स्विस बैंक में भारतीयों के जमा कालेधन का सही आंकड़ों की जानकारी नहीं : केन्द्र सरकार
थूककर चाटना....इस कहावत को मोदी सरकार ने दूसरे कार्यकाल में भी चरितार्थ करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. मोदी सरकार ने स्विस बैंकों में भारतीयों के जमा कालेधन मामलो में सही आंकड़ा न होने की बात कहकर उपरोक्त कहावत को चरितार्थ कर दिया है. एक तरफ तो मोदी सरकार कह रही है कि स्विट्जरलैंड के बैंकों में अघोषित खाते रखने वाले भारतीयों पर शिकंजा कसी जा रही है और दूसरी तरफ यह भी कह रही है कि स्विस बैंकां में भारतीयों के जमा कालेधन के सही आंकड़ों की जानकारी हमारे पास नहीं है. जबकि, 2014 में मोदी सरकार बनने के तत्काल बाद ही स्विट्जरलैंड सरकार ने तकरीबन 700 से ज्यादा भारतीयों के नाम की सूची भेजी थी. लेकिन, एक साल के अंदर ही पीएमओ ऑफिस से यह खबर आयी की पीएमओ ऑफिस में आग लगने से 700 से ज्यादा भारतीयों के नाम की सूची, सुभाष चंद्र बोस हत्या मामले, गांधीजी से संबंधित और कई महत्वपूर्ण फाइलें जलकर खाक हो गयी. इसके बाद सरकार किस आधार पर कह रही है कि स्विस बैंकां में भारतीयों के जमा कालेधन का सही आंकड़ों की जानकारी हमारे पास नहीं है? यही नहीं अभी बीते जून में ही स्विट्जरलैंड के अधिकारियों ने कम से कम 50 भारतीयों की बैंक संबंधी सूचनाएं भारतीय अधिकारियों को सौंपी थी.
बताते चलें कि मोदी सरकार हद से ज्यादा झूठ बोल रही है. इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि भारतीय नागरिकों या कंपनियों के स्विस बैंक में जमा कालेधन का भारत के पास प्रमाणिक आंकड़ा नहीं है. असल में कितनी रकम जमा है, इस बात का सही-सही पता नहीं है. एक सवाल के जवाब में सोमवार को वित्त मंत्री ने लोकसभा में मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया कि स्विस बैंकों में भारतीयों के जमा कराए पैसे में 2018 में 6 प्रतिशत की गिरावट आई है. मजेदार बात तो यह है कि जब सरकार के पास आंकड़े ही नहीं हैं तो फिर यह बात वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को कैसे पता चली कि स्विस बैंकों में भारतीयों के जमा कराए पैसे में 2018 में 6 प्रतिशत की गिरावट आई है?
आगे सीतारमण ने कहा कि केंद्र सरकार भारतीयों के स्विट्जरलैंड में संपत्तियों और बेहिसाब आय का पता लगाने और टैक्स वसूलने के लिए लगातार कदम उठा रही है. लेकिन, सवाल यह है कि क्या यह सच है? कैसे और किस आधार पर कदम उठा रही है? बगैर आंकड़े ही कदम उठाना कहाँ तक उचित है यह तो सरकार ही बता सकती है, लेकिन, जनता भी इस बात को अच्छी तरह से समझ रही है कि कार्यवाही कैसी होगी. वित्त मंत्री ने डबल टैक्सेशन अवॉयडेंस अग्रीमेंट और ऑटोमेटिक एक्सचेंज ऑफ फाइनैंशियल अकाउंट इन्फॉर्मेशन का भी जिक्र किया, जिसके तहत भारत को स्विट्जरलैंड में भारतीय नागरिकों के खातों की जानकारी सितंबर 2019 से मिलनी शुरू हो जाएगी. यहाँ सवाल यह भी है कि जो जानकारी 2014-15 में मिली थी क्या कार्यवाही करने के लिए वह जानकारी कम थी? सरकार ने उस वक्त क्यों नहीं कदम उठाया?
यह मामला यही नहीं रूका, वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि सरकार ने देश के अंदर और बाहर, दोनों ही मोर्चों पर कालेधन पर कार्रवाई की दिशा में कई ठोस कदम उठा रही है. इसके लिए कई कड़े कानून भी लाए गए हैं. अब जरा गौर करें की क्या सरकार को पता नहीं है कि देश के अंदर कहाँ-कहाँ और किन-किन लोगों के पास काला धन है? अगर सरकार कई कानून बना चुकी है तो अब तक कार्यवाही क्यों नहीं हुई? असल में ये सभी कानून कालेधन को बाहर निकालने के लिए नहीं, बल्कि सफेद बनाने के लिए बनाये गये हैं. इसका नजारा नोटबंदी के दौरान बड़े पैमाने पर देखने को मिल चुका है.
अब रह गयी बात देश के अंदर छिपे कालेधन की तो सरकार को अच्छी तरह से पता है कि देश के मंदिरों, पार्टियों, मंत्रियों, नेताओं और पूँजीपतियों के पास अकूत कालाधन है. इसके बाद भी सरकार उनपर कोई कार्यवाही नहीं कर रही है, केवल जनता को मूर्ख बनाने के लिए कानून का हवाला देकर हल्ला मचा रही है. क्योंकि सरकार बीते पाँच सालों से यही राग अलापते आ रही है, परन्तु हुआ कुछ भी नहीं. बल्कि यह हुआ कि जैसा निर्मल सीतारमण ने कहा कि स्विस बैंकों में भारतीयों के जमा कराए पैसे में 2018 में 6 प्रतिशत की गिरावट आई है. इसी तरह से धीरे-धीरे बगैर कार्यवाही किये या कार्यवाही करने तक पता चलेगा कि अब स्विस बैंकों में किसी भी भारतीयों के कालाधन नहीं है. इसलिए सरकार द्वारा ऐसा भ्रामक प्रचार किया जा रहा है कि स्विस बैंकों में भारतीयों के जमा कराए पैसे में 2018 में 6 प्रतिशत की गिरावट आई है. यानी सरकार कार्यवाही करने में जानबूझकर इसलिए देरी कर रही है ताकि कार्यवाही करने तक सभी कालेधन सफेद हो जाये. क्योंकि, सरकार से लेकर नेता, मंत्री, पूँजीपति और मंदिरों में दान के नाम पर कालाधन रखने वाले सभी चोर-चोर मौसेरे भाई हैं. स्विस बैंकों में भारतीयों के जमा कराए पैसे में 2018 में 6 प्रतिशत की गिरावट दिखाना इसी षड्यंत्र का एक अहम हिस्सा है.
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