मंगलवार, 8 अक्तूबर 2019

कांशीराम साहब के ‘कलम’ वाली परिभाषा की यादें


अपने कैडर में मान्यवर कांशीराम साहब एक बहुत दिलचस्प किस्सा बताते थे. इस किस्से के जरिए तमाम लोग मान्यवर साहब की बातों को अच्छी तरह से समझ जाते थे. असल में मान्यवर कांशीराम साहब जिस मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों के बीच काम कर रहे थे, जिन्हें जगा रहे थे उसका उस समाज को बहुसंख्यक हिस्सा गरीब और कम पढ़ा-लिखा था. उन्हें उनकी ही भाषा में समझाना जरूरी था, इसलिए कांशीराम साहब उनको उसी भाषा में समझाने के लिए किस्सों का सहारा लेते थे. इस लिहाज से कांशीराम साहब ऐसे-ऐसे किस्से ढूंढ़ लाते, जिससे बहुजन समाज के लोग उनकी बात आसानी से समझ जाते थे. जैसे बाबासाहब को वह टाई वाले बाबा कहते थे और महात्मा ज्योतिराव फुले को पगड़ी वाले बाबा कहकर संबोधित करते थे. जब वो मूलनिवासी बहुजन समाज को इनके बारे में बताते थे तो ऐसे संबोधन सुनकर सभी लोग तुरंत उनकी बातों को समझ जाते कि आखिर मान्यवर साहब किसके बारे में बात कर रहे हैं.

इसी तरह से कांशीराम साहब एक कलम के जरिए अपनी बात समझा रहे थे. हाथ में कलम लिए उनकी यह फोटो काफी चर्चित है. कांशीराम साहब यह पूछते कि कलम चलती कैसे है? लोग बताते थे कि स्याही या लीड से कलम चलती है. फिर कांशीराम साहब पूछते थे कि दिखता क्या है? जाहिर सी बात है मौजूद लोग पेन के कवर को बताते थे. कांशीराम साहब लोगों को फिर यह समझाते थे कि पेन का काम सिर्फ लिखना होता है और लिखने का काम पेन की लीड करती है. फिर वे बताते थे कि अगर पेन का कवर न हो तो भी पेन लिखता रहेगा. वे पेन की कवर को दिखाते हुए कहते थे कि असली ताकत दिखने वाले इस पेन की कवर में नहीं है, बल्कि लिखने वाली स्याही में है. अगर, पेन का कवर फेक दिया जाय तो भी पेन अपना काम करेगा. कवर तो सिर्फ दिखावे के लिए है.

कांशीराम साहब ने कलम दर्शन समझाते हुए बताते थे कि कलम का बड़ा हिस्सा पच्चासी परसेंट है और असली ताकत भी पच्चासी परसेंट के पास ही है और जो ऊपर का हिस्सा पेन का कवर है वह 15 परसेंट है. 15 परसेंट में कोई ताकत नहीं है वह सिर्फ दिखावे के लिए है. जब पचासी पर्सेंट काम करता है तो 15 परसेंट हिस्सा उसके सिर पर सवार हो जाता है और अपनी हुकूमत का एहसास कराता है. इसे वह मूलनिवासी बहुजन समाज से जोड़ते हुए कहते थे कि देश के 85 फीसदी मेहनतकश लोग ही देश की असली ताकत हैं, लेकिन ताकत होते हुए भी वह लाचार हैं. जबकि, 15 फीसदी लोगों के पास कोई ताकत नहीं है, लेकिन इसके बाद भी वे ताकतवर बने हैं और सत्ता पर कब्जा किये हैं. कांशीराम साहब की ऐसी ही परिभाषाओं ने मूलनिवासी बहुजन समाज को उसकी ताकत का अहसास कराया, जिसके बूते मूलनिवासी बहुजन समाज सत्ता के शिखर तक पहुंच सकी. 

आज वर्तमान समय में मूलनिवासी बहुजन समाज अपनी उसी ताकत को खोता जा रहा है. क्या आज मूलनिवासी बहुजन समाज को मान्यवर कांशीराम साहब की ‘कलम’ वाली परिभाषा याद है? इसी जरिए कांशीराम साहब समझाना चाहते थे कि लिखता कौन है (स्याही) यानी की असली ताकत किसके हाथ में है और दिखता कौन है (कवर) यानी बिना मेहनत किए कौन राजा बना बैठा है. बहुजन समाज के हर व्यक्ति को मान्यवर कांशीराम साहब द्वारा दी गई इस परिभाषा से सीख लेते हुए अपनी ताकत को पहचानना होगा. यही मूलनिवासी बहुजन समाज की उनके 13वीं स्मृति दिन पर सच्ची आदरांजलि होगी. 

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