बुधवार, 14 अगस्त 2019

आजाद भारत में गुलामी का गीत क्यों......?



राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)
जब भारत आजाद हो गया तो फिर आजाद भारत में गुलामी का गीत क्यो गाया जा रहा है? जब 1905 में बंगाल के विभाजन को लेकर अंग्रेजों के खिलाफ भंग का आन्दोलन चला रहा था तो उस समय बंगाल के लोगों ने उस आन्दोलन को काफी मजबूत बनाया था. जिससे अंग्रेजों ने अपने आप को बचाने के लिए अपनी राजधानी कलकत्ता से हटाकर दिल्ली ले गये और 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया. जबकि, उस समय पूरे भारत के लोग अंग्रेजों के खिलाफ बुलंदियो पर थे. अंग्रेजों ने अपने इंगलैण्ड के राजा को भारत में आमंत्रित किया ताकि भारत के लोग शांत हो जायं. 1911 में इंगलैण्ड का राजा जार्ज पंचम भारत में आया. जब जार्ज पंचम भारत में आया तो सभी बंगाल के ब्राह्मणों ने रविन्द्रनाथ टैगोर पर दबाव बनाया कि जार्ज पंचम का निर्णय हमारे यानी (ब्राह्मणों) के पक्ष में करने के लिए तुम्हे राजा जार्ज पंचम के स्वागत के लिए एक गीत गाना होगा. 




उस समय टैगोर का पूरा परिवार ही अंग्रेजों का तलवा चाटते थे. खुद रविन्द्रनाथ टैगोर की अंग्रेजों के प्रति सहानुभुति रहती थी. जब सभी ब्राह्मणों का दबाव हुआ तो टैगोर ने राजी होते हुए मन से या बेमन से जो भी गीत लिखा उस गीत के माध्यम से जार्ज पंचम को ये बताया कि हमारा देश भारत समेत हम सभी आप के गुलाम हैं और गुलामी को सम्बोधित करने वाला गीत ‘‘जन, गण, मन, अधिनायक जय हे भारत भागय विधाता’’ इस गीत के सारे शब्दो में अंग्रेज राजा जार्ज पचंम का गुणगान है ताकि अंग्रेजों को लगे कि कोई गीत है जो अंग्रेजों के खुशामद में लिखा हुआ है. 1911 में रविद्रनाथ टैगोर द्वारा राज्य जार्ज पंचम के स्वगत के गीत गाया तो गीत हिन्दी में गाये जाने से राजा को समझ में नही आया. जब वो वापस इंगलैण्ड गया तो उसने उस ‘‘जन, गन, मन, को अंग्रेजी में अनुवाद कराया. जब अनुवाद के बाद सुना तो इतना खुश हुआ और बोला कि इतना सम्मान, इतनी, खुशामद तो मेरी इंगलैण्ड में भी आज तक किसी ने नहीं किया. इतना खुश हुआ कि उसने तुरन्त आदेश दिया जिसने भी यह गीत लिखा है उसे तुसन्त इंगलैण्ड बुलाया जाय. 

रविन्द्रनाथ इंगलैण्ड गया. जार्ज पंचम नोबल पुरस्कार का अध्यक्ष भी था. जार्ज पंचम ने टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने लिए फैसला लिया. मगर, रविन्द्रनाथ टैगोर ने इस नोबल पुरस्कार को लेने से इंकार कर दिया. इस इंकार के पिछे गाँधीजी का गाली भरा वो लब्ज था जो रविन्द्रनाथ टैगोर को दिया गया था. इसलिए रविन्द्रनाथ टैगोर ने जार्ज पंचम से कहा कि अगर आप हमे नोबल पुरस्कार देना ही चाहते हैं तो जन, गण, मन, पर न देकर मैने एक गीतांजली नाम की किताब लिखी है उस पर नोबल पुरस्कार दिया जाय और यहि प्रचारित भी किया जाय कि नोबल पुरस्कार गीतांजली पर दिया गया है. जार्ज पंचम मान गया और 1913 को रविन्द्रनाथ के गीतांजली पर नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया. रविन्द्रनाथ टैगोर की अंग्रेजों के प्रति सहनुभुति तब खत्म हुई जब 1919 में जलिया वाला बाग काण्ड हुआ. गांधी ने गाली की भाषा में रविन्द्रनाथ टैगोर को पत्र लिखा और बोला कि तुम्हारी आँखो से अंग्रेजीयत अभी भी खत्म नहीं हुई? तुम्हारे आँखो में अभी भी अंग्रेजों के प्रति वही रैवेया कब तक रहेगी? तुम अग्रंजों के इतने चाटुकार कैसे बन गये? गांधी ने स्वंय रविन्द्रनाथ के घर गया और जोर से डाँटा कि तुम जिस अंग्रेजों के भक्ति में डूबे हो वहीं अंग्रेज ब्राह्मणों पर खतरा बने बैठे हैं. तब जाकर रविन्द्रनाथ टैगोर ने जलिया वाला बाग काण्ड में अंग्रेजो का विरोध किया और नोबल पुरस्कार को पुनः जार्ज पंचम को लौटा दिया. 1919 के पहले रविन्द्रनाथ टैगोर ने जितना कुछ किया वो सब के सब अंग्रेजों के समथर्न में था.

1913 में रविन्द्रनाथ टैगोर ने अपने बहनोई सुरेन्द्रनाथ बनर्जी लंदन मे आईसीएस ऑफिसर को एक पत्र लिखा. पत्र में टैगोर ने लिखा कि ये जो गीत ‘‘जन, गण, मन, लिखा हूँ यह गीत अंग्रेजों के द्वारा बनवाकर लिखवाया गया है. इसके शब्दों का अर्थ सही नही है, इस गीत के अर्थ में देश के गुलामी का संकेत है और यह गीत अंग्रेजों की भक्ति करने के लिए लिखा गया गीत है. इस गीत को कभी नहीं गया जाना चाहिए. इस पत्र के अंतिम लाईन में लिखा कि इस पत्र को किसी को भी नहीं दिखाये. क्योंकि, यह पत्र मैं आप तक सीमित रखना चाहता हूँ. जब कभी मेरी मृत्यु हो जाय तभी इस पत्र को सार्वजनिक करना. 1941 को रविन्द्रनाथ टैगोर की मृत्यु हुई उसके बाद सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने उस पत्र को सार्वजनिक किया और सारे देश को बताया कि ‘‘जन, गण, मन’’ इस गीत को कभी न गाया जाय. यह गीत भारत देश के विरोध मे लिखा गया गीत है जिसे जार्ज पंचम को खुश करने के लिए लिखा गया था. 1941 तक राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी दो दलो में बंट गई थी. कांग्रेस के दो दलों में बटने का कारण था कि इस देश की सत्ता किसके हाथ में होगी? इसलिए बाल गंगाधर तिलक और जवाहर लाल नेहरू दोनों ब्राह्मणों में मतभेद हो गया और दोनों ने अगल-अलग दल बना लिया. एक दल का नाम नरम दल था, जिसके समर्थक जवाहर लाल नेहरू थे तथा दूसरे का नाम गरम दल था जिसके समर्थक बालगंगाधर तिलक थे.

जवारहार लाल नेहरू चाहते थे कि स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजों के साथ कोई संयोजक सरकार बने. लेकिन, बालगंगाधर तिलक नहीं चाहते थे कि अंग्रेजों के साथ मिलकार सरकार बने. अंग्रेजों के साथ मिलकर सरकार बनाने का मतलब अपनों से धोखा देना यानी यूरेशियन ब्राह्मणों को इसी मतभेद के कारण बालगंगाधर तिलक कांग्रेस से निकल गये. गरमक दल के नेता बालगंगाधर तिलक हर जगह वन्देमातरम गया करते थे और नरम दल के नेता मोतीला नेहरू (उस समय गांधीजी कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से इस्तीफा दे चूके थे, गाँधी किसी के तरफ नहीं थे. मगर, दोनों पक्ष के लिए आदरणीय थे) क्योंकि, गांधीजी महात्मा का चोला ओढ़कर देश के आदरणीय थे. लेकिन, नरम दल वाले नेता ज्यादातर अंग्रेजों के साथ रहते थे, उनके साथ उठना-बैठना, उनके हर बैठकों में शामिल होना और हर समय अंग्रेजों के पक्ष में समझौता करना उनकी चाटुकारिता को प्रकट करती थी. वन्देमातरम से अंग्रेजों को बहुत चिढ़ होती थी. नरम दल वाले गरम दल वालों को चिढ़ाने के लिए 1911 में लिखा गया गीत ‘‘जन, गण, मन, गाया मरते थे और गरम दल वाले ‘‘वन्देमातरम’’ गाया करते थे. नरम दल वाले अंग्रजों के सर्म्पक में थे और अंग्रेजों को वन्देमातरम गीत पसंद नही था. इसलिए अंग्रेजों के कहने पर नरम दल वालों ने मुसलमानों के बिच एक हवा उड़ा दी कि मुसलमानों को वन्देमातरम नहीं गाना चाहिए. क्योंकि, इसमें मूर्ति पूजा (बुतपरस्ती) है और मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी हैं. उस समय मुस्लिम लीग भी बन गई थी, जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे. उन्होने भी उनका विरोध करना शुरू कर दिया. क्योकि, उस समय जिन्ना देखने में भारतीय थे, मगर मन से अंगेज ही थे. जिन्ना ने अंग्रेजों के इशारे पर मुसलमानों को वन्देमातरम गाने से मना कर दिया. 

जब भारत स्वतंत्र हो गया तब जवाहर लाल नेहरू उसमें राजनीजित करने लगे. संविधान सभा की बहस चली, संविधान सभा के 319 में से 318 सांसद ऐसे थे जिन्होने ‘‘वन्देमातरम’’ को राष्ट्रगान स्वीकार करने पर सहमति जताई थी. बस एक सांसद इस प्रस्ताव को नही माना जिसका नाम जवाहरलाल नेहरू था. उसका तर्क था कि वन्देमातरम से मुसलमानों के दिल को चोट पहुचती है. इसलिए इसे नहीं गना चाहिए. दरअसल इस गीत से मुसलमानों को नहीं, बल्कि अंग्रेजों के दिल को चोट पहुचती थी. अब इस झगड़े का फैसला कौन करे? तब वे गांधीजी के पास पहुचे. गांधीजी ने कहा ‘‘जन, गण, मन के पक्ष में तो मैं भी नही हूँ और तुम (नेहरू) वन्देमातरम के पक्ष में नहीं हो. तो कोई तीसरा विकल्प तैयार किया जाय. तब गांधीजी ने तीसरे विकल्प के रूप में झण्डागान को चूना और विजयी विश्व तिरंगा प्यारा’’ को झण्डागान का विकल्प दिया. लेकिन, नेहरू उस पर भी तैयार नही हुआ. नेहरू का तर्क था कि झण्डा गान आरकेष्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन, गण, मन, आरकेष्ट्रप पर बज सकता है. उस समय इस विवाद का कोई हल नहीं निकला तो नेहरू ने इस मुददे को गांधीजी के मृत्यु तक टाले रखा. गांधीजी की मृत्यु करने के बाद नेहरू ने जन, गण, मन, को राष्ट्रगान के रूप में घोषित कर दिया और जबरदस्ती यह गुलामी का गीत भारतीयों पर थोप दिया. दूसरा पक्ष नाराज ना हो इसलिए वन्देमातरम को राष्ट्र गीत बना दिया. लेकिन, नेहरू कभी भी नहीं चाहते थे कि अंग्रेजों के दिल को चोट पहुचें. नेहरू मुसलमानों का हितैषी कैसे हो सकता है? जिसने पाकिस्तान बनवा दिया. जबकि, इस देश के मुसलमान पाकिस्तान नही चाहते थे. जन, गण, मन, को इसलिए मान्यता दी गयी कि वो अंग्रेजों के भक्ति में गाया गया गीत था. इसलिए जन, गण, मन को राष्ट्र गान के रूप में नहीं गाना चाहिए. क्योकि, इसमें गुलामी की बू आती है. मैं सभी इतिहासकारों से एक बात कहना चाहता हूँ कि आप लोग भी 52 सेकेण्ड में गाने वाला दूसरा राष्ट्र गान लिख कर रखे रहें. क्योकि, जैसे ही 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को आजादी मिलेगी, वैसे ही इस जन, गण, मन, राष्ट्रगान को रदद कर दिया जायेगा और जो आप लोग द्वारा राष्ट्रगान लिखा जायेगा उसे आजाद भारत का राष्ट्रगान घोषित किया जायेगा.

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