शनिवार, 10 मार्च 2018

दैनिक मूलनिवासी नायक का सनसनीखेज खुलासा, डॉक्टरों की खराब लिखावट के कारण हर साल सात हजार लोगों की मौत

दैनिक मूलनिवासी नायक का सनसनीखेज खुलासा
डॉक्टरों की खराब लिखावट के कारण हर साल सात हजार लोगों की मौत


दै.मू.ब्यूरो/मुम्बई
♦ डाक्टरों की हाथ से लिखी ऐसी भाषा और राइटिंग होती है जिसे किसी के लिए पढ़ पाना संभव नहीं होता-उच्च न्यायालय
डॉक्टर्स की लिखी हुई पर्ची पढ़कर कई लोगों का दिमाग घूम जाता है। चाहे आप कितना भी दिमाग लगा लें, लेकिन उनकी पर्ची पर लिखे गिने-चुने शब्द ही पढ़ पाएंगे। जिसकी वजह से हर साल लगभग 07 हजार लोगों के मौत का कारण बन रहा है। 
दैनिक मूलनिवासी नायक ने एक सनसनीखेज खुलासा करते हुए लोगों को तब चौंका दिया जब एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि डॉक्टरों की खराब लिखावट के कारण हर साल 07 हजार लोगों की मौत हो जाती है। गौरतलब है कि इस बात का भी खुलासा हो चुका है कि कई बार मेडिकल शॉप वाले भी डॉक्टर की लिखावट समझ नहीं पाते और गलत दवाएं दे देते हैं। साथ ही दवा कब और कितनी बार लेनी है, ये भी जिस स्टाइल से लिखा जाता है, उसे कम लोग ही समझ पाते हैं। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात तो यह है कि डॉक्टरों द्वारा लिखा गया मेडिको लीगल पेपर उच्च न्यायालय के जज भी नहीं पढ़ पाये।
गौरतलब है कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया में बताया गया है कि इलाज के लिए प्रिस्क्रिप्शन लिखते समय कैपिटल लेटर्स यूज करने होंगे। यहां तक कि मरीज को पूरी तरह से लिखकर समझाना भी होगा, जिससे की मरीज को भी समझ में आ जाय। एमसीआई के अनुसार डॉक्टर को यह बात पता होती है कि वे या उनके सहयोगी डाक्टर पर्चे पर जो लिखते हैं उसे सिर्फ वे ही पढ़ सकते हैं ना कि कोई दूसरा। अपनी राइटिंग को हर डॉक्टर अच्छे से समझता है और माना जाता है कि वर्क लोड की वजह से डॉक्टरों की हैंडराइटिंग खराब हो जाती है। फैकल्टी ऑफ मेडिकल फॉर डॉक्टर्स एंड मेडिकल स्टूडेंट्स की वेबसाइट के अनुसार डॉक्टरों की खराब हैंडराइटिंग की वजह से हर साल करीब सात हजार मरीजों की जान चली जाती है। क्योंकि मरीज दवा की पर्ची लेकर दवा की दूकानों पर जाते हैं और फर्मासिस्ट पर पूरी तरह से विश्वास करते हैं कि वह जो भी दवा देगा सही ही देगा। कभी-कभी फार्मासिस्ट भी डॉक्टरों की हेडराइटिंग नहीं समझ पाते हैं और गलत दवाएं दे देते हैं। चौंकाने वाली बात तो यह है कि एक रिपोर्ट के मुताबिक दावा किया गया है कि 100 में 99 डॉक्टर खराब हैंडराइटिंग में ही दवा लिखते हैं।
हैरानी तो इस बात की हुई जब उच्च न्यायालय ने किसी मामले में आरोपपत्र दाखिल करते समय उसके साथ मेडिको लीगल पेपर भी दाखिल करने का आदेश दिया। लेकिन बहुत कोशिश के बाद भी उसे अदालत में कोई नहीं पढ़ नहीं पाया। बाद में अदालत ने रिपोर्ट बनाने वाले डाक्टर को कोर्ट ने तलब करते हुए इस बात पर आपत्ति जताई कि डाक्टरों की हाथ से लिखी रिपोर्ट में ऐसी भाषा और राइटिंग होती है जिसे किसी के लिए पढ़ पाना संभव नहीं होता।

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