गुरुवार, 1 अगस्त 2019

बामसेफ भवन पूना में आरक्षण अधिकार दिवस पर विशेष प्रबोधन कार्यक्रम का आयोजन


आरक्षण का विरोध करने वाले आरक्षण नहीं दे सकतेः डीआर ओहोल

जिन लोगों ने आरक्षण का विरोध किया और कर रहे हैं वहीं लोग सत्ता में भी हैं. क्या वे लोग आरक्षण देंगे? आरक्षण का विरोध करने वाले, आरक्षण नहीं दे सकते हैं. अगर इतिहास पढ़ो तो पता चलेगा कि शासक वर्ग यूरेशियन ब्राह्मण 1902 से लेकर 2019 तक लगातार आरक्षण का विरोध करते आ रहे है. 1902 में  पटवरधर ने आरक्षण का विरोध किया, 1918 में बाल गंगाधर तिलक ने विरोध किया, 1928 में गाँधी ने विरोध किया, 1932 में फिर गाँधी ने विरोध किया, जिसमें लाठी लगने से लाला लाजपत राय की मौत हो गयी. 

1946 में गाँधी, नेहरू और सरदार पटेल ने विरोध किया, 1950 को गाँधी और नेहरू ने विरोध किया, 1953 में कांग्रेस और नेहरू ने काला कालेलकर का विरोध किया, 1979 में मोराजी देसाई ने मंडल आयोग का विरोध किया, 1981 में इंदिरा गाँधी ने विरोध किया और 1984 में उसकी हत्या हो गयी. 1984-89 में राजीव गाँधी ने विरोध किया और 1991 में उसकी भी हत्या हो गयी. 1996 लेकर 1999 तक अटल बिहारी बाजपेयी ने विरोध किया, 2004 से 2014 तक फिर कांग्रेस से सोनिया गाँधी ने विरोध किया और 2014 से अब तक नरेन्द्र मोदी आरक्षण का विरोध कर रहा है. 

यह बात डी.आर.ओहोल (प्रभारी, केन्द्रीय सचिवालय बामसेफ, पूना) ने बामसेफ भवन में 26 जुलाई 2019 को 117वें आरक्षण अधिकार दिवस को संबोधित करते हुए कही. बालासाहब मिसाल पाटिल (प्रदेश अध्यक्ष, बीएमपी) इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रहे. इस कार्यक्रम का आयोजन, दिलीप बाइत (संपादक, दैनिक मूलनिवासी मराठी) ने किया, वहीं संचालन स्वप्नील नरांजे (डीटीपी, दै.मू.नायक मराठी) और राजकुमार (सहा.संपादक, दै.मू.नायक हिन्दी) ने धन्यवाद ज्ञापन दिया एवं सुनील गवली ने सोशल मीडिया पर सीधा प्रसारण किया. इसके साथ ही गौरव कसारे, परेश हेब्रम ने अपने-अपने विचार रखे. तथा बामसेफ भवन के सभी पूर्णकालीन कार्यकर्ता मौजूद रहे.
डीआर ओहोल ने कहा प्रतिनिधित्व (आरक्षण) की बुनियादी बातें हमारे लोगों को मालूम ही नहीं है.

उन्होंने कहा छत्रपति शाहूजी महाराज भारत में आरक्षण के जनक हैं. 1882 में हंटर कमीशन भारत में आया. राष्ट्रपिता जोतिराव फुले ने सबसे पहले हंटर कमीशन के सामने मूलनिवासी बहुजनों को आरक्षण की मांग की. इससे प्रेरणा लेकर छत्रपति शाहूजी महाराज ने 1902 को लोल्हापुर की सियासत में मूलनिवासी बहुजनों को 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किया. डीआर ओहोल ने कहा छत्रपति शाहूजी महाराज कोई भी बात बगैर सर्वे और बगैर उदाहरण के नहीं करते थे. उन्होंने अपने सियासत में सर्वे किया तो उनको पता चला कि उनके सियासत में 71 पोस्ट हैं, जिनमें मात्र 09 मूलनिवासी और 62 ब्राह्मण हैं. इसी तरह से निजी कारोबार में 52 पोस्ट में 07 मूलनिवासी और 46 ब्राह्मण हैं. उनको लगा राजा हम हैं निर्णय लेने का काम ब्राह्मण कर रहे हैं. ऐसा नहीं होना. इसलिए उन्होंने मूलनिवासी बहुजनों को 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किया. 

आगे उन्होंने कहा ‘‘जिनकी शासन में भागीदारी होती है वह शासनकरती जमात होता है’’ अगर, लोकतंत्र से प्रतिनिधित्व निकाल दो तो लोकतंत्र की मृत्यू हो जाती है. इसलिए डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर ने प्लान बनाकर आरक्षण को राष्ट्रव्यापी बनाना चाहते थे. आरक्षण के आधार पर बाबासाहब एससी, एसटी, ओबीसी, एनटी, डीएनटी, बीजेएनटी और इनसे धर्म परिवर्तित अल्पसंख्यकों का ध्रुविकरण करना चाहते थे. इसलिए आरक्षण को लेकर ब्राह्मणों ने भ्रम फैलाया और प्रचार किया कि आरक्षण भीख, बैशाखी, लाचारी, मेहरबानी आदि है.  उन्होंने कहा आज भारत में आरक्षण पूरी तरह से खत्म हो चुका है. क्योंकि शासक वर्ग ने आरक्षण को खत्म करने के लिए एलपीजी लागू किया और एलपीजी के माध्यम से आरक्षण को खत्म कर दिया. क्योंकि निजीकरण में आरक्षण नहीं है. इसलिए निजीकारण के कारण देश में अब सरकारी नौकरियाँ खत्म हो गयी हैं सिर्फ जॉब रह गया है. 12 घंटे काम कराते हैं और 8 घंटे का वेतन देते हैं. अंत में डीआर ओहोल ने कहा आरक्षण सिर्फ नौकरी का मामला नहीं है, बल्कि प्रतिनिधित्व का मामला है. आरक्षण साधारण बात नहीं है, आरक्षण ब्राह्मणों के लिए ‘‘डेथ सर्टिफिकेट’’ है. इसलिए शासक जातियाँ मूलनिवासी बहुजनों को आरक्षण नहीं देना चाहती हैं.

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