शनिवार, 10 जून 2017

शैतानी साजिश


गाय शैतानी साजिश

 21 वीं सदी के भारत में यह क्या हो रहा हैघ् दुनिया आगे जा रही है और हम 19वीं सदी की ओर लौट रहे हैंण् ये कौन लोग हैंए जो गोमांस के नाम पर इंसानों की जान ले रहे हैंघ् ये कौन लोग हैंए जो यह तय करने पर तुले हैं कि कौन क्या खा सकता है और क्या नहींघ् ये कौन लोग हैंए जो गोरक्षा के नाम पर देश में हिंसा फैलाना चाहते हैंघ् ये कौन लोग हैंए जो गाय को हिंदू.मुस्लिम में बांटकर देश में भय और आतंक का माहौल पैदा कर रहे हैंघ् दरअसलए गाय को धार्मिक मुद्दा बनाकर हिंदू.मुस्लिम में बांटना एक साज़िश हैण् यह हिंदुओं और मुसलमानों को आपस में लड़ाने की साज़िश हैण्
इसे शैतानी साज़िश कहना चाहिएण् शैतानी साज़िश इसलिएए क्योंकि यह इंसानियत के खिला़फ हैए क़ानून के खिला़फ हैए धर्म के खिला़फ हैण् इस मुद्दे पर देश की सरकारए राजनीतिक दलों और सिविल सोसायटी को आगे आना होगा तथा कड़ी से कड़ी कार्रवाई करनी होगीण् पहले दादरीए फिर उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों और उसके बाद दिल्ली स्थित केरल भवन से शर्मनाक खबरें आईंण्
गाय के नाम पर सांप्रदायिकता को हवा दी जा रही हैण् इसे अविलंब रोकना होगाए वरना देश में घृणा और हिंसा का ऐसा दौर शुरू हो जाएगाए जिसे रोकना नामुमकिन होगाण् केंद्र सरकार इस मामले में चुप्पी साधकर या गोलमटोल जवाब देकर अपने दायित्व से पीछे हट रही हैण् उसे देश में घृणा और हिंसा फैलाने वाले असामाजिक तत्वों से सख्ती से निपटना होगाण्
समझने वाली बात यह है कि गाय कोई धार्मिक मुद्दा नहीं हैए बल्कि उसे धार्मिक मुद्दा बना दिया गया हैण् गाय का रिश्ता देश की आर्थिक व्यवस्था से हैण् गाय को भारत में हम माता कहते हैंए उसकी पूजा करते हैंण् ऐसा इसलिएए क्योंकि वह जीवनदायिनी हैण् कारण धार्मिक नहींए बल्कि आर्थिक हैण् भारत आज भी गांव प्रधान देश हैण् ग्रामीण इलाकों के आर्थिक क्रियाकलाप आज भी गोवंश पर केंद्रित हैंण् ज़िंदगी का ऐसा कोई भी पहलू नहीं हैए जो गोवंश से अछूता होण् हज़ारों सालों से गाय लोगों को अपने दूध से पालती रही हैण् यही वजह है कि उसे मां का दर्जा दिया जाता हैण्
गाय का जितना महत्व हिंदुओं के जीवन में हैए उतना ही महत्व मुस्लिम एवं दूसरे धर्म के लोगों के जीवन में हैण् लेकिनए आज भारत में धार्मिक भावनाएं भड़काने वाली राजनीति उफान पर हैण् गाय को हिंदू.मुस्लिम के बीच बांट दिया गयाण् यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि मुसलमान गाय के भक्षक हैं और हिंदू गाय के रक्षकण् जबकि सच्चाई इससे बिल्कुल अलग हैण् देश में गायों की तस्करी करने वालेए गायों को मारने वालेए गायों पर अत्याचार करने वाले और गायों के नाम पर घोटाला करने वाले लोग मुसलमान नहीं हैंए बल्कि ज़्यादातर हिंदू हैंण् गोमांस निर्यात करने वाली
बड़ी.बड़ी कंपनियों के मालिक भी ग़ैर.मुस्लिम हैंण्
यह मुद्दा देश के लोगों के भविष्य से जुड़ा हैए लेकिन इसे हिंदू.मुस्लिम का मुद्दा बना दिया गयाण् सरकार और राजनीतिक दलों ने कभी इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार नहीं कियाण् यही वजह है कि जब भी गाय की बात होती हैए तो मामला यहां अटक जाता है कि गोमांस की बिक्री पर पाबंदी हो या न होण् मीडिया भी इस विवाद में क़दमताल करता हैण् पूरा मामला यहां आकर रुक जाता है कि क्या प्रजातंत्र में इच्छा के मुताबिक खाने का अधिकार है या नहींघ् यही देश का दुर्भाग्य हैण्
एक अनुमान के मुताबिकए भारत में 150 मिलियन गायें हैंण् भारत में एक गाय साल भर में औसतन 200 लीटर दूध देती हैण् इसकी वजह यह है कि भारत में गायों का
भरण.पोषण सही तरीके से नहीं होताण् इजरायल में एक गाय साल में औसतन 11 हज़ार लीटर दूध देती हैण् हम अगर ऐसा करने में सफल हो जाते हैंए तो देश में दूध की नदियां बहेंगी हीए साथ ही हम पूरी दुनिया में दूध और उसके उत्पाद निर्यात करने वाले देशों में अव्वल बन जाएंगेण् स़िर्फ दूध ही नहींए बल्कि चर्म उद्योग का विकास होगाए लोगों को रा़ेजगार मिलेगा और हमारा विदेशी मुद्रा भंडार भी समृद्ध हो जाएगाण्
लेकिनए क्या गोरक्षकों ने इस पहलू पर कभी ध्यान दियाघ् नहींण् क्या उन्होंने कभी इस बात के लिए आंदोलन किया कि देश में नकली दूध और नकली घी क्यों बेचा जाता हैघ् गोरक्षक सेना को यह छोटी.सी बात समझ में नहीं आती कि गायों की रक्षा इंसानों को मारने से नहीं होगीए बल्कि ज़्यादा से ज़्यादा गायों को पालने और उनकी सेवा करने से होगीण् जिस देश में छोटे.छोटे बच्चों को यूरिया से बना दूध पिलाया जाता होए वहां गोरक्षा के नाम पर हिंसा करना मूर्खता के अलावा कुछ नहीं हैण् गाय के नाम पर हिंसा भड़काने वालों को गाय की चिंता नहीं हैए उनकी नज़र राजनीतिक फायदे.ऩुकसान पर ज़्यादा हैण्
पूरी दुनिया में भारत की सड़कों पर यातायात बाधित करने वाली गायों की चर्चा होती हैण् भारत के हर शहर में गायें सड़कों पर भटकती रहती हैंए उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं होताण् दिल्ली का उदाहरण ले लीजिएण् यहां क़रीब डेढ़ करोड़ की आबादी है और क़रीब 40 हज़ार गायें सड़कों पर घूमती नज़र आती हैंण्
यातायात बाधित करने के अलावा वे सड़कों पर पड़े कूड़े.कचरे और पॉलीथिन बैग्स को अपना आहार बनाती हैंए नतीजतन बीमार हो जाती हैं और फिर काल का ग्रास बन जाती हैंण् गोरक्षा का दंभ भरने वालों की नज़र उन पर क्यों नहीं जातीघ्
बाबा रामदेव अक्सर कहते हैं कि गाय को बचाना भारत को बचाना हैण् गांधी जी भी यही बात कहते थेण् यह बात बिल्कुल सही हैए लेकिन बचाने का मतलब क्या हैघ् किससे बचाना हैए इससे समझना बहुत ज़रूरी हैण् गाय भारत की जीवनशैली का अभिन्न अंग हैण् उसे बचाने की अपील इसलिए होती रहीए क्योंकि लोगों ने गाय पालना बंद कर दिया थाण् जनसंख्या में वृद्धि के अनुपात में गायों की संख्या नहीं बढ़ीण् ग्रामीण भारत कुपोषण की चपेट में आ गयाण् नतीजा यह हुआ कि आज देश में दूध के नाम पर केमिकल बेचा जा रहा हैण्
गो.वध करने वालोंए बीफ बेचने वालों और खाने वालों की पिटाई या हत्या से यह समस्या ़खत्म नहीं होगीण् इस समस्या का हल ज़्यादा से ज़्यादा गाय पालने से निकलेगाण् समझने वाली बात यह भी है कि जो खुद को गोरक्षक.कार्यकर्ता मानने वाले लोग हैंए उनमें से ज़्यादातर गाय नहीं पालतेए गाय के गोबर से परहेज करते हैं और गोमूत्र को दूषित मानते हैंण् गोरक्षा का सही मतलब देश में ज़्यादा से ज़्यादा गायों का होना हैण्
इसलिए नहीं कि ऐसा किसी धार्मिक ग्रंथ में लिखा हैए बल्कि इसलिएए क्योंकि गाय भारतीय जीवन के हर पहलू को छूती हैण् भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के केंद्र में गोवंश रहा हैण् कृषि से लेकर उद्योग तक गाय की उपयोगिता हैण् चाहे पुरातन काल में वेद हों या आधुनिक भारत में गांधी जीए सभी ने गाय को धन माना है यानी अर्थव्यवस्था का हिस्साण् यही वजह है कि गाय को कामधेनु कहा गयाण् कामधेनु का मतलबए इच्छाओं की पूर्ति करने वालीण्
पुरातन काल से गाय के दूधए गोबरए गोमूत्रए खाल एवं हड्डियों का इस्तेमाल होता रहा हैण् यह वह वक्त थाए जब मुद्रा ;करेंसीद्ध का प्रचलन नहीं थाण् आज जब सब कुछ करेंसी में होता हैए तब भी गाय को कामधेनु की प्रतिष्ठा हासिल हो सकती हैण् ऐसा गुजरात में लोगों ने दूध की श्वेत क्रांति लाकर साबित किया हैण् लेकिनए ये सारी बातें गोरक्षक होने का दंभ भरने वालों को समझ में नहीं आतींए क्योंकि उनकी आंखों पर घृणा रूपी पट्टी बंधी हैण्
गांधी जी हमेशा कहते थे कि ग्रामीण भारत के आर्थिक ताने.बाने के केंद्र में गाय हैण् उसे न स़िर्फ बचाना हैए बल्कि ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में लोग गाय पालेंए यह सुनिश्चित करना हैण् भारत के गांवों की सच्चाई यह है कि क़रीब 90 फीसद परिवारों के पास इतनी ज़मीन नहीं हैए जिससे उनका जीवनयापन हो सकेण् इन ग़रीब परिवारों में 43 फीसद ऐसे हैंए जो भूमिहीन मज़दूर हैं और जीवनयापन के लिए दूसरे के खेतों में मज़दूरी करते हैं या फिर शहर पलायन कर जाते हैंण् पलायन करने वाले ज़्यादातर ग्रामीण कुशल नहीं हैंए इसलिए शहरों में भी मज़दूरी करने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं हैण्
वे घर.परिवार से दूर नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैंण् ऐसे लोगों का जीवन गो.पालन के ज़रिये बदला जा सकता हैण् गाय अपने आप में उद्योग का एक केंद्र हैण् गाय के दूध से गुजरात के ग्रामीण इलाकों की तस्वीर बदल गईण् क्या सरकार दूसरे राज्यों में यह मॉडल नहीं अपना सकतीघ् इससे गांवों में न स़िर्फ नकद राशि का संचार होगाए बल्कि लाखों लोगों को रा़ेजगार भी मिलेगाण्
दूसरी बात यह कि गाय स़िर्फ दूध नहीं देतीए वह गोबर भी देती हैए जिसका इस्तेमाल खाद और गोबर.गैस तैयार करने में होता हैण् गोबर.गैस घरेलू ईंधन का काम करती हैण् भारत में बड़ी मात्रा में गोबर बर्बाद हो जाता हैण् राजस्थान के नवलगढ़ में जैविक खेती करने वाले किसानों ने एक मिसाल पेश की हैए जिस पर पूरे देश में अमल होना चाहिएण् यहां जैविक खेती करने वाले किसानों की कमाई के केंद्र में गाय हैण्
गाय के गोबर से वे खाद तैयार करते हैं और गोबर.गैस का इस्तेमाल घरेलू ईंधन के रूप में करते हैंण् उन्हें न तो कभी बाज़ार से केमिकल खरीदना पड़ता है और न भोजन तैयार करने के लिए लकड़ियां खरीदने की ज़रूरत पड़ती हैण् मतलब यह कि खेती में लागत कम लगती हैए ईंधन का पैसा बचता है और गाय का दूध बेचने से जो पैसा मिलता हैए वह सीधा मुना़फा हैण्
नवलगढ़ के किसान न स़िर्फ कई तरह की बचत करते हैंए बल्कि पर्यावरण की रक्षा में भी योगदान देते हैंण् यह फायदा तो कोई भी उठा सकता हैए हर धर्म के लोग इसे अपना सकते हैंण् इसके अलावा भारत का चर्म उद्योग दो बिलियन यूएस डॉलर का हैण् देश में 4ए000 टेनरियां हैंए जो गाय की खाल पर निर्भर हैंण् ज़्यादा गायों का मतलब चर्म उद्योग का विकास हैण्
फिलहाल जो स्थितियां हैंए उनमें चर्म उद्योग की हालत बद से बदतर होती जा रही हैण् टेनरियों का आधुनिकीकरण नहीं हो पाया हैए इसलिए यह उद्योग वातावरण को प्रदूषित करने में अव्वल हैण् इस उद्योग में निवेश की कमी हैए इसलिए यह भारत में थम.सा गया हैण् सरकार अगर गायों की संख्या बढ़ाने के लिए कोई नीति बनाना चाहती हैए तो देश के तथाकथित गोरक्षकों को भी इसे हिंदू.मुस्लिम चश्मे से बाहर निकल कर देखना चाहिएण्
गायों की संख्या बढ़ने से अकेले चर्म उद्योग में लाखों लोगों को रा़ेजगार मिल सकता हैण् भारत में इस बात की संभावना प्रबल है कि हर राज्य ज़रूरत से ज़्यादा दूध का उत्पादन कर सकता हैण् इससे हम दुग्ध उत्पाद उद्योग यानी मिल्क प्रोडक्ट इंडस्ट्री की ओर क़दम बढ़ा सकते हैंण् करने को तो बहुत कुछ किया जा सकता हैए लेकिन गो.रक्षकों की जमात गाय से जुड़े मामलों को सांप्रदायिक रंग देने में कामयाब हो गई हैण् उसकी शैतानी साज़िश के सामने सर्वशक्तिमान सरकार भी घुटने टेक चुकी हैण्
यही वजह है कि गाय से हर जुड़ी हर बात दिशाविहीन.अर्थहीन हो गईण् इससे बड़ी मूर्खतापूर्ण बात भला क्या हो सकती है कि जो मामला अर्थव्यवस्था यानी इकोनॉमी का हैए उसे हमने धार्मिक रंग दे दियाण् इन तथाकथित गोरक्षकों को अगर कामधेनु के ़फायदों का जरा भी ज्ञान होता और राजनीतिक दलों ने गाय पर राजनीति न की होतीए तो अब तक देश की दिशा और दशा बदल गई होतीण्
गाय किसी धर्म की बपौती नहीं हैए हर धर्म के लोग उसे पालते हैंण् सभी जातियों.धर्मों के लोगों को गाय से समान लगाव हैए क्योंकि गाय जाति.धर्म के नाम पर किसी के साथ पक्षपात नहीं करतीण् संख्या के लिहाज से गाय पालने वाले ज़्यादातर हिंदू हैंण् गायों को खेतों एवं जंगलों में चरने के लिए छोड़ दिया जाता हैण् चारे की उचित व्यवस्था न होने के कारण उनमें दूध देने की क्षमता धीरे.धीरे घट रही हैण् इसके अलावा वह बच्चे को जन्म देने के बाद छह.सात महीने तक ही दूध देती हैण् इसका असर यह हुआ कि लोगों ने गाय छोड़कर बकरी पालना शुरू कर दियाण्
बकरी पालने का फायदा यह है कि लोग उसे आसानी से बाज़ार में बेच लेते हैंए लेकिन गाय को लेकर देश में इतना भावनात्मक माहौल बना दिया गया हैए जिसकी वजह से उसे बेचना मुश्किल हो जाता हैण् यहीं से गाय की तस्करी का खेल शुरू होता हैण् गाय को गांव से बूचड़खाने तक पहुंचाने का काम एक ग़ैर.क़ानूनी नेटवर्क अंजाम देता हैण् हैरानी की बात यह है कि ऐसा पूरा नेटवर्क हिंदू ही चलाते हैंण् गाय को गांव से उठाने वालों से लेकर बूचड़खाने चलाने वालों तक ज़्यादातर हिंदू हैंण्
समस्या यह है कि गाय को सरकार ने कभी आर्थिक नज़रिये से नहीं देखाण् जब भी गाय का मुद्दा उठाए उसे गो.वध पर प्रतिबंध लगाकर या उठाकर ़खत्म कर दिया गयाण् लेकिनए अब वक्त आ गया है कि मोदी सरकार गाय को लेकर एक समग्र नीति बनाएण् गाय को धार्मिक चश्मे से देखने के बजाय अर्थव्यवस्था से जोड़ने की ज़रूरत हैण् गाय के नाम पर हिंदुओं और मुसलमानों को आपस में लड़ाने के बजाय ज़्यादा से ज़्यादा गाय पालने के लिए सरकारी मदद देने की ज़रूरत हैए ताकि दोनों संप्रदायों के ग़रीब तबके लाभांवित हो सकेंण्
इससे देश के गांवों में संवहनीय विकास ;सस्टेनेबल डेवलपमेंटद्ध का मॉडल विकसित होगाए पर्यावरण का संरक्षण होगाए लोगों की आमदनी बढ़ेगी और युवाओं को रा़ेजगार मिलेगाण् अगर सरकार इन सुझावों पर अमल करती है या फिर गाय को केंद्र में रखकर कोई योजना बनाती हैए तो गाय सदैव के लिए पूजी भी जाएगी और गांवों का आर्थिक विकास भी तेजी से होगाण्
मोदी सरकार अगर ग्रामीणों एवं वनवासियों को रा़ेजगार मुहैय्या कराने की इच्छुक हैए तो उसे गो.वध के नाम पर घृणा फैलाने वालों के खिला़फ सख्त कार्रवाई करनी होगीण् ऐसे तत्वों का दिमाग़ दुरुस्त करना ज़रूरी हैए ताकि वे समझ सकें कि गो.रक्षा का मतलब गो.वध के खिला़फ हिंसा करने के बजाय गो.पालन को बढ़ावा देना हैण् गांवों को गो.केंद्रित योजनाओं से जोड़ना होगाण्
नदियों एवं जलाशयों के किनारे बसे गांवों में गो.पालन को प्रोत्साहन देना होगा और इलाकाई स्कूलों.कॉलेजों में पढ़ रहे युवाओं को उससे जोड़ना होगाण् ग्रामीणों एवं वनवासियों को गो.पालन के ज़रिये बाज़ार से जोड़ा जा सकता हैण् इससे देश के भूमिहीन किसानोंए मज़दूरोंए पिछड़ों एवं दलितों को फायदा होगाण् इससे न स़िर्फ कुपोषण की समस्या खत्म होगीए बल्कि गोबर.गैस और गोबर.खाद के इस्तेमाल के ज़रिये पर्यावरण की रक्षा भी संभव हो सकेगीण् प
गोवंश का मतलब क्या है
गोवंश में गायए भैंसए बैलए सांड और बछड़ा आदि पशु आते हैंण् भारत में वैदिक काल से ही गाय का महत्व हैण् आरंभ में आदान.प्रदान एवं विनिमय आदि के माध्यम के रूप में गाय का उपयोग होता था और मनुष्य की समृद्धि उसकी गो.संख्या से आंकी जाती थीण् हिंदू धार्मिक दृष्टि से भी गाय पवित्र मानी जाती रही है और उसकी हत्या को पाप करार दिया जाता हैण् अगर भारत में गोवंश की बात करेंए तो यहां 25 गौ प्रजातियां हैंण् भारत में हर राज्य में गोवंश की अलग प्रजाति पाई जाती हैण् वैश्विक संदर्भ में देखेंए तो बीफ शब्द का इस्तेमाल गायए भैंसए बैलए सांड के मांस को परिभाषित करने के लिए किया जाता है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें