राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)
जब तक हमारे लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होगी कि आजादी के आंदोलन के बारे में हमारे अंदर बहुत बड़ा भ्रम है और यह भ्रम किसी और ने नहीं बल्कि इस देश के विदेशी यूरेशियन ब्राह्मणों ने पैदा कर रखी है। इसलिए हमारे अपने आजादी के आंदोलन में यह भ्रम सबसे बड़ी बाधा है? जब तक यह भ्रम हमारे अंदर से दूर नहीं होता है तब तक हम किसी भी कीमत पर अपने आजादी की लड़ाई नहीं लड़ सकते हैं। 1862 ई. में अब्राहम लिंकन ने अमेरिका में दास प्रथा समाप्त की थी।
इसके बावजूद वहां रंग भेद की समाप्ति के लिए 100 वर्षों तक लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी। अब यह माना गया कि अमेरिका में गोरों और कालों के बीच की दूरी खत्म हो गई। वहां के लोगों ने अमेरिका के राष्ट्रपति अश्वेत बाराक ओबामा को बनाकर सत्ता सौंप दिया। भारत में भी 1848 ई. में राष्ट्रपिता जोतिराव फुले ने यहां के गुलाम (अनु.जाति, जनजाति/पिछड़ी जाति) की गुलामी से मुक्ति के लिए आंदोलन शुरू किया था। जिसे छत्रपति शाहूजी महाराज ने आगे बढ़ाया और डॉ. अम्बेडकर ने 1956 ई. तक चलाई। अब बामसेफ संगठन इस आजादी के आंदोलन को पूरा करने के लिए कृतसंकल्प हैं। 15 अगस्त 1947 को हमें गुलाम बनाने वाले तो अंग्रेजों से आजाद हो गये लेकिन हम उनके आज भी आधुनिक रूप से गुलाम हैं। 162 देशों की स्थिति बताने वाले ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स 2013 ने पाया कि भारत में 1.40 करोड़ गुलाम हैं। यह आंकड़ा केवल बंधुआ मजदूर, मानव तस्करी के आधार पर है।
अगर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक व धार्मिक रूप से देखा जाये, तो लगभग 100 सभी मूलनिवासी गुलाम हैं। हमारे बुद्धिजीवी वर्ग अपने को आजाद समझने की भूल करते हैं। आज देश में करोड़ों मजदूर गरीब परिवार ऐसे हैं जिन्हें आजादी का असली मतलब तक नहीं मालूम। हमारे बुद्धिजीवी वर्ग को भी एहसास नहीं कि हम गुलाम हैं। डा. अम्बेडकर ने कहा था ‘‘गुलामों को गुलामी का एहसास करा दो तो वह गुलामी रूपी जंजीर तोड़ने का प्रयास अवश्य करेगा।’’ मूलनिवासी को गुलामी का एहसास न होना ही हमारी आजादी के आंदोलन की सबसे बड़ी बाधा है। जब तक हमारे मूलनिवासी बहुजन समाज को अपने गुलामी का एहसास नहीं होगा तब तक वह दुश्मनों के विरोध में क्रान्ति का आगाज नहीं कर सकता। और जब तक दुश्मनों के विरोध में क्रान्ति का आगाज नहीं कर सकता, तब तक वह शासक वर्ग की गुलामी से आजाद नहीं हो सकता है।
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