शुक्रवार, 2 जून 2017

बैलट पेपर से चुनाव में क्या हर्ज है

बैलट पेपर से चुनाव में क्या हर्ज है

electionअपनी तरह के एक अनोखे मामले में कोलकाता हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट के निवर्तमान न्यायाधीशों को भ्रष्ट कहा और सुनवाई के बाद उन्हें दोषी करार दिया. इसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जेल की सजा सुना दी. ये घटनाक्रम न्यायपालिका की गलत तस्वीर प्रस्तुत करते हैं. दरअसल वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने कोलकाता हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस कर्णन को पत्र लिखा कि बहुत हो गया, अब आपको इस तरह की चीजें बंद कर देनी चाहिए. बहरहाल इसमें खास बिंदु यह है कि अब जजों की नियुक्ति पर ध्यान देने की ज़रूरत है.
जस्टिस कर्णन की यह शिकायत थी कि उनके साथ उचित व्यवहार नहीं हो रहा था, क्योंकि वे अनुसूचित जाति के जज थे. जो बातें उनकी तरफ से आ रही हैं वो एक दुखद तस्वीर पेश करती हैं. यदि हाई कोर्ट के जज को लगता है कि उनके साथ भेदभाव हो रहा है तो आम आदमी का क्या हाल होगा? जस्टिस कर्णन का सम्बन्ध चेन्नई से है और वे कोलकाता में रहते हैं.
अब उनका स्थानांतरण कहीं और करने की बात चल रही है. मैं समझता हूं कि भारत के मुख्य न्यायाधीश को इस मामले पर कोई फैसला लेते वक़्त अधिक विवेकशील होना चाहिए. संजय किशन कौल, जिन्हें हाल में मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद से प्रोन्नति देकर सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बना दिया गया, पर जस्टिस कर्णन ने गंभीर सवाल उठाए हैं.
उन्होंने ऐसे कई उदाहरण दिए हैं, जिससे मिस्टर कौल की ईमानदारी सवालों के घेरे में आ जाती है. ये सारी चीज़ें सुप्रीम कोर्ट के लिए ठीक नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट को भी अपने आप को देखने की ज़रूरत है. जस्टिस चेलमेश्वर के इस बात में वजन है कि कॉलेजियम के अन्दर होने वाली बहस का विवरण तैयार किया जाना चाहिए, ताकि यह पता चल सके कि किसी जज की नियुक्ति कैसे होती है.
जस्टिस कर्णन के सन्दर्भ में यहां जानना आवश्यक है कि वे कैसे हाई कोर्ट के जज बन गए, जब उनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी और अब उनकी मनोस्थिति की मेडिकल जांच करवाना चाहते हैं. कुल मिला कर मैं समझता हूं कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को नेतृत्व अपने हाथ में ले लेना चाहिए और न्यायपालिका को दुरुस्त करना चाहिए, नहीं तो न्यायपालिका पर जनता का विश्वास कम हो जाएगा.
दूसरा सवाल ईवीएम का है. विपक्ष ने इस मुद्दे को नहीं उठाया, जिसकी वजह वह खुद बता सकता है. लेकिन सच्चाई यह है कि उत्तर प्रदेश चुनाव के नतीजों ने आम आदमी के मन में बड़ा संदेह पैदा किया है कि चुनाव साफ-सुथरे हुए हैं या नहीं. अब चाहे जिस कारण से भी हो, बैलट पेपर के साथ चुनाव करवाने में क्या बुराई है. दुनिया के अधिकतर देशों में बैलट पेपर के माध्यम से चुनाव होते हैं. ईवीएम या किसी अन्य तकनीक का सही इस्तेमाल भी हो सकता है और गलत इस्तेमाल भी हो सकता है.
मैं समझता हूं चुनाव आयोग को यह घोषणा करनी चाहिए कि 2019 के लोकसभा चुनाव बैलट पेपर के माध्यम से होंगे, जैसे पहले हुआ करते थे. हो सकता है कि नतीजे एक दिन के बजाय दो दिन में घोषित हों, लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है. लोग नतीजों का इंतज़ार कर सकते हैं, लेकिन वे आश्वस्त रहेंगे कि चुनाव साफ-सुथरे हुए और उसमें कोई हेराफेरी या चोरी-चकारी नहीं हुई है. एकमात्र नेता जिसने इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया है, लेकिन उनकी पार्टी बहुत छोटी है और केवल दिल्ली में सत्ता में है, इसलिए उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया जाएगा. दूसरे विपक्षी नेताओं को चुनाव आयोग के समक्ष उनका समर्थन करना चाहिए.
अब जो हो गया वो हो गया, उसे लौटाया नहीं जा सकता, लेकिन 2019 का लोक सभा चुनाव बैलट पेपर के माध्यम से होना चाहिए. जहां तक उत्तर प्रदेश का सवाल है, तो यदि मायावती और मुलायम सिंह यादव (यानि बसपा और सपा) एक साथ आएं तो बेशक वे उत्तर प्रदेश में बैलट पेपर के माध्यम से नए चुनाव करवाने की बात कर सकते हैं. यदि उसके बाद भी भाजपा जीत जाती है, तो कोई बात नहीं. मुझे समझ में नहीं आता कि इसमें चुनाव आयोग और भाजपा को क्या आपत्ति हो सकती है. चुनाव आयोग की कोशिश साफ-सुथरे चुनाव करवाने की होती है और भाजपा को विश्वास है कि वो लोकप्रिय है, लिहाज़ा चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता को बहाल करने की जरूरत है.
एक अन्य ज्वलंत मामला कश्मीर का है. मैं समझता हूं कि हर बीतते दिन के साथ वहां स्थिति बद से बदतर होती जा रही है. मौजूदा सरकार के मुताबिक यह कानून-व्यवस्था की समस्या है, लिहाज़ा समाधान का कोई सवाल नहीं है. अलगाववादी गुस्से में हैं. वे जनमत संग्रह चाहते हैं. पाकिस्तान अपनी वजह से गुस्से में है. लेकिन सच्चाई यह है कि कश्मीर एक राजनैतिक मसला है, जिसका समाधान 1947 से लंबित है. दो-तीन बार हम समाधान के करीब पहुंचे भी.
अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए ने कहा कि हम इसे हल करेंगे. अपने दस साल के कार्यकाल में मनमोहन सिंह ने भी वही रुख अपनाया. मुझे नहीं लगता कि हम एक बार फिर टकराव की भाषा का प्रयोग करें. बातचीत शुरू होनी चाहिए. भारत और पाकिस्तान को बातचीत करनी चाहिए. कश्मीर के अलगाववादियों का कोई एकमात्र नेता नहीं है. यदि भारत और पाकिस्तान के बीच अच्छे सम्बन्ध बन जाते हैं, तो मसले का हल निकल सकता है.
एक और मुद्दा चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) का है. सीपीईसी पर भारत में चीन के राजदूत ने एक दिलचस्प बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि यह एक बड़ा मुद्दा है. यदि इसपर भारत को आपत्ति है (क्योंकि यह कश्मीर से होकर गुजरती है) तो हम इसे चीन-भारत-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर कह सकते हैं. यह बहुत महत्वपूर्ण प्रस्ताव है, जिसमें काफी संभावनाएं हैं. इन संभावनाओं की तलाश सरकार को उच्चतम स्तर पर करना चाहिए.
यदि इसे अपनाया जाता है और पाकिस्तान इसपर राज़ी हो जाता है तो कश्मीर समस्या का समाधान निकाला जा सकता है. इसका व्यापक आधार यह होना चाहिए कि जिसके कब्जे में जो हिस्सा है, वो उसके पास बरक़रार रहे और इसी बुनियाद पर शांति का आह्वान किया जाए. दोनों तरफ के लोगों को आसानी से आवाजाही के लिए जो रियायतें दी जा सकती हैं, उनपर भी विचार किया जाना चाहिए. लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि कश्मीर समस्या का समाधान बंदूक से नहीं निकाला जा सकता है

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