हम सब बचपन से लेकर आज तक सुनते आ रहे हैं कि 15अगस्त1947 को भारत आजाद हुआ। क्या यह सच है या कुछ और ही मामला है। आइए जानते हैं कि इसमें क्या है। 15अगस्त1947 को एक घटना घटी कि अंग्रेज भारत को छोड़कर चले गए और इसी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। अगर अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए और इसी को आजादी मान लिया गया तो इसका मतलब अंग्रेजों ने हमें गुलाम बनाया था। तो इसका एक और मतलब है जब अंग्रेज भारत में नहीं आये थे तो हम आजाद रहे होंगे ?
आप सभी को विदित है कि अंग्रेज लगभग 1600 ई0 में ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ भारत में आये अर्थात हम 1600 ई0 से पहले आजाद थे। पर क्या वास्तव में ऐसा था ? उस समय संविधान नहीं था शासन मनुस्मृति के अनुसार था वर्तमान में जिन्हें sc, st, obc कहते हैं उनकी हालत बद से बदतर थी शिक्षा, सुरक्षा एवं सम्पत्ति के अधिकार से वंचित थे। मरे हुए जानवरों के मांस से जीवन चलता था और तो और कमर में झाडू और गले में मटका हुआ करता था ब्राह्मण इनकी परछाई से भी दूर-दूर रहते थे। शूद्रों (obc) को कोई अधिकार नहीं था केवल ऊपर के तीन वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य) की निष्काम भाव से सेवा करने का कार्य सौंप दिया था। सेवा करना कोई अधिकार नहीं है और जो अधिकार वंचित होते है उन्हें ही गुलाम कहा जाता है। अर्थात अंग्रेजों के आने से पहले हम सब ब्राह्मणों के गुलाम थे। अंग्रेजों के आने के बाद ब्राह्मण अंग्रेजों के गुलाम हो गए और हम गुलामों के गुलाम हो गए अर्थात हम दोहरे गुलाम हो गये।
जब अंग्रेज भारत में आये तो उन्होंने देखा कि यहां पर एक खास वर्ग के लोग ही शासन, सत्ता और व्यवस्था पर काबिज हैं बाकी सब गुलामों की तरह ही जीवन जीने के लिए मजबूर कर दिए गए हैं तो उन्होंने इन सब गुलामों को एक-एक करके हक अधिकार देना शुरू कर दिया। सबके लिए शिक्षा के द्वार खोल दिए। इसीलिए राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले ने 01जून1873 को प्रकाशित अपनी पुस्तक "गुलामगिरी" में अंग्रेजों को देवदूत कहकर संबोधित करते हुए कहा कि जब तक अंग्रेज भारत में हैं तब तक हमारे पास ब्राह्मणों की गुलामी से आजाद होने का अवसर है और अगर हमारी आजादी से पहले ही अंग्रेज भारत छोड़कर जो चले गये तो ब्राह्मण हमें गुलाम बनाकर ही रखेगा। ज्योतिराव फुले की यह बात भारत के गुलाम मूलनिवासी लोग समझ पाते उससे पहले ही ब्राह्मणों ने समझा और अंग्रेजो के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन चलाया और अवसर पाते ही भारत का बंटवारा करके शासन प्रशासन पर कब्जा कर लिया।
आज इस तथाकथित आजादी के 72साल बाद भी भारत के मूलनिवासी समाज की जो दशा है उसका एक मात्र कारण यह है कि अंग्रेज नाम का विदेशी भारत छोड़कर चला गया और ब्राह्मण नामक विदेशी को सत्ता मिल गयी। निःसंदेह अंग्रेज विदेशी थे उन्हें भारत छोडक़र छोड़कर जाना चाहिए था लेकिन उससे पूर्व जो 4000 साल पुराने विदेशी भारत में आये, उनका क्या ? अगर दोनों विदेशी की तुलना की जाए तो जो अच्छा विदेशी था जिसने भारत के गुलाम मूलनिवासी समाज को हक़ अधिकार दिया वो भारत छोड़कर चला गया और जिसने सदियों से इस मूलनिवासी समाज का शोषण किया, गुलाम बनाया, जानवरों से बदतर जीवन दिया वो आज भी भारत की शासन व्यवस्था, समाज व्यवस्था के शीर्ष पर काबिज है यहाँ तक कि भारत के संविधान को सरेआम अपमानित किया और जलाने का काम कर रहे हैं फिर से मनुस्मृति लागू करने की कोशिश कर रहे हैं तो इसका क्या मतलब समझा जाए। इसीलिए लोकशाहीर अण्णाभाऊ साठे जी ने लाखों लोगों के जनसमूह को संबोधित करते हुए 16अगस्त1947 को मुम्बई के आजाद मैदान में कहा था कि "यह आजादी झूठी है कि देश की जनता भूखी है।"
निश्चित रूप से इन्हें भारत के संविधान में कोई आस्था नहीं है ये सभी को समान अधिकार देने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हो सकते। अगर आज संविधान को एक तरफ कर दिया जाए और बिना संविधान के भारत की कल्पना की जाए तो जो तस्वीर उभरती है वो बहुत बड़े संकट की तरफ़ इशारा कर रही है। ऐसे में मूलनिवासी समाज की जिम्मेदारी है कि इस देश में समता, स्वतंत्रता, बन्धुता और न्याय की स्थापना के लिए आगे आयें और लोकतंत्र और संविधान की रक्षा में अपनी भूमिका का निर्वाह करे अन्यथा ये आजादी "बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना" साबित हो कर रह जाएगी।
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