नीट का मतलब है ‘‘राष्ट्रीय पात्रता व प्रवेश परीक्षा’’ कहा जाता है. यह एक्जाम ग्रेज्युएट और पोस्टग्रेजुएट के लिए देशभर में लागू है. बहुजन विद्यार्थी विरोधी नीट और नेक्स्ट एक्जाम एक राष्ट्रीय षडयंत्र है और वो षड्यंत्र सरकार के माध्यम से मई 2013 में कांग्रेस और बीजेपी की ब्राम्हणवादी पार्टियों के जरिए अमल करके थोपने का प्लानपूर्वक षड़यंत्र बनाया गया. बहुजन विद्यार्थियों को डॉक्टर बनने से वंचित रखने का यह एक राष्ट्रीय षड्यंत्र का हिस्सा है. इस बात की जानकारी देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को नहीं है. इसलिए, इस षडयंत्र को मूलनिवासी बहुजन समाज के सामने लाने की जरूरत है. यदि ‘‘नीट एग्जाम’’ का षड्यंत्र समझना है तो सबसे पहले ‘‘नीट एग्जाम’’ के इतिहास की जानकारी होनी चाहिए. ‘‘नीट एग्जाम’’ क्या है?
दुनिया में सबसे पहले ‘‘नीट एक्जाम’’ की शुरूआत अमेरिका में हुई थी. ‘‘नीट एग्जाम’’ की कल्पना वर्ल्ड बैंक के एक सदस्य अर्थशात्री इम्यानुअल निमिनिअस ने एक संशोधनात्मक थिसिस निबंध ‘‘पब्लिक सब्सिडाइजेशन ऑफ एज्यूकेशन एंड हेल्थ इन डेवलेपिंग कंट्री’’ नाम से लिखा और इसे एक योजना के तहत अमेरिका सहित कुछ अन्य देश की शिक्षा मंत्रालय ने वर्ल्ड बैंक के साथ भागीदारी करके कॉलेजों में लागू कर दिया. कुछ दिन बाद इसमें प्राइवेट लोगों की घूसखोरी शुरू हो गयी. जब प्राइवेट लोगों की घूसखोरी ज्यादा बढ़ गयी तो वर्ल्ड बैंक ने तत्काल प्रभाव से इसे बंद कर दिया. वर्ल्ड बैंक ने बताया इसमें बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हो सकती है. प्राइवेट कंपनी या व्यक्ति द्वारा इसका गतल इस्तमाल किया जा सकता है, इसके कई सबूत भी मिले हैं. इसलिए, इस धांधली को देखते हुए इसे बंद करने का निर्णय लिया गया. परन्तु, हैरान की बात तो तब हुई जब भारत में भी इसे शुरू करने की प्लानिंग बनाई गयी.
भारत में ‘‘नीट’’ की शुरूआत मई, 2013 से शुरू हुई. भारत का प्रतिनिधि केतन देसाई नामक ब्राम्हण ने किया और इसे अमल करने की जिम्मेदारी वर्तमान की केन्द्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने लिया और निर्मला सीतारमण और केतन देसाई को सपोर्ट देने का काम नरेन्द्र मोदी ने किया. केतन देसाई के बारे में देखा जाय तो वह एक नंबर का बदमाश आदमी है. इसका सबूत यह है कि क्राइम ब्राँच नई दिल्ली को जब ‘‘नीट एग्जाम’’ में गड़बड़ी का पता चला तो क्राइम ब्राँच ने केतन देसाई के घर छापा डाला. छापे में उसके घर से 18 करोड़ का सोना और कैश बरामद हुई. सवाल यह है कि इतनी ज्यादा राशि कहाँ से आयी? इसका सीधा और सपाट जवाब है ‘‘नीट’’ की प्राइवेस्ट कंपनी या कॉलेज के लोगों से उसको दलाली मिली होगी.
भारत में जब 2013 में एग्जाम ली गई तो एग्जाम के रिजल्ट के बाद साउथ इंडिया, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्य सरकारों ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दाखिल की. सवाल यह है कि आखिर ‘‘नीट एग्जाम’’ का इतने राज्य सरकारों ने विरोध क्यों किया? यह इसलिए की ‘‘नीट एग्जाम’’ में कई त्रुटियाँ हैं. ‘‘नीट एग्जाम’’ के लिए एक प्रोमेट्रिक सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जाता है. प्रोमेट्रिक सॉफ्टवेयर प्रणाली को अमेरिका में लागू करके एग्जाम ली जाती थी, उसके आधार पर भारत में भी एग्जाम को लागू किया गया. ‘‘नीट एग्जाम’’ के पहले 2009 से 2014 तक देशभर में कट आईआईएम के माध्यम से ली जाती थी. नीट एग्जाम के लिए सरकार ने आईआईएम को 240 करोड़ का टेंडर दिया था. जबकि, टीसीएस को सिर्फ 29 करोड़ में टेंडर दिया गया. इसका मतलब है कि पहले 240 करोड़ दिया और अब सिर्फ 29 करोड़ बाकी 211 करोड़ कहाँ गया? यानी 211 करोड़ का घोटाला किया गया. इसी तरह से सिस्टम को हैक किया जा सकता है. इसके अलावा सर्वर को हैक और मार्क्स बदले जा सकते हैं. इस तरह से 2014 के अंत मे आईआईएम को इस सिस्टम में गड़बड़ी और फ्रॉड होने की जानकारी मिली. इन बातों की वजह से आईआईएम ने प्रोमेट्रिक सिस्टम को 5 साल के लिए बंद करने का एलान किया.
इधर नेशनल बोर्ड ऑफ एक्जामिनेशन (एनबीई) ने फिर वही सिस्टम प्रोमेट्रिक से ही एग्जाम करने का आग्रह किया. एनबीएस का संचालन डॉ.बिपिन बत्रा नामक ब्राम्हण ने किया और बिना टेंडर निकाले ही पास कर दिया. सब कॉन्ट्रैक्ट सीएमएस आईटी सर्विसेस को दिया गया. इस कंपनी में आईटी हैकर के जरिए एग्जाम में गड़बड़ियाँ शुरू हुई. इसके विरोध में देशभर में अनेक राज्य सुप्रीम कोर्ट गए और 170 पिटीशन 2013 के एग्जाम के विरोध में डाली गई. पिटीशन क्यो डाली गई? इसमें बताया गया यह अनलीगल है, असंवैधानिक है, पेपर लीक होते हैं, एग्जाम को हैक किया जाता है. यह नीट एग्जाम मेडिकल साइंस, इंजीनियरिंग सहित कई ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेजों में लागू किया गया था.
अब सरकार ने ‘नीट एग्जाम’ के साथ ही नेशनल एग्जिट टेस्ट भी लागू कर दिया गया है. मेडिकल शिक्षा नियामक मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया का स्थान लेने वाले नए नेशनल मेडिकल कमीशन विधेयक-2019 को केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को अपनी मंजूरी दे दी है. नए कानून में डॉक्टरों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के नाम पर एग्जिट टेस्ट का प्रावधान किया जा रहा है.
एमबीबीएस के कुल तीन या चार साल का कोर्स पूरा करने के बाद अंतिम वर्ष में एक कॉमन परीक्षा नेशनल एक्जिट टेस्ट (नेक्स्ट) का प्रावधान किया गया है. यह परीक्षा पास करने के बाद ही डॉक्टरों को मेडिकल प्रैक्टिस करने के लिए लाइसेंस मिलेगा. नीट और नेक्स्ट मूलनिवासी बहुजन समाज के छात्रों के लिए कितना ज्यादा खतरनाक है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि नीट टेस्ट के बाद मुश्किल से मेडिकल साइंस में प्रवेश हो पाता है. इसके बाद छात्र तीन-चार साल का कोर्स पूरा कर लिया और उसे एमबीबीएस की डिग्री भी मिल गयी हो, इसके बाद भी वह डॉक्टर नहीं बन सकता है. अब उसे डॉक्टर बनने के लिए नेशनल एग्जिट टेस्ट (नेक्स्ट टेस्ट) की परीक्षा पास करनी होगी. अगर, वह नेक्स्ट टेस्ट पास करता है तो वह डॉक्टर बन सकता है. अगर, वह नेक्स्ट टेस्ट परीक्षा पास नहीं कर पता है तो वह एमबीबीएस की डिग्री लेने के बाद भी डॉक्टर नहीं बन सकता है. इसका मतलब साफ है कि देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज में निर्माण होने वाले डॉक्टरों को रोकने के लिए ही मनुवादी सरकारें नीट और नेशनल एग्जिट परीक्षा लागू किये हैं.
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