ये लो
ब्राह्मणों की DNA जाँच की
रिपोर्ट
विदेशी
साबित होने का
साबुत अब भी
ऐसी की तैस्सी
कराओ तो कराओ।
21 मई, 2001 को अख़बार
“TIMES OF INDIA” में भारत के
लोगों के DNA से
सम्बंधित शोध रिपोर्ट
छपी लेकिन मातृभाषा
या हिंदी अखबारों
में यह बात
क्यों नहीं छापी
गयी? क्योकि इंग्लिश
अखबार ज्यादातर विदेशी
लोग यानी ब्राह्मण,
क्षत्रिय, वैश्य लोग ही
पढ़ते है मूलनिवासी
लोग नहीं। विदेशी
यूरेशियन जानकारी के बारे
में अतिसंवेदनशील लोग
है और अपने
लोगो को बाख़बर
करना चाहते थे,
ये इसके पीछे
मकसद था। मूलनिवासी
लोगो को यूरेशियन
सच से अनजान
बनाये रखना चाहते
है। THE HIDE AND THE
HIGHLIGHT TWO POINT PROGRAM. सुचना
शक्ति का स्तोत्र
होता है। यूरोपियन
लोगो को हजारों
सालों से भारत
के लोगो, परम्पराओं
और प्रथाओं में बहुत
ज्यादा दिलचस्पी है। क्योकि
यहाँ जिस प्रकार
की धर्मव्यवस्था, वर्णव्यवस्था,
जातिव्यवस्था, अस्पृश्यता, रीति- रिवाज,
पाखंड और आडम्बर
पर आधारित धर्म
परम्पराए है, उनका
मिलन दुनिया के
किसी भी दूसरे
देश से नहीं
होता। इसी कारण
यूरोपियन लोग भारत
के लोगों के
बारे ज्यादा से
ज्यादा जानने के लिए
भारत के लोगों
और धर्म आदि
पर शोध करते
रहते है। यही
कुछ कारण है
जिसके कारण विदेशियों
के मन में
भारत को लेकर
बहुत जिज्ञासा है।
इन सभी “व्यवस्थाओं
के पीछे मूल
कारण क्या है”
इसी बात पर
विदेशों में बड़े
पैमाने पर शोध
हो रहे है।
मुश्किल से मुश्किल
हालातों में भी
विदेशी भारत में
स्थापित ब्राह्मणवाद को उजागर
करने में लगे
हुए है। आज
कल बहुत से
भारतीय छात्र भी इन
सभी व्यवस्थों पर
बहुत सी विदेशी
संस्थाओं और विद्यालयों
में शोध कर
रहे है। अमेरिका
के उताह विश्वविद्यालय
वाशिंगटन में माइकल
बामशाद नाम के
आदमी ने जो
BIOTECHNOLOGY DEPARTMENT का
HOD ने भारत के
लोगों के DNA परीक्षण
का प्रोजेक्ट तैयार
किया था। बामशाद
ने प्रोजेक्ट तो
शुरू कर दिया,
लेकिन उसे लगा
भारत के लोग
इस प्रोजेक्ट के
निष्कर्ष (RESULT REPORT) को स्वीकार
नहीं करेंगे या
उसके शोध को
मान्यता नहीं देंगे।
इसलिए माईकल ने
एक रास्ता निकला।
माईकल ने भारत
के वैज्ञानिकों को
भी अपने शोध
में शामिल कर
लिया ताकि DNA परिक्षण
पर जो शोध
हो रहा है
वो पूर्णत पारदर्शी
और प्रमाणित हो
और भारत के
लोग इस शोध
के परिणाम को
स्वीकार भी कर
ले। इसलिए मद्रास,
विशाखापटनम में स्थित
BIOLOGUCAL DEPARTMENT, भारत सरकार मानववंश शास्त्र
– ENTHROPOLOGY के लोगों को भी
माइकल ने इस
शोध परिक्षण में
शामिल कर लिया।
यह एक सांझा
शोध परीक्षण था
जो यूरोपियन और
भारत के वैज्ञानिको
ने मिल कर
करना था। उन
भारतीय और यूरोपियन
वैज्ञानिकों ने मिलकर
शोध किया। ब्राह्मणों,
राजपूतों और वैश्यों
के डीएनए का
नमूना लेकर सारी
दुनिया के आदमियों
के डीएनए के
सिद्धांत के आधार
पर, सभी जाति
और धर्म के
लोगों के डीएनए
के साथ परिक्षण
किया गया। यूरेशिया
प्रांत में मोरूवा
समूह है, रूस
के पास काला
सागर नमक क्षेत्र
के पास, अस्किमोझी
भागौलिक क्षेत्र में, मोरू
नाम की जाति
के लोगों का
DNA भारत में रहने
वाले ब्राह्मणों, राजपूतों
और वैश्यों से
मिला। इस शोध
से ये प्रमाणित
हो गया कि
ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य
भारत के मूलनिवासी
नहीं है। महिलाओं
में पाए जाने
वाले MITICONDRIYAL DNA (जो हजारों
सालों में सिर्फ
महिलाओं से महिलाओं
में ट्रान्सफर होता
है) पर हुए
परीक्षण के आधार
पर यह भी
साबित हुआ कि
भारतीय महिलाओं का DNA किसी
भी विदेशी महिलाओं
की जाति से
मेल नहीं खाता।
भारत के सभी
महिलाओं एस सी,
एस टी, ओबीसी,
ब्राह्मणों की औरतों,
राजपूतों की महिलाओं
और वैश्यों की
औरतों का DNA एक
है और 100% आपस
में मिलता है।
वैदिक धर्मशास्त्रों में
भी कहा गया
है कि औरतों
की कोई जाति
या धर्म नहीं
होता। यह बात
भी इस शोध
से सामने आ
गई कि जब
सभी महिलाओं का
DNA एक है तो
इसी आधार पर
यह बात वैदिक
धर्मशास्त्रों में कही
गई होगी। अब
इस शोध के
द्वारा इस बात
का वैज्ञानिक प्रमाण
भी मिल गया
है। सारी दुनिया
के साथ-साथ
भारतीय उच्चतम न्यायलय ने
भी इस शोध
को मान्यता दी।
क्योकि यह प्रमाणित
हो चूका है
कि किसका कितना
DNA युरेशियनों के साथ
मिला है: ब्राह्मणों
का DNA 99.99% युरेशियनों के साथ
मिलता है। राजपूतों(क्षत्रियों) का DNA 99.88% युरेशियनों
के साथ मिलता
है। और वैश्य
जाति के लोगों
का DNA 99.86% युरेशियनों के साथ
मिलता है। राजीव
दीक्षित नाम का
ब्राह्मण (ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में
प्रोफ़ेसर) ने एक
किताब लिखी। उसका
पूना में एक
चाचा, जो जोशी(ब्राह्मण) है, ने
वो किताब भारतमें
प्रकाशित की, में
भी लिखा है
“ब्राह्मण, राजपूत और वैश्यों
का DNA रूस में,
काला सागर के
पास यूरेशिया नामक
स्थान पर पाई
जाने वाली मोरू
जाति और यहूदी
जाति (ज्यूज – हिटलर
ने
Kohram News http://www.kohraam.com/readers¬opinion/99¬percent¬dna¬of¬brahman¬match¬from¬
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