बुधवार, 28 अगस्त 2019

" मा.दीनाभाना साहब के 10वें स्मृति दिवस के अवसर में दैनिक मूलनिवासी परिवार की ओर से विनम्र अभिवादन!"

" मा.दीनाभाना साहब के 10वें  स्मृति दिवस के अवसर में दैनिक मूलनिवासी परिवार की ओर से विनम्र अभिवादन!"

अगर, बगावत का कोई दूसरा नाम है तो वह है दीनाभाना. जी हाँ मा.दीनाभाना जी वह नाम है जिन्होंने कांशीराम साहब को डाॅ.बाबासाहब अम्बेडकर के व्यक्तित्व व कृतित्व से रूबरू कराया और कांशीराम साहब के अंदर छिपी बहुजन नेतृत्व की भावना को सुसुप्तावस्था से जाग्रत कर देश को न केवल एक समर्थ बहुजन नेतृत्व दिलवाने का ऐतिहासिक कार्य किया, बल्कि कांशीराम साहब को मान्यवर भी बना दिया. आज पूरे देश में जय भीम, जय मूलनिवासी की जो आग लगी है उसमे चिंगारी लगाने का काम मा.दीनाभाना साहब ने किया है. मा.दीनाभाना साहब का जन्म 28 फरवरी 1928 को राजस्थान के सीकर जिले के बगास गांव में एक गरीब भंगी परिवार में हुआ था.


 1956 में आगरा में डाॅ.बाबासाहब द्वारा दिया गया वो भाषण सूना जिसमें डाॅ.बाबासाहब अम्बेडकर ने कहा था कि ‘‘मुझे पढ़े-लिखे लोगों ने धोखा दिया’’ यह बात सुनकर दीनाभाना साहब ज्यादा विचलित होने लगे. वही से उन्होंने संकल्प लिया कि वे बाबासाहब के उस कारवां को आगे बढ़ायेंगे, जिस कारवां को वो बड़ी ही कठिनाईयों से यहाँ तक लायें हैं. सच तो यही है कि समाज के प्रति त्याग पुरूषों के लिए एक भाषण ही काफी है. 


दीनाभाना जी ने बाबासाहब के विचार को जाने समझे और बाबासाहब के परिनिर्वाण के बाद भटकते-भटकते पूना आ गये और पूना मे गोला बारूद फैक्टरी (रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन) मे सफाई कर्मचारी के रूप मे सर्विस प्रारंभ की. मा.कांशीराम साहब रोपड़ (रूपनगर) पंजाब निवासी क्लास वन आॅफिसर थे. लेकिन, कांशीराम जी को बाबासहाब कौन हैं? यह पता नही था. उस समय अंबेडकर जयंती की छुट्टी को लेकर दीनाभाना जी ने इतना बड़ा अंदोलन किया, जिसकी वजह से दीनाभाना जी को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. इस बात पर कांशीराम जी नजर पड़ी तो उन्होने दीनाभाना जी से पूछा कि यह बाबासाहब कौन हैं जिनकी वजह से तेरी नौकरी चली गयी? 

दीनाभाना जी व उनके साथी विभाग में ही कार्यरत महार जाति में जन्मे नागपुर, महाराष्ट्र निवासी मा.डीके खापर्डे साहब जो बामसेफ के द्वितीय संस्थापक अध्यक्ष थे. मा. डीके खापर्डे साबह ने कांशीराम जी को बाबासाहब की ‘ऐनीहिलेशन आॅफ काॅस्ट’ नाम की पुस्तक दी जो कांशीराम साहब ने रातभर में कई बार पढ़ी और सुबह ही दीनाभाना जी के मिलने पर बोले दीना तुझे छुट्टी भी और नौकरी भी मैं दिलाऊंगा और इस देश में बाबासाहब की जयंती की छुट्टी न देने वाले की जब तक छुट्टी न कर दूं तब तक चैन से नही बैठूंगा. क्योकि, यह तेरे साथ-साथ मेरी भी बात है, तू भंगी है तो मैं भी रामदासिया चमार हूँ. कांशीराम साहब ने नौकरी छोड़ दी और बाबासाहब के मिशन को ‘बामसेफ’ संगठन बनाकर पूरे देश में फैलाया. बामसेफ के संस्थापक सदस्य मा.कांशीराम, मा.दीनाभाना और मा.डीके खापर्डे साहब थे. 


जिस समाज की गैर-राजनितिक जड़ें मजबूत नहीं होती है, उनकी राजनीति कामयाब नहीं हो सकती है. इन्ही गैर-राजनितिक जड़ों को मजबूत करने के लिए मा.दीनभाना, डीके खापर्डे और मा.कांशीराम ने एससी, एसटी, ओबीसी और मायनाॅरिटी समाज के सरकारी कर्मचारियों को एकजुट करने की रणनीति बनाई. और 1973 को दिल्ली में आने वाले पाँच सालों में इन्हें एक संघठन के साथ जोड़ने का निश्चय किया. 

इस तरह 6 दिसम्बर 1978 को नई दिल्ली में ‘‘बामसेफ’’ नाम का एक संगठन बनाया. डाॅ.बाबासाहब के आंदोलन को दुबारा खड़ा करने के लिए उन्होंने ‘‘व्यवस्था परिवर्तन’’ एक फार्मूला बनाया.जो मूलनिवासी बहुजन समाज के लाखों सरकारी कर्मचारियों की वजह से परिवर्तन लाया जा सकता है. 


इसमें उन्होंने तीन मुख्य अंग बनाये, जो थे बहुजन आधारित (मास बेस) यानी ज्यादा लोगो का संघठन दूसरा था देश व्यापी (बोर्ड बेस) यानी देश के हर कोने से सदस्य और तीसरा था कैडरों पर आधारित (कैडर बेस) पूरी तरह से तैयार और त्याग की भावना रखने वाले कैडरों को तैयार करना.


 इसके लिए एक मजबूत विचारधारा का भी निर्माण किया वो था इस देश में दो वर्ग है, एक 15 प्रतिशत आबादी वाला विदेशी मूल का आर्य जिसे वर्तमान में ब्राह्मण, क्षत्रिय और बनिया कहा जाता है और दूसरा 85 प्रतिशत आबादी वाला समाज जिसे भारत का मूलनिवासी बहुजन समाज कहा जाता है जो एससी, एसटी, ओबीसी सहित कई जातियों, समूहों और धर्मों में बंटा हुआ है. इस तरह बामसेफ ने 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज की गैर-राजनितिक जड़ों को मजबूत करने में बहुत बड़ी अहम भूमिका निभा रहा है. यह सब केवल मा.दीनाभाना जी की वजह से हुआ है. 


28 अगस्त 2009 को पूना में मा.दीनाभाना जी परिनिर्वाण को प्राप्त हो गये. यदि मा.दीनाभाना साहब नहीं होते तो न तो बामसेफ होता और न ही व्यवस्था परिवर्तन हेतु अंबेडकरवादी जनान्दोलन चल रह होता.


 इस देश में जय भीम! का नारा गायब हो गया होता और आज ब्राह्मणों की नाक में दम करने वाला जय मूलनिवासी! का नारा भी नहीं होता. 

मा.दीनाभान संस्थापक सदस्य बामसेफ के 10वें स्मृति दिवस के अवसर पर सभी मूलनिवासी बहुजनों को उनसे प्रेरणा लेकर अपने दबे, कुचले, अधिकार वंचित समाज के लिए बामसेफ का साथ सहयोग करना चाहिए, ताकि देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज अपनी आजादी को हाशिल कर सकें.






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