गुरुवार, 1 अगस्त 2019

बहुजनों के उद्धारक छत्रपति शाहूजी महाराज




♦ आरक्षण के पिता, बहुजनों के उद्धारक छत्रपति शाहूजी महाराज के 145वें जन्म दिवस पर दैनिक मूलनिवासी नायक परिवार की ओर से हार्दिक शुभेच्छा! 

सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूत छत्रपति शाहूजी महाराज का जन्म 26 जून 1874 को कोल्हापुर में हुआ था. उनके पिता का नाम श्रीमंत जयसिंह राव आबासाहब घाटगे तथा उनकी माता का नाम राधाबाई साहिबा था. शाहूजी महाराज की शिक्षा राजकोट में स्थापित राजकुमार कॉलेज में हुई थी.राजकोट की शिक्षा समाप्त करके शाहूजी को आगे की शिक्षा पाने के लिए 1890 से 1894 तक धारबाड़ में रखा गया. शाहूजी महाराज ने अंग्रेजी, इतिहास और राज्य कारोबार चलाने की शिक्षा ग्रहण की. अप्रैल 1897 में शाहूजी का विवाह खानविलकर की कन्या श्रीमंत लक्ष्मीबाई से संपन्न हुआ. विवाह के समय लक्ष्मीबाई की उम्र महज 11 वर्ष की ही थी. जब छत्रपति शाहूजी महाराज की आयु 20 वर्ष थी तब इन्होंने करवीर (कोल्हापुर) संस्थान के अधिकार ग्रहण करके सत्ता की बागड़ोर अपने हाथ में ले ली तथा शासन करने लगे. इसके बाद यशवंत राव शाहूजी महाराज कहलाने लगे.

1894 में शाहूजी महाराज का जब राज्यभिषेक हुआ, उस समय चारों ओर ब्राह्मणों का वर्चस्व था. उनके राज्य में एक सौ मंत्री ब्राह्मण थे. शाहूजी महाराज ने अपने राज्य में ब्राह्मणों का प्रभुत्व कम कर दिया और मूलनिवासी बहुजनों को प्रतिनिधित्व दिया. छत्रपति शाहूजी महाराज जिस समय गद्दी पर बैठे, उस समय समाजिक दशा कई दृष्टियों से सोचनीय थी. जाति-पाँत, ऊँच-नीच, छुआ-छूत, मानवाधिकारों की असमानता, निर्धन कृषकों और मजदूरों की दीन-हीन स्थिति, पाखंडवाद भरी धर्म पद्धति, वर्ण-व्यवस्था का घोर तांडव असहाय जनता को उबरने नहीं दे रही थी. वर्ण-व्यवस्था में चौथा वर्ण यानी शूद्र जिसका कोई अपना अस्तित्व नहीं था, उसकी दशा दायनीय थी. उस समय वर्ण-व्यवस्था और ऊँच-नीच के भेदभाव को मिटाने के लिए ‘‘सत्य शोधक समाज“ लगातार कार्य कर रहा था, जिसकी स्थापना महात्मा राष्ट्रपिता ज्योतिबाफुले ने की थी. शाहूजी के जीवन पर राष्ट्रपिता जोतिराव फुले का काफी प्रम्भाव था. फुले के देहांत के बाद महाराष्ट्र में चले सत्यशोधक समाज आन्दोलन का कारवाँ चलाने वाला कोई नेता नहीं था. 1910 से 1911 तक शाहूजी महाराज ने इस सत्यशोधक समाज आन्दोलन का अध्ययन किया. 1911 में राजा शाहूजी महाराज ने अपने संस्थान में सत्य शोधक समाज की स्थापना की. कोल्हापुर संस्थान में शाहू महाराज ने जगह-जगह गाँव-गाँव में सत्यशोधक समाज की शाखाएँ स्थापित की. 

शाहूजी महाराज इस बात से चिंतित रहते थे कि महाराष्ट्र में उस समय ब्राह्मणों की संख्या 5 प्रतिशत थी, लेकिन फिर भी वे ब्रिटिश शासन में हर स्थान पर नियुक्त थे. राजनीति, सरकारी नौकरियाँ, धर्मदण्ड सभी कुछ उनके हाथ में था. ऐसी विषम स्थिति में अबोध और गरीब जनता का जीवन नारकीय हो गया था. ब्राह्मण शिक्षा पर अपना एकाधिकार बनाये हुए थे. वे गैर-ब्राह्मणों को शिक्षा पाने पर प्रतिबन्ध लगाये हुए थे. वेदों का अध्ययन ब्राह्मणों के अतिरिक्त कोई जाति नहीं कर सकती थी. छत्रपति शाहूजी महाराज जी की धारणा थी कि शासन में सभी वर्गों व जातियों के लोगों की साझेदारी शासन को संतुलित और चुस्त बनाएगी. किसी एक जाति के लोगों का शासन प्रजा की वास्तविक भावना और आकांक्षा का प्रतिनिधित्व नहीं करता और अंततः उन्होंने ऐसा ही किया. सर्वप्रथम उन्होंने अपने दरबार से ब्राह्मणों के वर्चस्व को कम किया और सभी वर्गों की भागीदारी निश्चित की. वे मूलनिवासियों को नौकरियों पर ही नहीं रखा, बल्कि उनकों साथ लेकर चलने भी लगे. इससे ब्राह्मणों में रोष उत्पन्न हो गया और वो लोगों में भ्रम फैलाने लगे कि छत्रपति शाहूजी महाराज अनुभवहीन है तथा वे अक्षम लोगों को सरकारी पदों पर नियुक्त कर रहे हैं. छत्रपति शाहूजी महाराज अपनी विचारधारा पर अटल थे और उनपर ब्राह्मणों के इस रवैये का कोई फर्क नहीं पड़ा.

उन्होंने प्रशासन में ब्राह्मणों के इस एकाधिकार को समाप्त करने के लिए तथा बहुजन समाज की भागीदारी के लिए आरक्षण कानून बनाया. इस क्रान्तिकारी कानून के अंतर्गत बहुजन समाज के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था थी. यह देश में आरक्षण की पहली व्यवस्था थी. क्योंकि उस समय बहुजन समाज के लिए शिक्षा के दरवाजे बंद थे. उन्हें तिरस्कार की जिंदगी जीने के लिए मजबूर किया जाता था.  छत्रपति शाहूजी महाराज जी ने अनुभव किया कि अछूत वर्ग तथा पिछड़े वर्ग के लोग प्रायः अशिक्षित और निर्धन हैं. वे आर्थिक दरिद्रता और सामाजिक अपमान को एक लम्बी परम्परा से भोग रहे हैं. छत्रपति शाहूजी जी महाराज जी की इच्छा थी कि शिक्षा का प्रसार छोटी जातियों एवं वर्गों के बीच किया जाए, जिससे उनकों अपने अधिकारों का सही ज्ञान हो सके. इसके लिए उन्होंने स्वयं की देख-रेख में 18 अप्रैल 1901 में मराठा स्टूडेंट्स इंस्टीट्यूट एवं विक्टोरिया मराठा बोर्डिंग संस्थान की स्थापना की और 47 हजार रूपये खर्च करके इमारत बनवाई. 1904 में जैन हॉस्टल, 1906 में मॉमेडन हॉस्टल और 1908 में अस्पृश्य मिल क्लार्क हॉस्टल जैसी संस्था का निर्माण किया और अपने राज्य में स्कूली छात्रों को निःशुल्क शिक्षा, पुस्तकें एवम् भोजन की व्यवस्था करके शाहूजी महाराज ने शिक्षा फैलाने की दिशा में महत्वपूर्ण काम किया जो मील का पत्थर साबित हुआ. 

अज्ञानी और पिछड़े बहुजन समाज को ज्ञानी, संपन्न एवं उन्नत बनाने हेतु छत्रपति शाहूजी महाराज ने अपने जीवन का एक-एक क्षण समर्पित कर दिया. अंततः 06 मई 1922 को केवल 48 वर्ष की आयु में बहुजन समाज के हितकारी राजा छत्रपति शाहूजी महाराज का परिनिर्वाण हो गया. आज छत्रपति शाहूजी महाराज के जीवन संघर्ष से मूलनिवासी बहुजन समाज को प्रेरणा लेकर निश्चित रूप से समाज में काम करना चाहिए और उनके क्रांतिकारी विचारों को जन-जनतक पहुँचाने का काम करना चाहिए. आरक्षण के पितामह, बहुजनों के उद्धारक छत्रपति शाहूजी महाराज के 145वें जन्म दिवस पर दैनिक मूलनिवासी नायक परिवार की ओर से हार्दिक शुभेच्छा!
राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)

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