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका जिनकी रैंकिंग क्रमशः 94, 88, 73 और 66 है. साल 2010 में भारत लिस्ट में 95वें नंबर था जो 2019 में खिसकर 102वें स्थान पर आ गया. साल 2000 की 113 देशों की सूची में भार का स्थान 83वां था.
बता दें कि हाल ही में जनसत्ता नाम के हिंदी अखबार एक खबर छपकर आई. खबर में लिखा था कि भारत सरकार के पास सितंबर माह में अनाज का भंडारण 669.15 लाख टन हैं, जिसमें 414 लाख टन गेंहूँ और 254.25 लाख टन चावल है. हैरान करने की बात यह है कि सरकार के पास अनाज रखने के लिए जगह नही हैं, इसलिए सरकार अनाज भंडारण के खर्च में कटौती करने पर विचार कर रही हैं. जिस देश में लोगों को खाने को अनाज नही मिल रहा हैं उस देश की सरकार भंड़ारण खर्च में कटौती के लिए विदेशों को अनाज दान में देने का फैसला कर रही हैं. यही नहीं इसके पूर्व कांगेस सरकार ने भी विदेशों को अनाज दान कर चुकी है. साल 2011-14 और 2017-18 में भारत ने 3.5 लाख टन गेहु अफगनिस्तान को दान कर दिया था वही, 2012-13 में मानवीय सहायता के नाते केंद्र सरकार ने 1447 लाख टन गेंहूँ यमन को दिया गया था. इसके अलावा छोटी छोटी मात्रा में श्रीलंका, नामीबीया, लेसोथो और म्यांमार को चावल दान किया जा चुका है, जबकि भारत की जनता भूखों मर रही है. इसका मतलब साफ है कि कथित आजादी के 71 वर्ष बाद भी भारत जैसे महान देश भारत में जहाँ हर दिन करोड़ों लोगों को ‘दो जून की रोटी’ नसीब नहीं हो रही है तो वहीं दूसरी तरफ भारत जैसे देश में न केवल खाने की बर्बादी की जा रही है, बल्कि भारत सरकार भी दोनों हाथों से दूसरे देशों को अनाज लूटा रही है. ताजा रिपोर्ट कहती है कि भारत में जितना एक साल में अनाज बर्बाद कर दिये जाते हैं, उतना ब्रिटेन पैदा भी नहीं कर पाता है. अगर भारत में खाने और अनाजों की बर्बादी की बात करें तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
वर्ल्ड हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट 2018 के मुताबिक, भारत में तकरीबन 20 करोड़ से ज्यादा लोग हर रोज भूखे पेट सोने के लिए मजबूर हैं. इसका मतलब है कि भारत में हर 4 में से एक बच्चा भूखा रहता है. वर्ल्ड हंगर इंडेक्स रिपोर्ट के ही मुताबिक भारत में हर दिन 244 करोड़ रूपये का खाना बर्बाद होता है. यदि पूरे एक साल का आंकड़ा निकाले तो भारत में एक साल में 87840 करोड़ रूपये का केवल खाना बर्बाद किया जाता है. जब बात अनाजों की बर्बादी की करते हैं तो इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 23 करोड़ टन दाल, 12 करोड़ टन फल और 21 करोड़ टन सब्जियाँ वितरण प्रणाली में खामियों के कारण खराब हो जाती हैं. देश में हर साल उतना गेहूँ बर्बाद होता है जितना आस्ट्रेलिया की कुल पैदावार होती है. नष्ट हुए गेहूँ की कीमत लगभग 50 हजार करोड़ होती है और इससे 30 करोड़ लोगों को साल भर भरपेट खाना दिया जा सकता है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 23 करोड़ टन दाल, 12 करोड़ टन फल और 21 करोड़ टन सब्जियाँ वितरण प्रणाली में खामियों के कारण खराब हो जाती हैं. विश्व खाद्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की जनसख्या की उदरपूर्ति करने के लिए हर साल लगभग 230 मिलियन टन अनाज की आवश्यकता होती है, लेकिन 270 मिलियन टन अनाज का उत्पादन होने के बाद भी 20 करोड़ से ज्यादा लोग भूखे पेट सो रहे हैं.
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