शनिवार, 12 अक्तूबर 2019

कैसे पढ़ेंगी बेटियाँ....?



देश में जहाँ 55 प्रतिशत लड़कियाँ शिक्षा से दूर हैं तो वहीं दूसरी तरफ देश में स्कूल जाने वाली बच्चियों में से 76 फीसदी और स्कूल छोड़ने वाली बच्चियों में से 90 फीसदी बच्चियाँ घरेलू कामों में शामिल होती हैं. स्कूल छोड़ने वाली हर चार लड़कियों में से एक बच्ची घर के लिए पैसे कमाती है और हर दस में से एक लड़की घर में छोटे बच्चों का खयाल रखती हैं. इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात तो यह है कि 25 प्रतिशत बच्चियाँ स्कूल इसलिए नहीं जा पाती हैं क्योंकि, स्कूल उनके घर से ज्यादा दूर है. यह उस भारत की हकीकत पेश करती तस्वीर है जिस भारत में ‘‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’’ के नारे लगाये जाते हैं. जबकि, भारत में बेटियों के सुरक्षित होने की बात करें तो भारत में यही बेटियाँ कितनी सुरक्षित हैं? यह किसी से छुपा नहीं है, इसे बताने की जरूरत नहीं है. इस बात का खुलासा तब हुआ जब एक सर्वे ने रिपोर्ट जारी किया.

14 साल की पूजा हफ्ते में 2 या 3 दिन ही स्कूल जा पाती है. उससे पूछो कि क्या बनना चाहती है तो अपने किताब में बनी रॉकेट की तस्वीर दिखाते हुए कहती है कि वैज्ञानिक बनना है. लेकिन, फिर उसके चेहरे पर मायूसी छा जाती है. क्योंकि, वह हर रोज स्कूल नहीं जा पाती है. पिता मजदूर हैं, बड़ी मुश्किल से घर चलाते हैं. उसे अपने दो छोटे भाई-बहनों का ख्याल रखना पड़ता है. इसलिए कभी-कभार ही स्कूल जाना हो पाता है. ये कहानी सिर्फ एक बच्ची की नहीं है. बल्कि, ऐसी कई बेटियाँ हैं देश में जो स्कूल नहीं जा पाती हैं. यही नहीं उनके माता-पिता भी मजबूरी में उन्हें स्कूल नहीं भेज पाते हैं. देश में स्कूल जाने वाली बच्चियों की हालत बहुत अच्छी नहीं हैं. ये बच्चियाँ स्कूल जाने के बजाय घर के कामों में लगी रहती हैं, घर के लिए पैसे कमाती हैं. साथ ही घर में छोटे बच्चों का ख्याल भी रखती हैं. बड़ी मुश्किल से ही प्राइमरी स्कूल तक जा पाती हैं.

देश में स्कूल जाने वाली बच्चियों में से 76 फीसदी और स्कूल छोड़ने वाली बच्चियों में से 90 फीसदी बच्चियाँ घरेलू कामों में शामिल होती हैं. स्कूल छोड़ने वाली हर चार लड़कियों में से एक बच्ची घर के लिए पैसे कमाती है और हर दस में से एक लड़की घर में छोटे बच्चों का ख्याल रखती हैं. यह खुलासा हुआ गैर सरकारी संस्थान चाइल्ड राइट्स एंड यू (सीआरवाई) की रिपोर्ट एजुकेटिंग द गर्ल चाइल्ड ने किया है. सीआरवाई ने देश के चार हिस्सों से चार राज्य चुने, जिनमें बिहार, आंध्र प्रदेश, गुजरात और हरियाणा शामिल है. इन सभी राज्यों के 20-20 गाँवों का अध्ययन किया गया, साथ ही इन गाँवों के जिलों में भी अध्ययन किया गया. रिपोर्ट के अनुसार, 14 साल की उम्र से पहले ही दो तिहाई बच्चियाँ स्कूल छोड़ देती हैं. सिर्फ 58 फीसदी बच्चियाँ ऐसी होती हैं जो अपर प्राइमरी लेवल तक जा पाती हैं. स्कूल जाने वाली बच्चियों में से 49.4 फीसदी उन परिवारों से हैं, जिनकी आय 5 हजार रुपए प्रति माह या उससे कम है. स्कूल छोड़ने वाली सभी बच्चियों में से 89 प्रतिशत लड़कियों के परिवारों की मासिक आय 10 हजार या उससे कम है. स्कूल छोड़ने वाली बच्चियों के माता-पिता आखिर उनसे कराना क्या चाहते हैं?

रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में स्कूल छोड़ने वाली सभी बच्चियों में से 20 फीसदी बच्चियों के माता पिता उनकी जल्दी शादी कराना चाहते हैं. गुजरात में यह दर 3.9 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 21.2 फीसदी और हरियाणा में 11.7 फीसदी है. वहीं गुजरात में स्कूल छोड़ने वाली बच्चियों में से 95.4 फीसदी बच्चियों के माता-पिता उन्हें घर के कामों में व्यस्त कर देते हैं. हरियाणा में यह दर 81.7 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 72.7 फीसदी और बिहार में 60 फीसदी है. जबकि, हरियाणा में स्कूल छोड़ने वाली कुल बच्चियों में से 20 फीसदी बच्चियों के माता-पिता उन्हें घर पर छोटे भाई-बहनों का ख्याल रखने के लिए कह देते हैं. गुजरात में यह दर 16.9 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 12.1 फीसदी और बिहार में 16.9 फीसदी है. यही नहीं गुजरात में स्कूल छोड़ने वाली कुल बच्चियों में से 64.6 फीसदी बच्चियों के माता-पिता उन्हें घरेलू व्यवसाय में लगा देते हैं. आंध्र प्रदेश में यह दर 30.3 फीसदी, हरियाणा में 18.3 फीसदी और बिहार में 14.3 फीसदी है. साथ ही आंध्र प्रदेश में स्कूल छोड़ने वाली कुल बच्चियों में से 30.3 फीसदी बच्चियों के माता-पिता उन्हें घर से बाहर काम में लगा देते हैं. ताकि घर की आमदनी बढ़े. गुजरात में यह दर 7.7 फीसदी, बिहार में 7.1 फीसदी और हरियाणा में 5 फीसदी है.

अगर, बिहार की बात करें तो बिहार में स्कूल छोड़ने वाली कुल बच्चियों में से 28.6 फीसदी बच्चियों के माता-पिता उन्हें घर में खाली बिठा देते हैं. गुजरात में यह दर 27.7 फीसदी है. हरियाणा में 18.3 फीसदी और आंध्र प्रदेश में 6.1 फीसदी है. जबकि, हरियाणा में स्कूल छोड़ने वाली कुल बच्चियों में से 13.3 फीसदी बच्चियों के माता-पिता उन्हें वोकेशनल ट्रेनिंग में लगा देते हैं. गुजरात में यह दर 5.4 फीसदी है, वहीं आंध्र प्रदेश और बिहार में जीरो फीसदी है. हालांकि, रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि स्कूल छोड़ने का फैसला करने वाली लड़कियों में से 54 फीसदी ने स्कूल छोड़ने का फैसला खुद लिया. गुजरात में 61 फीसदी, हरियाणा में 53 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 42 फीसदी और बिहार में 40 फीसदी लड़कियों ने स्कूल छोड़ने का फैसला खुद किया. जबकि, उसी रिपोर्ट में पाया गया है कि देश भर में स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों में से 21 फीसदी लड़कियों ने पैसे की कमी से स्कूल छोड़ने का फैसला किया. आंध्र प्रदेश में 61 फीसदी फीसदी, बिहार में 51 फीसदी, हरियाणा में 18 फीसदी और गुजरात में 4 फीसदी लड़कियों ने पैसे की कमी से स्कूल छोड़ दिया.

बता दें कि ऊपर ही बताया जा चुका है कि इन मामलों में सबसे ज्यादा गरीब, कमजोर वर्ग यानी एससी, एसटी, ओबीसी और मायनॉरिटी की बच्चियाँ ही शामिल हैं. इनमें ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य की बच्चियाँ शामिल नहीं हैं. यही कारण है कि उनकी, गरीबी और बड़े परिवार के नाते 3. 55.1 फीसदी लड़कियों को छोटे भाई-बहनों का ख्याल रखना होता है. यही बात सर्वे में पाया गया है कि देश भर में स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों में से 55.1 फीसदी लड़कियों को छोटे भाई-बहनों का ख्याल रखने के लिए स्कूल छोड़ना पड़ता है. आंध्र प्रदेश में यह संख्या 69.7 फीसदी, गुजरात में 67.7 फीसदी, हरियाणा में 33.3 फीसदी और बिहार में 31.5 फीसदी लड़कियों ने इसी कारण स्कूल छोड़ती हैं.

सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात तो यह है कि केन्द्र से लेकर राज्य सरकारें शिक्षा के क्षेत्र में विकास का ढोल पीटती है. जबकि, कई लाख गाँवों में एक भी स्कूल नहीं हैं तो कहीं कई लाख गाँवों में महज 100 टीचरों के सहारे एक हजार स्कूल चल रहे हैं. अगर, कुछ गाँवों में स्कूल भी हैं तो इतने दूर हैं कि वहाँ जल्दी बच्चे पहुंच नहीं पाते हैं. ऐसे मामलों में 25.2 फीसदी लड़कियाँ स्कूल इसलिए छोड़ती हैं क्योंकि स्कूल दूर होते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, देश भर में स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों में से 25.2 फीसदी लड़कियाँ स्कूल दूरी की वजह से स्कूल छोड़ देती हैं. गुजरात में 33.8 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 21.2 फीसदी, हरियाणा में 16.7 फीसदी और बिहार में 11.4 फीसदी लड़कियाँ इसीलिए स्कूल छोड़ देती हैं. इसी तरह से देश भर में स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों में से 17.4 फीसदी लड़कियाँ स्कूल इसलिए छोड़ती हैं. क्योंकि, उन्हें स्कूल जाने के लिए कोई मोटिवेशन नहीं मिलता. गुजरात में ऐसे बच्चियों की संख्या 26.2 फीसदी, बिहार में 14.3 फीसदी, हरियाणा में 6.7 फीसदी और आंध्र प्रदेश में 6.1 फीसदी लड़कियाँ इसीलिए स्कूल छोड़ देती हैं. कुल मिलाकर यह उस भारत की तस्वीर है जिस भारत में सरकार द्वारा ‘‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’’ के नारे लगाए जाते हैं और हजारो योजनाएं चलाई जाती हैं. 

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