सोमवार, 7 अक्तूबर 2019

पूना पैक्ट से ओबीसी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ




अगर पूना करार नहीं होता तो संविधान में ओबीसी को न सिर्फ धारा 340 मिलता, बल्कि मूलअधिकार के तहत 26 जनवरी 1950 से ही ओबीसी को आरक्षण मिल जाता. पूना समझौता होने के कारण 26 जनवरी 1950 को कुछ नहीं मिला, सिर्फ धारा 340 मिला. बाबासाहब ने 10 नवम्बर 1951 को मंत्री पद से जब इस्तीफा दिया तो उन्होंने लिखा कि ‘‘हम अपने ओबीसी के लिए संविधान में कुछ नहीं कर पाए. हमने एक आयोग स्थापित करने की बात की थी. लेकिन, सरकार ने उसको भी नहीं माना’’ उसका धिक्कार करते हुए उनहोंने इस्तीफा दिया.

अगर पूना करार नहीं होता, तो 1952 के चुनाव में एससी, एसटी, ओबीसी, बीजेएनटी और मायनॉरिटी बाबासाहब के पक्ष में खड़े हो जाते. 1952 के इलेक्शन के नतीजे बदल जाते और जो कांग्रेस को पूरा का पूरा समर्थन मिला, वो नहीं मिल पाता. इसी तरह 1957 के चुनाव में भी बदल जाता और 1956-70 के आते-आते एससी, एसटी, ओबीसी, मायनॉरिटी को सत्ता का सूत्र हम मूलनिवासी बहुजनों के हाथ में आ जाता. हम 1970 तक इस देश में आजाद हो गए होते, लेकिन ऐसा पूना करार होने के कारण नहीं हो पाया. पूना पैक्ट के कारण तीन और बातें हुई. पहली बात हुई कि पूना समझौता में कहा था कि दस साल बाद इस करार का रिव्यु किया जायेगा. पूना करार ही हमें चर्चा करने के लिए कहती है. सन् 1942 में रिव्यु होना था, लेकिन नहीं हो पाया. 1952 में हम स्वतंत्र हो गए थे. बाबासाहब के बजाय खास करके कांग्रेस ने रिव्यु नहीं किया. 1962 और 1972 में भी रिव्यु नहीं हुआ. लेकिन, 1982 में मान्यवर कांशीराम साहब ने जब पूना पैक्ट को 50 साल पूरे हुए तो उसके खिलाफ आवाज उठाई. उसके बाद से बामसेफ संगठन लगातार चर्चा कर रहा है.

बाबासाहब ने फन्डामेंटल राईट में धारा 15(4) और 16(4) में कहते हैं कि ‘‘शिक्षा और नौकरी के आरक्षण में जब तक हमारा पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं हो जाता तब तक आरक्षण मिलना चाहिए’’ ‘‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी की बात बाबासहाब फंडामेंटल राईट में कहते हैं. अगर पूना करार नहीं होता तो ये सिर्फ एससी और एसटी के लिए ही नहीं बनता, बल्कि एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों के लिए भी बनता. ओबीसी के आरक्षण की बात आजादी मिलने के 70 साल बाद भी सुप्रीम कोर्ट में लटक रही है. पूना करार के कारण ओबीसी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ. सबसे बड़ा धोखा ओबीसी के साथ हुआ, लेकिन बात करते समय लोग कहते हैं कि बाबासाहब अछूतों और अनुसूचित जनजातियों के नेता हैं, इसलिए नुकसान एससी और एसटी को हुआ. यह एकदम गलत बात है. एससी और एसटी को नुकसान तो हुआ ही, लेकिन सबसे जयादा नुकसान ओबीसी को हुआ, इसलिए ओबीसी को संविधान में धारा 340 के अलावा कुछ भी नहीं मिल.

बता दें कि 1932 में कम्युनल अवार्ड के तहत मुसलमान, ईसाई और सिक्खों को भी अलग से आरक्षण मिला था, लेकिन पाकिस्तान बनने के बाद मौलाना आजाद और नेहरू ने पाकिस्तान बनने का कारण देकर इसे खत्म कर दिया. अगर, पूना पैक्ट नहीं होता तो मुसलमान, क्रिश्चन और सिख भी बाबासाहब के साथ जुड़ जाते और 1950 में उनका आरक्षण खत्म नहीं होता. मैं यह साबित करना चाहता हूं कि पूना पैक्ट के कारण इस देश के मुसलमानों, क्रिश्चयन और सिखों का भी अधिकार छीन लिया गया. अंत में बाबासाहब का एक स्टेटमेंट दोहराना चाहता हूँ जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘‘अगर सेप्रेट इलेक्टोरेट होता तो उनको जो सबसे अच्छा च्वाईस है, चुन सकते थे. अब ज्वाईंट इलेक्टोरेट होने से वे सबसे अच्छा च्वाइस नहीं चुन सकते हैं. दूसरी बात, बाबासाहब ने कहा था कि ‘बातें और भी बिगड़ जायेंगी और भी नुकसान हो जायेगा. क्योंकि आने वाले समय में पूना पैक्ट के तहत संविधान में चुनाव की पद्धति बनेगी. बाबासाहब ने ये बातें स्टेट एण्ड मायनॉरिटी में लिख रखी है. आगे बाबासाहब कहते हैं कि ‘पूना करार द्वारा हमें पूरी तरह डिसफ्रेन्चाईज (मत के अधिकार से वंचित) कर दिया गया. ये इतना गम्भीर मामला है कि लोकतंत्र में लोगों की सत्ता होती है. लोकतंत्र में लोगों को मतदान का अधिकार होता है. आज हमें मतदान का अधिकार है, लेकिन वो दिखावे के लिए है. हम अपना प्रतिनिधि संसद में चुनकर नहीं भेज सकते, इसलिए बाबासाहब कहते हैं कि हमें डिसफ्रेंचाईज किया गया अर्थात मतदान के अधिकार से वंचित किया गया.

एक बात और बताना चाहता हूँ कि पूना पैक्ट ने तो हमारा मताधिकार खत्म कर ही दिया, बाकी बचे मताधिकार को वर्तमान में ईवीएम के द्वारा खत्म किया जा रहा है. पूना पैक्ट के द्वारा बहुजन समाज के साथ धोखा किया गया, इससे दो धोखा हुआ. एक तो एकजुट होकर अपने अधिकार के लिए लड़ने में बाधा डाली गयी और दूसरी बात उन्हें मतदान के अधिकार से वंचित कर दिया गया. हम आज तक मतदान के अधिकार से वंचित हैं. हम अपने लोगों को चुनकर नहीं भेज सकते हैं. आज फिर से सेप्रेट इलेक्टरेट को लाना संभव नहीं है. क्योंकि, 1932 में देने वाले ब्रिटिश थे, लेकिन आज सरकार में ब्राह्मणवादी लोग हैं, हम मांगेंगे भी, तो देंगे नहीं. इसलिए सेप्रेट इलेक्शन की मांग करने के बजाए हमें आंदोलन के माध्यम से छीनना होगा. इसके लिए हमें लोगों को पूना पैक्ट की जानकारी देनी होगी और एससी, एसटी, ओबीसी और मायनॉरिटी के बीच भाईचार कायम करनी होगी. बामसेफ के माध्यम से अब बड़े पैमाने एससी, एसटी, ओबीसी और मायनॉरिटी में जागृति पैदा हुई है. अब लोग एक मंच पर आकर अपने अधिकार के लिए आवाज उठा रहे हैं. इस आवाज को और ज्यादा बुलंद करने के लिए हमें अपने मूलनिवासी बहुजन समाज को जागृत करना होगा और आंदोलन के लिए तैयार करना होगा. अगर, हम ऐसा करते हैं राष्ट्रव्यापी आन्दोलन के माध्यम से आजादी हासिल कर सकते हैं.

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