शनिवार, 10 जून 2017

महंगाई का कारण राजनीति, मजबूरी नहीं

महंगाई का कारण राजनीति, मजबूरी नहीं



मोदी सरकार के तीन साल में महंगाई इस हद तक बढ़ी है कि सरकारी आंकड़े भी इसका साथ नहीं दे पा रहे हैं. खाद्य सामग्रियों की मूल्य वृद्धि ने तो आम जनता का बुरा हाल कर दिया है. गत तीन वर्षों में चना दाल का मूल्य 75 प्रतिशत बढ़ गया है. मई 2014 में ये रिटेल में 49 रुपए प्रति किलोग्राम मिलता था, जो अब 86 रुपए प्रति किलो बिक रहा है. उड़द दाल के मूल्य में भी 46 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. यह तीन वर्ष पूर्व 68 रुपए प्रति किलो के भाव से बिक रहा था, वहीं अब 99 रुपए प्रति किलो मिल रहा है. अरहर दाल के मूल्य में भी 24 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.
ये हाल तब है, जब हम पूरे तीन साल की औसत मूल्य वृद्धि की बात कर रहे हैं. बीच के समय में कई बार खाद्य पदार्थों के मूल्य में और भी उछाल आया है. उदाहरण के तौर पर, सितम्बर-नवंबर 2015 में अरहर दाल का मूल्य 200 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गया था. एक वर्ष पूर्व चीनी 50 रुपए प्रतिकिलो बिक रही थी. मोदी के सत्ता में आने के पहले वर्ष में प्याज 100 रुपए प्रति किलो बिक रही थी. इसीप्रकार अक्टूबर 2015 में सरसो तेल का दाम 150 रुपए प्रति किलो से भी ऊपर चला गया था.
अब हम भारत द्वारा आयात किए जाने वाले विभिन्न क्रुड ऑयल के मूल्यों पर एक नजर डालते हैं. ये जानना जरूरी है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इनका मासिक औसत मूल्य क्या है और आयात के बाद भारत में ये किस दर पर बिक रहे हैं. हम ये भी देखेंगे कि गत वर्षों में इनके मूल्य में क्या अंतर आया है. मोदी के सत्ता में आने के बाद जून 2014 तक अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रुड ऑयल की कीमत 109 डॉलर प्रति बैरल थी.
जनवरी 2015 में इसमें भारी कमी देखी गई और क्रुड ऑयल की कीमत कम हो कर 47 डॉलर प्रति बैरल हो गई. हालांकि मई 2015 में इसके दाम में फिर बढ़ोतरी हुई और ये 64 डॉलर प्रति बैरल हो गया. जनवरी 2016 में एक बार फिर इसके दाम में भारी कमी हुई और ये 28 डॉलर प्रति बैरल पर बिकने लगा. तब से लेकर अब तक के कई उतार-चढ़ाव के बाद अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में अभी ये लगभग 50 डॉलर प्रति बैरल के भाव से बिक रहा है.
जाहिर सी बात है कि अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में क्रुड ऑयल के इस कम मूल्य का सकारात्मक प्रभाव भारत में पेट्रोलियम प्रोडक्ट् के मूल्य पर भी पड़ना चाहिए था और इनके दामों में कमी होनी चाहिए थी. लेकिन आश्चर्य की बात है कि हमारे यहां इस मामले में उल्टी गंगा बह रही है. ट्रांसपोर्टेशन फ्यूल अर्थात डीजल की बात करें, तो इसका मूल्य 56.71 रुपए प्रति लीटर से बढ़कर 59.02 रुपए प्रति लीटर हो गया है.
जबकि मुंबई में पेट्रोल 73-74 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से बिक रहा है. गौर करने वाली बात ये भी है कि इन तीन वर्षोर्ंे में पीडीएस किरासन तेल एवं सब्सीडाइज्ड एलपीजी की कीमतों में भी उछाल आया है. हालांकि ये पेट्रोल-डिजल के मुकाबले थोड़ा कम है. किरासन तेल 14.96 रुपए प्रति लीटर से बढ़कर 18.77 प्रति लीटर हो गया है, वहीं एलपीजी का मूल्य 414 रुपए प्रति सिलिंडर से बढ़कर 443 रुपए प्रति सिलिंडर हो गया है.
अब प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि ऐसा क्यों हुआ? दरअसल, मोदी सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कम कीमतों का फायदा आम लोगों को देने के बजाय अपने राजकोष को मजबूत करना बेहतर समझा. इसलिए दाम में कमी के बाद टैक्स वृद्धि हुई. इन सबके कारण केंद्र सरकार को जबरदस्त फायदा हुआ. नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने से पहले 2013-2014 में केंद्र सरकार को तेल से आने वाले टैक्स के जरिए 1.06 लाख करोड़ रुपए मिले थे, जो अगले वित्त वर्ष में बढ़कर 2.1 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया.
उल्लेखनीय है कि टैक्स से वसूली गई ये राशि दो वर्ष पूर्व इस मद में वसूली गई  राशि से दोगुनी थी. इसका मतलब साफ है कि केंद्र सरकार ने पेट्रोलियम प्रोडक्ट् के नाम पर एक भारतीय हाउस होल्ड से सालाना 4250 रुपए अधिक वसूल किया. ज्ञात रहे कि ये सिर्फ वही राशि है, जो इन प्रोडक्ट् पर टैक्स के रूप में सीधे वसूली गई है. यह भी एक कारण है आम भारतीयों पर महंगाई के बोझ का.
तीन वर्षों के दौरान तमाम वस्तुओं की कीमतों में हुई ये बेतहासा वृद्धि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस वादे को झुठला रही है, जो उन्होंने चुनाव से पहले अच्छे दिन के आकर्षक नारे के साथ किया था. उन्होंने महंगाई को लेकर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया था और कहा था कि भाजपा की सरकार आई, तो महंगाई को काबू में किया जाएगा. लेकिन हुआ इसका उल्टा. एक तो महंगाई बढ़ती गई और उसके बाद रही-सही कसर नोटबंदी ने पूरी कर दी


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