शनिवार, 10 जून 2017

एक सैनिक की आत्मा जो कर रही 50 साल से देश की रक्षा

एक सैनिक की आत्मा जो कर रही 50 साल से देश की रक्षा
 यह सच्ची गाथा है एक वीर सैनिक की। भारत मां के इस सच्चे सपूत की जिंदगी तो देश की रक्षा के लिए समर्पित थी ही, यह सैनिक शहीद होने के बाद भी आज तक सीमा की सुरक्षा में लगा है। यह जांबाज सैनिक था जसवंत सिंह रावत। इसकी बहादुरी के चलते सेना ने जसवंत के शहीद होने के 40 साल बाद रिटायरमेंट देने की घोषणा की। इस बीच जसवंत को पदोन्नति भी दी जाती रही। देश के इतिहास में यह एक मात्र उदाहरण है। जसवंत की आत्मा भी दे रही सीमा पर पहरा : – भारतीय सेना ही नहीं आम लोगों में भी जसवंत सिंह को लेकर कई तरह की कहानियां कही जाती हैं। बताया जाता है कि जिस कमरे में जसवंत सिंह रहा करते थे, उस कमरे में आज भी उनके जूतों को पॉलिश करके रखे जाते है। उनके कपड़ों को भी धोकर और प्रेस कर रखा जाता है। लोगों का कहना है कि रात में रखे गए जूते और कपड़ों को जब सुबह देखा जाता है तो ऐसा लगता है कि उनका इस्तेमाल किया गया है। कपड़े मैले और जूते गंदे मिलते हैं। जसवंत सिंह के लिए हर रोज बिस्तर भी लगाया जाता है। यह बिस्तर भी सुबह ऐसा लगता है कि यहां कोई सोया था। थप्पड़ मारती है आत्मा : – ऐसी ही किंवदंतियों में से एक है जसवंत सिंह की आत्मा का लोगों को थप्पड़ मारना। हालांकि इस शहीद की आत्मा केवल पोस्ट पर तैनात झपकी ले रहे सैनिकों को ही थप्पड़ मारती है। शहीद की आत्मा झपकी ले रहे सैनिकों को यह भी समझाती है कि देश की सीमा की सुरक्षा उनके जिम्मे है इसलिए जागते रहो। हाथ जोड़ते हैं जसवंत बाबा को : – एक और रोचक किंवदंती भी बताई जाती है। इसके अनुसार जहां पर शहीद जसवंत सिंह का स्मारक बना हुआ है, वहां से गुजरने वाले लोग जसवंत सिंह को नमन करके ही गुजरते हैं। बताया जाता है कि नमन नहीं करने वाले यात्रियों को कुछ ना कुछ नुकसान जरूर होता है। इसलिए ड्राइवर तो ऐसा करने में जरा भी चूक नहीं करते है पहली चाय की प्याली का भोग जसवंत बाबा को : – जसवंत सिंह के स्मारक को देखने आने वालों के लिए सिख रेजीमेंट चाय, नाश्ता और भोजन की व्यवस्था करती है। जसवंत सिंह की शहादत के सम्मान में चाय की पहली प्याली, नाश्ते की प्लेट और भोजन का पहला भोग उनको लगाया जाता है। इसके बाद ही वहां उपस्थित लोग चाय, नाश्ता और भोजन करते हैं। यही नहीं जसंवत सिंह को सुबह 4.30 बजे चाय, 9 बजे नाश्ता और शाम 7 बजे भोजन परोसा जाता है। इस काम और देखरेख के लिए यहां चौबीसों घंटे 5 सैनिक डयूटी देते हैं। इस वीर सैनिक का सेना ने बनाया मंदिर:- गढ़वाल राइफल ने जसवंत सिंह की इस शौर्यपूर्ण शहादत को अमर बनाने के लिए नूरानांग पोस्ट पर युद्ध स्मारक बनाया। इसे जसवंतगढ़ नाम दिया गया। स्मारक के पास ही जसवंत सिंह का एक मंदिर भी बनवाया गया। जिस पेड़ पर लटकाकर जसवंत सिंह को फांसी दी गई वह पेड़ और फंदे के लिए काम लिया गया टेलिफोन तार आज भी वहां मौजूद है। मंदिर के कारण जसवंत सिंह को स्थानीय लोग जसवंत बाबा के नाम से पुकारते हैं। शहीद होने के 40 साल बाद हुए रिटायर : – जसवंत सिंह की बहादुरी के चलते सेना ने उनके लिए ऐसा काम किया जो आज भी एक मिसाल है। जसंवत सिंह को शहीद होने के साथ ही सेवानिवृत नहीं किया गया। जब उनकी रिटायरमेंट का समय आया तब ही उन्हें रिटायर किया गया। लगभग 40 साल बाद उन्हें रिटायर घोषित किया गया। इस बीच उन्हें समय-समय पर पदोन्नती भी दी गई। अकेले ही 300 चीनी सैनिकों को उतारा मौत के घाट : – भारत और चीन के बीच नवंबर 1962 में हुए युद्ध में चौथी गढ़वाल राइफल इंफेंटरी रेजीमेंट के जसवंत सिंह 10000 फीट की ऊंचाई पर स्थित नूरानांग पोस्ट पर तैनात थे। चीनी सेना तवांग जिले से होते हुए नूरानांग तक पहुंच गई। 17 नवंबर को चीनी और भारतीय सेना में नूरानांग में लड़ाई छिड़ गई। इस लड़ाई में लांस नायक त्रिलोकी सिंह नेगी, परमवीर चक्र विजतेा जोगिंदर सिंह और राइफलमैन गोपाल सिंह गोसाई सहित अन्य सैनिक शहीद हो गए। इससे सारी जिम्मेदारी जसंवत सिंह पर पड़ी। जसवंत सिंह ने गजब का शौर्यप्रदर्शन करते हुए लगातार 3 दिनों तक चीनी सेना से मुकाबला किया। जसवंत सिंह ने समझदारी का परिचय देते हुए अलग-अलग बंकरों से जा कर गोलीबारी की, इससे चीनी सेना को लगा कि वहां बहुत सारे जवान अभी भी जिंदा हैं और गोलीबारी कर रहे हैं। इस दौरान जसवंत ने करीब 300 चीनी सैनिकों को अकेले ही मौत के घाट उतार दिया। यह देखते हुए चीनी सेना ने इस सेक्टर को चारों ओर से घेर लिया। आखिरकार जब यह सेक्टर चीनी सैनिकों के घेरे में गया, तो मालूम चला कि यहां बहुत सारे सैनिक नहीं थे, केवल एक ही सैनिक चीनी सेना को बेवकूफ बना रहा था, तो चीनी सैनिक चिढ़ गए। एक सैनिक की आत्मा जो कर रही 50 साल से देश की रक्षा यह सच्ची गाथा है एक वीर सैनिक की। भारत मां के इस सच्चे सपूत की जिंदगी तो देश की रक्षा के लिए समर्पित थी ही, यह सैनिक शहीद होने के बाद भी आज तक सीमा की सुरक्षा में लगा है। यह जांबाज सैनिक था जसवंत सिंह रावत। इसकी बहादुरी के चलते सेना ने जसवंत के शहीद होने के 40 साल बाद रिटायरमेंट देने की घोषणा की। इस बीच जसवंत को पदोन्नति भी दी जाती रही। देश के इतिहास में यह एक मात्र उदाहरण है। जसवंत की आत्मा भी दे रही सीमा पर पहरा : – भारतीय सेना ही नहीं आम लोगों में भी जसवंत सिंह को लेकर कई तरह की कहानियां कही जाती हैं। बताया जाता है कि जिस कमरे में जसवंत सिंह रहा करते थे, उस कमरे में आज भी उनके जूतों को पॉलिश करके रखे जाते है। उनके कपड़ों को भी धोकर और प्रेस कर रखा जाता है। लोगों का कहना है कि रात में रखे गए जूते और कपड़ों को जब सुबह देखा जाता है तो ऐसा लगता है कि उनका इस्तेमाल किया गया है। कपड़े मैले और जूते गंदे मिलते हैं। जसवंत सिंह के लिए हर रोज बिस्तर भी लगाया जाता है। यह बिस्तर भी सुबह ऐसा लगता है कि यहां कोई सोया था।



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