बुधवार, 14 अगस्त 2019

सन् 1947 की आजादी, बहुजनों की आजादी नहीं, हमें लड़नी होगी अपनी सम्पूर्ण आजादी की जंग


राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)

हमारे मूलनिवासी बहुजन समाज को आज भी इस बात पर यकीन नहीं है कि हम आजाद नहीं है। और जिनको थोड़ा-बहुत पता भी है कि हम आजाद नहीं है वह भी बेचारे 15 अगस्त के दिन क्रीम-पाउडर लगाकर स्कूल-कालेज और संगोष्ठीयों में पहुँच जाते हैं आजादी की डींगे हांकने। और वह मंच पर जैसे ही पहुँचते हैं वैसे ही गला-फाड़कर चिल्लाने लगते हैं कि साथियों आज हमारे आजादी का दिन है, आज ही के दिन हमको विदेशी अंग्रेजों से आजादी मिली और यह आजादी हमारे बापू मोहनदास करमचन्द गांधी जी ने दिलाई। मगर जब हम उनसे यह पूछते हैं कि मान्यवर जी हमको जरा आप ये बताईये कि 15 अगस्त 1947 के दिन भारतीय संसद में उस समय ‘‘आजादी का बिल पास हुआ था या फिर ट्रांसफर ऑफ पावर’’ का बिल पास हुआ था। तो वे बेचारे भौचक्के होकर हमारा मुँह देखने लगते हैं। तो मैं कहता हूँ कि अरे भाई हमारा मुँह क्यों देख रहे हो, क्या हमारे मुँह पर ही यह लिखा हुआ है कि कौन सा बिल पारित हुआ था। 

आजादी का या ट्रांसफर ऑफ पॉवर का। तो जवाब में कहते हैं कि सुनील जी मैं आपका मुंह इसलिए नहीं देख रहा हूं कि आप के मुंह पर यह लिखा हुआ है कि कौन सा बिल पास हुआ बल्कि मैं आपका मुँह इसलिए देख रहा हूँ कि आज तक ऐसा सवाल मुझसे किसी ने पूछा ही नहीं? और ना ही मैंने यह कभी सोचा था कि आजादी के दिन कोई बिल भी पारित हुआ था। तो मैंने कहा कि मान्यवर जी आप तो बहुत पढ़े-लिखे आदमी हो, जब आपको ही नहीं पता है तो फिर हमारे अनपढ़ लोगों को कैसे पता होगा? आप तो स्कूल में एक टीचर भी हैं, जो 15 अगस्त के दिन बच्चों के सामने आजादी की भाषणबाजी करते हैं। और उन्हें गांधी से लेकर के मंगल पांडे तक का पूरा इतिहास बताते हैं। जब मैंने इतना कहा तो उनका चेहरा थोड़ा सा नीचे हो गया, और उन्होंने अपना चेहरा नीचे करके मुझसे कहा कि सुनील जी मुझे इस बात का दुख है कि मैं एक टीचर होकर भी आजादी के सच्चे इतिहास के बारे में जानकारी नहीं हैं, हमें इतना तक नहीं पता है कि आजादी का दिन हमारे आजादी का दिन था या और किसी के आजादी का दिन था। उनकी बात खत्म भी नहीं हुई कि मैंने उनको बीच में ही रोकते हुए कहा कि मान्यवर जी आपको ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मैं जानता हूं कि हमारे लोगों को इसके बारे में बहुत कम ही पता है, वह 15 अगस्त 1947 के आंदोलन को ही अपने आजादी का आंदोलन मानते हैं। उनका मानने के पीछे कारण यह है कि देश का जो शासक वर्ग है, जो 15 अगस्त के दिन दिल्ली के लाल किले से झंडा फहराकर पूरे भारत की जनता को यह बताने की कोशिश करता है कि 15 अगस्त 1947 का दिन हमारे आजादी का दिन है, मगर यह नहीं बताता है कि 15 अगस्त 1947 का दिन आजादी का दिन नहीं है बल्कि ट्रांसफर ऑफ पॉवर का दिन है। अर्थात सत्ता हस्तांतरण वाला दिन है। सत्ता हस्तांतरण वाला दिन कैसे है? क्योंकि इसी दिन एक अंग्रेज विदेशी ने भारत की सत्ता को एक दूसरे विदेशी यूरेशियन ब्राह्मणों के हांथों में सौंपी थी। जो आज इस देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासियों के ऊपर राज कर रहा है। 

जब तक भारत में अंग्रेज थे, तब तक वह ब्राह्मणों के साथ-साथ इस देश के मूलनिवासियों पर भी राज करते रहे, मगर जैसे ही वह भारत से गये और देश की सत्ता (पॉवर) को विदेशी यूरेशियन ब्राह्मणों के हाथ में ट्रांसफर (हस्तांतरण) किया, वैसे ही विदेशी यूरेशियन ब्राह्मणों ने इस देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासियों को फिर से गुलाम बनाकर राज करने लगे। और मूलनिवासियों को इस बात की तनिक भी भनक नहीं होने दी कि संसद में जो 1947 के दिन अंग्रेज और कांग्रेस के बीच जो बिल पारित हुआ, वह आजादी का नहीं बल्कि ट्रांसफर ऑफ पावर का बिल था। और आप तो यह भलीभांति जानते ही हैं कि अगर किसी देश पर काबिज नया विदेशी, पहले से ही काबिज पुराने विदेशी को सत्ता का ट्रांसफर करता है तो उस देश को आजाद देश नहीं कहा जा सकता। जिस देश में वहाँ के मूलनिवासी रहते हैं। अगर अंग्रेज लोग भारत के मूलनिवासियों के हाथ में सत्ता सौंपते तो ऐसा कहा जा सकता था कि मूलनिवासियों को आजादी मिली। मगर विदेशी अंग्रेज दूसरे विदेशी यूरेशियन ब्राह्मणों के हाथ में सत्ता सौंपा तो दुनिया का कोई भी ऐसा वकील और जज यह नहीं कह सकता कि वहां के मूलनिवासियों को आजादी मिली। वह सिर्फ यही कह सकता है कि आजादी अंग्रेजों से मूलनिवासियों को नहीं बल्कि ब्राह्मणों को मिली। इसके लिए हम सबको भारत के आजादी का आंदोलन का नया इतिहास जानना और समझना होगा। क्योंकि डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर इतिहास के बारे में कहते हैं कि जो कौम अपना इतिहास नहीं जानती, वह कौम अपना भविष्य निर्माण नहीं कर सकती। 

अगर हम इतिहास से सबक नहीं सीखते हैं, तो इतिहास हमें सबक जरूर सिखाता है।’’ अर्थात हम भविष्य को उज्जवल बनाना चाहते हैं तो हमें इतिहास की जानकारी होनी चाहिए। दूसरा अगर हम इतिहास से सबक नहीं सीखते हैं, तो इतिहास तब तक चैन से नहीं बैठता है, जब तक कि हमें सबक न सीखा दे। इसलिए हमें किसी भी कीमत पर इतिहास से सबक सीखना होगा। आप सभी को यह भलीभांति पता होगा कि इस भारत पर करीब 650 सालों से मुगलों का राज था तथा मुगलों के 650 साल के राज में यूरेशियन ब्राह्मणों द्वारा मुगलों के विरोध में एक बार भी आजादी के लिए आंदोलन हुआ है, ऐसा एक भी सबूत नहीं मिलता है, तथा भारत पर करीब 150 साल तक अंग्रेजों का राज था (1818 से 1947) इसका अर्थ यह है कि, वास्तव में 129 साल तक था, लेकिन उस काल में यूरेशियन ब्राह्मणों ने अंग्रेजों के विरोध में आजादी का आंदोलन किया, ऐसा क्यों? 650 साल के मोगलों के राज में यूरेशियन ब्राह्मणां ने मुगलों के विरोध में आजादी के लिए आंदोलन नहीं किया, मगर 150  साल के अंग्रेजों के राज में यूरेशियन ब्राह्मणों ने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का आंदोलन चलाया क्यों? यह एक महत्वपूर्ण और रहस्य भरा सवाल है। 

यूरेशियन ब्राह्मणों ने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का आंदोलन क्यों चलाया? इसके तीन कारण हमने देखा। पहला यह कि 1774 में नंदकुमार देव नामक यूरेशियन ब्राह्मण को अंग्रेजों ने फांसी दी, इसलिए यूरेशियन ब्राह्मणों का पारा अपने आप चढ़ गया। दूसरा यह कि शूद्रों/अतिशूद्रों को शिक्षा देने के लिए अंग्रेजों ने 1854 में भारत में तीन विश्वविद्यालय की स्थापना की। अंग्रेजों ने ऐसा करके ब्राह्मणों की मनुस्मृति का घोर अपमान किया। जिसमें यह लिखा है कि शूद्रों/अतिशूद्र्रों अर्थात ओबीसी/एससी/एसटी को शिक्षा नहीं देना चाहिए। इनको शिक्षा देना ब्राह्मण धर्म का उल्लंघन है। तीसरी बात यह कि 1918 में अंग्रेजों ने भारत में विधि मंडल का गठन किया। क्योंकि भारत में 1918  के पहले सारे प्रजा के लिए कानून बनाने का अधिकार केवल और केवल ब्राह्मणों को ही था। सन् 1918 के बाद भारतीय दंड विधान (इंडियन पैनल कोड) आ गया। जिसके सामने ब्राह्मणों और ब्राह्मणों की मनुस्मृति की धज्जियां उड़ गई। इस वजह से मजबूरी में ब्राह्मणों ने अंग्रेजों के विरोध में आजादी का आंदोलन चलाया। और ब्राह्मण आजाद हो गये, मगर इस देश का मूलनिवासी बहुजन समाज आज भी विदेशी यूरेशियन ब्राह्मणों का गुलाम है, इसलिए हम सब को अपनी आजादी के लिए एक दूसरी आजादी की लड़ाई लड़नी होगी। और वह आजादी की लड़ाई आज की तारीख में भारत मुक्ति मोर्चा लड़ रहा है, जिसमें हम सबको साथ-सहयोग करके अपनी आजादी को हासिल करनी की जंग लड़नी होगी।

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