देश में लोकसभा के चुनाव होने की घोषणा से कुछ साल पहले से कालेधन पर देश में चर्चाएँ शुरू हो गई थी। इस बार के लोकसभा चुनावों में देश की सभी राजनितिक पार्टी का मुख्य अजेंडा “कालाधन” वापिस देश में ले के आने का था। काला धन की ओर देश की जनता का ध्यान मुख्यत: तीन लोगों ने आकर्षित किया; जिन में एक नाम अन्ना हजारे, दूसरा अरविंद केजरीवाल और तीसरा नाम स्वामी रामदेव। पिछले कुछ सालों से सभी राजनितिक पार्टियों ने देश की जनता को काले धन के नाम से बरगलाने की हर प्रकार से कोशिश की। समाचार पत्रों, टीवी चेनलों आदि से लेकर सोसिअल मीडिया जैसे फेसबुक, ट्विट्टर, गूगल आदि का भी लोगों को बरगलाने के लिए पूरा पूरा प्रयोग किया गया। और इस में बीजेपी (ब्राह्मणवादी पार्टी) को पूरी सफलता भी मिली। देश में एक बार फिर से ब्राह्मणवादी सरकार बनाई गई। लेकिन जैसे ही चुनाव का समय पास आता गया इन तीनों आदमियों की आवाज धीमी पड़ती गई और चुनाव होते ही परिणाम आने से पहले ये तीनों आदमी देश की मुख्य धारा से ऐसे गायब हुए जैसे कि भारत के निवासी ही ना हो। इन तीनों आदमियों ने कभी किसी को यह नहीं बताया कि कालाधन देश में वापिस कौन से कानून के तहत लाया जायेगा? जिसका सीधा अर्थ निकालता है कि इन तीनों आदमियों ने देश के लोगों को “Emotional Fool” बनाया है ताकि इन तीनों नेताओं का उल्लू सीधा हो सके। विदेश में कितना कालाधन है? इस बारे तो तो इन तीनों ब्राह्मणवादी नेताओं ने बड़ी बड़ी डींगे हांकी लेकिन देश के अंदर क्या हाल है इस पर कोई भी नेता बात करने को तैयार नहीं है?
कालाधन का मुद्दा क्या है इस को समझने के लिए हमे पहले काला धन होता क्या है? यह समझना पड़ेगा। नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनैंस ऐंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) के मुताबिक, काला धन वह इनकम होती है जिस पर टैक्स की देनदारी बनती है लेकिन उसकी जानकारी टैक्स डिपार्टमेंट को नहीं दी जाती है। कालाधन वही नहीं है जो बिना किसी जानकारी के विदेशी बैंकों में जमा है, कालाधन वह भी है जो देश के अंदर जमा है और देश के टेक्स डिपार्टमेंट को खबर ही नहीं है। फिर चाहे वो धन दान के नाम पर मंदिरों, चर्च या मस्जिदों आदि धार्मिक स्थओंओं में ही क्यों ना जमा हो। 2002 से 2011 के बीच देश से सबसे ज्यादा कालाधन विदेशों में पहुँचाया गया है। अवैध वितीय प्रवाह रिपोर्ट के मुताबिक़ 2002-2011 के बीच देश से 343 बिलियन डॉलर देश से बाहर भेजे गए थे और भारत कालाधन बाहर भेजने वाला पांचवा सबसे बड़ा देश है। यह पैसा हवाला के जरिये देश के बाहर भेजा जाता है। यह वह स्थिति है जो विश्व स्तर पर काम करने वाली संस्थाओं ने अपनी रिपोर्ट में दर्शाई है। लेकिन सच इसके एक दम विपरीत है। यह आंकड़े केवल देश के लोगों को बेबकुफ़ बनाने के लिए दर्शाये गए थे। आम आदमी भी देश के कालेधन के चक्कर में आकार वह सब कर गया जो उनको नहीं करना चाहिए था। आखिर क्या है देश की सही स्थिति? देश में कुल कितना कालाधन है और कहा कहा जमा है? सरकार उस धन को निकालने के लिए क्या कर रही है? यह कुछ ऐसे सवाल है जिसका जबाब शयद ही किसी के पास हो? अगर आप यह सवाल किसी से पूछोगे तो आपको हिंदू द्रोही या मुल्ला होने की संज्ञा दी जायेगी। आप जो चाहे पूछे लेकिन सही बात नहीं पुछ सकते। यही हिंदुओं का शास्वत सत्य है।
अगर सही रूप से देश की आर्थिक व्यवस्था का अध्ययन किया जाये तो पता चल जाता है कि देश का कितना धन कहा है। आइये आपको एक उदाहरण देते है ताकि आपको बात समझने में आसानी हो। युएनओ की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में हर साल लगभग 14 खरब रुपये दान दिया जाता है। देश का आम आदमी अपनी कमाई का 30% दान में दे देता है। यह वह आंकड़े है जो युएनओ की रिपोर्ट से लिए गए है और यह कोई किसी शहर खास पर किया गया सर्वे नहीं है बल्कि पुरे देश के हर शहर और कस्बे (लगभग 6,53000) में किये गए सर्वे से सामने आये आंकड़े है। देश में बनाये गए दान के कानून के अनुसार दान टेक्स मुक्त होता है। यहाँ तक देश के टेक्स डिपार्टमेंट को इसके बारे कोई जानकारी नहीं दी जाती है। एक सर्वे के मुताबिक़ देश में हर साल लगभग 300 टन सोना मंदिरों में जमा हो रहा है। सर्वे के मुताबिक़ देश के लोग हर साल कम से कम 25000 किलो सोना खरीदते है और उस में से कम से कम 10% सोना चडावे के रूप में मंदिरों में चढ़ाया जाता है। देश के हर गॉंव में लगभग 2 से 3 धार्मिक स्थल होते ही है। जिनमें मुख्य रूप से मंदिर है। आखिर हम ब्लैक मनी या काला धन कहते किसे हैं? वह धन जिस पर टैक्स न दिया गया हो और वह धन जो सरकारी निगरानी से बाहर हो। धार्मिक स्थलों की कमाई तकरीबन इन दोनों ही शर्तों को पूरा करती है। भले ही कुछ गिनेचुने धार्मिक स्थलों की कमाई का ब्योरा रखा जाता हो, लेकिन ज्यादातर धार्मिक स्थलों की कमाई का कोई ब्योरा नहीं रखा जाता और अगर रखा भी जाता होगा तो वह प्रशासन को नहीं बताया जाता, क्योंकि न तो ऐसी कोई कानूनी बाध्यता है और न ही ऐसा चलन. इसलिए धार्मिक स्थलों में होने वाली अंधाधुंध कमाई का अधिकतम हिस्सा ब्लैक मनी में ही तबदील होता है।
भारत में वित् मंत्रालय से प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार के पास 3250 टन सोना है जबकि भारत के मंदिरों के पास 30,000 टन सोना है। सही तरीके से विश्लेषण किया जाये तो पता चलता है कि देश के 100% मंदिर ब्राह्मणों के पास है। मंदिरों की सम्पति पर ब्राह्मणों के एक छत्र और एक मात्र अधिकार है। इसका मतलब यह निकालता है कि देश का सबसे अमीर वर्ग ब्राह्मण है। ब्राह्मणों ने धर्म के नाम पर देश के लोगों का हर हार में शोषण किया है। रुपये पैसे से लेकर हर प्रकार की सम्पति को देश के मूलनिवासियों अर्थात एससी, एसटी, ओबीसी और आदिवासियों से ठगा है और यह प्रक्रिया 2000 सालों से चली आ रही है। अगर धर्म के नाम के इस घोटाले की छानबीन की जाए तो यह विश्व का आज तक का सबसे बड़ा घोटाला होगा। अनुमान है कि देश के मंदिरों में लगबग 14 ट्रीलियन युएस डॉलर से भी ज्यादा का कालाधन छुपाया गया है। सच इस से भी भयानक हो सकता है, हमारे अनुमान के मुताबिक मंदिरों में 20 से 25 ट्रीलियन युएस डॉलर की सम्पति कालेधन के रूप में जमा है। जोकि देश की सार्वजनिक सम्पति है लेकिन ब्राह्मण उस पर भगवान के नाम से कब्ज़ा किये बैठा है। देश से बाहर भी जितना कालाधन है वह भी ब्राहमणों का ही है। तभी तो कोई भी सरकार विदेशों में जमा कालेधन के मालिकों के नाम सार्वजनिक करने से डर रही है। अगर सभी के नाम सामने आ गए तो ब्राह्मण की पोल खुल जायेगी।
मूलनिवासी लोग इस बात से अनजान हमेशा वही करते है जो ब्राह्मण चाहता है। सभी मूलनिवासियों को ब्राह्मण वर्ग ने अन्धविश्वास और आडम्बर के ऐसे चक्रव्यूह से घेर रखा है जिस से मूलनिवासी समुदाय का आदमी बाहर निकलना ही नहीं चाहता। भगवान के नाम पर डरा-सहमा और अनपद मूलनिवासी हमेशा धर्म और भगवान के नाम पर ब्राह्मण वर्ग के हाथों अपना शोषण करता रहता है। बहुत से मूलनिवासी समुदाय ब्राह्मण के बिछाए इस धर्म और वर्ण व्यवस्था के जाल से बाहर निकालना चाहते है। लेकिन उनके अपने ही भाई, जिनको ब्राह्मणों ने दलित या शूद्रों में उच्च वर्ग का स्थापित कर रखा है, अपने ही भाइयों से बगावत करके उनको गुलाम बनाये रखते है। यह वह वर्ग है जो मूलनिवासियों की गुलामी के लिए मुख्य रूप से जिमेवार है। आज धीरे धीरे हर मूलनिवासी समझता जा रहा है कि ब्राह्मण विदेशी है और धोखे से देश पर और देश की सम्पति पर कब्ज़ा किये बैठा है। और ब्राह्मणों के इस षड्यंत्र के खिलाफ एकजुट होता जा रहा है। आज देश का हर तंत्र ब्राह्मणों के कब्जे में है यहाँ तक सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया भी ब्राह्मणवाद का शिकार हो गया है। जिस न्याय प्रणाली को हम निष्पक्ष मानते है वह न्याय प्रणाली आज बहुत बुरी तरह भ्रष्टाचार और ब्राह्मणवाद के प्रभाव में आ चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने पदमनाभ मंदिर से सम्बंधित केस में ऐतिहासिक फैसला सुनते हुए कहा था कि मंदिरों की सम्पति मंदिर के देवता की होती है। यह फैसला कितना ब्राह्मणवादी है यह बात बहुत आसानी से समझी जा सकती है। संविधान के मुताबिक़ चल-अचल सम्पति किसी जिन्दा इंसान या प्राणी की होती है। जिस चीज या रानी का कोई अस्तित्व ही ना हो उसकी सम्पति किसी भी कानून के तहत घोषित नहीं की गई है। लेकिन फिर भी सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने ब्राह्मणों की सम्पति जो मंदिरों में काले धन के रूप में जमा है उसको बचाए रखने के लिए, सविधान में वर्णित कानूनों को टाक पर रख कर फैसला सुना कर नया कानून बना दिया कि मंदिरों की सम्पति मंदिर के देवता की होती है। जो किसी भी प्रकार से न्यायसंगत नहीं है। यह मूलनिवासी समाज के लोगों के खिलाफ ब्राह्मणवाद का कानूनी रूप है। जहाँ मूलनिवासी को कानून के नाम पर बेबकुफ़ बना कर ब्राह्मणों का वर्चस्व कायम रखा गया है।
यही बात विदेशों में जमा कालेधन पर भी लागू होती है। विदेशों में जमा काल्धन भी देश के सम्पति है लेकिन सबसे ज्यादा कालाधन किस के पास है या किसके नाम से जमा है यह भी विचार करने योग्य प्रश्न है। कालेधन के नामों की सूची देखि जाए तो विदेशों में भी सबसे ज्यादा कालाधन ब्राह्मण वर्ग के पास या उनके नामों से जमा है। मूलनिवासी समाज इस बात को समझ नहीं पा रहा है कि यह ब्राह्मणों का एक षड्यंत्र मात्र है जिसके तहत मूलनिवासी समुदाय के लोगों को गरीब से अति गरीब बनाया जा रहा है। मूलनिवासी लोगों को यह बात समझनी होगी और कालेधन के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठानी होगी। फिर चाहे वो कालाधन देश के अंदर हो या बाहर; वह सारा धन देश की सम्पति है और देश के हर नागरिक के लिए उस धन का प्रयोग होना चाहिए।
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