बुधवार, 14 अगस्त 2019

हम आज भी गुलाम हैं.......



राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)

मेरे मन में एक सवाल काफी दिनों से कौंध रहा था कि अगर 15 अगस्त 1947 को सारे भारतीयों को आजादी मिली है तो भारत के आजादी के 71 साल बाद भी भारत में इतनी बड़ी विषमता क्यों? असमानता, गैरबराबरी, रईस और गरीब क्यों? एक के पास घी-रोटी तो दूसरा नंगा-भूखा क्यों? एक धनवान तो दूसरा भिखारी क्यों? आज भी गाँव और देहातों के लोग ‘अंग्रेजों का ही राज ठीक था’ ऐसा क्यों कहते हैं? मुगल, अंग्रेज, डच, फ्रेंच, आदि के राज में तथा कुलबाड़ी भूषण बहुजन प्रतिपालक छत्रपति शिवाजी महाराज के राज में एक भी किसानों ने खुदखुशी की हो, ऐसा सबूत नहीं है. इसके बाद भी पूरे भारत को गेहूँ देने वाले पंजाब के किसानों ने भी खुदखुशी क्यों किया? केवल पंजाब ही नहीं पूरे देश के किसान आत्महत्या कर रहे हैं क्यों? अर्मत्य सेन कहते हैं कि जब पूरी दुनिया में उत्पादन 100 रूपये होता था तब उस वक्त भारत का अकेले उत्पादन 31 रूपये था. आज वही भारत कर्जों की तूफानी धारा में गोते खा रहा है क्यों? क्यों राजा बली के जमाने में भारत से सोने का धुँआ निकलता था और आज उसी भारत से बमबारी के धूएं निकल रहे हैं? सम्राट राजा अशोक के काल में जो भारत सोने की चिड़िया कहा जाता था, आज वही भारत भिखारी बन गया है क्यों?



बली राजा के काल में चोरी, डकैती, खून, हत्या और अन्याय- अत्याचार नहीं होते थे, इसलिए पुलिस नहीं थी. आज उसी भारत में पुलिस फोर्स और न्यायालय होकर भी चोरी, डकैती, खून-खराबा झगड़ा, बलात्कार, अन्याय-अत्याचार तथा भ्रष्टाचार होते हैं क्यों? 1947 के पहले, भारत का एक भी व्यक्ति दुनिया के अमीरों की सूची में नहीं था. मगर, 1947 के बाद दुनिया के अमीरों की सूची में पहले दस में से तीसरा भारत में से होता है, ऐसा क्यों? मूलनिवासी किसान अपनी पत्नी के लिए कपड़ा लेना चाहे तो उसे किसी से पैसे उधार लेना होता है. मगर, मुकेश अंबानी अपने बीबी के जन्मदिन पर 3500 करोड़ रूपये का हेलिकॉप्टर भेंट देता है कैसे? जिस मुकेश अंबानी का बाप धीरूभाई अंबानी खाड़ी देशों में पेट्रोल पम्प पर पेट्रोल बेचता था, वो दुनिया के अमीरों की लिस्ट में पहले दस अमीरों में से एक है और भारत का दिन-रात खून-पसीना बहाकर मेहनत करने वाला किसान, गरीब का गरीब ही क्यों है? आज मूलनिवासी बहुजन समाज के 83 करोड़ लोगों की आमदनी प्र्रति एक 6 से 20 रूपये हैं क्यों? 22 करोड़ से भी ज्यादा युवक-युवतियाँ बेरोजगारी की आग में जल हैं क्यों? 35 लाख लोग से ज्यादा भीख मांग कर जीविका चला रहे है, 15-20  करोड़ लोग आज भी झोपड़पट्टियां में अपना जीवन व्यतीत कर रहे है. करीब 35-40 करोड़ लोगां को शुद्ध पीने का पानी नसीब नहीं हो रहा है. 10 करोड़ बच्चे बाल मजदूरी कर रहे हैं, 25 लाख बच्चे रेलवे प्लेटफार्म पर अपनी जिन्दगी काट रहे है. देश में हर 15 मिनट पर एक महिला के साथ बलात्कार, हर 22 मिनट पर एक महिला के साथ सामुहिक बलात्कार और हर 35 मिनट पर एक बच्ची को हवस का शिकार बनाया जा रहा है. जिसमें सबसे ज्यादा मूलनिवासी महिला हैं. 22.5 करोड़ कुपोषित हैं. शासक वर्ग ने देश की आजादी के 71 वर्षो में हजारां साम्प्रदायिक दंगे-फसाद को अंजाम दिया. देश में हर दिन हजारों किसान आत्महत्या कर रहे हैं. एससी को छुआछूत, भेदभाव, जातिवाद के कारण उनको मौत के घाट उतारा जा रहा है. आदिवासियों को जल, जंगल और जमीन से खदेड़ा जा रहा है और नक्सलवाद के नाम उनका नरसंहार किया जा रहा है. मुसलमानों को कभी आतंवाद के नाम पर तो कभी गोमांस के नाम पर, अब मॉब लिंचिंग की आड़ में बेरहमी से उनकी हत्याएं की जा रही है. सैनिकों को जानबूझकर मौत के मुँह में धकेला जा रहा है. फिर सवाल खड़ा होता है कि हम आजाद कैसे है? 

खुदखुशी करने वालों में व्यापारी, महंत, नेता, कर्मचारी नहीं होत हैं केवल किसान-मजदूर और मेहनत करने वाले ही होते हैं क्यों? ऐसे अनके प्रश्नों से सर चकरा रहा है. बामसेफ के माध्यम से हम दूसरी आजादी का आंदोलन निर्माण करना चाहते हैं. जबकि, मूलनिवासी बहुजन समाज को ऐसा लगता है कि ‘हम 15 अगस्त 1947 को ही आजाद हो चुके हैं और दूसरे आजादी के आंदोलन की आवश्यकता क्यों? 15 अगस्त 1947 के आजादी पर अपने मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों का पक्का विश्वास है. यह विश्वास खत्म करने के लिए आज पूरे देश भर में बामसेफ भारत मुक्ति मोर्चा, जन-जागृति का अभियान चला रहा है. ताकि, इस देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को यह असलियत पता चल सके कि 15 अगस्त 1947 के आजादी का आंदोलन हमारे आजादी का आंदोलन नहीं था, बल्कि विदेशी यूरेशियन ब्राह्मणों के आजादी का आंदोलन था. क्योंकि भारत में कोई भी आजादी का बिल पारित नहीं हुआ है. बल्कि, विदेशी अंग्रेजों ने यूरेशियन ब्राह्मणों के हाथ में ‘ट्रांसफर ऑफ पॉवर’ अर्थात सत्ता का हस्तांतरण बिल पारित किया. इसलिए ऐसा कहा जा सकता है कि 15 अगस्त 1947 का दिन आजादी का दिन नहीं है, ट्रांसफर ऑफ पॉवर का दिन है. जिसे आज तक इस देश के मूलनिवासियों से छुपाया जाता रहा है. जब तक 15 अगस्त 1947 के आजादी पर से बहुजन समाज का विश्वास खत्म नहीं होता, तब तक वह दूसरे आजादी के आंदोलन में शामिल नहीं होगा. और जब तक वह शामिल नहीं होगा, तब तक दूसरे आजादी का आंदोलन कामयाब नहीं हो सकता है. इसलिए आधुनिक भारत में मूलनिवासी बहुजन समाज को यह समझना अतिआवश्यक है कि 1947 के आजादी का आंदोलन हमारे आजादी का आंदोलन नहीं था. बल्कि, ब्राह्मणों के आजादी का आंदोलन था, जो आज की तारीख में बहुजनों पर राज कर रहे हैं. 1947 के आजादी का आंदोलन सभी लोगों के आजादी का आंदोलन था, ऐसा मैं नहीं कह रहा हूँ. क्योंकि इसके बहुत सारे साक्ष्य हैं, जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि आजादी का आंदोलन सभी लोगों के आजादी का आंदोलन नहीं था. मूलनिवासी बहुजन समाज के सामने आज बहुत-सी समस्याएं हैं, ये सारी समस्याएं शासक वर्ग यूरेशियन ब्राह्मणों द्वारा योजनाबद्ध तरीकों से निर्माण की गई है. इन हजारों समस्याआें में वर्ण-व्यवस्था, जाति व्यवस्था, अस्पृश्यता, आदिवासियों का अलगीकरण, धर्मांतरों की असुरक्षितता एवं महिला दासता सहित कई मुख्य समस्याएं हैं. तथा इनमें से एक महत्वपूर्ण और अधिक तीव्र समस्या गुलामी है और उसका समाधान मात्र आजादी है. इसलिए हम मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों को आजादी का आंदोलन का निर्माण करना होगा. 

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