शनिवार, 10 जून 2017

रक्षा बंधन का सच


वर्ण व्यवस्था के अनुसार रक्षा बंधन ब्राह्मणों का त्योहार है। इतिहास काल से इस दिन ब्राह्मणों द्वारा क्षत्रियों को रक्षा सूत्र बांधा जाता रहा है। उन्हे ब्राह्मणों की रक्षा की शपथ दिलाई जाती रही है.”हिन्दू धर्म का इतिहासनामक पुस्तक के चौथे खण्ड मे भारत रत्‍न पी वी काणे लिखते हैआज ब्राम्हण शूद्र के घरों मे जाकर उन्हें तथाकथित रक्षासूत्र(जो वास्तव मे बंधक सूत्र है) बाँधते हुये देखे जा सकते हैं और वे यह रक्षा सूत्र बांधते है तो संस्कृत का श्लोक भी पढ़ते है।
मन्त्र: “एन बंधो बलि राजा दान विनड्रम महाबली, एन तम अहम बँधामि, माचल माचल माचल
अर्थात जिस प्रकार तुम्हारे दानवीर बलि राजा को हमारे पूर्वजो ने बंदी बनाया था। उसी प्रकार हम तुम्हे भी मानसिक रूप से बंदी बना रहे है। हिलो मत, हिलो मत, हिलो मत, अर्थात यानी जैसे हो वैसे ही रहो अपने मे सुधार ना करो। या अर्थात ये धागा मैं तुझे ये धागा उस उद्देश्य से बंधता हूँ जिस उद्देश्य से तेरे सम्राट बलिराजा को बंधा गया था, आज से तू मेरा गुलाम है मेरी रक्षा करना तेरा कर्त्तव्य है, अपने समर्पण से हटना नहीं।
महाराज बलि मूलनिवासियों के सबसे ज्यादा शक्तिशाली राजा हुए थे जिन्होंने पुरे देश से ब्राह्मणों को खदेड़ दिया था और देश को ब्राह्मण मुक्त कर दिया था। जब ब्राह्मणों का महाराज बलि पर कोई बस नहीं चला तो ब्राह्मणों ने अपने धर्म के अनुसार यज्ञ करवाने के नाम से एक चल चली। महाराज बलि को ऋग्वेद के अनुसार यज्ञ करने के लिए मना लिया गया। यज्ञ के बाद ऋग्वेद के अनुसार दान देना और ब्राह्मणों को प्रसन्न करना जरुरी है। ब्राह्मण तभी प्रसन्न होता है जब उसको उसकी इच्छानुसार दान मिले। यज्ञवामननामक ब्राह्मण ने महाराज बलि का धोखे से तीन वचन लेकर पहले वचन में महाराज बलि से पूरी धरती अर्थात जहाँ जहाँ महाराज बलि का शासन था वो सारी भूमि मांग ली। दूसरे वचन में समुद्र मांग लिया अर्थात जहाँ जहाँ महाराज बलि का समुद्रों पर कब्ज़ा था। और तीसरे वचन में महाराज बलि से उनका सिर मांग लिया था। ब्राह्मण धर्म के जाल में फंसे मूलनिवासियों की स्थित आज बिलकुल महाराज बलि के जैसी बनी हुई है। ना तो महाराज बलि रक्षा सूत्र के नाम पर बंधक सूत्र बंधवाते और ना ही ब्राह्मण उनका सब कुछ जान समेत ठग लेते। ब्राह्मण धर्म के धोखे में फंसे मूलनिवासी आज अपना सब कुछ ब्राह्मणों को दे रहे है। जबकि ना तो यह धर्म मूलनिवासियों का है और ना ही मुर्ख बन कर मूक बने लूटते रहना कोई धर्म है। अगर इतिहास में भी झांक कर देखा जाये तो आज तक किसी भी ब्राह्मणी त्यौहार का मूलनिवासियों को कोई फायदा नहीं हुआ है। मूलनिवासी बिना सोचे समझे ब्राह्मणों के रीती रिवाजों और धार्मिक परम्पराओं को ढोते जा रहे है और यही रीती रिवाज और धार्मिक परम्पराए मूलनिवासियों की गुलामी के लिए मुख्य रूप से जिमेवार है। विश्व के अन्य अन्य देशों में रक्षा बंधन जैसे पाखंड और अंधविश्वास पर आधारित त्यौहार नहीं बनाये जाते। जैसा की ब्राह्मण कहते है कि रक्षा बंधन ना बांधने से हानि होती है। आज तक विश्व के किसी भी देश में कोई हानि नहीं हुई। असल में हानि सिर्फ इंडिया में ही होती है। ब्राह्मण एक भी परम्परा को नहीं तोडना चाहता। अगर एक भी परम्परा टूट गई तो ब्राह्मणों का पाखंड, अन्धविश्वास और लोगों को लूटने का अवसर कम हो जायेगा।
सच बात तो ये है कि रक्षाबंधन का भाई बहन के प्रेम से कोई लेना देना नहीं, इस देश के मूलनिवासियों का पर्व हैभाईदूज जिसमे बहन अपने भाई की कलाई पर रेशम का धागा बांधती है और दुआ करती हैअला बला जाए, बलिराजा का राज आये भाईदूज पर्व दिवाली के तीसरे दिन होता है। भाईदूज में बहन भाई से रक्षा की भीख नहीं मांगती, बल्कि बलिराजा को स्मरण करती है और दुआ करती है कि असुरो का राज आये, समता, स्वतंत्रता, बंधुता और न्याय का राज आये। रक्षाबंधन का मामला ही कुछ अलग हैरक्षाबंधनइस शब्द का अर्थ है रक्षा का बंधन, अर्थात गुलामी का बंधन।
सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव जी ने अपनी बहन बीबी नानकी से राखी बंधवाने से इंकार किया, क्यों? क्योकि गुरु नानक जी ने साफ़ साफ़ कहा की औरत मर्द पर सुरक्षा के लिए निर्भर रहे। ये रहा सिख धर्म के अनुसार रक्षा बंधन का अनुवाद है।
आज के काल में बुद्धिस्ट भिक्षुओ ने भी रक्षासूत्र बाँधना शुरू किया है। यह बौद्ध भिक्षुओं के ब्राह्मणीकरण की नयी साज़िश है। इस आध्यात्मिक गुलामी का धिक्कार करे। महात्मा फुले ने खुद ही कहा थाआध्यात्मिक गुलामी के कारण मानसिक गुलामी आई मानसिक गुलामी के कारण सोच विचार करना बंद कर दिया। सोच विचार बंद होने के कारण आर्थिक गुलामी आई और सारे मूलनिवासी ब्राह्मणों की गुलामी के शिकार बन गए। आओ हम महात्मा फुले के पद चिन्हो पर चलेअला बल जाए बलिराजा का राज आये बंधक सूत्र बंधने के लिए ब्राह्मण दान भी लेते है। ये प्राप्त दान हमारे पतन के लिये आर एस एस को देतें है। जो हमारे पतन के लिये रणनीति बनाते है। यह भाई बहन का त्योहार नहीं है। यदि ऐसा होता तो मुस्लिम ईसाई बहने भी अपने भाइयों को राखी बांधती होती। यह कोरा मूलनिवासियों का विरोधी कार्य है। 2012 में किये गए अध्ययन के मुताबिक हर साल कम से कम 1200 करोड़ रुपये का दान भारत में दिया जाता है। जिस में सबसे ज्यादा बड़ा हिस्सा ब्राह्मणों को और उनके मंदिरों में जाता है। ब्राह्मण इस पैसे से मूलनिवासियों को गुलाम बनाये रखने के कार्यक्रम करता रहता है। विश्व हिंदू परिषद, आर एस एस, बजरंग दल आदि ब्राह्मणों के बनाये कुछ ऐसे संगठन है जो मूलनिवासियों के दिए दान पर पलते है और मूलनिवासियों के खिलाफ काम करते है। बाबा साहब के सपनो का समाज और देश बनाने के लिये मूलनिवासियों को अंधविश्वासी रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाना चाहिये।


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