रविवार, 11 मार्च 2018

आरक्षण कौन ले रहा है?

आरक्षण कौन ले रहा है?

आजकल जहाँ भी दो चार जनरल केटेगरी वाले इक्कठे बैठते हैं वहाँ एक ही चर्चा करते हैं कि आरक्षण ने तो देश को बर्बाद कर दिया है, अब तो सभी बराबर हो गए हैं, कोई जातिवाद नहीं है इसलिए अब इस आरक्षण को खत्म कर देना चाहिए। अफसोस की बात यह है कि हमारे कई नेता भी बोलने लगे हैं कि आरक्षण की समीक्षा होती है तो क्या बुरा है? जिन लोगों को सब कुछ ठीक ठाक लग रहा है और कहीं भी जातिवाद नजर नहीं आता है उनका आह्वान किया जाता है कि आओ मेरे साथ मैं तुम्हें जातिवाद दिखाता हूँ। आओ चलें ईंट भट्ठों पर और देखो वहाँ जो ईंट पथाई कर रहे हैं या पक्की हुई ईंटों की निकासी कर रहे हैं, जिनमें पुरुषों के साथ-साथ उतनी ही संख्या में महिलाएं भी दिखाई दे रही हैं उनमें ब्राह्मण, राजपूत और बनिया कितने हैं? इसका जवाब यही होगा कि इनमें तो उन समाजों का एक भी व्यक्ति नहीं है। तो फिर यह जातिवाद नहीं है तो फिर क्या है? अब आगे चलो मेरे साथ शहरों की गलियों में और ध्यान से देखो जो महिलाएं सड़कों पर झाड़ू लगा रही हैं और गंदी नालियाँ साफ कर रही हैं। उनमें कितनी ब्राह्मणी, ठुकराईन और सेठानी जी दिखाई दे रही हैं? यहाँ भी वही जवाब की इनमे तो ब्राह्मणी, ठुकराईन और सेठानी एक भी नहीं हैं। तो यह जातिवाद नहीं है क्या? अब आओ चलते हैं रेलवे स्टेशन, हमारे देश में कई हजारों की संख्या में रेलवे स्टेशन बने हुए हैं वहाँ जो रेलवे लाइनां पर शौच के ढेर के ढेर लगे हुए रहते हैं उनको रातों रात साफ करने के लिए पंडित जी आता है या सिंह साहब या फिर शाहूकार जी सेवा देते हैं? इसका भी वही जवाब मिलेगा की उनमे से तो एक भी नहीं आता है। तो फिर क्या यह जातिवाद नहीं है?
अब रूख करते हैं भवन निर्माण कार्य करने वाले मिस्त्री और मजदूरों की ओर जो पूरे दिन अपना हाथ चलाते रहते हैं जिन्हें मिस्त्री कहते हैं और जो पूरे दिन सिर पर वजन ढोने में लगे रहते हैं उन्हें मजदूर कहा जाता है। वैसे वे मजदूर नहीं, बल्कि मजबूर हैं। क्योंकि 50 डिग्री तापमान में कोई कूलर की हवा खा रहा होता है तो कोई ऐ.सी. में मौज कर रहा होता है। उस वक्त भी ये लोग तेज गर्मी और लू के थपेड़े खा रहे होते हैं, अब इनमे भी नजर दौड़ाते हैं तो उनकी संख्या नदारद मिलती है तो क्या यह जातिवाद नहीं है क्या? अब अपना ध्यान जगह-जगह बोरी बिछाकर बैठे हुए उन लोगों की ओर लेकर जाओ जो जूता पॉलिश करते हैं या जूतों की मरमत करते हैं उनमें ब्राह्मण और उनके साथियों की भागीदारी कितनी है? जवाब मिलेगा बिलकुल शून्य। इसका मतलब है कि पूरा का पूरा जातिवाद भरा पड़ा है। अब जरा बाजारों की ओर चारों ओर जो बड़े बड़े मॉल और बड़ी बड़ी दुकानें दिखाई दे रही हैं उनका मालिक कोई एससी समाज वाला भी है या नहीं? यहाँ एकदम से ही पासा पलट गया है अब यहां एससी का एक भी बन्दा नजर नहीं आएगा और सभी पर ब्राह्मण और बनिया व राजपूत का ही कब्जा मिलेगा। अब सभी मिलकर सोचो कि क्या यह जातिवाद नही है? बिलकुल यह खुल्लमखुल्ला जातिवाद है। अब मंदिरों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहना चाहता हूँ कि मंदिरों में कितने पुजारी ब्राह्मणों के अलावा देखने को मिलते हैं, शायद एक भी नहीं। क्या इसे आप जातिवाद नहीं समझते हैं? आज भी हर कदम पर जातिवाद का जहर भरा हुआ है और लोग कहते हैं कि अब कोई जातिवाद नहीं है, अब आरक्षण खत्म कर दिया जाना चाहिए। आरक्षण होते हुए भी उच्च पदों पर हमारे समाज के लोगों को पहुंचने से रोका जाता है, यदि जिस दिन आरक्षण खत्म हो जायेगा उस दिन से तो जातिवाद और अधिक पनप जायेगा। इसलिये जो ऐसी बात करता है उसे कहो कि आओ मेरे साथ तुम्हें जातिवाद दिखाता हूँ।
भारत में 3.5 प्रतिशत ब्राह्मण, 5  प्रतिशत क्षत्रिय और 06.5 प्रतिशत वैश्य हैं। कुल मिलाकर भारत में इनकी संख्या 15 प्रतिशत है। इसके बाद भी देश के शासन-प्रशासन से लेकर स्कूल, कॉलेज, अन्य उच्च संस्थानों और न्यायालयों पर केवल इन्हीं अल्पसंख्य यूरेशियन लोगों का कब्जा है। लोकसभा में ब्राह्मण 48 प्रतिशत, राज्यसभा में ब्राह्मण 36 प्रतिशत, ब्राह्मण राज्यपाल 50 प्रतिशत, कैबिनेट सचिव 53 प्रतिशत ब्राह्मण, मंत्री सचिव में ब्राह्मण 64 प्रतिशत, अतिरिक्त सचिव में ब्राह्मण 62 प्रतिशत, पर्सनल सचिव में ब्राह्मण 70 प्रतिशत, यूनिवर्सिटी में ब्राह्मण वाईस चांसलर 61 प्रतिशत, सुप्रीम कोर्ट में ब्राह्मण जज 85 प्रतिशत, हाई कोर्ट में ब्राह्मण जज 70 प्रतिशत, भारतीय राजदूत ब्राह्मण 51 प्रतिशत, पब्लिक अंडरटेकिंग नौकरियों में ब्राह्मण 67 प्रतिशत, बैंक में ब्राह्मण 67 प्रतिशत, एयरलाइन्स में ब्राह्मण 61 प्रतिशत, आइएएस में ब्राह्मण 72 प्रतिशत, आइपीएस में ब्राह्मण 61 प्रतिशत, टीवी कलाकार एव बॉलीवुड में ब्राह्मण 83 प्रतिशत, सीबीआई कस्टम में ब्राह्मण 72 प्रतिशत हैं। कुल मिलाकर अल्पसंख्य ब्राह्मणों का शिक्षा पर 96 प्रतिशत, सरकारी नौकरियों पर 71 प्रतिशत और जमीनों पर 94 प्रतिशत सवर्णों का कब्जा है।
ये उक्त आंकड़े इस बात के सबूत हैं कि देश पर अल्पसंख्य ब्राह्मणों का पूर्णरूप से अनियंत्रित कब्जा है। इसका विरोध आज तक किसी ने क्यो नही किया कहाँ छुपे हैं आरक्षण विरोधी? सामने आये और विरोध करें। अगर एससी-एसटी और ओबीसी आरक्षण मिला है तो वह जनसंख्या के अनुपातिक आधार पर मिला है, इसके बाद भी कांग्रेस और भाजपा उनके अधिकारों पर डाका डाल चुकी है। संविधान में आरक्षण मौलिक अधिकार होने के बाद भी मूलनिवासी बहुजनों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है, जबकि संख्या के आधार पर एससी की संख्या 15 प्रतिशत है आरक्षण 15 प्रतिशत, एसटी की संख्या 7.5 प्रतिशत और आरक्षण 7.5 प्रतिशत, इसी तरह से ओबीसी की संख्या 60 प्रतिशत है, लेकिन उनको आरक्षण 27 प्रतिशत है। इसके अलावा अल्पसंख्यकों की संख्या 15 प्रतिशत और आरक्षण 15 प्रतिशत होना चाहिए। यानी एससी, एसटी, ओबीसी और मायनॉरिटी का कुल योग 85 प्रतिशत है और आरक्षण 49.5 प्रतिशत ही दिया जा रहा है। जबकि वहीं 15 प्रतिशत शासक वर्ग 50.5 प्रतिशत आरक्षण का लाभ ले रहा है। अब इस आंकड़ों को देखकर बताइए की वास्तविक में आरक्षण कौन ले रहा है? कुल मिला कर इस देश में मनुवादी ब्यवस्था आज भी कायम है। इसे कायम रखने वाले यहाँ की मनुवादी सरकारें है। जिन्होंने बारी-बारी इस देश में 70 सालों तक राज किया और अपनी ब्यवस्था को कायम रखने के लिए अपनी कूटनीति के तहत हमें आपस में लडाते रहते हैं और हमारे आरक्षण का विरोध करते हैं। ताकि उनको मिल रहे आरक्षण की ओर हमारा ध्यान ना जा सके। पर दुःख की बात तो यह है कि हमारे अपने ही लोग ढाल बन कर इन सवर्णों का साथ दे रहे हैं।

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