शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2019

मैकाले मूलनिवासियों की शिक्षा के स्तंभ



भारत में ऐसे विद्धानों की कमी नहीं है जो प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति का गुणगान करते नहीं थकते और लॅार्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति को पानी पी-पीकर गालियां देते हैं। लेकिन इन्हीं लार्ड मैकाले की वजह सेअतिशूद्रोंं के लिए शिक्षा का रास्ता खुला और उन्हें न्याय मिलने का मार्ग प्रशस्त हो सका। ब्रिटिश सरकार ने चार्टर ऐक्ट1833 के अनुसार भारत के लिये प्रथम विधि आयोग का गठन किया, जिसके अध्यक्ष बन कर लॅार्ड मैकाले 10जून1834 को भारत में पहुंचे। इसी वर्ष लार्ड मैकाले ने भारत में नई शिक्षा नीति की नींव रखी। 06अक्टूबर1860 को लॅार्ड मैकाले द्वारा लिखी गई भारतीय दण्ड संहिता लागू हुई और मनुस्मृति का विधान खत्म हुआ। इसके पहले भारत में मनुस्मृति के काले कानून लागू थे, जिनके अनुसार अगर ब्राह्मण हत्या का आरोपी भी होता था तो उसे मृत्यु दण्ड नहीं दिया जाता था और वेद वाक्य सुन लेने मात्र के अपराध में शूद्रों के कानों में शीशा पिघलाकर डालने का प्रावधान था। वैसे तो अंग्रेज 23जून1757 प्लासी युद्ध के बाद लगभग आधे भारत पर शासन करने लग गये थे, परन्तु कानून तब भी मनुस्मृति के ही चलते थे। 

तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिंक द्वारा गठित सार्वजनिक शिक्षा समिति के अध्यक्ष के रूप में लार्ड मैकाले ने अपने विचार सुप्रसिद्ध स्मरणपत्र (Macaulay Minute) 02फरवरी1835 में दिए और उनके विचार ब्रिटिश सरकार द्वारा 07मार्च 1835 को अनुमोदित किए गए। मैकाले ने यहां का सामाजिक भेदभाव, शिक्षण में भेदभाव और दण्ड संहिता में भेदभाव देखकर ही आधुनिक शिक्षा पद्धति की नींव रखी और भारतीय दण्ड संहिता लिखी। जहां आधुनिक शिक्षा पद्धति में सबके लिये शिक्षा के द्वार खुले थे, वहीं भारतीय दण्ड संहिता के कानून ब्राह्मण और अतिशूद्र सबके लिये समान बने। मनुस्मृति की व्यवस्था से ब्राह्मणों को इतनी महानता प्राप्त होती रही थी कि वे अपने आपको धरती का प्राणी होते हुए भी आसमानी पुरुष अर्थात देवताओं के भी देव समझा करते थे। लॅार्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति से ब्राह्मणों को अपने सारे विषेषाधिकार छिनते नजर आये, इसी कारण से उन्होनें प्राणप्रण से इस नीति का विरोध किया। इनकी नजर में लॅार्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति केवल बाबू बनाने की शिक्षा देती है, पर मेरा मानना है कि लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति से बाबू तो बन सकते हैं, प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति से तो वह भी नहीं बन सके। हां, ब्राह्मण सब कुछ बनते थे, चाहे वह पढ़ा-लिखा हो या नहीं, अन्य जातियों के लिये तो सारे रास्ते बन्द ही थे। प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति के समर्थक यह बताने का कष्ट करेंगे कि किस काल में किस राजा के यहां कोई अतिशूद्र वर्ग का व्यक्ति मंत्री, पेशकार, महामंत्री या सलाहकार रहा हो ? अतः इन जातियों के लिये तो यह शिक्षा पद्धति कोहनी पर लगा गुड़ ही साबित हुई। ऐसी पद्धति की लाख अच्छाईयां रही होंगी, पर यदि हमें पढ़ाया ही नहीं जाता हो, गुरुकुलों में प्रवेश ही नहीं होता हो, तो हमारे किस काम की ? सरसरी तौर पर इन दोनों शिक्षा पद्धतियों में तुलना करते हैं, फिर आप स्वयं ही निर्णय ले सकते है कि कौन सी शिक्षा पद्धति कैसी है ?

भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति:-
(1) इसका आधार प्राचीन भारतीय धर्मग्रन्थ रहे।
(2) इसमें शिक्षा मात्र ब्राह्मणों द्वारा दी जाती थी।
(3) इसमें शिक्षा पाने के अधिकारी मात्र सवर्ण ही होते थे।
(4) इसमें धार्मिक पूजापाठ और कर्मकाण्ड का बोलबाला रहता था।
(5) इसमें धर्मिक ग्रन्थ, देवी-देवताओं की कहानियां, चिकित्सा, तंत्र, मंत्र, ज्योतिष, जादू टोना आदि शामिल रहे हैं।
(6) इसका माध्यम मुख्यतः संस्कृत रहता था।
(7) इसमें ज्ञान-विज्ञान, भूगोल, इतिहास और आधुनिक विषयों का अभाव रहता था अथवा अतिश्योक्तिपूर्ण ढंग से बात कही जाती थी। जैसेः-राम ने हजारों वर्ष राज किया, भारत जम्बू द्वीप में था, कुंभकर्ण का शरीर कई योजन था, कोटि-कोटि सेना लड़ी, आदि आदि।
(8) इस नीति के तहत कभी ऐसा कोई गुरुकुल या विद्यालय नहीं खोला गया, जिसमें सभी वर्णों और जातियों के बच्चे पढ़तें हों।
(9) इस शिक्षा नीति ने कोई अंदोलन खड़ा नहीं किया, बल्कि लोगों को अंधविश्वासी, धर्मप्राण, अतार्किक और सब कुछ भगवान पर छोड़ देने वाला ही बनाया।
(10)गुरुकुलों में प्रवेश से पूर्व छात्र का यज्ञोपवीत संस्कार अनिवार्य था। चूंकि हिन्दू धर्म शास्त्रों में शूद्रों का यज्ञोपवीत संस्कार वर्जित है, अतः शूद्र तो इसको ग्रहण ही नहीं कर सकते थे, अतः इनके लिये यह किसी काम की नहीं रही।
(11) इसमें तर्क का कोई स्थान नहीं था। धर्म और कर्मकाण्ड पर तर्क करने वाले को नास्तिक करार दिया जाता था। जैसे चार्वाक, तथागत बुद्ध और इसी तरह अन्य।
(12) इस प्रणाली में चतुर्वर्ण समानता का सिद्धांत नहीं रहा।
(13) प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति में शूद्र विरोधी भावनाएं प्रबलता से रही हैं। जैसे कि एकलव्य का अंगूठा काटना, शम्बूक की हत्या आदि।
(14) इससे हम विश्व से परिचित नहीं हो पाते थे। मात्र भारत और उसकी महिमा ही गायी जाती थी।
(15) इसमें वर्ण व्यवस्था का वर्चस्व था और इसमें व्रत, पूजा-पाठ, त्योहार, तीर्थ यात्राओं आदि का बहुत महत्त्व रहा।

मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति:-
(1) इसका आधार तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार उत्पन्न आवश्यकतायें रहीं।
(2) लॅार्ड मैकाले ने शिक्षक भर्ती की नई व्यवस्था की, जिसमें हर जाति व धर्म का व्यक्ति शिक्षक बन सकता था। तभी तो रामजी सकपाल (बाबासाहेब डॉ.अंबेडकर के पिताजी) सेना में शिक्षक बने।
(3) जो भी शिक्षा को ग्रहण करने की इच्छा और क्षमता रखता है, वह इसे ग्रहण कर सकता है।
(4) इसमें धार्मिक पूजापाठ और कर्मकाण्ड के बजाय तार्किकता को महत्त्व दिया जाता है।
(5) इसमें इतिहास, कला, भूगोल, भाषा- विज्ञान, विज्ञान, अभियांत्रिकी, चिकित्सा, प्रबन्धन और अनेक आधुनिक विद्यायें शामिल हैं।
(6) इसका माध्यम प्रारम्भ में अंग्रेजी भाषा और बाद में इसके साथ-साथ सभी प्रमुख क्षेत्रीय भाषाएं हो गईं।
(7) इसमें ज्ञान-विज्ञान, भूगोल, इतिहास और आधुनिक विषयों की प्रचुरता रहती है और अतिश्योक्ति पूर्ण या अविश्वसनीय बातों का कोई स्थान नहीं होता है।
(8) इस नीति के तहत सर्व प्रथम 1835 से 1853 तक अधिकांश जिलों में स्कूल खोले गये। आज यही कार्य केंद्र और राज्य सरकारों के साथ ही निजी संस्थाएं भी शामिल हैं।
(9) भारत में स्वाधीनता आंदोलन खड़ा हुआ, उसमें लार्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति का बहुत भारी योगदान रहा, क्योंकि जन सामान्य का पढ़ा-लिखा होने से उसे देश-विदेश की जानकारी मिलने लगी, जो इस आंदोलन में सहायक रही।
(10) यह विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में लागू होती आई है।
(11) इसको ग्रहण करने में किसी तरह की कोई पाबन्दी नहीं रही, अतः यह जन साधारण के लिये सर्व सुलभ रही। अगर शूद्रों और अतिशूद्रों का भला किसी शिक्षा से हुआ तो वह लार्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा प्रणाली से ही हुआ। इसी से पढ़ लिख कर बाबासाहेब अंबेडकर डॉक्टर बने।
(12) इसमें तर्क को पूरा स्थान दिया गया है। धर्म अथवा आस्तिकता-नास्तिकता से इसका कोई वास्ता नहीं है।
(13) यह राजा और रंक सब के लिये सुलभ है।
(14) इसमें सर्व वर्ण व सर्व धर्म समान हैं। शूद्र और अतिशूद्र भी इसमें शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं, लेकिन जहां-२ संकीर्ण मानसिकता वाले ब्राह्मणवादियों का वर्चस्व बढ़ा, वहां-२ उन्होनें उनको शिक्षा से वंचित करने की भरपूर कोशिश की है।
(15) इससे हमआधुनिक विश्व से सरलता से परिचितहो रहे हैं।
इस प्रकार शिक्षा और कानून के क्षेत्र में शूद्रों और अतिशूद्रों के लिए किये गये कार्यों के लिए लार्ड मैकाले बेजोड़ स्तंभ हैं और हमेशा रहेंगे।

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