बुधवार, 14 अगस्त 2019

आजादी की भयानक रात....



राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)

कहा जाता है कि 15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हो गया. परन्तु, यह भी सच है कि 14 अगस्त 1947 को देश का विभाजन भी हुआ. यानि 14 अगस्त को पाकिस्तान आजाद करने के बाद 15 अगस्त को भारत को आजादी मिली. मगर, एक बात आज तक समझ में नहीं आयी कि यह आजादी 14 अगस्त की रात 12 बजे क्यों मिली? पूरे दावे के साथ कहना चाहता हूँ कि यह बात किसी को पता नहीं होगा और किसी ने इसे जानने की कोशिश भी नहीं की होगी. जिसे जानना बहुत जरूरी है. 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया यह बात एक-दो-तीन नही, बल्कि 71 सालों से हमें बताया जा रहा है. यही बात स्कूलां, विद्याल्यों में भी पढ़ाया जा रहा है और हम मान भी रहे हैं कि 15 अगस्त को हमारा देश आजाद हो गया. लेकिन, यह बात अच्छी तरह से जान लेने की जरूरत है कि 15 अगस्त 1947 को देश आजाद नहीं हुआ, मूलनिवासी बहुजन समाज आजाद नहीं हुआ, बल्कि यूरेशियन ब्राह्मण आजाद हुए. केवल अफवाह फैलाया गया है कि 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया. मेरा एक प्रश्न यह है कि अगर देश को आजादी मिली तो देश की आजादी चोरी-चुप्पे क्यों मिली? देश को आजादी मिली तो राज के 12 बजे क्यों मिली? 12 बजे रात को आजादी मिलना इस बात की ओर इशारा करता है कि इसमें कुछ गड़बड़ जरूर है.
बता दें कि 14 अगस्त 1947 की 12 बजे रात आजादी की रात नही थी, बल्कि सत्ता का एग्रीमेन्ट (संधि) की भयानक रात थी. उस रात में अंग्रेजों और यूरेशियन ब्राह्मणों के बीच सत्ता का हस्तानांतरण हुआ था. यानी जो सत्ता अंग्रेजों के हाथों में थी अंग्रेज वो सत्ता ब्राह्मणों के हाथों में सौंप दी. डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर ने लार्ड माउण्ट बेटन से सवाल पूछा कि ‘‘यह आजादी देश की आजादी है या देश के लोगों की आजादी है’’ इसके जवाब ने माउण्टबेन ने कहा हम देश को आजाद कर रहे हैं. देश के लोगों की आजादी नेहरू करेगें. 15 अगस्त को देश आजाद हुआ और 16 अगस्त को मुम्बई में ‘‘अण्णा भाऊ साठे’’ ने एक रैली का आयोजन किया. उस विशाल रैली में अण्णभाऊ साठे ने एक घोषणा किया कि ‘‘ये आजादी झूठी है, देश की जनता भूखी है’’ यानी यह आजादी न होने का प्रमाणिक उदाहरण है कि 15 अगस्त 1947 को आजादी नहीं मिली, बल्कि सत्ता का हस्तानान्तरण हुआ था. सत्ता हस्तानांतरण की संधि भारत के आजादी की संधि है.


यह इतनी खतरनाक संधि है कि अगर आप अंग्रेजां द्वारा सन् 1615 से लेकर 1857 तक किये गये सभी 565 संधियां को जोड दें तो ज्यादा खतरनाक संधि 14 अगस्त 1947 की रात को हुआ, जिसको हम आजादी कहते हैं. वो आजादी नहीं पण्डित नेहरू और लार्ड माउण्टबेटन के बीच में सत्ता का हस्तानांतरण हुआ. सत्ता हस्तानांतरण और स्वतंत्रता ये दो चीजें अलग-अलग है. इसी संधि के बीच गाँधीजी की हत्या भी हुई है, इसमें बहुत बड़ा राज छिपा है. सत्ता का हस्तानांतरण कैसे होता है? एक पार्टी चुनाव हार जाती है दूसरे पार्टी की सरकार जीत कर आती है तो शपथ ग्रहण करने के बाद एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर करता है. उसी रजिस्टर को ‘‘ट्रान्सफर ऑफ पॉवर बुक’’ कहते हैं. उस पर हस्ताक्षर के बाद पुराना प्रधान मंत्री नये प्रधानमंत्री को सत्ता सौंप देता है और पुराना प्रधान मंत्री निकलकर बाहर चला जाता है. इसके सत्ता का हस्तानांतरण कहते हैं. यही नाटक 14 अगस्त 1947 की रात को 12 बजे हुआ था. लार्ड माउण्ट बेटन ने अपनी सत्ता पंडित नेहरू के हाथ में सांपी थी और हमने कह दिया स्वराज्य आ गया. कैसा स्वराज्य काहे का स्वराज्य? अंग्रेजां के लिए स्वराज्य का मतलब क्या था? औैर हमारे लिए स्वराज्य का मतलब क्या है? अंग्रेज कहते थे कि हमने स्वराज्य दिया यानी अंग्रेजों ने अपना राज तुमको सौपा था, ताकि तुम लोग कुछ दिन तक इसे चला लो जब जरूरत पड़ेगी तो हम दुबारा आ जायेंगे. ये अंग्रेजां का व्याख्या था और ब्राह्मणों की व्याख्या थी कि हमने स्वराज्य ले लिया. इसी संधि के ही अनुसार भारत के दो टुकड़े किये गये. भारत और पाकिस्तान नाम के दो डोमिनियन स्टेट बनायें गये. डोमिनियन स्टेट का अर्थ है एक बड़े राज्य के अधीन एक छोटा राज्य. देश की आजादी में भारत के विभाजन का भी एक रहस्य छुपा हुआ हे. 

14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान का निर्माण हुआ और 15 अगस्त 1947 की रात को 12 बजे भारत आजाद हुआ. यह यूरेशियन ब्राह्मणां की चाल थी और यह चाल आज इन आंकड़ो में दिखाई पड़ती है जो निम्न है- देश की तथाकथित आजादी के 71 वर्षो में संयुक्त राष्ट्र संघ के सर्वे में भारत के 83 करोड़ लोग भुखमरी के कगार पर पहुँचा दिये गये हैं. 22 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगारी की वजह से घूम रहे है, 35 लाख लोग से ज्यादा भीख मांग कर जीविका चला रहे है, 15-20  करोड़ लोग आज भी झोपड़पट्टियां में अपना जीवन व्यतीत कर रहे है. करीब 35-40 करोड़ लोगां को शुद्ध पीने का पानी नसीब नहीं हो रहा है. 10 करोड़ बच्चे बाल मजदूरी कर रहे हैं, 25 लाख बच्चे रेलवे प्लेटफार्म पर अपनी जिन्दगी काट रहे है. देश में हर 15 मिनट पर एक महिला के साथ बलात्कार, हर 22 मिनट पर एक महिला के साथ सामुहिक बलात्कार और हर 35 मिनट पर एक बच्ची को हवस का शिकार बनाया जा रहा है. जिसमें सबसे ज्यादा मूलनिवासी महिला हैं. 22.5 करोड़ कुपोषित हैं. शासक वर्ग ने देश की आजादी के 71 वर्षो में हजारां साम्प्रदायिक दंगे-फसाद को अंजाम दिया. देश में हर दिन हजारों किसान आत्महत्या कर रहे हैं. एससी को छुआछूत, भेदभाव, जातिवाद के कारण उनको मौत के घाट उतारा जा रहा है. आदिवासियों को जल, जंगल और जमीन से खदेड़ा जा रहा है और नक्सलवाद के नाम उनका नरसंहार किया जा रहा है. मुसलमानों को कभी आतंवाद के नाम पर तो कभी गोमांस के नाम पर, अब मॉब लिंचिंग की आड़ में बेरहमी से उनकी हत्याएं की जा रही है. सैनिकों को जानबूझकर मौत के मुँह में धकेला जा रहा है. 

क्या इसी को आजादी कहते हैं? यह आजादी नहीं है. आज भी देश का 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज गुलाम है. इसी गुलामी से आजाद कराने के लिए वामन मेश्राम के नेतृत्व बामसेफ द्वारा आजादी का आंदोलन चलाया जा रहा है. इस आजादी के आंदोलन में एससी, एसटी, ओबीसी, एनटी, डीएनटी, बीजेएनटी और इनसे धर्म परिवर्तित मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध जैन और लिंगायत अर्थात 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को इस आजादी के आंदोलन में साथ सहयोग करके अपनी आजादी हाशिल करनी होगी. अगर आज हम चूक गये तो फिर इस गुलामी से आजादी पाना ज्यादा मुश्किल हो जायेगा.

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