गुरुवार, 17 अक्तूबर 2019

नाना साहब पेशवा कौन थे ?


नाना साहब पेशवा कौन थे ,और मुग़ल और मुसलमान अलग होते हैं अक्सर लोगों को लगता है मुग़ल ही मुसलमान हैं।
पेशवा पर्शियन भाषा का शब्द है जिसका मतलब होता है प्रधानमंत्री, शिवाजी महाराज को कोकणस्थ ब्राह्मणों ने अष्टप्रधान मंडल जो मनुस्मृति के अनुसार राजा को अगर राज्य करना है तो मनुस्मृति के अनुसार उसको अष्टप्रधान मंडल नियुक्त करना होगा, इस के लिए कोकनस्थ ब्राह्मणों ने शिवाजी महाराज को मजबूर किया और उस अष्टप्रधान मंडल का प्रधानमंत्री पेशवा कोकनस्थ ब्राह्मण को बनाया गया। 1857 का जो आंदोलन था उसे ब्राह्मण इतिहासकार हम लोगों को पढ़ाते हैं की ये प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। नाना साहब पेशवा और मंगल पांडे 1857 के नायक थे ऐसा हमें पढ़ाया जाता है।  

मंगल पांडे और नाना साहब पेशवा के बीच का संवादनाना साहब पेशवा कहते है कि हमें ब्राह्मणों की आज़ादी के लिए लड़ाई लड़नी चाहिए।
मंगल पांडेय: - यदि हम लोग ब्राह्मणों की आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ते हैं तो दूसरी जाति के लोग हमें सहयोग क्यूँ करेंगे?
नाना साहब पेशवा: - हमें ये बात सभी जाति के लोगों को नहीं बतानी है की हम केवल मात्र ब्राह्मणों की आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं।
मंगल पांडे: - यदि हमें सभी जाति के लोगों को नहीं बताना है की हम सभी जाति के लोगों को ये नहीं बताना की हम केवल मात्र ब्राह्मणों की आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ रहे है तो हमें बाकी जातियों के लोगों को क्या बताना है?
नाना साहब पेशवा: - हमें सभी जाति के लोगों को ये बताना है कि हम सभी जाति के लोगों की आज़ादी के लिए लड़ रहे है लेकिन सबको ये नही बताना की हम ब्राह्मणों की आज़ादी के लिए लड़ रहे है।
ये लिखने वाला महापंडित राहुल सांकृत्यायन ब्राह्मण, नाना साहब पेशवा ब्राह्मण, मंगल पांडे ब्राह्मण, यानी लिखने वाला ब्राह्मण, जिनका संवाद है वो दोनों ब्राह्मण इसलिए इसका गलत होने का कोई कारण नहीं है, 1942 को गुलाम भारत में ये किताब पब्लिश हुई और आज़ाद भारत में जब रिपब्लिश हुई यानी दूसरा संस्करण आया तो इस संवाद को संपादन करने वाले लोगों ने गायब कर दिया, इसका मतलब है जिन लोगों ने एडिट कर के संवाद को गायब कर दिया उनका मकसद गलत था .
गुलाम भारत में हमारे लोग(SC ST OBC MINORITY) के लोग पढ़े लिखे नहीं थे और थोड़े बहुत जो थे वो साहित्य पढ़ने के शौकीन नहीं थे।
आज़ाद भारत में हमारे पढ़े लिखे लोगों की संख्या बढ़ गयी, साहित्य लिखने वालों की साहित्य पढ़ने वालों की संख्या बढ़ गयी, ~ब्राह्मणों ने देखा इनकी पढ़ने लिखने वाले लोगों की संख्या बढ़ गयी, यदि इन लोगों ने ये संवाद पढ़ लिया तो आज़ादी की आंदोलन आज़ादी का आंदोलन नहीं था ये ब्राह्मणों की आज़ादी का आंदोलन था ये लोगों को आज़ाद भारत में मालूम हो जाएगा और ये ब्राह्मणों के लिए बहुत खतरनाक होगा इसलिए एडिट कर के उस संवाद को हटा दिया।
बाबा साहब अंबेडकर कहते है कि मुझे पढ़े लिखे लोगों ने धोखा दिया , अब जो लोग ब्राह्मणों की पढ़ी हुई किताबें पढ़ेंगे उनका दिमाग होगा खराब, जब उनका दिमाग खराब होगा तो वो अच्छा काम कैसे करेंगे।
कांशीराम जी पढ़े लिखे लोगों को ANTI SOCIAL ELEMENT कहा करते थे ।
90 % पढ़े लिखे लोगों का समाज से कोई लेना देना नहीं है और जो 10% करते हैं वो किसी संगठन के प्रभाव की वजह से करते हैं।
मुग़ल कौन थे? मुग़ल आक्रमणकारी थे विदेशी थे।
मुग़ल और मुसलमान अलग होते हैं अक्सर लोगों को लगता है मुग़ल ही मुसलमान हैं।
मुग़ल एक रेस(नस्ल) है मुसलमान वो जो कुरान में विश्वास रखता है मुसल्ल, मुसल्ल का मतलब है ठोस विश्वास, जिसका ठोस विश्वास कुरान पर है उसे मुसलमान कहा जाता है, मुसल्ल जिसका ईमान है ठोस ईमान है उसको मुसलमान कहा जाता है
क्या अकबर का ईमान ठोस कुरान पर था तो फैक्ट ये कहता है की अकबर ने "दिने इलाही" नाम का अपना एक धर्म चलाया था इसका मतलब इस्लाम पर उसका ठोस विश्वास नहीं था अगर होता तो उसको दिने इलाही नाम का धर्म चलाने की जरूरत नहीं थी
अकबर ने एक किताब लिखी थी "अलोपनिषद" इसका मतलब कुरान पर भी उसका विश्वास नहीं था, अगर उसको कुरान पर ही विश्वास नहीं था तो वो मुसल्ल ईमान रखने वाला आदमी नहीं था,
मुग़लो का मकसद राजीनितिक था धर्म प्रचार नहीं था, बाबर ने वसीयत लिखी और वसीयत में नसीहत लिखी ऐ मेरी संतानों भारत पर दीर्घकाल राज़ करना है तो ब्राह्मणों को साथ ले लो।
आप सुनकर हैरान हो जाओगे की दुनिया का जो सबसे फेमस विश्वविद्यालय था नालंदा के बाद वो तक्षशिला वो पाकिस्तान में हैं , पुरानी terminology के हिसाब से आज के मुस्लिम लोग बुद्धिस्ट लोग थे जो ब्राह्मण विरोधी ब्राह्मण धर्म विरोधी थे इसलिए इस्लाम कबूल किया ,
इस्लाम मसावाद (equality) को मानता है .
फिराक गोरखपुरी नाम का एक मुसलमान था उसने autobiography लिखी उसमें लिखा कि सरदार पटेल की और मेरी एक बार मुलाकात हई तो सरदार पटेल ने मुझे कहा हम आपके जैसे विदेशी मुसलमानों के विरोधी नहीं है हम लोग जो converted musalaman है हम उनके विरोधी हैं

लखनऊ में मुसलमानों का DNA चेक हुआ सुधा श्रीवास्तव जो कि कायस्थ है संजय गांधी मेडिकल इंस्टीट्यूट में प्रोफेसर है उसने DNA के अनुसार मुसलमानों का रिसर्च किया और कहा बहुसंख्य मुसलमानों का DNA SC ST OBC से मिलता है।
भारत में जो आज की तारीख में आप मुसलमान देख रहे हो ये मुसलमान मुगलों की प्रजा हुआ करती थी।
बहादुरशाह ज़फर मुगलों का आखिरी राजा था भारत में, उस वक़्त तात्या टोपे देश भर में घूम के श्रेष्ठ ब्राह्मणों की सहमति ली और सहमति लेकर वो बहादुरशाह ज़फर के पास गया और बहादुरशाह ज़फर को कहा देश के समस्त श्रेष्ठ ब्राह्मणों की आम राय ये है कि बहादुरशाह ज़फर को अंग्रेज़ो के विरोध में जो आंदोलन चलाया जाने वाला है उसका नेतृत्व करने का अधिकार बहादुरशाह ज़फर को देना चाहिए और आंदोलन हथियारबंद होना चाहिए अंग्रेज़ो को भगाना बगैर हथियारों के मुमकिन नहीं हैं और हथियार तो राजा के पास ही होंगे।
तो बहादुरशाह ज़फर को एक और मौलिक कारण था की ब्राह्मणों ने बहादुरशाह ज़फर को अपना नेता तस्लीम क्यूँ किया क्योंकि ब्राह्मणों को ये आश्वासन था मुगलों के राज़ में 40% हिस्सेदारी ब्राह्मणों और राजपूतों की थी यदि अंग्रेज़ों को परास्त करने में हम कामयाब हो जाते हैं और ब्राह्मण और मुगलों का गठबंधन कामयाब हो जाता है तो ब्राह्मणों को ये गारंटी थी की अगर बहादुरशाह ज़फर अगर सफल होते हैं तो उन के राज में ब्राह्मणों को हिस्सेदारी मिलेगी।
दूसरा भी एक कारण था कि अगर पकड़ा जाता तो बहादुरशाह ज़फर को फाँसी की सज़ा होती ब्राह्मणों को कुछ नहीं होता।
अंग्रज़ों ने अभ्यास किया अध्यन किया कि भारतीय प्रजा इस आंदोलन में शामिल नहीं है इसलिए अंग्रेज़ों ने हथियारबंद आंदोलन को हथियारों के द्वारा कुचलने का निर्णय किया और उसमें सफल हुए और भारतीय प्रजा शामिल क्यूँ नहीं थी? क्यूंकि ब्राह्मणों और मुगलों ने जो गठबंधन बनाया था उसमें उन्होंने भारतीय प्रजा को कोई आश्वासन नहीं दिया था जैसा गांधी ने दिया था, गाँधी का आश्वासन पालन करने के लिए नहीं बल्कि सपोर्ट हासिल करने के लिए दिया आश्वासन था लेकिन ऐसा आश्वासन भी मुगलों और ब्राह्मणों ने भारतीय प्रजा ने नहीं दिया था की यदि हम अंग्रेज़ों को परास्त करने में कामयाब हो गए तो कामयाब होने के बाद देश में लोकतंत्र लागू होगा, संविधान लागू होगा, लोगों को मौलिक अधिकार मिलेंगे, मानवता के अधिकार मिलेंगे।
इस आंदोलन को कुचलने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी से अंग्रेज़ों ने अधिकार अपने हाथ में ले लिया 1860 में इंडियन पीनल कोड लागू किया, इंडियन पीनल कोड में एक व्यवस्था थी राज्य के विरोध में अगर कोई राजद्रोह करता है तो उसे फांसी या आजीवन कारावास की सज़ा होगी, 1860 का इंडियन पीनल कोड अंग्रेज़ो ने लागू किया और आज भी लागू है।
1860 में इंडियन पीनल कोड लागू होने से ब्राह्मणों के अंदर भयंकर डर और भय बैठ गया की 15 साल तक 1860 से लेकर 1875 तक ब्राह्मणों ने सामूहिक रूप से कुछ भी नहीं किया,
15 साल बाद 1875 में राजकोट का रहने वाला ब्राह्मण दयानंद सरस्वती बॉम्बे आया और आर्य समाज नाम का एक धार्मिक संगठन बनाया नकि हिन्दू समाज और दयानंद सरस्वती हिन्दू को उस वक़्त भी नहीं मानते थे और आर्य समाज के लोग आज भी नहीं मानते और वो कहते थे कि हिन्दू मुगलों की दी हुई गाली है और ये हमें बर्दाश्त नहीं।

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