5 जुलाई, 2019 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश का बजट पेश किया. इस बार का बजट उन्होंने सूटकेस में न लाकर एक लाल कपड़े में लाया. इसके बाद चारों तरफ यह गूंज उठने लगी कि यह एक नई परम्परा की शुरूआत किया गया है. परन्तु एक सवाल जेहन में कौंध रहा है कि एक ही सरकार के कार्यकाल में दो परम्पराएं कैसे संभव है? दरअसल बात यह है कि बीते पाँच साल तक बीजेपी की सरकार रही और बीते पाँच सालों में सूटकेस में ही बजट पेश होते आया है. लेकिन मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में यह बताया जा रहा है कि निर्मला सीतारमण ने उस परम्परा को खत्म करके एक नई परम्परा की शुरूआत की है. इन सबसे मजेदार बात तो यह है कि मौजूदा वित्तमंत्री ने यहाँ तक कह दिया कि लंबे समय से चली आ रही सूटकेस की परम्परा गलत थी. सवाल तो यहाँ भी खड़ा होता है कि यह जानते हुए भी मोदी सरकार ने गलत परम्परा क्यों जारी रखी? परन्तु यह भी जानने की आवश्यकता है कि जो परम्परा गलत थी उसे भी मोदी सरकार ने जारी रखा और जो नई परम्परा की शुरूआत हुई वो भी मोदी सरकार के ही कार्यकाल में हुई है. यानी एक ही सरकार के कार्यकाल में दो परम्पराएं संभव हैं?
खैर इस संदर्भ में निर्मला सीतारमण ने क्या कहा एक नजर इसपर भी डालते हैं. इसके पीछे की एक कहानी है, जिसे खुद निर्मला सीतारमण ने सुनाया है, हर बात पर गौर करने जी जरूरत है. 5 जुलाई, 2019. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश का बजट पेश किया. इसे नाम दिया गया बही-खाता. अब तक होता ये आया था कि बजट को एक चमड़े के बैग में लेकर जाया जाता था. लेकिन पाँच जुलाई को जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करने गईं, तो बजट चमड़े के बैग में नहीं बल्कि लाल रंग के एक कपड़े में रखा हुआ था और उस कपड़े पर अशोक की लाट बनी हुई थी. बजट चमड़े के बैग में न होकर लाल रंग के कपड़े में क्यों था, इसको लेकर अलग-अलग कयास लगाए जा रहे थे. भारत के चीफ इकनॉमिक एडवाइजर के. सुब्रमण्यम ने बताया था कि लाल रंग शगुन यानी शुभ का प्रतीक होता है. इसीलिए वित्त मंत्री की बजट वाली फाइल लाल रंग की है. यह पश्चिमी विचारों की गुलामी से निकलने का प्रतीक है. लेकिन अब खुद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया है कि बजट चमड़े के बैग में न होकर लाल रंग के कपड़े में क्यों था.
6 जुलाई को पत्रकारों से बातचीत में निर्मला सीतारमण ने बताया भारत के किसी भी हिस्से में जाइए, वहाँ बही-खाते को लाल रंग के कपड़े में रखने की परंपरा है. दक्षिण भारत में लक्ष्मी पूजा के दौरान इसी तरह से हिसाब-किताब की कॉपी लाल रंग के कपड़े में लपेटकर रखी जाती है. गुजरात और महाराष्ट्र में दिवाली पूजा के अगले दिन और असम में बिहू के वक्त ऐसा ही किया जाता है. ये हमारी परंपरा है. ब्रीफकेस में बजट ले जाना हमारी परंपरा नहीं है. ब्रीफकेस इसलिए ले जाया जाता है ताकि उसमें रखने पर कागज न गिरें, लेकिन कागजों को गिरने से बचाने के लिए उन्हें लाल कपड़े में भी बांधा जा सकता है. इसलिए मैंने सोचा कि बजट को लाल रंग के कपड़े में ले जाया जाए.
दिलचस्प बात तो यह भी है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के हाथ में जो लाल रंग की पोटली थी उसे किसी और ने नहीं खुद वित्तमंत्री की मामी ने तैयार किया था. क्या वित्तमंत्री की मामी वित्तमंत्रालय में कोई बड़े ओहदे पर हैं कि एक वित्तमंत्री की फाइल उलटपलट सकती हैं? बजट के लिए लाल रंग का कपड़े की पोटली तैयार की गई थी. निर्मला सीतारमण ने इसके बारे में बताते हुए कहा अपना बजट भाषण रखने के लिए मैंने लाल रंग का एक बुक कवर मंगवाया था. मेरे घर में मेरे साथ मामा-मामी भी रहते हैं. मामी ने देखा कि बुक कवर में क्लिप नहीं है. मामी ने कहा कि ऐसे तो कागज गिर जाएंगे. इसके बाद उन्होंने लाल रंग के कपड़े से ही एक फोल्डर बना दिया और फिर लाल कपड़े का बस्ता जैसा सिल दिया, जिससे कोई कागज न गिरे.
उन्होंने कहा मेरे मामा-मामी लंबे समय से मुंबई में रहते हैं. उनका सिद्धिविनायक मंदिर और महालक्ष्मी मंदिर से गहरा जुड़ाव है. एक बात और समझ में नहीं आ रही है कि यहाँ देश का बजट पेश हो रहा है कि पारिवारिक जान-पहचान हो रही है. खैर आगे देखते हैं क्या कहा. उन्होंने कहा मामा-मामी बजट की इस पोटली को लेकर मंदिर गए. अरे वाह! यह तो कमाज हो गया. कोई आम आदमी देश के बजट की फाइल को लेकर शहर-शहर और मंदिर-मंदिर लेकर धूम भी रहा है? उन्होंने कहा वहाँ दर्शन के बाद जब ये मेरे पास वापस आया, तो मैंने इसपर भारत का राजचिन्ह और सत्यमेव जयते लिखी अशोक की लाट लगवाई, जिसके बाद ये ऑफिशियल हो गया. जब मैं इसे लेकर संसद पहुंची तो लोगों ने इसे बही-खाते का नाम दे दिया. ये तो बहुत कमाल हो गया, कोई सरकार कागज को मंदिरों के दर्शन कराने से भी ऑफिशियल हो सकता है आज यह भी पता चल गया. इस तरह से देश की महिला वित्त मंत्री ने देश का बजट देश के सामने रखा, जो लाल रंग के कपड़े में लिपटा हुआ था और जिसे देखकर संसद में मौजूद लोगों ने इसे बही-खाते काम नाम दे दिया था. अर! भाई यह तो एक ही सरकार के कार्यकाल में दो परंपराएं चल रही है? यदि उक्त बातों पर विश्लेषण किया जाय तो एक लाइन में ऐसा कहा जाता है कि देश की जनता को सिफ मूर्ख बनाकर अपना उल्लू सीधा किया जा रहा है.
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