शनिवार, 12 अक्तूबर 2019

बाबासाहेब के पैर छूते हुए मि.गांधी- एक वायरल तस्वीर की पड़ताल



1. इस तस्वीर में बाबासाहेब डॉ0 अम्बेडकर अपने दूसरे विवाह के करीब दो माह पश्चात पिकनिक मनाने के लिए अपने कुछ मित्रों सहित "ओखला" नामक पिकनिक स्पॉट पर गये थे। वहीं एक पेड के नीचे चबूतरे पर आराम फरमाने हेतु बाबा साहेब और उनकी पत्नी डॉ0 सविता अम्बेडकर (शारदा कबीर) बैठे हुए हैं। दोनों के मध्य सविता माई की लाडली कुतिया "मोहिनी" है तथा इन सबके पीछे सविता माई के भाई मुरलीधर कबीर खडे हैं। बाबासाहेब का दूसरा विवाह सिविल मैरिज एक्ट के अंतर्गत आवश्यक कागजातों के साथ बंगले पर ही आये हुए दिल्ली के डिप्टी कमिश्नर एम. एस. रंधावा की उपस्थिति में डॉ0 शारदा कबीर के साथ 15अप्रैल 1948 दिन बृहस्पतिवार को 01हार्डिंग एवेन्यू (वर्तमान में तिलक मार्ग), नई दिल्ली में संपन्न हुआ था। यह बंगला बाबासाहेब को कानून मंत्री के नाते आवास हेतु मिला हुआ था। विवाह में शामिल होने वालों में बाबासाहेब के अनन्य सहयोगी एवं सविता माई के परिवारीजन सहित कुल 16स्त्री पुरुष थे।

2. भारत में नमक पर कर (टैक्स) आरंभिक काल से लगाया जाता रहा है। किन्तु वायसराय लार्ड रीडिंग के समय 1923 में नमक पर दोगुना कर लगा दिया गया तथा 1927 में लार्ड इरविन के समय नमक पर एकाधिकार कर लिया गया अर्थात अब भारत के लोग नमक बना भी नहीं सकते थे। उस नमक कानून को तोडने के उद्देश्य से मि0गांधी द्वारा अपने 78 अनुयायियों के साथ प्रातः 06:30 बजे से 12मार्च 1930 को साबरमती आश्रम, अहमदाबाद, गुजरात से यात्रा प्रारंभ की गयी जो 05अप्रैल1930 को अरब सागर के किनारे बसे गांव दांडी, तालुका जलापुर, जिला नवसारी, गुजरात पहुंची। यह 24 दिन का दांडी मार्च 340 कि.मी. की दूरी तय करके पैदल यात्रा की गयी थी। दांडी मार्च को देखते हुए अंग्रेजों द्वारा सारा नमक कीचड में फेंकवा दिया गया। दांडी पहुंचकर मि0गांधी द्वारा दूसरे दिन 06अप्रैल 1930 को प्रातः 06:30 पर कीचड से सना नमक उठाकर उसका क्रिस्टलीकरण करके समुद्र तट पर नमक बनाकर नमक कानून तोडा गया। हांलाकि, बाद में नेहरू की अंतरिम सरकार ने 1946 में नमक से कर हटाया। मि0गांधी ने कीचड से सना नमक उठाया, देखने में यह एक मामूली सी घटना थी किन्तु इसका असर व्यापक हुआ। इस तस्वीर में नमक उठाते हुए मि0गांधी और उनके पीछे मिथुबेन होर्मसजी पेटिट (गांधीजी की एक पारसी महिला अनुयायी, बॉम्बे), मि0गांधी के पुत्र मणिलाल गांधी तथा अन्य अनुयायी खडे हैं।

3. इस तस्वीर में मि0गांधी बाबासाहेब के पैर छूते हुए दिखाई दे रहे हैं। यह तस्वीर असली नहीं है बल्कि यह किसी खुराफाती और बेकार दिमाग की उपज है। हालांकि, फोटो में साफ-साफ दिख रहा है कि मि0गांधी बाबासाहेब के पैर छू रहे हैं लेकिन ये सच नहीं है। इस तस्वीर में फोटोशॉपियों की खुराफात है। दरअसल, यह तस्वीर दो अलग-अलग तस्वीरों से मिलाकर बनाई गई है। दोनों को किसी फोटोशॉपर ने जोड़ दिया है। एक तस्वीर में बाबासाहेब अम्बेडकर सविता माई के साथ बैठे हैं तथा दूसरी तस्वीर में मि0गांधी डांडी में नमक उठा रहे हैं। फोटो बनाने वाले ने अम्बेडकर की फैमिली और मि0गांधी की नमक उठाते हुए फोटो को फोटोशॉप के जरिए मि0गांधी को बाबासाहेब के पैर छूते हुए दिखा दिया। आप खुद सोंचें कि बाबासाहेब का दूसरा विवाह 15अप्रैल 1948 को हुआ और उसके ढाई महीने पहले ही अर्थात 30 जनवरी 1948 को मि0गांधी की हत्या हो गयी थी, तो ऐसे में सविता माई के साथ बैठे हुए बाबासाहेब मि0गांधी को कब और कैसे मिले ?

4. दांडी मार्च के संबंध में कई बार भिन्न-२ वर्षों में भिन्न-२ मौकों पर भिन्न-२ मूल्य के भारत सरकार द्वारा डाक टिकट जारी किये जा चुके हैं, जिनमें दांडी मार्च की 75वीं वर्षगांठ पर दिनांक 06अप्रैल 2005 को भारत सरकार द्वारा 05 रूपये मूल्य की जारी यह डाक टिकट ज्यादा महत्वपूर्ण है। इस डाक टिकट पर 06अप्रैल 1930 को प्रातः कीचड में सना हुआ नमक उठाते हुए मि0गांधी को दिखाया गया है।

5. दांडी मार्च का असल मकसद बाबासाहेब द्वारा किये गये महाड सत्याग्रह खासतौर पर कालाराम मंदिर सत्याग्रह को काउण्टर करने का था। क्रांति सूर्य ज्योतिबा फुले के कट्टर अनुयायी रावबहादुर सीताराम केशव (सी.के.) बोले की पहल पर बॉम्बे विधान परिषद में 04अगस्त1923 को प्रस्ताव पारित हुआ कि सार्वजनिक स्थानों पर अछूतों के साथ होने वाले भेदभाव पर रोक लगायी जाए। बहुमत से पारित होने के बावजूद तीन साल तक यह प्रस्ताव कागज़ पर ही बना रहा। उसके अमल न होने की स्थिति में 05अगस्त1926 को जनाब बोले ने नया प्रस्ताव रखा कि सार्वजनिक स्थानों द्वारा अमल न करने की स्थिति में उनको दी जाने वाली सरकारी सहायता बंद कर दी जाय। इसके बाद बॉम्बे सरकार ने अपने सभी विभाग प्रमुखों को आदेश दिया कि बोले प्रस्ताव को कार्यरूप में परिणित किया जाय। इस आदेश के बाद कोलाबा (वर्तमान में रायगढ़) जिले के महाड़ नामक गांव की नगरपालिका ने चवदार तालाब के पानी का उपयोग करने का अधिकार अछूतों को दिया परन्तु महाड़ के सवर्ण हिन्दुओं का बहुमत नगरपालिका के निर्णय के विरूद्ध होने के भय से अछूत लोग तालाब के पानी को छूने का साहस न कर सके। 

ध्यान रहे, इसके पानी का उपयोग अछूतों के जानवर भी कर सकते थे किन्तु स्वयं अछूत लोग नहीं। रायगढ़ जिले के प्रमुख अछूतों के प्रयत्न से महाड़ में 19-20मार्च 1927 को डॉ0 अम्बेडकर की अध्यक्षता में बहिस्कृत हितकारिणी सभा (20जुलाई1924 को बाबासाहेब द्वारा स्थापित) का सम्मेलन आयोजित हुआ। महाराष्ट्र के कोने-कोने से एवं गुजरात से भी अछूत लोग महाड़ में नियत दिन पर पहुंचे। तपती दुपहरिया में लगभग पांच हजार की तादाद में वहां जमा जनसमूह ने चवदार तालाब की ओर कूंच किया। तालाब पर पहुंच कर बाबासाहेब ने सबसे पहले एक अंजुली पानी भरकर पिया और उसके बाद सभी ने। वहाँ पर उपस्थित भारी जनसमूह को संबोधित करते हुए बाबासाहेब ने कहा कि ‘क्या यहां हम इसलिये आये हैं कि हमें पीने के लिए पानी मयस्सर नहीं होता या यहां हम इसलिये आये हैं कि यहां के जायकेदार कहलाने वाले पानी के हम प्यासे हैं ? नहीं, दरअसल हम यहाँ इन्सान होने का अपना हक जताने आये हैं।’ 

अछूतों द्वारा चवदार तालाब पर पानी पीने की घटना से बौखलाये सवर्णों ने यह अफवा फैला दी कि चवदार तालाब को अपवित्र करने के बाद ये ‘अछूत’ वीरेश्वर मंदिर पर धावा बोलने वाले हैं। पहले से ही तैयार 500 सवर्ण युवकों की अगुआई में सभा स्थल पर लगे तम्बू कनातों पर हमला करके कई लोगों को घायल किया गया। सवर्णों की दृष्टि में अछूतों के छूने से चवदार तालाब भ्रष्ट हो गया था, इसलिए सवर्णों ने तालाब को शुद्ध करने की रश्म अदा की। 108घड़े जल, तालाब से निकाल कर बाहर फिकवाया था और पंचगव्य (गाय का गोबर, मूत्र, दूध, दही और घी) से भरे हुए उतने ही घड़े ब्राह्मण पुरोहितों के मंत्रोचारण के साथ तालाब में डालकर तालाब को शुद्ध किया गया। उधर महाड़ नगरपालिका ने सवर्ण हिन्दुओं के दबाव में आकर अपना वह प्रस्ताव, जिसके अनुसार तालाब अछूतों के लिये खोला गया था, 04अगस्त1927 को रद्द कर दिया। इसके बाद महाड़ के चन्द सवर्णों ने अदालत में जाकर यह दरखास्त दी कि यह ‘चवदार तालाब’ दरअसल ‘चौधरी तालाब’ है और यह कोई सार्वजनिक स्थान नहीं है, 

अदालत ने उनकी याचिका स्वीकार करते हुए 14दिसंबर1927 को स्टे अॉर्डर दे दिया। डॉ0 अम्बेडकर ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए एक सत्याग्रह समिति गठित की और सत्याग्रह के लिये 25दिसम्बर1927 की तारीख निश्चित की। लगभग 15000 अछूत लोग परिषद तथा सत्याग्रह के लिये महाड़ में एकत्रित हुए और सार्वजनिक रूप से मनुस्मृति का दहन किया। यह सवर्णों के कलेज पर एक करारी चोट थी। डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के आदेश को बैरिस्टर अम्बेडकर ने हाईकोर्ट में अपील करते हुए चवदार तालाब पर अछूतों के अधिकार का दावा किया। अंततः बॉम्बे हाई कोर्ट ने 17मार्च1937 को अछूतों के पक्ष में निर्णय दिया और इस प्रकार काफी कष्ट व कठिनाईयों के बाद डॉ0 अम्बेडकर को सफलता मिली। भारत के सामाजिक आन्दोलन में महाड़ क्रान्ति के नाम से जाने जाते चवदार तालाब के ऐतिहासिक सत्याग्रह को तथा उसके दूसरे दौर में मनुस्मृति दहन की चर्चित घटना को शोषितों के विमर्श में वही स्थान, वही दर्जा प्राप्त है जो हैसियत फ्रांसीसी क्रांति की यादगार घटनाओं से सम्बन्ध रखती है।

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