सोमवार, 7 अक्तूबर 2019

धर्म परिवर्तन हुआ, लेकिन विचार परिवर्तन नहीं हुआ : वामन मेश्राम



विचार परिवर्तन ही हर तरह का मूल है. मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों की सबसे बड़ी जरूरत परिवर्तन है और परिवर्तन हमारी सबसे बड़ी जरूरत है. क्योंकि, परिवर्तन से ही हमारी सभी समस्याओं का समाधान होने वाला है. इसलिए परिवर्तन हमारी सबसे बड़ी जरूरत है. अब परिवर्तन कैसे होगा? यह सबसे बड़ी समस्या है. अगर, हम इस समस्या का समाधान कर लें तो हमारी सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है. मूलनिवासी बहुजन समाज के पढ़े-लिखे लोग, बुद्धिजीवी लोग और संगठन बनाने, चलाने वाले मूलनिवासी बहुजनों के हजारों संगठन हैं. ये लोग सोंचते हैं कि परिवर्तन चारिटी करने से होगा, परिवर्तन संगठन बनाने और संगठन चलाने से होगा. कुछ लोग सोंचते हैं परिवर्तन बेलफेयर चलाने से, सोशल वर्क आदि करने से परिवर्तन होगा. कुछ लोग स्कूल-कॉलेज खोलने की सलाह देते हैं. उन्हें यह मालूम नहीं है कि हमारे समाज के बहुत सारे स्कूल-कॉलेज हैं. मगर, हमारे समाज का परिवर्तन नहीं हो रहा है. इसमें से किसी से भी परिवर्तन नहीं होगा. आखिर क्यों परिवर्तन नहीं होगा? क्योंकि स्कूल-कॉलेज हमारे हैं. लेकिन, स्कूल ऑफ थॉट हमारी नहीं है. अभ्यास-क्रम हमारी नहीं है. इस तरह से हमारे मूलनिवासी बहुजन समाज का परिवर्तन होने वाला नहीं है. अब सवाल है कि आखिर परिवर्तन कैसे होगा? यूरोप के बेस्टन थींकर ‘‘जौन स्टोड मील’’ का कहना है कि ‘‘अगर आप समाज में मूलभूत परिवर्तन करना चाहते हो तो लोगों के मौलिक विचार, सोच में परिवर्तन करना होगा. इसलिए सोच में परिवर्तन करने का काम सिर्फ विचार ही करता है. एक विचार को बदलने का काम दूसरा विचार ही करता है.

आप सामाजिक परिवर्तन, राजनैतिक परिवर्तन, धार्मिक परिवर्तन और आर्थिक परिवर्तन यानी सभी तरह के परिवर्तन बिना विचार परिवर्तन किये बगैर नहीं कर सकते हो. इसलिए हर परिवर्तन का मूल विचार परिवर्तन है. अगर, आप समाज मे परिवर्तन लाना चाहते हो तो समाज में रहने वाले लोगों के विचार में परिवर्तन करना होगा. यह बात मूलनिवासी बहुजन समाज के हजारो संगठन चलाने वाले लोगों को सोचना होगा. विचार भी प्रासंगिक होनी चाहिए, विचार टमाटर की तरह होता है. जिस तरह टमाटर को चार-पाँच दिनों तक छोड़ देने पर सड़ जाता है. ठीक उसी तरह से विचार का डेली अपडेट न करने से भी विचार टमाटर की तरह सड़़-गल जाता है, खत्म हो जाता है, मर जाता है. मरा हुआ विचार, किसी जिंदा आदमी में परिवर्तन नहीं ला सकता है. इसलिए विचार को प्रतिदिन अॅपडेट, निरंतर (प्रचार-प्रसार) करना पड़ता है, विचार में डेली एडिशन और डेलीगेशन करना पड़ता है. तथागत बुद्ध कहते हैं कि ‘‘दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है, दुनिया का हर चीज परिवर्तनशील है’’ जो भी परिवर्तन के विरोध में व्यवहार करता है वह परिवर्तन वहीं रूक जाता है. जैसे पानी का अवरोध करने पर पानी एक जगह रूक जाता है. पानी जहाँ भी रूक जाता है पानी वहीं सड़ जाता है.

मार्क्स ने कहा है कि ‘‘विचार ही दुनिया पर राज करता है’’ जो शासक होता है वह विचार को ही माध्यम बनाता है, हथियार बनाता है. जैसे, राम जन्म भूमि का आन्दोलन नहीं हुआ होता तो, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार दिल्ली में नहीं बनी होती. ‘‘आईडिया स्मूथ द सोसाएटी’’ आडवाणी ने कहा मैं राम का मंदिर बनाना चाहता हूँ, लेकिन मुसलमान नहीं बनने देना चाहते हैं. इस पर मूलनिवासी बहुजन समाज के लाखों लोग जो मंडल कमीशन का आन्दोलन चल रहा था उसे छोड़कर कमंडल के आन्दोलन में चले गये. यानी दिमाग में पहले विचार आता है फिर उस विचार पर अमल किया जाता है और विचार के अनुसार कार्य होता है. विचार समाज को बदलने का काम करता है. विचार को हथियार बनाकर ही परिवर्तन कर सकते हैं. दुनिया में कोई भी मूलभूत परिवर्तन करना चाहता है तो विचार ही मूलभूत परिवर्तन कर सकता है. 

रशियन फिलॉस्फी रनाथोनी ने अपने ग्रंथ प्रिंसपल ऑफ फिलॉस्फी’’ में लिखा है कि ‘‘दुनिया के हर देश में शासन करने वाला शासक वर्ग अल्पसंख्य होता है और वह एक सक्षम विचारधारा से बहुसंख्य लोगों पर राज करता है. अगर, वह मिलिट्री, पुलिस और हथियार आदि से दीर्घकाल तक राज करना चाहता है तो नहीं कर सकता है’’ अगर आप दीर्घकालीन राज करना चाहता हैं तो आपको एक सक्षम विचारधारा की जरूरत होगी. अगर, आपने विचारधारा बनाया और उस विचारधारा का निरंतर प्रचार-प्रसार किया तो लाखो-करोड़ों लोग उस विचारधारा को स्वीकार करेंगे और आपको शासन-सŸा पर पहुँचाने का काम करेंगे. आपको मान्यता देंगे और कहेंगे कि आप हमारे ऊपर राज करो. यानी शासक लोग शाषित लोगों के ऊपर विचारधारा से राज स्थापित करता है. ठीक उसी तरह अगर शाषित वर्ग शासक वर्ग को बदलना चाहता है और शासक को बदलकर शासक बनना चाहता है तो शाषित को सबसे पहले विचार का निर्माण और विकास करना होगा. तथागत बुद्ध दुनिया के पहले ऐसे क्रांतिकारी हैं जिन्होंने विचार से क्रांति की थी.

बौद्ध धम्म में अशोक विजयादशमी का एक ऐतिहासिक महत्व है. 1956 में अशोक विजयादशमी को 2,500 साल पूरे होने जा रहे थे. डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर मूलनिवासी बहुजनों को उस विरासत के साथ जोड़ देना चाहते थे. बाबासाहब ने महापुरूषों और उनके इतिहास के साथ मेल बनाने का प्रयास किया. इसलिए डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में लाखों अनुयायियों के साथ ‘धम्म दीक्षा’ लिया. यह इतिहास की सबसे बड़ी घटना थी. विजयादशमी भारत के इतिहास का इतना बड़ा दिन था, कि उस दिन को लोग त्यौहार के रूप में मानते हैं. तथागत बुद्ध 90 वर्ष की उम्र तक निरंतर विचार का प्रचार-प्रसार करते रहे. इतना ही नहीं मरने के आखिरी दिन भी नंद भिक्खु के घर पर विचार का प्रचार करते हुए कहा ‘‘चरथं भिक्वें चारकं, बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय, लोकानु कंपाय, अन्तानु हिताय, आदि कल्याण, मध्य कल्याण, अंत कल्याण’’

 बुद्ध ने कोई स्कूल-कॉलेज नहीं खोला फिर भी परिवर्तन कर दिया.
‘‘बुद्धजन हिताय-बुद्धजन सुखाय’’ का विचार, ‘‘बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय’’ इस सिद्धान्त के विरोध में है. क्योंकि, विदेशी आक्रमणकारी आर्य ब्राह्मणों ने जिस वर्ण व्यवस्था का निर्माण किया उस व्यवस्था के विरोध में तथागत बुद्ध ने जीवनपर्यंत संघर्ष किए. इतिहास समझने की कोशिश करनी होगी कि ब्राह्मण तथागत बुद्ध के इतने ज्यादा विरोधी क्यों थे? इसलिए विरोधी थे, क्योंकि बुद्ध वर्ण व्यवस्था के विरोधी थे. बुद्ध ने ब्राह्मणों का ऐसा कोई तर्क नहीं छोड़ा जिस तर्क का ब्राह्मणों ने वर्ण-व्यवस्था निर्माण करने के लिए आधार बनाया था. ब्राह्मणों के प्रत्येक तर्क का तथागत बुद्ध ने खंडन किया. ब्राह्मणों के पास अपनी विषमतावादी व्यवस्था का समर्थन करने के लिए कोई तर्क नहीं बचा. परिणामतः वर्ण व्यवस्था की नींव कमजोर हुई और खत्म हो गई. आपके पास भविष्य की दृष्टि होनी चाहिए. जिन लोगों को वर्तमान का आंकलन नहीं होता, उन्हें वर्तमान की समझ नहीं होती है और वे लोग भविष्य का कोई कार्यक्रम निर्धारित नहीं कर सकते हैं. भविष्य के लिए यदि कोई कार्यक्रम बनाना है तो उसके लिए वर्तमान की समीक्षा करनी होगी. 

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