सोमवार, 5 अगस्त 2019

मीडिया की ऐसी की तैसी, देशद्रोही मीडिया का दोगला चरित्र


" भारत में ईवीएम के माध्यम से जनता के वोटों की चोरी हो रही है. इतनी बड़ी खबर भारतीय मीडिया से गायब है. और भारतीय मीडिया इस सच्चाई को बताने के बजाय दूसरे देशों की झूठी बातों को  बता रहा है. भारतीय मीडिया का यह रवैया ही बता रहा है कि भारतीय मीडिया मौजूदा सरकार की दलाली करने में कोई परहेज नहीं कर रहा है"  

 राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)

कुछ दिन पहले ही भारतीय मीडिया पर मैने ‘‘मीडिया की करतूत’’ नाम से संपादकीय लिखा था, जिसे दैनिक मूलनिवासी नायक ने 15 जुलाई 2019 को प्रकाशित किया था. मैने उस संपादकीय में लिखा था कि मीडिया का बुनियादी सिद्धांत क्या है? ‘‘सत्य बात बोलना, सत्य बातों का प्रचार-प्रसार करना ही मीडिया का बुनियादी उसूल है’’ परन्तु, भारतीय मीडिया, अपनी बुनियादी उसूलों से हटकर चाटुकारिता करने में मसगुल हो गया है. जिस मीडिया को देश और जनता की सच्ची आवाज बनकर हकीकत को जनता से सरकार को सरकार से जनता को रूबरू कराना चाहिए, आज वही मीडिया यूरेशियन ब्राह्मणों और सत्ता पक्ष की चाटुकारिता करने में गर्व महसूस कर रहा है. यह बात कहने में जरा भी अतिश्योक्ति नहीं है कि आजकल मीडिया पत्रकारिता छोड़कर चाटुकारिता करने लगा है. 

आप लोगों को याद होगा, जम्मू कश्मीर के पुलवामा ज़िले के अवंतिपुरा में 14 फरवरी 2019 को सीआरपीएफ के जवानों पर आतंकी हमला हुआ. हमले में सीआरपीएफ के तकरीबन 40 जवान शहीद हो गए थे. इसके 12 दिन बाद ही भारत ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइट-2 किया. लेकिन, सर्जिकल स्ट्राइक-2 में इस मीडिया की क्या भूमिका रही शायद यह किसी ने नहीं देखा होगा. हम आपको बता रहे हैं कि सर्जिकल स्ट्राइक-2 में मीडिया की क्या भूमिका थी. सर्जिकल स्ट्राइक-2 में धमाका किसी विमान का नहीं, मिग-21 का नहीं, एफ-16 का नहीं और 1000 किलों बम का नहीं, बल्कि चाटुकार मीडिया का रहा. यानी मीडिया को जो काम करना चाहिए वो नहीं कर रहा था वो दो देशों के बीच माहौल को भड़का रहे थे सरल शब्दों में मीडिया जंग लड़ रहा था. अगर जंग लड़ने का इतना ही शौक है तो देश की सरहद पर जाओ और जंग लड़ो? इसी तरह 23 मई 2019 के लोकसभा चुनाव का परिणाम घोषित हो रहा था. भारतीय जनता पार्टी ईवीएम में घोटाला करके हर सीट जीत रही थी, और हर मीडिया दफ्तर में बीजेपी के जीत की मिठाईयाँ बांटकर चाटुकार पत्रकार जश्न मना रहे थे. उस दौरान चाटुकार मीडिया के चाटुकार पत्रकार ऐसे खुश हो रहे थे जैसे चुनाव नरेन्द्र मोदी नहीं चाटुकार पत्रकारों के रिस्तेदार जीत रहे हों. 

यही नहीं अगर देश में उन्माद फैलाना है तो मीडिया से सीखा जा सकता है कि किस तरह से देश में उन्माद फैलाये जाते हैं. इसका एक बानगी दिखाना चाहता हूँ. इससे पहले यह जान लेने की जरूरत है कि आज देश में चारों तरफ जय श्रीराम के नाम पर भीड़ द्वारा हत्या करने का सिलसिला बहुत ही तेजी से चल रहा है. देश में हिन्दू-मुसलमान के नाम पर जानबूझकर उन्माद, दंगा-फसाद फैलाया जा रहा है. ऐसे में मीडिया झूठी खबर फैलाकर आग में घी डालने का काम कर रहा है. बता दें कि 29 जून 2019 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सटे चंदौली जिले में रविवार सुबह एक मुस्लिम युवक को मिट्टी का तेल छिड़क कर जलाए जाने का सनसनीखेज मामला सामने आया. मैं चन्दौली जिले का रहने वाला हूँ इसलिए इस घटना को बारीकी से जानता हूँ. चंदौली जिले के सैयदराजा इलाके में रहने वाला 18 वर्षीय खलील अंसारी रविवार सुबह घर से घूमने के लिए निकला. खलील के बताने के अनुसार जब वह छतेम गाँव के पास पहुँचा तभी मुंह पर कपड़ा बांधे चार युवकों ने उसको पकड़ लिया. कुछ दूर खेत में ले जाकर उसके ऊपर मिट्टी का तेल छिड़ककर आग लगा दी और मौके से फरार हो गए. गंभीर रूप से झुलसे युवक को देख लोगों ने इसकी सूचना पुलिस और परिजनों को दी. 

मौके पर पहुंची पुलिस और परिजनों ने खलील को इलाज के लिए जिला अस्पताल में भर्ती कराया. प्राथमिक उपचार के बाद डॉक्टरों ने उसे वाराणसी रेफर कर दिया. एसपी संतोष कुमार सिंह ने अस्पताल जाकर पीड़ित का हाल जाना और घटना के बारे में उससे जानकारी ली. सैयदराजा थाना प्रभारी एसपी सिंह ने बताया कि छानबीन के दौरान जिस जगह घटना होने की बता कही गयी थी व वहाँ से काफी दूर एक मजार के पास खलील के कपड़े और चप्पल बरामद हुए. अधिकारियों ने कहा कि इससे लगता है कि मजार पर तंत्र-मंत्र के चक्कर में आग लगने से युवक झुलसा है. लेकिन गाँव के पुराने विवाद को लेकर भी घटना को अंजाम दिया गया हो. यह भी पता चला कि स्कूल में कुछ लड़कों से उसका झगड़ा हो गया था हो सकता है इस घटना में उन्हीं लड़कों का हाथ हो. हालांकि इसकी जाँच चल रही है.
हद तो तब हो गयी जब टीवी चैनल, समाचार पत्र और वेबसाइटों पर यह खबर चलाई गयी कि चन्दौली में मुस्लिम युवक से जबरन ‘जय श्रीराम बुलवाया गया’ मुस्लिम युवक द्वारा नहीं बोलने पर उसको जिंदा लगाने की कोशिश की गयी. जबकि, इस घटना में इस बात का रत्तीभर भी जिक्र नहीं है कि पीड़ित युवक से जय श्रीराम बुलवाया गया और उसके न बोलने पर आग लगा दी गयी. चन्दौली के आसपास के सभी समाचार पत्रों में भी इसका जिक्र नहीं है. यानी इस तरह की झूठी खबर फैलाने का मतलब साफ है कि मीडिया हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर देश में दंगा फैलाने का काम कर रहा है. अब ऐसे मीडिया को दलाल, भड़वा और ब्राह्मणवादी सरकरों की चाटुकारिता करने वाला आदि जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जाय तो क्या कहा जाय?

दूसरी बात अगर भारतीय मीडिया को, पाकिस्तान की छोटी से भी छोटी खबर मिल जाय तो उसमें मसाला लगाकर उसे ऐसा पेश करेंगे जैसे वहाँ जाकर उस खबर की खुद रिर्पोटिंग की हो वहीं जब पाकिस्तानी या अन्य देशों की मीडिया मोदी सरकार या सरकार के अन्य नेताओं पर आरोप लगाते हैं, तो भले ही वह आरोप सच क्यों न हो मगर, यही भारतीय मीडिया उसे मानने के लिए राजी नहीं होता है. बल्कि उस सच्ची खबर को सीधे खारिज करते हुए विदेशी मीडिया पर हमला शुरू कर देते हैं. हाल ही में भारतीय मीडिया ने पाकिस्तान के बारे में एक खबर छापते हुए लिखा था कि पाकिस्तान में पचास फीसदी परिवार ऐसे हैं जिन्हें दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही है और चालीस फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. एक कहावत है कि ‘‘दूसरों के गिरेवान पर हाथ डालने से पहले अपने गिरेवान में झांक लेना चाहिए’’ यही हाल भारतीय मीडिया का है. भारत में बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी, हत्या, बलात्कार, दंगा-फसाद, मॉब लिंचिंग, नक्सलवाद, आतंकवाद और भ्रष्टाचार की बाढ़ आ गयी है. यही नहीं भारत में ईवीएम के माध्यम से जनता के वोटों की चोरी हो रही है. इतनी बड़ी खबर भारतीय मीडिया से गायब है. और भारतीय मीडिया इस सच्चाई को बताने के बजाय दूसरे देशों की बातों को  बता रहा है. भारतीय मीडिया का यह रवैया ही बता रहा है कि भारतीय मीडिया मौजूदा सरकार की दलाली करने में कोई परहेज नहीं कर रहा है.
इसकी एक और बानगी देखी जा सकती है. जहाँ एक तरफ लाखों लोगों के लिए बाढ़ त्रासदी बनकर आई है. इस बाढ़ में लाखों लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है तो वहीं दूसरी तरफ मीडिया के दलाल पत्रकारों ने ‘बाढ़ क्षेत्र’ को एक पिकनिक स्पॉट बना दिया है. पानी की जिस धारदार बहाव से असम, बिहार और मुंबई के कई हिस्सों में लोग मौत के मुँह में समाते जा रहे हैं और उसी को पूल समझकर ये पत्रकार तैरते हुई रिकॉर्डिंग कर रहे हैं. यह मामला यही नहीं रूका, ऐसा करने के लिए भी खुद कष्ट नहीं उठा रहे हैं. बल्कि, पहले से ही असुविधा में जी रहे ग्रामीणों से अपना बोझा उठवा रहे हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो ग्रामीणों की इस बदहाली का मजाक उड़ा रहे हैं.

इस बात का नजारा दलाल मीडिया के दलाल एंकरों की सोशिल मीडिया पर वायरल इन तस्वीरों में आसानी से देखी जा सकती है. हालांकि, इनकी घिनौती हरकत से सोशल मीडिया पर जमकर आलोचना हो रही है. जरा गौर से देखिए वायरल इन तस्वीरों को कि कैसे बाढ़ त्रासदी में भी मजे ले रहे हैं.  वायरल तस्वीर में साफ दिख रहा है कि कैसे ‘इंडिया टुडे’ समूह की एंकर चित्रा त्रिपाठी अपने माईक के साथ केले के थम पर बैठकर रिपोर्टिंग कर रही हैं और तीन चार लोग इस थम का बोझा उठाए हुए हैं ताकि एंकर पानी में न चली जाएं. हद तब और ज्यादा हो गयी जब हाथ को हवा में उठाकर ऐसे बॉय-बॉय का संकेत दे रहे हैं जैसे अब वो इस दुनिया से जा रहे हैं. चले भी जाते तो अच्छा ही होता कम से कम बाढ़ त्रासदी से जूझ रहे बाढ़ पीडितों का मजाक तो नहीं उड़ाया जाता! 

मजेदार बात यह है कि बाढ़ की विभीषिका दिखाने के लिए तैरने और उतराने की जरूरत ही क्या है? लेकिन, नहीं लोगों की बदहाली का मज़ाक उड़ाते इन बेशर्म पत्रकारों को इसकी कोई फिक्र नहीं है. जिन ग्रामीणों की हर संभव मदद की जानी चाहिए थी उनको ही अपने इस ‘विशेष शूटिंग’ में लगा दिया गया है. दल्ला मीडिया की इन हरकतों से नाराज़ तमाम लोग सोशल मीडिया पर आलोचनात्मक प्रतिक्रिया दे रहे हैं. इस वायरल तस्वीर को फेसबुक पर शेयर करते हुए एक ने लिखा कि ‘कुछ दिन पहले पत्रकारिता आई.सी.यू में थी, अब केले के थम पर आ गई है. बेशर्म पत्रकार चित्रा त्रिपाठी की हरकत यही नहीं रूकी. चित्रा की ही एक अन्य तस्वीर भी है जिसका जिक्र मैने ऊपर किया है. जिसमें वह एक नाव पर सैर करती नजर आ रही है. इन तस्वीरों को देखकर क्या लगता है कि इन बेशर्मों को बाढ़ त्रासदी से जूझ रहे पीड़ितों की रत्तीभर भी चिंता है? मेरे हिसाब से इन बेशर्मों के लिए ‘बाढ़’ त्रासदी नही, महज मनोरंजन मात्र है और पीड़ित एक मजाक बन गये हैं.

अब सवाल यह है कि इसका कारण क्या है? इसका यही कारण है कि भारत की मीडिया पर ब्राह्मण और बनियों का पूर्ण रूप से कब्जा है. 234-235 सालों में देश में तकरीबन 3840 टीवी चैनल और 5170 से ज्यादा समाचार पत्र हैं. लेकिन, इन सभी समाचार पत्रों, टीवी चैनलों के मालिक बनिया हैं और संपादक ब्राह्मण हैं. टाईम्स ऑफ इंडिया का मालिक जैन बनिया, दैनिक जागरण का मालिक गुप्ता बनिया, दैनिक भाष्कर का अग्रवाल बनिया, गुजरात समाचार का शाह बनिया, लोकमत का दरिणा बनिया, राजस्थान पत्रिका का कोठारी बनिया, नव भारत का जैन बनिया और अमर उजाला का मालिक महेश्वरी बनिया है. अगर टीवी चैनलों की बात करें तो लोकसभा टीवी के सीईओ राजिव मिश्रा, राज्य सभा टीवी के सीईओ राजेश बादल, डीडी दूरदर्शन के त्रिपुरारी शर्मा, प्रसार भारती के चेयरमैन एस सूर्य प्रकाश, पीटीआई के चेयरमैन एमएम गुप्ता, टाईम्स ग्रुप के सीईओ रविन्द्र धारीवाल, एक्सप्रेस ग्रुप के विवेक गोयंका और हिन्दू के सीईओ राजीव लोचन हैं. इस तरह से मीडिया पर पूरी तरह से ब्राह्मणों और बनियों का कब्जा हो गया है. जबकि एससी, एसटी, ओबीसी और मायनॉरिटी की संख्या जीरो है. यही सबसे बड़ा कारण है कि देश की चाटुकार मीडिया ब्राह्मणों और सरकारों की चाटुकारिता कर रहा है.


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