गुरुवार, 1 अगस्त 2019

रसातल में उच्च शिक्षा

‘‘आईआईटी-आईआईएम की मदद के लिए सरकार ने जहाँ हाँथ खींच लिए हैं वहीं दूसरी तरफ प्राइवेट सेक्टरों के लिए दरवाजे पूरी तरह से खोल दिये हैं’’ 


केन्द्र की मोदी सरकार दूसरे पारी में भी अर्नगल फैसला लेने में देरी नहीं कर रही है. जबकि, केन्द्र सरकार की इन्हीं अर्नल नीतियों के कारण न केवल शिक्षा रसातल में मिल गयी है, बल्कि देश बिल्कुल बर्बादी के कगार पर खड़ा हो चुका है. इसके बाद भी ताबडतोड़ अर्नगल फैसले करती जा रही है. नरेंद्र मोदी सरकार जो नई शिक्षा नीति ला रही है, वह किस तरह की होगी, इसका अंदाजा हाल ही संसद में पेश बजट में दिखाई देने लगा है. इसमें केंद्रीय विश्वविद्यालयों का बजट लगभग एक तिहाई कर दिया गया है, जबकि डीम्ड विश्वविद्यालयों का बजट तिगुना कर दिया गया है. इसी तरह जहाँ एक ओर आईआईटी और आईआईएम का बजट घटा दिया गया है तो वहीं दूसरी ओर नए आईआईटी और आईआईएम के लिए कोई राशि ही नहीं रखी गई है. मतलब, चुनावों से पहले नए आईआईटी और आईआईएम खोलने की जो बातें की गई थीं, वे बेमानी रह गईं. बल्कि सरकार ने आईआईटी और आईआईएम को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत प्राइवेट सेक्टरों के लिए दरवाजे खोल दिए हैं. 

मोटे तौर पर लगता है कि सरकार का सारा ध्यान निजी व्यवस्था को बढ़ावा देने पर ही है यह सरकार के रवैये से स्पष्ट हो गया है. इसका अंदाजा बजट 2019-20 को देख कर भी लगाया जा सकता है. बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उच्च शिक्षा को लेकर कोई घोषणा नहीं की.बजट दस्तावेज बताते हैं कि कई मदों पर अनुमानित खर्च घटा दिया गया है. इनमें केंद्रीय विश्वविद्यालयों को दी जाने वाली ग्रांट प्रमुख है. केंद्रीय विश्वविद्यालयों को जहाँ 2017-18 में 7286.22 करोड़ का बजटीय सपोर्ट दिया गया था. अब उसे घटाकर लगभग एक तिहाई 2865.62 करोड़ कर दिया गया है. इसके एवज में माध्यमिक एवं उच्चतर शिक्षा कोष से 1000 करोड़ और नेशनल इंवेस्टमेंट फंड से 2746.27 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. 

दिलचस्प बात यह है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों की ग्रांट तो कम कर दी गई है, लेकिन निर्मला सीतारमण के इस बजट में डीम्ड विश्वविद्यालयों को आगे बढ़ाने के लिए 350 करोड़ का प्रावधान किया गया है जो पिछले साल के मुकाबले लगभग 5 गुना है. पिछले साल के बजट में 60 करोड़ का प्रावधान किया गया था. जबकि, उससे पहले इस तरह का प्रावधान नहीं किया जाता था. साफ है कि सरकार केंद्रीय विश्वविद्यालयों के बजाय डीम्ड विश्वविद्यालयों पर मेहरबान है. यही नहीं मोदी सरकार छात्रों द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहायता में भी कमी कर दी है. 2017-18 में सरकार ने इस मद में कुल बजटीय सपोर्ट 1950 करोड़ वास्तविक खर्च दिखाया था. अब उसे 2018-19 में 30 करोड़ और 20 करोड़ कर दिया है. छात्रों के वित्तीय सहायता के पैटर्न में भी बदलाव किया गया है. अब उन्हें माध्यमिक एवं उच्चतर शिक्षा कोष से वित्तीय सहायता दी जाएगी, लेकिन उसका बजट भी बहुत अधिक नहीं है. उन्हें इस मद में 340 करोड़ दिए जाएंगे. शर्तें क्या होंगी, यह जानना बाकी है. लेकिन, स्टूडेंट फाइनेंशियल ऐड के कुल मद में राशि जरूर घटा दी गई है. इस मद में 2018-19 में 2600 करोड़ का प्रावधान किया गया है. जिसे, बाद में संशोधित कर 2155 करोड़ कर दिया गया और अब इस साल 2306 करोड़ का प्रावधान किया गया है. 

बता दें कि अकसर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इनोवेशन की बात करते हैं और इसके लिए आईआईटी, आईआईएम जैसे संस्थानों को बढ़ावा देने की वकालत करते रहे हैं. लेकिन, बजट में कुछ और ही बात कही गई है. बजट 2017-18 में नए आईआईटी के लिए 342.91 और अगले साल 338 करोड़ का प्रावधान किया गया, लेकिन बजट 2019-20 में इसे घटाकर शून्य कर दिया गया है. इसी तरह नए आईआईएम पर 136 करोड़ का प्रावधान पिछले साल किया गया था, उसे भी शून्य कर दिया गया है. इसके अलावा आईआईटी और आईआईएम का कुल बजटीय सपोर्ट (जीबीएस) भी घटा दिया गया है. आईआईटी के लिए 2018-19 में 236 करोड़ का प्रावधान किया गया था अब उसे घटाकर 208.16 करोड़ कर दिया गया. आईआईएम के लिए 2018-19 में 828 करोड़ का प्रावधान किया गया था. इसे रिवाइज करके 200 करोड़ किया गया और 2019-20 में इसे 445.53 करोड़ कर दिया है. इतना ही नहीं, सरकार ने इस बार के बजट में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत आईआईटी और आईआईएम के संचालन की बात कही है. लेकिन, इतना तो तय है कि इससे आईआईटी और आईआईएम में प्राइवेट सेक्टर का रास्ता जरूर साफ हो गया है. संभव है कि अगले 100 दिन में सरकार की मंशा से पर्दा उठ जाएगा. 

आम चुनाव से पहले अचानक मोदी सरकार को याद आया कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों के स्तर पर कुछ काम नहीं हुआ है तो फरवरी, 2019 में हुई कैबिनेट की बैठक के बाद प्रेस नोट जारी किया गया कि केंद्र सरकार ने 13 नए केंद्रीय विश्वविद्यालय के निर्माण कार्य को मंजूरी दे दी है. सरकार ने उस समय 36 महीनों में ये सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने की बात कही और विश्वविद्यालयों के निर्माण कार्य के लिए 3639.32 करोड़ रुपये के बजट की इजाजत दे दी. तब कहा गया कि नए केंद्रीय विश्वविद्यालयों का निर्माण केंद्रीय विश्वविद्यालय कानून 2009 के तहत बिहार, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, केरल, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान और तमिलनाडु में किया जाएगा. इन 11 राज्यों में एक-एक विश्वविद्यालय बनाए जाने की बात कही गई थी, वहीं जम्मू-कश्मीर में दो विश्वविद्यालय बनाए जाने की बात थी. 

फिर से चुने जाने के बाद संसद की पहली बैठक में इस बारे में सरकार से सवाल पूछा गया कि क्या सरकार की देश में 13 नए केंद्रीय विश्विविद्यालय स्थापित करने और उनकी अवसंरचनात्मक सुविधाओं हेतु 3600 करोड़ आवंटित करने की योजना है? तो नए मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने जवाब दिया कि नहीं. वर्तमान में देश में नया केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है. केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के पद खाली रहने का भी मामला कई बार उठा है. लेकिन, सरकार इसको लेकर भी गंभीर नहीं दिखाई दी है. 

इसका एक मजेदार पहलू यह भी है कि 20 मार्च, 2017 को सरकार ने लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में जानकारी दी थी कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 17,006 शिक्षकों के पद स्वीकृत हैं और इनमें से 6,141 पद खाली हैं. इसके दो साल बाद 24 जून, 2019 को जवाब दिया गया कि 1 अप्रैल, 2019 तक देश के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 17,834 पद स्वीकृत हैं और उनमें से 11,115 पद भरे हुए हैं. यानी 6,719 पद खाली हैं. सरकार की धोखेबाजी वाली गणित देखिए कि दो साल के दौरान 828 पद सृजित तो किए गए, बावजूद इसके शिक्षकों की खाली सीटें और बढ़ गई. उच्चतर शिक्षा के लिए एक और अहम संस्थान भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं शोध संस्थान आईआईएसईआर है. मोदी सरकार ने इस संस्थान का बजट भी घटा दिया है. 2016-17 में इसका बजट 720 करोड़ था. इसे पहले 650 करोड़ किया गया, फिर 2018-19 में 689 करोड़ कर दिया गया. इस तरह से सरकार ने शिक्षा का प्राइवेटाजेशन करके पूरी तरह से चौपट कर दिया है. 

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