शुक्रवार, 2 जून 2017

अब सर्वोच्च नहीं रहा सर्वोच्च न्यायालय

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अब सर्वोच्च नहीं रहा सर्वोच्च न्यायालय

supreme-courtसुप्रीम कोर्ट ताक़तवर है या भारत सरकार, इसका पता बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है. समय-समय पर ऐसे मौके आते हैं, जब सुप्रीम कोर्ट और संसद में तकरार होती है कि संसद प्रमुख है या सुप्रीम कोर्ट. यह बात तो समझ में आती है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के मना करने के बाद भी अगर सरकार लगातार क़दम उठाती चली जाए और सुप्रीम कोर्ट को अनदेखा करे, तब यह समझ में आता है कि सरकार स्वयं सुप्रीम कोर्ट की बातों को न केवल अनदेखा कर रही है, बल्कि अमान्य भी कर रही है.
आधार कार्ड का मसला बिल्कुल ऐसा ही है. जब मनमोहन सिंह की सरकार ने आधार कार्ड को लागू किया, तभी से यह आलोचना का विषय बना हुआ है. सुप्रीम कोर्ट इस सवाल पर सुनवाई दर सुनवाई करती जा रही है. उसने यह आदेश दिया कि जब तक इसका फैसला न हो जाए, तब तक आधार कार्ड अनिवार्य न किया जाए. मनमोहन सिंह के ज़माने में जो ढीठता शुरू हुई, वो आज तक जारी है. मनमोहन सिंह ने आधार कार्ड क्यों अनिवार्य किया, इसके बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर यह टिप्पणियां की हैं कि आधार कार्ड निजता का उल्लंघन करता है.
दरअसल अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को एक मज़बूत बाजार के आधार का निर्माण करने के लिए इस पूरी योजना को लागू किया गया. जितनी जानकारी सरकार आधार कार्ड के ज़रिए अपने पैसे खर्च करके इकट्‌ठा कर रही है, वो सारी जानकारी विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को दे रही है, जिससे वो पैसा कमा रही हैं. इस सारी जानकारी को देने के एवज़ में भारत सरकार को कुछ नहीं मिल रहा है. हां, उन लोगों को ज़रूर मिल रहा होगा, जिन्होंने इसका फैसला लिया. नन्दन निलेकणि इस योजना के जनक रहे हैं.
जब आधार कार्ड लागू हुआ था, तब आज के प्रधानमंत्री और तब के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरजते, चिंघाड़ते हुए यह घोषणा की थी कि अगर भारतीय जनता पार्टी की सरकार आएगी तो वो आधार कार्ड को वाइंड-अप करेगी यानि उस पूरी योजना को समेट लेगी. मनमोहन सिंह हारे, नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने, लेकिन आधार कार्ड चलता रहा.
वित्तमंत्री अरुण जेटली के साथ नन्दन निलेकणि की दो घंटे की मीटिंग हुई और भारत सरकार फौरन अपने प्रधानमंत्री के सार्वजनिक रूप से किए गए वादे को भूल गई. इसके बाद प्रधानमंत्री इस योजना को और ज़्यादा मज़बूती के साथ लागू करने की बात करने लगे. वैसे तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बहुत सारे वादों को भुलाया, उन्हें जुमला कह दिया, उनका जिक्र करना भूल गए, लेकिन आधार एक ऐसा मसला है जिसने भारत के हर नागरिक की जानकारी को प्लेट पर रखकर अमेरिका को सौंप दिया है.
यह जानकारी अमेरिका की व्यापारिक कंपनियों के बाद सीआईए के पास पहुंच गई और उस जानकारी को भारत के दुश्मनों के हाथ बेचने का रास्ता खुल गया. सुप्रीम कोर्ट ने फिर रोक लगाई कि इसे अनिवार्य न किया जाए, लेकिन भारत सरकार ने इस कार्ड को उतना अनिवार्य कर दिया कि अगर किसी ने ग़लती से आधार के साथ अपने बैंक अकाउंट को नहीं जोड़ा या उसकी जानकारी नहीं दी तो बैंकों ने बैंक खाते का इस्तेमाल करने से ही रोक दिया. आधार को लेकर जितनी चिंताएं सुप्रीम कोर्ट कर रहा है, उतनी चिंता इस देश के मंत्री और पत्रकार नहीं कर रहे हैं.
आधार कार्ड इतना ख़तरनाक है कि अगर यह जानकारी साम्प्रदायिक दंगा फैलाने वालों के हाथों में पहुंच जाए, तो वो एक-एक को चुनकर जिसे भी मारना चाहें, उसे मार सकते हैं. आधार कार्ड में आंखों का रंग, रक्त ग्रुप, व्यक्ति का अपना चेहरा, बैंक अकाउंट, मोबाइल नंबर यानि व्यक्ति की निजी जासूसी के जितने रहस्य हैं, वो सब आधार के ज़रिए हमारे दुश्मनों, विदेशियों और व्यापारिक संस्थानों के हाथों बंधक बने हुए हैं. ये इतनी खतरनाक जानकारी है कि अगले आठ साल में कौन व्यक्ति भारत का मुख्य न्यायाधीश बन सकता है, कौन व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट का जज बन सकता है, कौन व्यक्ति राजनीतिक तौर पर राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति बन सकता है.
इतना ही नहीं, कौन लोग भारत की राजनीति और व्यापार को नियंत्रित कर सकते हैं, इन सबका विश्लेषण वो लोग जो सारी दुनिया पर बाजार के माध्यम से क़ब्जा करना चाहते हैं या वो लोग जो हमारे दुश्मन हैं और चिन्हित कर हमारे ऊपर दबाव डाल सकते हैं या ऐसे सारे व्यक्तित्वों को अपने प्रभाव क्षेत्र में लाकर अपना मानसिक गुलाम बना सकते हैं, हम इस ताक़त को दूसरों को दे रहे हैं. सेना में कौन-कौन ऐसे लोग हैं, जो रणनीति बनाने में सक्षम हैं, कौन ऐसे हैं जो युद्ध करने में सक्षम हैं? वायु सेना, थल सेना, जल सेना इन सबको नियंत्रित करने वाले लोगों को किस तरीके से प्रभाव क्षेत्र में लिया जा सकता है, ये सब जानकारी हम उनके हाथों में दे रहे हैं, जो हमें व्यापारिक, राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभाव क्षेत्र में लेने की ताक़त रखते हैं.
अभी एक बड़े उद्योगपति द्वारा जारी किए गए कार्ड बनाने का ज़िम्मा लेते ही 13 करोड़ लोगों की जानकारियां सार्वजनिक हो गईं. ख़बरें बता रही हैं कि इसके पीछे रिलायंस जियो का हाथ है. 13 करोड़ लोगों की जानकारियां बिना उनकी अनुमति के ज़बरदस्ती संपूर्ण विश्व को लीक करने का काम रिलायंस जियो ने किया. यही ख़तरा बार-बार सुप्रीम कोर्ट बताता रहा है और इसी ख़तरे को लेकर वो सुनवाई कर रहा है.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला सरकार नहीं मान रही है. सरकार अपनी गति से आधार कार्ड को हर चीज़ से जोड़ती जा रही है और सुप्रीम कोर्ट चुप है. सुप्रीम कोर्ट के सामने सबूत पर सबूत पेश हो रहे हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट अपने आदेश का खुला उल्लंघन होने पर भी किन वजहों से चुप है, यह समझ में नहीं आ रहा. चारों तरफ अफवाहें हैं कि इसी आधार कार्ड की जानकारी का सहारा लेकर सुप्रीम कोर्ट के जजों की कमज़ोर नसें न केवल भारत सरकार के खुफिया महकमे ने अपनी मुट्‌ठी में जकड़ ली हैं, बल्कि विदेशी शक्तियों ने भी उन कमज़ोरियों को अपनी फाइलों में कैद कर लिया है. इसीलिए वो सुप्रीम कोर्ट जो छोटी-छोटी बातों पर दहाड़ता है, अपनी इतनी बड़ी अवमानना होते हुए, अपने फैसलों का उल्लंघन होते हुए देखकर भी खामोश है.
ये बात बहुत चिंताजनक है. क्या इसके पीछे भारत के वित्तमंत्री अरुण जेटली या स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं या इसके पीछे सारी दुनिया की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हिन्दुस्तान में एकमात्र प्रतिनिधि नन्दन निलेकणि हैं. नन्दन निलेकणि इन दिनों प्रधानमंत्री कार्यालय में बैठते हैं, इसका मतलब वो देश के उन चन्द सर्वशक्तिशाली व्यक्तियों में हैं, जो देश के बारे में फैसले लेते हैं. क्या प्रधानमंत्री कार्यालय ये तय कर चुका है कि वो देश के सारे लोगों की निजता को चौराहे पर नीलाम करेगा और दूसरी तऱफ सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था के आधार कार्ड से संबंधित किसी भी बात पर ध्यान नहीं देगा और अपनी योजना पर काम करता रहेगा.
सबसे बड़ा सवाल कि इस सवाल को मीडिया, विपक्षी दल, क़ानून के बड़े-बड़े भाष्यकार उठाने में न केवल हिचक रहे हैं बल्कि डर भी रहे हैं. इसलिए हमें उस स्थिति के लिए तैयार होना चाहिए कि अब अगर सरकार कुछ भी करेगी तो सुप्रीम कोर्ट जुबानी भले ही उसे रोकने की कोशिश करे, पर उसकी बात अब भविष्य में सरकार मानेगी ही, इसकी कोई गारंटी नहीं है. यह फैसला लगभग हो चुका है कि अब लड़ाई संसद या सुप्रीम कोर्ट की सर्वोच्चता की नहीं है, बल्कि भारत सरकार सर्वोच्च है, सर्वोच्च न्यायालय सर्वोच्च नहीं है, शायद अब यह सा़फ हो गया है

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