आधारः
दो तरह की बातें क्यों कर रही है सरकार?
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भारत की सर्वोच्च अदालत ने शुक्रवार को कहा कि संविधान पीठ के अंतिम फ़ैसले
तक आयकर रिटर्न के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं किया जा सकता है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी आदेश का समर्थन करते हुए यह भी कहा कि जिनके पास आधार कार्ड है, उन्हें इसे पैन कार्ड से जोड़ना होगा.
आधार कार्ड ना बनवाने की सात वजहें हालांकि सिटीज़न फ़ोरम फ़ॉर सिविल लिबरेशन के सदस्य और संसद की वित्त संबंधी स्थाई समिति के सामने विशेषज्ञ की हैसियत से पेश हो चुके डॉक्टर गोपालकृष्ण ने कहा है कि सरकार आधार पर दोहरा रवैया अपना रही है.
बीबीसी के रेडियो एडिटर राजेश जोशी से बातचीत में डॉक्टर गोपालकृष्ण ने कहा कि मूल रूप से आधार सूचना के अधिकार के उलट है और इस तरह सूचनाएं इकट्ठा करने का काम कई देशों में पहले ही रोका जा चुका है. पढ़ें बातचीत के अंश-
कोर्ट का आदेश
क्या कहता
है?
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डॉक्टर गोपालकृष्ण ने कहा- यह आदेश साफ़ कर देता है कि बिना सवाल पूछे आधार बनवाने के लिए लाइनों में खड़े लोगों को कोर्ट कोई राहत नहीं देने वाला है.
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जिन लोगों ने मानवाधिकारों और मनुष्य के मूलभूत अधिकारों को मुद्दा बनाकर कोर्ट से आधार कार्ड के ख़िलाफ़ फ़रियाद की थी और कहा था कि उनसे ज़बरन हाथों और उंगलियों के निशान आदि लिए जा रहे हैं, उन लोगों को कोर्ट ने यह कहते हुए राहत दी है कि कार्ड उन लोगों के लिए बाध्यकारी नहीं है. यह राहत अंतरिम तौर पर दी गई है.
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आधार एक्ट और सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला लगभग एक ही भाषा में बात करते दिख रहे हैं.
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कोर्ट के इस फ़ैसले से यह प्रतीत हो रहा है कि सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल ने आधार को लेकर जो तर्क रखे हैं, उससे कोर्ट आंशिक रूप से सहमत हो गया है.
THAPLIYAL
आधार से डर किस बात का है?
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डॉक्टर गोपालकृष्ण कहते हैं कि आधार जैसी परियोजना चीन, जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और फिलिपींस जैसे विकसित देशों में पहले ही रोक दी गई है.
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कानून के सभी जानकार इस बात को मानते हैं कि अतीत में इस तरह से कैदियों की पहचान ली जाती थी. कैदियों की पहचान अब भी ली जाती है और सज़ा पूरी होने पर उसे नष्ट कर दिया जाता है.
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लेकिन आधार में जिस तरह से पहचान ली जा रही है ये अनंत काल के लिए सरकार अपने पास रखेगी. साथ ही ये आंकड़े अमरीकी और फ़्रांसीसी कंपनियों के साथ साझा भी किए जा सकते हैं.
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आधार एक्ट के मुताबिक़, सरकार अभी तो सिर्फ़ हाथों, उंगलियों और आंखों के निशान ले रही है. आगे नागरिकों की अन्य जैविक सूचनाएं भी ली जाएंगी. जैसे डीएनए और आवाज़ के सैंपल वगैरह.
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यह एक्ट सूचना के अधिकार कानून के एकदम विपरीत है.
आधार पर सरकार
का दोहरा
रवैया
अटॉर्नी जनरल के कहने पर सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति चालमेश्वर की अध्यक्षता वाली तीन जजों की एक पीठ ने 11 अगस्त, 2015 को बायोमेट्रिक पहचान/आधार संख्या मामले की सुनवाई को बीच में ही रोक कर संविधान पीठ को सुपुर्द कर दिया था. ऐसा इस पीठ ने इसलिए किया क्योंकि अटॉर्नी जनरल ने यह तर्क रखा था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं इस बारे में केवल सक्षम संविधान पीठ ही सुनवाई कर सकती है.
मगर अटॉर्नी जनरल को आधार मामले में इसी तीन जजों की पीठ के पास कुछ आदेश लेने के लिए जाना पड़ा था. इस पीठ ने उनको सुनने से यह कहते हुए मना कर दिया था कि इसकी सुनवाई केवल संविधान पीठ ही कर सकती है. डॉक्टर गोपालकृष्ण कहते हैं कि हैरानी की बात ये है कि सरकार आधार मामले में दोहरा रवैया अपना रही है. सरकार संसद में कहती है कि ये मौलिक अधिकार है और सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस चालमेश्वर को इस पर फ़ैसला देने से रोक दिया कि इस पर संविधान पीठ ही फ़ैसला लेगी.
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