शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

खुले में शौच मुक्त भारत की तस्वीर



राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)
पिछले दिनों मध्य प्रदेश के शिवपुरी में 10 और 12 साल के दो अनुसूचित जाति के बच्चों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. उनका कसूर केवल इतना था कि वे खुले में शौच कर रहे थे. उनके गाँव को स्वच्छ भारत मिशन के डेटाबेस में ‘खुले में शौच से मुक्त’ कर दिया गया है, लेकिन उनके परिवार के पास इस्तेमाल के लिए शौचालय नहीं था. इस घटना के दस दिन पहले ही, उत्तर प्रदेश के रायबरेली के इच्छवापुर में एक महिला शौच के लिए खेतों की तरफ गई थी. बाद में माथे पर चोट के निशान के साथ उसकी लाश पाई गई. स्वच्छ भारत मिशन के डेटाबेस के मुताबिक रायबरेली के भी सभी गाँवों को खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया गया है. ये दो मामले खुले में शौच से मुक्त घोषित करने और उसके सत्यापन की प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगाते हैं.

स्वच्छ भारत मिशन के डेटाबेस के मुताबिक, 26 सितंबर तक सभी गांवों ने खुद को खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया है और और 90 फीसदी गाँव सत्यापन के पहले चक्र से गुजर चुके हैं. इस डेटाबेस में दर्ज सूचनाओं की प्रामाणिकता संदिग्ध है. लेकिन, अगर सरकार की बात मान भी लेते हैं, तो भी इस क्षेत्र में सरकार का प्रदर्शन उतना बेदाग नहीं है, जितना दावा सरकार कर रही है. उदाहरण के लिए ओडिशा में सिर्फ 51 फीसदी गाँव सत्यापन के पहले स्तर से गुजरे हैं. बिहार ने अपने 38,000 से ज्यादा गाँवों में से 58 फीसदी गाँवों में पहले चरण का सत्यापन किया है. स्वच्छ भारत मिशन के दिशा-निर्देशों के मुताबिक एक गाँव अपनी ग्राम सभा में इस बाबत एक प्रस्ताव पारित करके खुद को खुले में शौच मुक्त घोषित कर सकता है. यह जानकारी इसके बाद स्वच्छ भारत मिशन के डेटाबेस में अपलोड कर दी जाती है और उसके बाद उस गाँव को ‘खुले में शौच मुक्त घोषित’ के तौर पर चिंहित कर दिया जाता है.

दिशा-निर्देशों के मुताबिक खुले में शौच से मुक्त की घोषणा के सत्यापन के लिए कम से कम दो स्तरों या चरणों का सत्यापन किया जाना चाहिए. सत्यापन का पहला स्तर इस घोषणा के तीन महीने के भीतर पूरा कर लिया जाना चाहिए और दूसरा स्तर- यह सुनिश्चित करने के लिए कि गाँव खुले में शौच मुक्त दर्जे से बाहर न निकल जाए. पहले सत्यापन के छह महीने के भीतर पूरा कर लेना चाहिए. प्रावधान यह है कि यह सत्यापन किसी तीसरे पक्ष के द्वारा या राज्य की अपनी टीमों के द्वारा किया जाए. राज्य की अपनी टीमों के मामले में ईमानदार सत्यापन सुनिश्चित करने के लिए गांव/ब्लॉक/जिला स्तर पर प्रति-सत्यापन किया जाना चाहिए. लेकिन इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है.

स्वच्छ भारत मिशन सत्यापन का काम सिर्फ कागजों पर हुआ है. इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब 26 सितंबर को स्वच्छ भारत मिशन के डेटाबेस की जांच की गयई तब ओडिशा में सत्यापति खुले में शौच मुक्त गांवों की संख्या 23,902 थी. चार दिन बाद यानी 30 सितंबर को यह संख्या लगभग 55 फीसदी बढ़ते हुए 37,008 हो गयी थी. इसका मतलब है कि ओडिशा ने 13,000 गांवों में पहले स्तर के सत्यापन का काम महज चार दिनों में यानी 3,200 गांव प्रति दिन की दर से पूरा कर लिया था. एक अधिकारी ने बताया, अगर सत्यापन के काम को सही तरीके से किया जाए, तो एक गांव में कम से कम तीन घंटे का वक्त लगेगा, क्योंकि एक पूरी जांच-सूची (चेक लिस्ट) है, जिसका पालन किया जाना होता है और गांव को कई मानदंडों के आधार पर अंक देने होते हैं.

13,000 गांवों को चार दिनों में तो क्या एक महीने में भी वास्तविक रूप से सत्यापित करना मुमकिन नहीं है. यानी अगर डेटाबेस पर यकीन करें, तो ओडिशा ने चार दिनों में उतने गांवों को सत्यापित कर दिया, जितने गांवों का सत्यापन पूरे 2018-19 में भी नहीं हुआ था, जब 11,679 गांवों को सत्यापित किया गया था. 2019-20 में जितने गांवों का सत्यापन हुआ, उनमें से 63 फीसदी का सत्यापन सिर्फ चार दिनों में- प्रधानमंत्री द्वारा भारत को खुले में शौच मुक्त घोषित करने से महज एक हफ्ते पहले- किया गया. उन्हीं चार दिनों की अवधि में, बाढ़ से जूझ रहे बिहार ने 3,202 गांवों का सत्यापन कर दिया, जबकि उत्तर प्रदेश में यह काम 3,850 गांवों में अंजाम दिया गया. कुल मिलाकर ये आंकड़े बताते हैं कि सरकार ने आनन-फानन में शौच मुक्त भारत की घोषणा की है. जबकि, हकीकत में ऐसा कुछ नहीं है.

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