शुक्रवार, 9 अगस्त 2019

लाश पर सियासत का खेल..........



दैनिक मूलनिवासी नायक जब-जब मनुवादी सरकारों की नीतियों और बड़े नेताओं की मौत पर आशंका जाहिर किया है तब-तब वह बात सच ही साबित हुई है. इसी कड़ी में अब पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की मौत में भी आशंका की बू आने लगी है. ईवीएम विरोधी आंदोलन, तीन तलाक, आर्टिकल 370 जैसे गंभीर मुद्दों के शोरशराबे के बीच सुषमा स्वराज की अचानक मौत होना, बात कुछ हजम नहीं हो रही है. अचानक सुषमा स्वराज की मौत ने कई सवाल छोड़ गये हैं. क्या सुषमा स्वराज की मौत स्वभाविक थी? क्या सुषमा स्वराज की मौत सही मायने में 06 दिसम्बर की शाम को ही हुई थी? खैर यह तो जाँच का विषय है, इस पर अभी कुछ कहना ठीक नहीं है. जय ललिता, श्रीदेवी और अटल बिहारी बाजपेयी की तरह इससे भी पर्दा कुछ ही दिनों में हट जायेगा. 

सुषमा स्वराज स्वराज की मौत पर आशंका करने का सिर्फ एक ही कारण है कि सुषमा स्वराज की मौत के पहले भी नामीगिरामी हस्तियों की मौत को साजिश का शिकार बनाया जा चुका है. जय ललीता, श्रीदेवी और अटल बिहारी बाजपेयी की मौत भले ही स्वभाविक हुई हो, लेकिन उनकी लाश पर सियासत का खेल खलने से बीजेपी पीछे नहीं हटी है. इसलिए वर्तमान स्थिति को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि सुषमा स्वराज की मौत के पीछे भी सियासत का ही खेल खेला जा रहा है.

बता दें कि जय ललिता की मौत उस वक्त हुई थी जब पूरे देश में विश्वरत्न डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर का परिनिर्वाण दिवस मनाया जा रहा था. बामसेफ द्वारा पूरे देश में डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर ही हत्या क्यों और किसने की? तथा डीआईजी सक्सेना की रिपोर्ट क्यों नहीं सार्वजनिक की गयी? इन दो गंभीर मुद्दों को विषयवार पूरे देश में चर्चा के लिए रखा गया था. लेकिन, उससे पहले ही पता चला कि 05 दिसम्बर 2016 को जय ललिता की मौत हो गयी. हद तो तब हो गयी जब ब्राह्मणों ने बामसेफ द्वारा 6 दिसंबर को डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर के परिनिर्वाण पर बाबसाहब की हत्या का पर्दाफाश करने की आवाज को दबाने के लिए साजिश किया. क्योंकि जय ललिता की मौत दो दिन पहले हुई थी यानी 2-3 तारीख को जय ललिता की मौत हुई थी. लेकिन, ब्राह्मणों ने बामसेफ की आवाज दबाने के लिए जय ललिता की मौत 05 दिसंबर को घोषित किया और अंतिम दर्शन के लिए 06 दिसंबर को जय ललिता का पार्थिव शरीर बाहर निकाला. दलाल मीडिया ने अखबार से लेकर टीवी चैनलों पर केवल जय ललिता की चर्चा करने लगे. जिससे बामसेफ द्वारा चलाए जा रहे बाबासाहब की हत्या की चर्चा दब गई.

इसी तरह से श्रीदेवी की लाश पर भी भारतीय जनता पार्टी ने सियासत की रोटियाँ सेंकने से परहेज नहीं किया. श्रीदेवी की मौत ने भी शासक वर्ग को वो मौका दे दिया, जिससे शासक वर्ग एक साथ कई मुद्दों को दबाने में कामयाब हो गये. श्रीदेवी की मौत 24 फरवरी 2018 को हुई. 2018 में मोदी सरकार को चार साल हो रहे थे और 2019 में लोकसभा चुनाव होने वाला था. 2018 में मोदी सरकार के चार सालों में जहाँ एक तरफ देश में अत्याचार, अन्याय, आतंकी हमले, दंगा-फसाद चरम पर था तो वहीं दूसरी तरफ हिन्दुत्व को बढ़ावा देने के लिए मूलनिवासी बहुजनों का कत्लेआम बड़े पैमाने पर हो रहा था. इसी के साथ मोदी सरकार में भ्रष्टाचार इतना ज्यादा बढ़ चुका था कि दुनिया के 108 भ्रष्ट देशों की सूची में भारत नंबर वन देश घोषित हो गया था. मोदी सरकार में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, बच्चे सुरक्षित नहीं हैं, बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी में गरीबों को मौत का निवाला बनाया जा रहा है. चारों तरफ गुंडों का तांडव मचा हुआ है, दिनदहाड़े मूलनिवासियों को जिंदा जलाया जा रहा तो कहीं दिनदहाड़े उनकी पीट पीटकर हत्याएं की जा रही हैं.

एक तरह किसानों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया जा रहा है तो दूसरी ओर जवानों को मौत के मुंह में ढकेला जा रहा है. न तो महंगाई कम हुई न तो भ्रष्टाचार कम हुआ, बल्कि देश के बैंकों को लूटने के लिए मोदी ने बैंक सफाई अभियान भी शुरू कर दिया था. इकोनॉमी चौपट हो चुकी है, विकास दर निचले स्तर पर जा पहुंची है. शिक्षा, स्वास्थ्य व्यवस्था को घटिया बना दिया गया है. मोदी की सारी योजनाएं टॉय-टॉय फिस्स हो चुकी हैं. यानी मोदी सरकार ने महज चार साल में ही इतनी ज्यादा समस्याओं का निर्माण कर दिया था कि मोदी के विरोध में आवाजे उठने लगी थी. यही नहीं भारत मुक्ति मोर्चा ने ब्राह्मणवादी व्यवस्था पर इतना जोरदार प्रहार किया कि ब्राह्मणवाद जड़ से हिल गया था. शासक वर्ग इन सभी मुद्दों को दबाने के लिए प्लान बना ही रहा था कि श्रीदेवी की मौत ने उनको मौका दे दिया. शासक वर्ग ने प्लान बनाया कि यदि बहुजन विरोधी मुद्दों को दबाना है तो एक नया विवाद खड़ा करना होगा. यह विवाद तभी खड़ा हो सकता है जब श्रीदेवी के पार्थिव शरीर को राष्ट्रीय ध्वज में लपेटा जाय और उसका राजकीय सम्मान के साथ अन्तिम संस्कार किया जाय. इसलिए शासक वर्ग ने न केवल श्रीदेवी के पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेटा, बल्कि राजकीय सम्मान देकर देश भर में बवाल खड़ा कर दिया. इसमें दलाल मीडिया ने भी मसाला लगा कर पेश करने लगा और जो चर्चा सरकार के विरोध में हो रही थी वह चर्चा बंद हो गयी और नया चार्चा शुरू हो गया कि श्रीदेवी को तिरंगे में क्यों लपेटा गया? श्रीदेवी को राजकीय सम्मान क्यों दिया गया? इस तरह से बहुजन विरोधी सभी मुद्दे गायब हो गये.

यही नहीं भारतीय जनता पार्टी ने अटल बिहारी बाजपेयी की लाश को भी नहीं छोड़ा, बल्कि लाश ही गवाही देने लगी थी कि अटल की मौत तकरीबन चार दिन पहले हुई थी और उसके चार दिन बाद 16 अगस्त 2018 को मृत घोषित किया गया. वह दौर भी एक भयंकर साजिश से ही गुजर रहा था. क्योंकि मोदी सरकार 15 अगस्त को तथाकथित देश की आजादी का जश्न मनाने वाली थी. 15 अगस्त को देश विनाशक प्रधानमंत्री दिल्ली के लाल किले से ‘मन की बात’ प्रसारित करने वाले थे. उसी दिन अटल बिहारी बाजपेयी की मौत हो गयी. बीजेपी को लगा अगर अटल बिहारी बाजपेयी की मौत 15 अगस्त को घोषित किया गया तो 15 अगस्त पर जो मोदी मन की बात में बोलने वाले थे वह नहीं बोल पायेंगे, दूसरी सबसे बड़ी बात यह है कि बामसेफ के माध्यम से सभी लोगां को जानकारी हो गयी है कि 15 अगस्त को देश आजाद नहीं हुआ था, बल्कि सत्ता का हस्तानांतरण हुआ था. एक अंग्रेज विदेशी चला गया और जाते-जाते भारत की सत्ता विदेशी ब्राह्मणों को दे गया, मूलनिवासी आज भी गुलाम हैं. मगर, ब्राह्मण हर साल 15 अगस्त को अपनी आजादी का जश्न मनाते हैं. अगर, बाजपेयी की मौत 15 अगस्त को घोषित किया गया तो हर साल 15 अगस्त पर आजादी का जश्न नहीं, बल्कि अटल बिहारी बाजपेयी की पुण्यतिथि मनानी पड़ेगी. यानी बाजपेयी की मौत 15 अगस्त के लिए काला दिन साबित होगा. इसलिए भाजपा सरकार ने अटल बिहारी बाजपेयी को उनकी मौत के चार दिन तक लाशों को रखे रही जब 15 अगस्त बीत गया तब 15 अगस्त की रात में यानी 16 अगस्त को मृत घोषित किया.

उपरोक्त बातों को देखते हुए ही सुषमा स्वराज की मौत के पीछे भी साजिश की आशंका हो रही है. चुंकि, यह दौर भी भाजपा सरकार के लिए मुसिबत से कम नहीं है. मोदी सरकार एक घटना को छुपाने के लिए दूसरे घटना को अंजाम देते जा रही है. पहला तो यह है कि बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम ने पूरे देश में ईवीएम के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया है. वामन मेश्राम की वजह से देश की जनता को पता चल गया है कि ईवीएम में घोटाला करके भाजपा ने दूसरी बार सत्ता पर कब्जा किया है. इसके साथ ही वामन मेश्राम की वजह से कई राजनीतिक पार्टियाँ भाजपा सरकार के खिलाफ एकजुट होकर ईवीएम के खिलाफ 09 अगस्त को आंदोलन करने जा रही हैं. इसके अलावा देश में हत्या, बलात्कार, मॉब लिंचिंग, दंगा-फसाद, बेरोगारी, गरीबी, भुखमरी, किसानों की आत्महत्या, पुलवामा जैसी घटनाओं में बीजेपी द्वारा सैनिकों को मौत के घाट उतारना, देश की चौपट होती इकोनॉमी और ‘तीन तलाक’ जैसे गंभीर मुद्दों ने मोदी सरकार को मुसिबत में डाल दिया है. इसलिए मोदी सरकार ने आर्टिकल 370 खत्म करके इन मुद्दों को एक साथ दबाने की कोशिश की. लेकिन, आर्टिकल 370 के मुद्दे ने सरकार की और ज्यादा किरकीरी कर दी. देश से लेकर विदेशों में मोदी सरकार के खिलाफ गुस्से का माहौल व्याप्त हो चुका है. चारों तरफ सरकार के खिलाफ अवाजें उठने लगी हैं. इन मुद्दों और आवाजों के बीच सुषमा स्वराज की अचानक मौत हो जाना संदेह के घेरे में है. हो सकता है कि सुषमा स्वराज की मौत स्वभाविक हो, मगर आशंका है कि सुषमा स्वराज की मौत पर कहीं सियासत का खेल तो नहीं खेला जा रहा है? हालांकि, यह पूरे दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है. 

राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें