सोमवार, 7 अक्तूबर 2019

अखण्ड भारत का अजेय सम्राट



राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)
संपूर्ण भारतीय प्रायद्वीप पर 37 वर्षो तक एकछत्र शासन करने वाला अशोक (269-232 ई0पू0) एक अत्यंत व्यवहार कुशल और मौर्य राजवंश का तृतीय प्रसिद्ध शासक था. राज सिंहासन की सुदृढ़ता और शासन करने की लंबी अवधि उसके प्रधान उद्देश्य एवं लक्ष्य थे. इनकी पूर्ति के लिए जब जैसा कदम उठाने की आवश्यकता पड़ी उसने उठाया. आदर्श वचन से छोटी-छोटी शक्तियों को विभाजित करना आसान था, किंतु कलिंग पर विजय प्राप्त करने के लिए कठोर कदम उठाना आवश्यक था. अशोक यथार्थवादी था। शासन पर कब्जा जमाना तथा साम्राज्य को सुद्ढ़ बनाना उनका लक्ष्य था। सम्राट अशोक का नाम देवानाम्प्रिय एवं प्रियदर्शी था। इनका जन्म पाटलिपुत्र जो आज वर्तमान में पटना (बिहार) में 304 ई.पू में हुआ था। चक्रवर्ती सम्राट अशोक चन्द्रगुप्त मौर्य के पोते एवं बिन्दुसार के पुत्र थे। इनकी माता का नाम सुभाद्रंगी जो छोटी-सी उम्र में ही राजगद्दी संभाली थी.

माना जाता है कि अशोक का राज भारत के सभी राजाओं में सबसे बड़ा था. आज तक भारत का कोई भी राजा इतने बडे़ क्षेत्र में राज्य नहीं कर पाया. चक्रवर्ती सम्राट का नाम सिर्फ अशोक को ही पूरे भारत में मिला है. अन्य कोई भी राजा को ये सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ. चक्रवर्ती सम्राट अशोक को चक्रवर्ती सम्राट इसलिए कहा जाता है कि, वह सम्राटों के सम्राट थे. अशोक को सभी राजाओं और सम्राटों में सबसे ऊपर रखा जाता है. मौर्य राजवंश के सम्राट अशोक ने अखण्ड भारत पर राज्य किया है. उन्होंने उत्तर में हिन्दकुश से लेकर दक्षिण में मैसूर तक और पूरब में बंगाल से लेकर पश्चिम के अफगानिस्तान, ईरान तक अपना राज्य फैला रखा था. यह सम्राज्य तब से लेकर अभी तक का सबसे बड़ा साम्राज्य था. सम्राट अशोक को अपने बड़े साम्राज्य के अलावा अपने राज्य में शासन करने में निपुणता एवं बौद्ध धम्म के प्रचार-प्रसार के लिए भी श्रेष्ठ माना जाता है.

सम्राट अशोक ने संपूर्ण एशिया तथा अन्य सभी महाद्वीपों में भी बौद्ध धम्म का प्रचार-प्रसार किया. सम्राट अशोक के समय के स्तंभ एवं उनपर लिखे हुए वाक्य और चित्र आज भी हमें भारत के कई शहरों और वहाँ की जानकारी बहुत ही आसानी से मिल जाती है, जिससे हमें सम्राट अशोक के राज्य और उनकी काबिलियत का पता लगता है. सम्राट अशोक अपने सरल जीवन शैली एवं शांत स्वभाव का परचम हर जगह लहराते थे, उन्हें प्रेम, संवेदना, अहिंसा और शाकाहारी जीवन प्रणाली के लिए महान माना गया है. उन्हें भारत के सभी राजाओं में सबसे परोपकारी सम्राट मना गया. इसलिए उन्हें परोपकारी सम्राट की उपाधि दी गई है. अशोक यद्यपि बौद्ध धम्म अपनाया था, किन्तु संप्रदायवाद उसके हृदय में नहीं था. अपने 12वें शिलालेख में उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता का मर्मस्पर्शी उपदेश दिया है. उन्होंने सच्ची धर्मोन्नति का मूल मंत्र संयम बनाया. ‘‘मनुष्य अपने धर्म की स्तुति और दूसरे धर्म की निंदा ना करे’’ उनकी सोच थी. अपने जीवनकाल में आगे ले जाते हुए सम्राट अशोक बौद्ध धम्म एवं तथागत गौतम बुद्ध को अपनाकर उसका प्रचार-प्रसार किया. उनकी स्मृति में उन्होंने कई स्तंभ खड़े कर दिए जो आज भी नेपाल में उनके जन्मस्थान लुंबनी में मायादेवी मंदिर के पास, सरनाथ, बोधगया, कुशीनगर एवं श्रीलंका, थाईलैण्ड, चीन आदि इन देशों में अशोक स्तंभ के रूप में देखे जा सकते हैं. अशोक के द्वारा स्वयं के बारे में खुदवाये गये अभिलेखों को अपने अध्ययन का मुख्य आधार बनाकर भावनात्मक शैली में इसे महान, सर्वश्रेष्ठ, मानवतावादी और दयालू बताया.

सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार भारत के अलावा श्रीलंका, अफगानिस्तान, पश्चिम एशिया, मिश्र तथा यूनान में भी किया. सम्राट अशोक अपने पूरे जीवन काल में एक भी युद्ध नहीं हारे. सम्राट अशोक के ही समय में 23 विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई, जिसमें तक्षशिला, विक्रमशिला, नालंदा, कंधार आदि विश्वविद्यालय प्रमुख थे. इन विश्वविद्यालयों में विदेश से छात्र शिक्षा पाने के लिए भारत आते थे. ये विश्वविद्यालय उस समय के उत्कृट विश्वविद्यालय थे, जिसमें लाखों छात्र-छात्राएँ अपने भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए शिक्षा ग्रहण करते थे. नालंदा और तक्षशिला अपने समय की सबसे बड़े विश्वविद्यालय थे. इसी के साथ शिलालेख शुरू करने वाले अशोक पहले सम्राट थे.

बौद्ध धम्म का प्रचार करने के लिए सम्राट अशोक अफगानिस्तान, यूनान, श्रीलंका, सरिया, मिश्र और नेपाल गये. लगभग सालों अखंड भारत पर शासन करने के बाद उन्होंने अपना सम्राट पद त्याग दिया और बौद्ध धम्म का प्रचार करने के लिए निकल पड़े. 239 ई.पू. में उनकी मृत्यु का होना माना जाता है. अंतिम क्षण तक उनका पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा बौद्ध धम्म के प्रचार-प्रसार में काफी योगदान दिया. सम्राट अशोक बिन्दुसार एवं रानी धर्मे के पुत्र थे. अशोक सम्राट बचपन से ही सैन्य गतिविधियों में निपूर्ण थे. दो हजार वर्षो के पश्चात सम्राट अशोक का प्रभाव एशिया मुख्यतः उपमहाद्वीप में देखा जा सकता है. बौद्ध धम्म के इतिहास में तथागत बुद्ध के बाद सम्राट अशोक को सर्वोपरि रखा गया. सम्राट के कार्यकाल के सातवें वर्ष में ही कलिंग पर हमला हुआ. आन्तरिक अशान्ति से निपटने के बाद 231 ई.पू. उनका विधिवत राज्याभिषेक हुआ. 13वें शिलालेख के अनुसार कलिंग युद्ध में 1,50,000 व्यक्तियों को बंदी बनाकर निर्वासित कर दिया गया था. करीब लाखों  लोगों की हत्या हुई थी. सम्राट अशोक ने भारी नरसंहार को अपनी आँखों से देखा. इससे द्रवित होकर सम्राट अशोक ने शांति, सामाजिक प्रगति तथा बौद्धित्व का प्रचार किया. अशोक ने जो तत्व जीवन में देखा, उसी को अपने राजनैतिक जीवन में अभ्यास किया, उसी को अपनी प्रजा को सिखाया और उसी को लेखों में अंकित करवाया. इस तरह से परोपकार के लिए अदम्य कर्मयोग का अभ्यास ही अशोक के जीवन का मूल दर्शन है, जिसका उसने राजनीति के क्षेत्र में प्रयोग किया. अशोक की मृत्यु के बाद भी मौर्य राजवंश लगभग 50 वर्षो तक चलता रहा.

अगर, मौर्य वंश पर एक नजर डालें तो इतिहास से पता चलता है कि मौर्य वंश का पहला चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य थे, जिनका शासन काल ई.पूर्व 323 से 298, दूसरे विन्दुसार मौर्य जिनका शासन काल ई.पूर्व 298 से 273, तीसरे सम्राट अशोक थे, जिनका शासन काल ई.पूर्व 273 से 232, चौथे सुयश मौर्य (कुणाल), जिनका शासन काल ई.पूर्व 232 से 224, पाँचवें दशरथ मौर्य, जिनका शासन काल ई.पूर्व 224 से 216, छठवें सम्पति मौर्य, जिनका शासन काल ई.पूर्व 216 से 207, सातवें शलिशुक मौर्य, जिनका शासन काल ई.पूर्व 207 से 206, आठवें देववर्मा मौर्य, जिनका शासन काल ई.पूर्व 206 से 198, नौवें सप्तधन्वा मौर्य, जिनका शासन काल ई.पूर्व 198 से 191 और दशवां मौर्य शासक सम्राट बृहद्रथ मौर्य थे, जिनका शासन काल ई.पूर्व 191 से 184 था.

1 टिप्पणी: